देहरादून,प्रथम विक्टोरिया क्रॉस पाने वाले चमोली के दरवान सिंह नेगी जी की पुण्य तिथि पर शत शत नमन
जब गढ़वाल राइफल्स के जवानों ने रातोंरात ढहा दी थी जर्मन सैनिकों की दीवार…
प्रथम विश्वयुद्ध को समाप्त हुए 106 वर्ष हो गए हैं। इस युद्ध में दुनियाभर की फौजें शामिल थीं, लेकिन इनमें भारतीय सैनिकों के साहस और वीरता ने पूरी दुनिया में एक अलग छाप छोड़ी। यही वजह थी कि जब फ्रांस में ब्रिटिश सैन्य टुकड़ियों के बीच दीवार बनी जर्मन सेना को कोई हिला नहीं पा रहा था, तब गढ़वाल के नायक दरवान सिंह नेगी के नेतृत्व वाली ब्रिटिश-भारतीय सेना ने रातोंरात इस दीवार को ढहा दिया। इस अप्रतिम विजय के लिए ब्रिटेन के किंग जॉर्ज ने स्वयं रणभूमि में जाकर उन्हें विक्टोरिया क्रॉस दिया था। वह इस वीरता पुरस्कार को पाने वाले पहले भारतीय थे।
अपूर्व साहस का वह दौर
अगस्त 1914 में भारत से 1/39 गढ़वाल और 2/49 गढ़वाल राइफल्स की दो बटालियन को प्रथम विश्व युद्ध में हिस्सा लेने भेजा गया। अक्टूबर 1914 में दोनो बटालियन फ्रांस पहुंची। वहां भीषण ठंड में दोनों बटालियन को जर्मनी के कब्जे वाले फ्रांस के हिस्से को खाली कराने का लक्ष्य दिया गया। इस इलाके में जर्मन सेनाओं के कब्जे के चलते ग्रेट ब्रिटेन के नेतृत्व वाली दो सैन्य टुकड़ियां आपस में नहीं मिल पा रही थीं।
दिया गया विक्टोरिया क्रॉस:
नायक दरवान सिंह नेगी के नेतृत्व में 1/39 गढ़वाल राइफल्स ने 23 और 24 नवंबर 1914 की मध्यरात्रि हमला कर जर्मनी से सुबह होने तक पूरा इलाका मुक्त करा लिया। इस युद्ध में दरवान सिंह नेगी के अदम्य साहस से प्रभावित होकर किंग जार्ज पंचम ने सात दिसंबर 1914 को जारी हुए गजट से दो दिन पहले पांच दिसंबर 1914 को ही युद्ध के मैदान में पहुंचकर नायक दरवान सिंह नेगी को विक्टोरिया क्रॉस प्रदान किया था। नायक दरवान सिंह नेगी की वीरता के चलते गढ़वाल राइफल्स को बैटल आफ फेस्टूवर्ट इन फ्रांस का खिताब दिया गया। इसकी याद में उत्तराखंड के लैंसडाउन में स्थापित मुख्यालय में एक संग्रहालय बनाया गया है। इसके बाद नायक दरवान सिंह 1915 में आफिसर बनाए गए। उनको जमादार पद मिला। साथ ही उनके कमीशंड होने का प्रमाणपत्र भी जारी किया गया। 1924 में उन्होंने समय से पहले स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी।
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Wed Jun 24 , 2020
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