दिल्ली में जिस तरीके से बीजेपी, कांग्रेस और आप ने उत्तराखंड के लोगों को दरकिनार करते हुए पूर्वांचल के लोगों को तवज्जो दी है वह बताता है की मात्र सांस्कृतिक कार्यक्रम करने से कोई नेता नहीं बन जाता है…. मात्र तालियां बजवाने से, फूल मालाएं पहनने से, पहनवाने से कोई नेता नहीं बन जाता है…
सांस्कृतिक कार्यक्रमों की भीड़ को राजनीतिक भीड़ मानना सबसे बड़ी भूल होती है… टिकट मिलता है तो जनाधार पर और उत्तराखंड का कोई भी व्यक्ति दिल्ली में बड़े जनाधार का नहीं है…सिर्फ कोरी बातों को लेकर टिकट मांगना और उस पर पार्टी का जवाब बहुत करारा है, बिना जनाधार के नेता को टिकट मिल भी नहीं सकती है.. टिकट उसी को मिलती है जिसको पूर्वांचल उत्तराखंड पंजाब अन्य प्रदेशों के लोग भी अच्छी तरह जानते हो जिसके बूथ लेवल से लेकर विधानसभा तक कार्यकर्ता हो…
इसलिए उत्तराखंड के लोगों दिल्ली में राजनीति करनी है तो जमीनी स्तर पर अपने आप को साबित कर दिखाओ स्थानीय चुनावों में अपना मजबूत प्रतिनिधित्व करके दिखाओ साथ ही अपनी पकड़ केंद्रीय नेतृत्व से बढ़ा दिया करें उसके बाद धीरे-धीरे राज्य और केंद्र की सत्ता की बात करें। पत्र का कहना है कि
पहले प्रतापनगर के पड़िया गांव के निवासी मुरारी सिंह जी मयूर विहार इलाके से विधायक रहे ।उन्होंने ने गढ़वाल भवन पचकुयाँ रोड़ के लिये काफी काम किया है। उत्तराखंड वासियों की पहचान प्रगतिशील लोगों में हुई उन्होंने उत्तराखंड वासियों की दिल्ली में राजनीतिक रूप में पहचान बनाने का काम किया है। इसको बनाये रखने के लिए लोग अपने को कायम करने के लिए तैयार नहीं रह सके ।वहाँ भी उत्तराखंड के जगह जगह के लोग हैं ।उनके बनने से कई यहां से चुनकर जाने वाले लोगों का कद छोटा होने लगा तो काम करने वाले के पैरों को पीछे खीचने का काम कुछ स्वार्थी तत्वों की मंडली करवाती और करती है।उनको अपनी ही रहती है। उत्तराखंड वासियों को अपना संघठन बनाकर चुनाव लड़ना चाहिए। या अपने को रिजर्व सीट से नामांकन दाखिल कर देना चाहिए। तब आपकी कीमत बढ़ेगी। जब विजय वोट में आपकी भागीदारी सुनिश्चित होगी। इस समय एक निर्णय ले कि राष्ट्रीय पार्टी हमारे एक प्रतिनिधि को राज्यसभा सांसद बनाया जाता है तो ठीक है ।नहीं तो वोट का बहिष्कार करने के लिए हम तैयार हैं। कुछ तो आपको अपने लिए आने वाली पीढ़ी के लिए वहाँ करना है। गजनी छोटा सा गांव है वहां के महमूद गजनवी ने 17 बार आक्रमण किया है।आप लोग वहां पर 40 लाख आवादी पार करने वाले हैं। जरा सोचो। देश के लिये कुर्बान होने वाले लोगों के लिए सरकार की पार्टी का यह नजरिया बदलना चाहिए। हमारे पास चारधाम यात्रा से हमारी देव भूमि देश की अघाद श्रद्धा संस्कृति का केंद्र है तो हम प्रतिनिधि के रूप मे क्यों नहीं महत्व देते हैं। जब तक रोता नहीं तब तक मा दूध नहीं देती है।जय बद्रीविशाल कुछ आपको सफलता की प्रेरणा मिले।यही कामना करते हुए।जय भारत जय उत्तराखंड।
जीतमणि पैन्यूली