कीर्तिनगर व टिहरी मे राजशाही के खिलाफ हुआ जनसंघर्ष निर्णायक हुआ।इसके बाद से टिहरी मे राजशाही का खात्मा ही हो गया।इस पोस्ट मे कमेंट के माध्यम से बताया जायेगा कि क्यों विद्रोह हुआ? कैसे विद्रोह हुआ? और कैसे टिहरी फिर शेष भारत मे विलय हुआ।बेहद ही रोचक पोस्ट,पढ़ते रहिएगा।(गणेश ध्यानी)राजशाही के खिलाफ असंतोष भड़क रहा था,सकलाना की आजाद पंचायत के बाद धद्दी घंडियाल। के मेले मे आजाद पंचायत का गठन किया गया।इसके साथ ही टिहरी राजधानी पर कब्जा करने के लिए सत्याग्रही भर्ती किए जाने लगे।राज्य भर मे सत्याग्रहियों के कैम्प खोले गए।ये सत्याग्रही गाँव गाँव जाकर स्वतंत्रता की अलख जगाते। 31दिसंबर1947को पट्टी कड़ाकोट से दादा दौलतराम के नेतृत्व मे ग्रामीणों का एक जत्था कीर्तिनगर की ओर बढ रहा था जिसे राणीहाट के पास राज्य की पुलिस ने डरा धमकाकर रोकना चाहा, जब जत्था न रुका तो पुलिस के जवानों ने गोली चला दी,जिससे एक व्यक्ति के हाथ की उँगलियाँ उड़ गई।जत्था पुलिस इंस्पेक्टर को पकड़ने के लिए आगे बढ़ा तो इंस्पेक्टर अपने घर मे घुस गया जहाँ डिप्टी कलेक्टर भी सुरक्षा की दृष्टि से आये थे।ग्रामीणों के जत्थे ने इंस्पेक्टर के घर को घेर लिया।डिप्टी कलेक्टर बाजार की ओर भागने लगे जिन्हें ग्रामीणों ने पकड़ लिया।पुलिस इंस्पेक्टर व दो सिपाही भी पकड़ लिए गए।इन सबको रस्सी से बाँधकर श्रीनगर लाया गया।डिप्टी कलेक्टर ने रास्ते मे दौलतराम से कहा,”जनता को अवैधानिक कार्य नहीं करने चाहिए।”दौलतराम ने कहा,”आप क्यों अवैधानिक कार्य करते हैं।आप की इच्छा ही क्या विधान है?”राज्यअधिकारियों की श्रीनगर मे मरहम पट्टी करने के बाद पुलिस संरक्षण में पौडी भेजा गया जहाँ कांग्रेस कमेटी कार्यालय मे उनसे सामन्ती नौकरी से त्यागपत्र लिखवाकर उन्हें छोड़ दिया गया।डिप्टी कलेक्टर श्यामाचरण व पुलिस इंस्पेक्टर ने इसकी सूचना तार द्वारा नरेन्द्रनगर दी।वहाँ से जनसंघर्ष के दमन के लिए सूबेदार बलवन्तसिंह चौहान के नेतृत्व मे एक प्लाटून भेजी गई, दूसरी प्लाटून देवप्रयाग भेजी गई।इससे पहले कि प्लाटून कीर्तिनगर पहुँचती कि दौलतराम वहाँ आजाद पंचायत की स्थापना कर देवप्रयाग पहुँच गए,वहाँ आजाद पंचायत की स्थापना के लिए कार्य करना प्रारंभ कर दिया।देवप्रयाग आने वाली प्लाटून को दौलतराम ने आत्मसमर्पण करवाया तथा राइफलें लेकर थाने मे जमा करवाई।सूबेदार बलवन्तसिंह जो प्लाटून लेकर कीर्तिनगर आ रहे थे,प्रजामण्डल से मिल गए थे।
उक्त घटना की सूचना जब नरेन्द्रनगर पहुँची तब तक डिप्टी कलेक्टर कीर्तिनगर श्यामाचरण वहाँ पहुँच गए थे।उन्होंने नरेन्द्रनगर से कुछ फौज के जवानों को लेकर कीर्तिनगर के लिए प्रस्थान किया,उनके साथ चीफ सेक्रेटरी इन्द्रदत्त सकलानी भी थे।कृषक नेता देवप्रयाग के थाने व अदालत पर अधिकार करके कीर्तिनगर लौट ही रहे थे कि डिप्टी कलेक्टर ने समझौता का षड्यंत्र रचकर पैन्यूली सहित उन्हें अपने पास बुलाया तथा मोटर मे बैठाकर नरेन्द्रनगर ले गए।दूसरे दिन प्रातः ग्रामीणों मे सूचना फैल गई कि उनके नेता पकड़ कर नरेन्द्रनगर पहुँचाए गए हैं। इस घटना से जनता में आक्रोश फैल गया तथा ग्रामीणों के जत्थे के जत्थे कीर्तिनगर आने लगे।
नरेन्द्रनगर मे दौलतराम व परिपूर्णानन्द पैन्यूली के साथ संधिवार्ता का प्रयत्न किया गया लेकिन असफलता ही हाथ लगी। 2जनवरी 1948को महाराजा ने कुछ सुधार संबंधी घोषणा की।इस घोषणा के साथ ही सभी राजबंदियों को भी मुक्त कर दिया गया,परिणामतः कुछ शांति हुई।6-7 जनवरी 1948को प्रजामण्डल सत्याग्रह समिति की बैठक शासन सुधारों की घोषणा पर विचार करने हेतु ॠषिकेश मे हुई।कार्यकर्ताओं ने दरबार की घोषणा को अस्वीकार करते हुए कहा कि इससे प्रतिक्रियावादी शक्तियों को प्रोत्साहन मिलता है।साथ ही उक्त सुधार अपर्याप्त और असंतोषजनक हैं।समिति ने निश्चय किया कि सत्याग्रह संग्राम मे और तेजी लायी जाय। कांग्रेस कमेटी व प्रजामण्डल पहले ही ग्रामीण संघर्ष को सहयोग देने की घोषणा कर चुके थे।कम्युनिस्ट पार्टी ने नागेन्द्र सकलानी व त्रेपनसिंह नेगी को भेजा,जो 9फरवरी 1948को कीर्तिनगर पहुँच गए थे।इसी दिन त्रिलोकीनाथ पुरवार व दौलतराम के नेतृत्व मे सत्याग्रहियों का एक जत्था देवप्रयाग पहुँचा,वहाँ राज्य की फौज उपस्थित थी किंतु इसके बाद भी जनता ने बलपूर्वक अदालत पर अधिकार कर लिया।डिप्टी कलेक्टर देवप्रयाग सोवतसिंह सपरिवार नरेन्द्रनगर चले गए थे,लौटने पर उन्हें भी हिरासत मे ले लिया गया तथा देवप्रयाग पुन: जनता के अधिकार मे आ गया।ग्रामीण जनसमुदाय दिन प्रति दिन कीर्तिनगर मे उमड़ता जा रहा था।दौलतराम व अन्य प्रमुख नेता दरबारी दाव पेंचो को शांतिपूर्वक सुलझाने मे लगे थे।क्षेमानंद शास्त्री अध्यापक नेशनल हाईस्कूल श्रीनगर ने नेतृत्व संभाला,तथा रघुनंदन डंगवाल व जीवानंद पैन्यूली ने ग्रामीणों के लिए भोजन आदि की व्यवस्था की जिसमें स्वतंत्र भारत के गढ़वालवासियों ने उनको पूरा योगदान दिया।
: चीफ सेक्रेटरी इन्द्रदत्त सकलानी ने ग्रामीणों को शांत करने का प्रयत्न किया तथा उन्हें संघर्ष का रास्ता छोड़कर घर जाने की सलाह दी।लेकिन उनके परामर्श का ग्रामीणों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।ग्रामीणों का संघर्ष दिन प्रति दिन तेज होता जा रहा था।फलतः जनसंघर्ष को दबाने के उद्देश्य से दरबार द्वारा 10जनवरी1948को लगभग 40सैनिकों के साथ मजिस्ट्रेट बल्देवसिंह, DSP ललिताप्रसाद पाण्डे,फौज के कमाण्डर मेजर जगदीशप्रसाद डोभाल कीर्तिनगर भेजे गए।उसी दिन सत्याग्रहियों का जत्था देवप्रयाग से कीर्तिनगर की ओर बढ़ा। कीर्तिनगर मे नागेन्द्र सकलानी ग्रामीणों का नेतृत्व कर रहे थे।जैसे ही सत्याग्रही कीर्तिनगर पहुँचे वैसे ही एकत्रित जनसमुदाय ने नगर पर घेरा डाल दिया।सूबेदार मेजर नारायणसिंह ने फौज की एक टुकडी के साथ आत्मसमर्पण कर दिया था तथा डिप्टी कलेक्टर व कर्मचारी श्रीनगर के रास्ते नरेन्द्रनगर के लिए भाग खड़े हुए। न्यायालय पर अधिकार करने के बाद “आजाद पंचायत”का शासन स्थापित करने के लिए समिति बनाई गई,जिसने न्यायालय पर राष्ट्रीय झंडा फहरा दिया तथा जनता की अदालत स्थापित कर दी।लेकिन उसी दिन रात को दरबार द्वारा भेजा दल कीर्तिनगर पहुँचा तथा उन्होंने कोर्ट के भवन पर अधिकार कर लिया। 11जनवरी1948को सुबह सामन्ती दल द्वारा कोर्ट पर अधिकार करने का समाचार सर्वत्र फैल गया।ग्रामीण जनसमुदाय ने भवन को घेर लिया तथा उन्हें खाली करने को कहा। कर्मचारी व अधिकारी दूसरी मंजिल पर थे तथा फौज नीचे की मंजिल पर बंदूकें तानी थी।जनता व फौज आमने सामने थी,अंदर इतना था कि फौज के हाथों बंदूकें थी और ग्रामीण निहत्थे थे।ग्रामीणों का नेतृत्व दौलतराम ,त्रेपनसिंह, त्रिलोकीनाथ पुरवार व देवीदत्त तिवारी कर रहे थे।दौलतराम,कर्मचारियों से वार्ता करने आगे बढ़े। एक घंटे वार्ता चली लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला।अंत मे दौलतराम ने कहा कि उनका प्रयत्न असफल हो गया है,जनता जो उचित समझे करे।
फौज में हवलदार के पद पर हरिसिंह रावत तथा लांसनायक शेरसिंह थे।मेजर डोभाल ने जनाक्रोश को देखकर गोली चलाने का आदेश दिया लेकिन लांसनायक शेरसिंह ने अपने अधीनस्थ सिपाहियों को आदेश का पालन न करने को कहा।(शेरसिंह चौहान तिलाडी कांड के सेनानी हीरासिंह नगाणगांव (रवांई) के पुत्र थे।)इस प्रतिक्रिया पर मेजर या DSP में से किसी ने शेरसिंह पर गोली दाग दी जो उनके चोंटी के पास सिर में लगी दूसरी गोली सिपाही धर्मसिंह के गाल पर लगी।सिपाही धर्मसिंह केमर- वासर के रहने वाले थे।अधिकारियों की इस प्रतिक्रिया पर सिपाहियों ने अपनी रायफलें जनता को सौंप दी,लेकिन अधिकारी हठधर्मिता पर अडे रहे।जनता जब भवन के पास आ डटी तो DSPने अपर स्टोरी से आँसू गैस छोड़ी,लेकिन जनता निर्भीकता से खड़ी रही।आजाद हिंद फौज के सिपाही व कार्यकर्ताओं ने अपर स्टोरी मे जाकर रायफलें पकड़ी, इससे फौज के हवलदार व सिपाही सक्रिय हो गए।उन लोगों ने निहत्थी जनता पर लाठीचार्ज किया,इसी बीच प्रजामण्डल कार्यकर्ताओं ने कीर्तिनगर बाजार से भूपतसिंह राणा की दुकान से एक टीन मिट्टी का तेल लाकर निचली मंजिल में छिड़ककर आग लगा दी।तभी गोविन्दसिंह नामक ड्राइवर ने ऊपर सूचना दी कि “तुम फूंके गए,छलाँग दो”आगे उत्तेजित जनसमुदाय था अतः वे भवन के पीछे के रास्ते से भागने मे सफल हो गए।किंतु इसकी सूचना तुरंत जनता को मिल गई तथा उनका पीछा किया गया।उत्तेजित जनसमुदाय ने भवन से दस गज पर DSPको तथा सामने के मैदान के दूसरे छोर पर मेजर पाण्डे को पकड़ लिया।ठाकुर बल्देवसिंह पीछे से गोलियों की वर्षा करते हुए भाग रहे थे।इसी बीच मोलू भरदारी को गोली लग गई।नागेन्द्र सकलानी व देवीदत्त ठाकुर ने बल्देवसिंह को अगले नाले पर पकड लिया।प्रत्यक्षदर्शी हवलदार हरिसिंह रावत के अनुसार”नाले मे नागेन्द्र सकलानी व देवीदत्त तिवारी, ठाकुर साहब की छाती पर चढ़े थे मैंने यह देखकर तुरंत छलाँग लगाकर उन्हें छुड़वाया, ठाकुर साहब भाग निकले। नागेन्द्र ने ग्रेटकोट पहना था जिसमें उनकी पिस्तौल रखी थी।छीनाझपटी पर उसी पिस्तौल से गोली उनको लग गई।देवीदत्त ने मेरी पैंट पकड़ी व चिल्लाया कि इसने मेरा साथी मार दिया लेकिन डबराल व सम्पादक कर्मभूमि आदि का मानना है कि मोलू व नागेन्द्र SDO ठाकुर बल्देवसिंह की गोली से धराशायी हुए। आज भी टिहरी राज्यप्रशासन से जुड़े लोगों का कथन है कि नागेन्द्र अत्यंत क्रोध मे थे और अधिकारियों को जान से मारने को तैयार थे।उन पर गोली संभवतः आत्मरक्षा करते हुए अधिकारियों द्वारा चली हो।किन्तु हरिसिंह का मत सत्यता के निकट प्रतीत होता है,।
राज्य के अधिकारी व फौज तथा पुलिस उत्तेजित जनसमुदाय के भय से भाग खड़े हुए तथा जनता ने उनका पीछा किया।उन भगोडे अधिकारियों को जंगल मे घास काट रही महिलाओं ने पकड़ लिया।उन महिलाओं मे घटनाक्रम को सुनकर अपूर्व जोश उमड़ पड़ा तथा उन्हें पकडते समय कहनी लगी – “साँप का बच्चा आई गेन,यूँ तैं मारा “(साँप के बच्चे आ गए हैं ,इन्हें मारो)1उन्हें पकड़कर कीर्तिनगर लाया गया तथा जनाक्रोश से उनकी प्राण रक्षा करने हेतु अधिकारियों को कारागार मे डाल दिया।
: 11जनवरी 1948को सायं दोनों लाशों व घायलों को श्रीनगर ले जाया गया किंतु मरणोपरांत निरीक्षण की सुविधा न होने से लाशों को वापस लाया गया तथा घायलों की मरहम पट्टी करायी गई।पाँच घायलों को अस्पताल मे भर्ती कराया गया जिनमें शेरसिंह व धर्मसिंह भी थे।शेरसिंह की जब श्रीनगर मे गोली नहीं निकाली जा सकी तो त्रेपनसिंह,भूदेव व घनश्याम जोशी उन्हें देहरादून ले गए जहाँ गोली निकाली गई थी।12जनवरी1948को त्रिलोकीनाथ पुरवार तथा चंद्रसिंह गढ़वाली आदि के नेतृत्व मे दोनों मृत शरीरों को देवप्रयाग लाया गया जहाँ से कुछ व्यक्ति दौलतराम के नेतृत्व मे गिरफ्तार अधिकारियों व कर्मचारियों को लेकर दुगड्डा वाले मार्ग से टिहरी की ओर चल दिए।अन्य पट्टी के लोग भी उस जनसमुदाय के साथ सम्मिलित होते गये।बलिदानियों की शवयात्रा खास पट्टी से होती चली तथा 13जनवरी को रात्रि विश्राम चन्द्रबदनी से आगे एक पटवारी के यहाँ हुआ,जो स्वयं विद्रोहियों के साथ मिल गया था,14जनवरी को विश्राम टिहरी नगर से तीन मील पूरब मे एक जागीरदार के यहाँ हुआ,सभी स्थानों पर जत्थे का स्वागत ढोल बाजों से हुआ।कीर्तिनगर का समाचार सुनकर टिहरी नगर मे अपार जनसमुदाय इकट्ठा हो गया।जिसका नेतृत्व वीरेंद्र सकलानी व शंकरदत्त डोभाल आदि कर रहे थे।14जनवरी को दौलतराम का जत्था पहुंचने से पहले ही टिहरी की फौज ने आत्मसमर्पण कर दिया था।अदालत,खजाना एवं जेल आदि सभी सरकारी स्थान जनता के कब्जे मे आ गए थे।अनेक दरबार के वरिष्ठ अधिकारियों को कारागार मे डाल दिया गया।जिनमें प्रमुख रूप से इन्द्रदत्त सकलानी,उमादत्त डंगवाल,मार्कण्डेयप्रसाद थपलियाल, बृजेन्द्रसिंह, मोरसिंह, शिवप्रसाद व उदयजंग राणा आदि थे।14जनवरी1948को रात्रि को महाराजा, बड़े महाराजा व राजमाता आदि मोटर द्वारा टिहरी पहुँचे।राजधानी टिहरी पर जनता का अधिकार हो चुका था।महाराजा के आने पर भागीरथी पुल का फाटक नहीं खोला गया।महाराजा ने टिहरी पंचायत के प्रमुख वीरेन्द्र सकलानी को फाटक पर बुलाया तथा उनसे प्रवेश के लिए कहा।लेकिन सकलानी ने स्थिति को स्पष्ट करते हुए महाराजा को वापस जाने की सलाह दी।उन्होंने पुल पार से लोगों से जानकारी ली कि मार्कण्डेयप्रसाद, फौज व कमाण्डेट कहाँ हैं? जनता के लोगों ने उत्तर दिया कि “जेल मे”।रात को ही महाराजा को वापस जाना पड़ा।
15जनवरी1948को शवयात्रा जल्दी ही टिहरी पहुँच गई,क्योंकि रात टिहरी के समीप ही ठहराव हुआ था।शहीदों के शव दर्शनार्थ मैदान मे रखे गए।उसी दिन भिलंगना व भागीरथी के संगम पर जहाँ राजाओं की चिताओ को जलाते थे।शहीदों का दाह संस्कार हुआ।दाह संस्कार के बाद परिपूर्णानन्द पैन्यूली की अध्यक्षता मे एक बैठक हुई।जिसमें निर्णय लिया गया कि पूर्ण उत्तरदायी शासन को स्वीकार किया जाय।प्रजामण्डल के पाँच मंत्री शासन में रखे जायं।और महाराजा टिहरी मे आकर स्वयं उत्तरदायी शासन की घोषणा करें। किंतु उसी दिन रात को देहरादून से SDO व पुलिस सुपरिटेन्डेन्ड 100जवानों के साथ टिहरी पहुँचे और कहा कि भारत सरकार ने उन्हें चार्ज लेने भेजा है।दौलतराम और चंद्रसिंह गढ़वाली के हस्ताक्षर कराकर SDO भारत सरकार ने चार्ज ले लिया।16जनवरी को राजधानी टिहरी मे भक्तदर्शन की अध्यक्षता मे एक विशाल सभा हुई। जिसमें महाबीर त्यागी,हुलास वर्मा, पण्डित चन्द्रमणि एवं शांतिप्रपन्न आदि नेताओं ने जनसंघर्ष की सफलता पर टिहरी की जनता को बधाई दी।यह भी सूचना दी गई कि भारत सरकार के देशी राज्य विभाग ने टिहरी राज्य मे शांति व व्यवस्था बनाए रखने के लिए राज्य के शासन को संयुक्त प्रांत की सरकार को सौंप दिया है।तथा जब तक सरकार इसकी व्यवस्था करती है तब तक SDO दौलतराम के परामर्श पर राज्य व्यवस्था करेंगे। सभा के माध्यम से स्वतंत्र पंचायत के प्रधानमंत्री एवं किसान नेता दौलतराम ने निम्न घोषणा की:- (1)राजनैतिक कार्यकर्ताओं को टिहरी राज्य की ओर से पीड़ा पहुँची,उन्हें इसके लिए क्षतिपूर्ति दी जायेगी।(2)सकलाना के सामूहिक जुर्माने वापस लिए जाएँगे।(3)सभी पुराने बन्दियों और राजनीतिक बन्दियों को छोड़ दिया जायेगा,जो स्वतंत्र सरकार के शुभचिन्तक होंगे। (4)प्रत्येक व्यक्ति को स्वतंत्रतापूर्वक अपने विचार प्रकट करने और स्वतंत्रतापूर्वक संस्था बनाने की स्वतंत्रता होगी और संस्था रजिस्ट्रेशन विधान वापस लिया जाता है तथा समाचार पत्रों पर लगा प्रतिबंध उठा लिया जाता है।(5)राज्य के हर मौरूसीदार को हक हिस्सेदारी प्रदान की जाती है और इसके लिए विधिवत कानून बनाया जाता है।(6)पुराने कर्जदारी को हल्का करने का कानून बनाया जायेगा।(7)टिहरी के जिन नागरिकों पर रियासत मे आने का प्रतिबंध था वह उठा लिया जाता है।
15फरवरी1948से16फरवरी1948तक SDOने दादा दौलतराम से परामर्श किया,तत्पश्चात प्रजामण्डल सरकार की स्थापना की गई।राज्य व्यवस्था चलाने के लिए मंत्रिमंडल बनाया गया जो प्रजामण्डल की कार्यसमिति के माध्यम से टिहरी की जनता के प्रति उत्तरदायी था।उक्त मंत्रिमंडल में एक मंत्री देशी राज्य विभाग से नियुक्त किया गया था,यही मंत्री राज्य मंत्रिमंडल में प्रधानमंत्री बनाए गए।प्रधानमंत्री का नाम ज्योतिप्रसाद था।प्रजामण्डल के द्वारा चार मंत्री डाक्टर कुशलानन्द गैरोला,कृष्णसिंह, डाक्टर आनन्दशरण व खुशहालसिंह मनोनीत किए गए। अगस्त1948में विधानसभा के चुनाव कराये गए,जिसमें प्रजामण्डल को 24स्थानों पर तथा राजा द्वारा पोषित प्रजाहितैषीणी को 5स्थानों पर तथा 2निर्दलीय सदस्यों को सफलता मिली।महाराजा ने सभी परिस्थितियों पर विचार कर प्रिवीपर्स लेने में भलाई समझी और विलीनीकरण के प्रपत्रों पर दिल्ली जाकर हस्ताक्षर कर दिए। विलीनीकरण की विधिवत घोषणा संयुक्त प्रांत के मुख्यमंत्री पण्डित गोविंदबल्लभ पंत ने 1अगस्त1949को की।(समाप्त)