देहरादून,सरकार की नीति से देश के कुछ लोग सोना खरीदने में लगे हैं। बेरोजगार लोग ऐसे हैं जो जाड़ों में रात के सोने के लिए छत ढूंढ रहे हैं। महानगर के रेलवे स्टेशन पर शहर के बस स्टैंड दुकानदारों के बरामदे पर बस स्टाप के पास देखे जा सकते हैं उनके लिए अब दिवाली होली के कोई मायने नहीं है। सरकार की गलत नीतियों से आज सो से ज्यादा अरब पति होगये हो गये। छोटो की पूंजी बैंकों में जमा कर बड़ो ने लूट लिया है। बैंक दिवालिया हैं सरकार निगम को बेचने में लगी हैं। दूसरी ओर जिसने दूसरे की नोकरी कर चोरी ,चाकरी करके आर्ट आप अर्निंग से साधन पर साधन जोड़ लिए है । उसने साधन जोड़ कर वह अब दूसरे को बड़ा आदमी दिखाई देने लगते हैं । उसके लिए गलत साधन जोड़कर उसकी रोज दिवाली है । देश मे ज्यादा आवादी वह ओर उसकी रोज दिवाली से प्रभावित है। होरही है। अब जो लोग बाहर सोने को मजबूर हैं मानवता के नाते उनके लिए कंबल ,अलावा की व्यबस्था नवम्बर के प्रथम सप्ताह में की जाने की आवश्यकता है।
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देश में बेरोजगारी को दूर करने का उपाय
दुनिया की भूख किसान मिटाता है पत्र ने छोटे किसानों की पीड़ा को उठाने के लिए हमेशा पैरवी की जिसके फल स्वरूप के अरविंद जरीवाल सरकार ने किसानों को फ़सल की छति पूर्ति 50000 हजार प्रति हेक्टेयर देने 2015 -16 से शुरू किया है। तब से वहां किसान तरक्की कर रहा है। यहाँ पत्र का कहना है कि केंद्र सरकार ने पत्र का संज्ञान लिया है । पर जो 6000 राशि किसानों को दे रही है वह आज की लागत के हिसाब से कम है। सरकार को 5 वर्ष तक देश मे कृषि को बढ़ावा देने के लिये 50000 हजार रुपए प्रति हेक्टेयर नगद किसानों को दी जाय 30000 फसल बोने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए दी जाय। तो देश की बेरोजगारी, पलायन,अपराध रोकेगा देश का जी डी पी 20 तक पहुंचने में देर नहीं लेगी। पशुपालन बढ़ेगा जैविक खाद की खेती बढ़ेगी जो जमीन रासायनिक खादों से नसे की आदि बना दी है उसे सुधारने के लिए गोमूत्र की आवश्यकता है। वह मिलेगा गावँ देश की आत्मा है ।70 प्रतिशत आवादी गावँ में जहाँ बसती थी ,वहां आज गलत नीतियों से पलायन हो रहा है शहर में अपराध बढ़ रहे हैं । 5.5 लाख गावँ में खेती करने वाले लोगों को अब रोजगार का स्थान शहर में बना रहे हैं।
ईंट के भवनों को बनाने में तलाश करने लगे हैं जिससे अपराध बढ़ रहे हैं । बिल्डर से मजदूरों के पैसे नहीं मिल रहे ।ओर नहीं समय पर बिल्डर ग्राहकों को कब्जा दे रहा है वह लागत बढ़ा रहे हैं। कुल मिलाकर अपराध बढ़ रहें हैं।
गावँ के लोगों को रोजगार मिलेगा तो गांव खुशहाल बनेंगे।देश खुश हाल बनेगा। जन जन गांधी जी स्वपनों से साकार होगा। दर्जनों प्रकार के रोजगार है गावँ में कच्चे माल से मिलने लगता है दर्ज़ी, लोहार, बढ़ाई की कला विलुप्त नहीं होगी विश्व मे नये शब्द गावँ से पैदा होते हैं। मोबाइल के लिए मोबाइलवा बोला ,लेख फ़िल्म गावँ के जीवन पर बनी हुई है और हम गलत नीतियों से उसे उजाड़ बनाने में लगे हैं
विश्व एंव एयन बैंक के ऋण को देश की पर कैपिटा के हिसाब से ऋण की देनदारी दी जाती है
अब इन बैंकों को यह पॉलसी बनानी चाहिए कि कृषि आधरित ऋण के लिये दीीजाने वाली धन राशि मे 5 साल तक छोटे किसानों को फ़सल को बोने के लिये 30000 हजार प्रति हेक्टेयर ओर सूखे ,बाढ़ ,ओलाबृष्टि,जंगली जानवरों के नुकसान के लिए 50000 प्रतिहेक्टर छतिपूर्ती दी जाय।
सरकार की गलत नीतियों सेे
गत वर्ष15 से ज्यादा बीमा कम्पनी को पिछले बर्ष 25 हजार करोड़ से ज्यादा लाभः मिला। किसानों को उस दर से कुछ नहीं मिला । जिस किसान ने बैंक से ऋण लिया है बीमा कम्पनी ने जो बीमा के नाम पर उनको ऊंट के मुंह मे जीरा डाला वह धन राशि किसानों के द्वारा लिया गया बीज खाद के ऋण की अदायगी के लिये पूरा नहीं हुआ।अब किसानों के द्वारा जुताई ,निराई के लिये की गई मेहनत बेकार गई जितनी कि फसल की कीमत बिक्री करने से होती है उसका 40 से50 प्रतिशत मेहनत में लगता है जिसे बीमा कम्पनी नहीं देती है।तो बीमा बैंक,सरकार व कम्पनी के लिए हुआ।किसान ठगा का ठगा महसूस करते हैं
उत्तराखण्ड के पहाड़ो के गाँव में फसल मुल्य की 70से75प्रतिशत मेहनत लगती है वह मात्र 2माह का राशन नहीं होता है। अब फसल का नुकसान अलग होता है ।बीमा कम्पनी के कर्मचारियों के चक्कर काटोबीमा के लेने कि फजीहत में अगली फसल के लिए ऋण भी नहीं मिलता। क्योंकि बैंक का पहले का ऋण पूरा चुकता बीमा से नहीं हो पाता है। अब किसानों की पहले की मेहनत बेकार बीमा कम्पनी के चक्कर काटने के बाद बैंक से फ़सल के लिए लिया गया ऋण की अदायगी नहीं हो सकी अगली फसल के लिए पैसे नहीं है। सरकार भी फसलों का भुगतान समय पर नहीं किया करती है तो वह क्या करेगा आत्महत्या य घरों से बाहर रोजगार के लिए जाएगा परिवार के मुखिया के न रहने से खेत बंजर हो जाते हैं गावँ से पलायन हो रहा है। सरकार बीमा कम्पनीयो को पालने का काम बंद कर । उनको दीजाने वाली राशि किसानों को दी जाय । किसानों की फसल का सेटलाइट से चित्र लेकर आंकलन लिया जाय और किसानों को छति पूर्ति दी जाने का चलन बनाया जाय।
जनता का मानना है कि सबके साथ सबके विकास के में किसानों के द्वारा फसल उत्पादन तथा कृषि फसलों पर आधारित उधोग से 60 प्रतिशत राजस्व देश को मिलता है । इसलिए बैंकों को सरकार एवं नितीओयोग को नीति बनाने के लिए दिशा निर्देश देने चाहिए। विश्व, एशिया में भारत काफी ज्यादा मात्रा में कृषि उत्पादन करता है । लगभग 17 प्रतिशत से ज्यादा भगीदारी से विशेष महत्व का देश है ।
किसानों के खाते में छति पूर्ति एंव प्रोत्साहित करने के लिए नीति बनाने के लिए इच्छा शक्ति दिखा कर कार्य करें ।,साथ विश्व बैंक व ऐशियन विकास बैंको के द्वारा निर्धारित समय के लिए 20 लाख करोड़ समय 15 वर्ष के लिए यह 30प्रतिशत अनुदान के साथ भारत सरकार को छोटे किसान के लिये देना चाहिए। पूरे देश में 14 करोड़ जोतेें हैं जिनमें से 95 प्रतिशत लघु और सीमांत किसानों का कब्जा है। मालिक,काविज व बटाई पर काम करने वालों को 50 -50प्रतिशत धन राशि बांट कर दी जाय।
5 प्रतिशत पर बड़े किसानों काबिज हैं।उनमें ज्याद सता के साथ हैं वह अपने हिसाब से पॉलसी बनाकर अपना हित साधने में लगें रहते हैं। इनके लिये बैैंक अलग पॉलसी बनाने के लिए सरकार को दिशा निर्देश दे।
आगे देखें एंव सुने वीडियो में श्रीमद्भागवत ज्ञान यज्ञ प्रवचन
श्री आदि शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी केे श्री मुख से
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