देहरादून : अग्निकाल की उल्टी गिनती के साथ ही वन महकमे के माथे पर पसीना छलकने लगा है। धीरे-धीरे उछाल भर रहे पारे के बीच चिंता ये सता रही कि यदि इस मर्तबा आग पांच हजार फीट से ऊपर बांज के जंगलों तक पहुंची तो यह किसी बड़े संकट से कम नहीं होगा। वजह ये कि जल संरक्षण में बांज के जंगल महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जानकारों का कहना है कि बांज समेत अन्य महत्वपूर्ण वन प्रजातियां आग से महफूज रहें, इसके लिए पहाड़ की परिस्थितियों के अनुरूप रणनीति बनानी होगी।
राज्य में हर साल ही अग्निकाल में बड़े पैमाने वन संपदा तबाह हो जाती है। अब तो आग भी धीरे-धीरे ऊंचाई की तरफ बढ़ रही है। इसी ने चिंता बढ़ाई हुई है। अमूमून तीन-साढ़े हजार फीट की ऊंचाई तक रहने वाली जंगल की आग वर्ष 2016 में पांच हजार फीट से ऊपर बांज के जंगलों तक जा पहुंची थी। वह तो शुक्र ये कि तब बारिश होने के बाद राहत मिल मिली गई थी।
फिर इस बार तो आग ने सर्दियों से ही बेचैन करना शुरू कर दिया था। जनवरी में कैलास मानसरोवर यात्रा मार्ग पर छियालेख और गब्र्यांग बुग्यालों के अलावा पंचाचूली ग्लेश्यिर से लगे क्षेत्रों में हुई अग्नि दुर्घटनाएं इसे तस्दीक भी करती है। वर्तमान में भी तमाम क्षेत्रों में वनों में भड़कने वाली आग सुर्खियां बन रही है।
ऐसे में आने वाले दिनों में ऊंचाई वाले क्षेत्रों में वनों को बचाना एक बड़ी चुनौती होगा। पर्यावरणविद् सच्चिदानंद भारती के मुताबिक जंगल की आग यदि बांज के जंगलों तक पहुंची तो यह खासा नुकसानकारी हो सकती है। बांज, बुरांस, तिलंज जैसे पेड़ जल संरक्षण में सहायक होते हैं। विभाग को चाहिए कि वह वनाग्नि पर नियंत्रण के लिए ऐसे इंतजाम करे, जिससे कहीं भी आग लगने पर तुरंत इस पर काबू पाने के कदम उठाए जा सकें।
विभाग के अधीन वन क्षेत्रों का प्रजातिवार ब्योरा
प्रजाति———————–क्षेत्रफल (हे.में)———प्रतिशत
बांज————————–383088.12———-14.81
विविध मिश्रित————–614748.59———-23.77
चीड़—————————394383.84———15.25
साल—————————313054.20——–12.10
सागौन————————–20209.16———-0.78
शीशम—————————15114.19———0.58
खैर——————————–5796.61———0.22
देवदार—————————-18783.35——–0.73
कैल——————————-18548.83——–0.72
फर व स्प्रूस———————92464.84——–3.58
यूकेलिप्टस———————–21411.73——–0.83
सुरई——————————–2965.11——–0.11
अवर्गीकृत, बंजर आदि——–685749.43——-26.51