भाग बथांग ( गढ़वळी कहानी)
फागुण मैना गेंहूॅ पक्या छ्यायी बीशू बीच पुगंड़ी मा वाडू धरयूं छ्यायी, ब्यखन बगत वैकी़ बेटी बीरा न उसयां तैडू अपर बुब्बा समणी धरी देन अर बकै भुज्जी बणाण लगी ग्यायी, इनै बीशू न तैड़ू न खैन अर बळदू खुणी म्वाळ बणाण लगी ग्यायी। चैत मैना ग्यों दांव ल्याण वै बगत बळदू गिच्च पर खुणि म्वाळ लगाण पड़ल तब कै मनन मॉगी लणन किलै की सब्यूं खिलांण मा दावं रिटयाणै रैली। बिशू पैल चकटी ह्वाळ हुक्का भरी अर गौं दगड़या भगतू तै धाद लगै अरे भगतू ऐ जा रे द्वी सोड़ जरा हुक्का मार जा। भगतू अर बिशू खूब दगड़ छेयी, द्वी दग़ड़ी बरसात मा गोठ खेत करद छ्यायी, गौड़ बळदू ब्यौहार भी दगड़ी करद छ्यायी। द्वीयूं मत्थी मुड़ी पुंगड़ मा वाड़ू धर्यू छ्यायी, दगड़ी रात जुगळी कना खातिर भी जांद छ्यायी।
बीशू अर भगतू द्वी हुक्क सोड़ मरणा छ्यायी तबरी गदन पल छाल बिटीक रस्ता पर टॉर्च उजळू चमकणा छ्यायी, भगतू ब्वाल दादा अपार पल्ली छाल द्याखो क्वी हमर गौं बाट पर आणा छ, ये बगत कू आणा ह्वाल। बीशू न ब्वाल अरे यार भगतू क्वी शिकर्या ह्वाल, बकै कैन ह्वाण। इने बीरा तैड़ू भुज्जी अर चून .रूटी लेकन ऐ ग्यायी । बीशू न हत्थ ध्वेन अर वैक बाद भगतू खुणी ब्वाल कि अरे भगतू तू भी चाख ले रे तैड़ू भुज्जी। भगतू न ब्वाल ना दादा मी तै खैकन ऐ ग्यों बस जरा हुक्का पीणा बाना इखम ऐ ग्यों बस अब वाड़ म जाणा तैयरी करला। वखी रात बैठी कन गप्प लगौला, अर हॉ चिलम धरी दे, आज म्यार यख तमखू खतम हूयूं छ। इनै जनी बीशू तैड़ू भुज्जी अर रूटी एक कौर खाणा छ्यायी तबरी तकन चौक मा कैन धै लगायी अरे काका घर मा ही छ्याव। भगतू उंक आवाज सूणी कन भैरी आयी त द्याख पल्ली गॉव राजू अर बचलू छ्यायी। राजू न ब्वाल कि यार भगतू काका बिशू काका यखी ह्वाल। भगतू न ब्वाल हॉ दादा अजों रूटी खाणा छन, बस वै बाद वाड़ मा जाणा तैयरी छ हमरी। इन बताव कि इतना देर रात आज, क्या बात सब घर गौं मा राजी खुशी छन। बीशू काका तै इथगा रात ढूढण मतलब या छ कि जरूर गॉव मा क्वी उंच नीच ह्वे ग्यायी, कैख तबियत खराब ह्वे ग्यायी, या बात भगतू न म नही मन मा स्वाची।
भगतू उ द्वीयूं तै लेकन, तिवरी मा ग्यायी, अर तबरी उंकी बात सूणी कन बीशू भी भैर आयी, उ द्वीयूं तै देखीकन समझी ग्यायी कि आज कुछ ना कुछ बात ह्वे ग्यायी। बीशू काका गौं मा वैद्य त छ्यायी दगड़ी मा एक गारूड़ी भी छ्यायी। गारूड़ी वै खुणी बुले जांद जू तंत्र मंत्र अर जागरी काम सब्ब जणदू ह्वाव। बीशू मंत्र साधना समझी ग्यायी कि आज पल्ली छाल जणैक तै गुरा न डंसी द्यायी वख मंत्र लगाणा जाण पड़ल। राजू न ब्वाल काका जल्दी करो, प्रतपू तै गुरा न खै द्याय, सरा शरील नीलू पड़ी ग्यायी, अब तुमरी हत्थ पर ही जस छ। बीशू न फटाफट चिलम अर एक पतबीड़ा पर तमखु धरी,लाठी उठायी, भगतू कुणी ब्वाल चल दगड़ मा। भगतू भी बीशू दगड़ जाणा बाबत तैयार ह्वे ग्यायी। सब्बि उजलू बाळी कन गाँव जाणा कुणी पैटी गीन।
इने प्रतपू घर मा लोगू जमघट लग्यू छ्यायी, क्वी कुछ बुना क्वी बीशू इंतजार कनू, सब्यूँ कुणी उकला तकली हुई छेयी, कुछ देर मा राजू बीशू तै लेकन ऐ ग्यायी। बीशू न मंत्र लगाण शुरू करी, कै बार मंत्र लगेंन, बीच बीच मा चिलम भरी कन अपर लयू तमखु प्यायी। इने भगतू राजू अर बचलू दगड़ी बैठयू छ्यायी। गाँव मा शहर बटी अयु देवू न ब्वाल यार राजू काका तुम भी यूँ मंत्र पर कख विश्वास कना छ्यौ, अब त मुश्किल छ, जान बचण। तब राजू न ब्वाल बेटा अब बीशू काका ऐ ग्यायी सब ठीक ह्वे जाल गरुड़ी आदमी छ। देवू समझ मा कुछ नि आई कि गरुड़ी क्या ह्वे, वेन भगतू तै पूछी कि यी क्या ह्वे।
भगतू न ब्वाल कि जू आदमी तंत्र मंत्र सब जणदू ह्वे कुणी गरुड़ी बुले जांद। बीशू भैजी सब्बि जणद, बीशू भैजी न यी मंत्र लोगू जान बचाणा खातिर सीखिन। तंत्र साधना करी बेटा उकी। यी गरुड़ी बणन पैथर उकी बड़ी खैरी छन। तब भगतू न बीशू की खैरी विपदा अर गरुड़ी बणन सरा घटना बते। आखिर बीशू गरुड़ी किले बणी या बात कहानी शेष भाग 2 मा।
©®@ हरीश कंडवाल मनखी की कलम से।