उपन्यास मदारीपुर जंक्शन कोई गांव नही लेकिन हर गांव में उसकी झलक है
राजधानी लखनऊ के उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी के ऑडिटोरियम में नेशनल इंटीग्रेशन एन्ड एडुकेशनल सोसाइटी और वाणी प्रकाशन के सहयोग से बालेंदु द्विवेदी द्वारा लिखित उपन्यास मदारीपुर जंक्शन पर परिचर्चा एवं संवाद का आयोजन हुआ।बालेंदु द्विवेदी वर्तमान समय राजधानी में जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी के पद पर कार्ययरत है। ऊंचे ओहदे पर होने के बावजूद बालेंदु द्विवेदी का प्रेम लेखनी में भी समाया हुआ है।भारत के गांवों में राजनीति की स्थिति के ऊपर यह उपन्यास मदारीपुर जंक्शन का आधार है।इतिहास के पन्नो पर कही भी इस नाम का कोई गांव नही है लेकिन उपन्यास पढ़कर ऐसा प्रतीत होता है कि यह हर गांव गांव की कहानी है।
परिचर्चा में भाग लेते हुए मुख्य अतिथि एवं वरिष्ठ लेखक श्रीमती नासिरा शर्मा ने कहा ने लेखकों में इतनी समर्दु भाषा जिसमे संस्कार संस्कृति और साहित्य और लोक साहित्य का अजीब संगम दिखता है जो पढ़ने में एक बड़ा आकाश देता है।इसी क्रम में डॉ ओम निश्छल ने अपना दृष्टिकोण बनाते हुए कहा जिस तरह राजनीति का कारोबार जन तांत्रिक चुनाव के बहाने गांव तक पहुचा हैंउसने ग्रामीण परिवेश के फैब्रिक को काफी हद्द तक नष्ट किया है।यह उपन्यास आधा गांव राग दरबारी बेदखल इत्यादि उपन्यासों और प्रेमचंद के यथार्थ वादी किस्सागोई से आगे के बदलते हुए गांव के चरित्र का नया संस्करण है
इस मौके पर लेखक विजय रॉय ने बताया कि मदारीपुर जंक्शन रागदरबारी का एक्सटेंशन है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रोफसर सूर्य प्रसाद दीक्षित ने कहा मेरे लिए सुखद आश्चर्य इस बात का है कि यह लेखक का पहला उपन्यास है और इतने कम समय मे काफी पढ़ गया है उसमें पूर्वी उत्तर प्रदेश के गांव का आंखों देखा हाल प्रस्तुत किया गया है। उपन्यास के लेखक बालेंदु द्विवेदी जल्द ही वाया फुरसतगंज उपन्यास लेकर पाठको के सामने होंगे।
इस मौके पर शहर की गणमान्य हस्तियां मौजूद रही।मंच संचालन लेखिका शीला पांडेय जी के द्वारा किया गया।विशिष्ठ अतिथियों के रूप में श्रीमती हिमानी जोशी महेंद्र त्रिपाठी,राम बहादुर मिश्र मोहम्मद आज़म खान,राजकुमार यादव आदि मौजूद रहे।