राष्ट्रपति स्वयं देखेगी और सजा देगी
संविधान की मर्यादा उनसे टुटी या मुख्य न्यायाधीश ने तोड़ी
26 सितम्बर को भारत ने संविधान के 75 वर्ष पूरे होने पर संविधान दिवस बड़े जोर-शोर से बनाया गया | इस जोर-शोर में एक संविधान के दो अलग-अलग कार्यक्रम बने | एक कार्यक्रम संविधान की शपथ राष्ट्रपति को दिलाने वाले मुख्य न्यायाधीश ने उच्चतम न्यायालय में बनाया व दुसरा कार्यक्रम उसी संविधान की शपथ मुख्य न्यायाधीश को दिलाने वाले राष्ट्रपति ने बनाया | इस कारण से एक संविधान के मध्य दरार स्पष्ट दिखाई दी |
यह दरार / विभाजन / बिखराव राष्ट्रपति की वजह से आई या मुख्य न्यायाधीश ने पैदा करी वो अब राष्ट्रपति महोदय के संज्ञान में ला दी गई हैं | जिसे वह स्वयं देखेगी और दोषी को सजा भी देगी क्योंकि इससे न्यायपालिका के लोकतान्त्रिक स्तम्भ के बिखर जाने, ध्वस्त हो जाने या खत्म हो जाने का खतरा पैदा हो गया हैं | इसकी जानकारी राष्ट्रपति-सचिवालय के सचिव ने साइंटिफिक-एनालिसिस के माध्यम से कटु सत्य बताने वाले युवा वैज्ञानिक शैलेन्द्र कुमार बिराणी को ईमेल के माध्यम से लिखित में दी हैं व राष्ट्रपति के फैसले को भी बताने की बात कहीं है।
पिछले कुछ वर्षों से महामहिम राष्ट्रपति संविधान-दिवस के कार्यक्रम में उच्चतम न्यायालय में जाकर न केवल अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रही थी बल्कि भारत-सरकार की प्रमुख होने के नाते उसे आधिकारिक दर्जा भी दे रही थी | इस बार राष्ट्रपति ने संविधान दिवस आधिकारिक रूप से पुराने संसद भवन में बनाया | इस कार्यक्रम में उन्होंने मुख्य न्यायाधीश को नहीं बुलाया या मुख्य न्यायाधीश ने नहीं आकर उनकी अवेहलना करी और तानाशाह के रूप में अपना अलग संविधान दिवस बनाकर राष्ट्रद्रोह करा |
संविधान की शपथ दिलाने वाले मुख्य न्यायाधीश नैतिक रूप से बड़े होते हैं या वे जिन्हें संविधान की शपथ दिलाती हैं वो बड़े होते हैं | इस तरह से मुख्य न्यायाधीश के संवैधानिक पद की मर्यादा खत्म होने से 26 जनवरी के राष्ट्रीय सलामी प्रोग्राम में उन्हें निचे बैठाने व उन्हें शपथ लेने वाले और उनसे आगे शपथ लेने वाले माननीय मंच पर आसीन होकर संविधान की मर्यादा और नैतिकता को बेशर्मी से तार-तार करने को सही साबित करते हैं | इससे राष्ट्रपति पद की शपथ भी असंवैधानिक दायरे में नजर आती है।
उच्चतम न्यायालय के संविधान-दिवस कार्यक्रम के लिए राष्ट्रपति को इस बार आमंत्रित नहीं किया गया या राष्ट्रपति ने मुख्य न्यायाधीश के आमंत्रण को ठुकरा कर दुसरी जगह कार्यक्रम बनाया या जाने का फैसला करा | इन दोनों परिस्थितियों में संविधान की धज्जियां उड गई हैं | संविधान के अनुसार राष्ट्रपति व उच्चतम न्यायालय की पुरी संविधान पीठ को संविधान सरक्षक का दर्जा प्राप्त है। जब सरक्षक ही संविधान के भक्षक बन जाये तो राष्ट्र व उसकी मालिक आम नागरिक का क्या होगा | राष्ट्र प्रमुख व सर्वशक्तिमान राष्ट्रपति के आदेश व मुख्य न्यायाधीश के संविधान के अनुसार लोगों को न्याय व मृत्यु दण्ड तक की सजा देने के फैसले अपने आप अपनी प्रासंगिकता खो रहे है। अब राष्ट्रपति फैसला लेकर दोषियों को क्या सजा देती हैं उस पर ही संविधान का स्थाई होना या खत्म होना निर्भर करेगा | यदि मौन रही व समय बर्बाद कर फैसला विचाराधीन रखा तो न्यायपालिका का स्तम्भ टुकडों – टुकडों में बिखर जायेगा व संविधान पीठे व्यवस्था से गायब होने लगेगी |
आगे पढ़ें पिछली ख़बर इसके प्रकाशन के बाद उक्त प्रक्रिया हुई
[05/12, 8:16 am] Jmp Self मोब: साइंटिफिक-एनालिसिस
राष्ट्रपति व मुख्य न्यायाधीश के मध्य संवैधानिक मर्यादा की दरार पड़ी
26 नवम्बर को भारत ने संविधान के 75 वर्ष पूरे होने पर संविधान दिवस बनाया गया | इस राष्ट्रीय कार्यक्रम में राष्ट्रपति और मुख्य न्यायाधीश के मध्य संवैधानिक मर्यादा की दरार स्पष्ट दिखाई दी, जिससे देशवासियों के ललाट पर चिंताओं की लकीरें खींच दी | इससे बिखरते व खत्म होते लोकतन्त्र में चारों स्तम्भों की अवधारणा वाली आधार नीव की बुनियाद भी धाराशाही होती हुई नजर आई |
पिछले कुछ वर्षों से उच्चतम न्यायालय के अन्दर बनाये जाने वाले संविधान-दिवस में राष्ट्रपति महोदय उपस्थिति दर्ज करवा के उसे राष्ट्र व भारत-सरकार का आधिकारीक कार्यक्रम होने की मोहर लगाती थी | इस बार सुप्रीम कोर्ट के इस कार्यक्रम में राष्ट्रपति नहीं गई | भारत के मुख्य न्यायाधीश ने उन्हें निमंत्रण नहीं दिया या राष्ट्रपति ने उस निमंत्रण को ठुकरा दिया | यह अपने आप में यक्ष प्रश्न हैं क्योंकि जिस संविधान के नाम पर उत्सव बनाकर बधाईयां दी जा रही थी उसी संविधान की शपथ व पद की गरिमा राष्ट्रपति मुख्य न्यायाधीश को दिलाते हैं और मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति को दिलाते हैं |
महामहिम राष्ट्रपति संविधान दिवस के कार्यक्रम में पुरानी संसद भवन में गई तो उन्होंने मुख्य न्यायाधीश को निमंत्रण देकर क्यों नहीं बुलाया व मंच पर उचित, नैतिक एवं संवैधानिक मर्यादा के अनुरूप पास में कुर्सी पर क्यों नहीं बैठाया | उच्चतम न्यायालय, भारत सरकार का हिस्सा नहीं हैं, यह सिर्फ लोगों की आंखों में धूल झोंकने के लिए उच्चतम न्यायालय के गेट पर बड़े-बड़े अक्षरों में उसके नाम के निचे भारत-सरकार लिखा हैं। न्यायपालिका तो लोकतन्त्र का प्रमुख स्तम्भ हैं | भारतीय मीडिया के लोग व सभी संवैधानिक कुर्सी पर बैठे लोग उसे चौथा स्तम्भ कहते हैं लेकिन इन्हें निचे खड़े होकर फोटो खींचने व जी-हजूरी करने से फुर्सत नहीं हैं | राष्ट्रीय मंच पर मीडिया के प्रतिनिधि को बैठाकर उसके माध्यम से संविधान की शपथ, मर्यादा व उसके अनुरूप काम करने की प्रतिज्ञा देश व दुनिया के सामने लेते हुए इन्हें शर्म आती हैं, शायद पत्रकार लोग पत्रकारिता करते समय अपने जीवन का बलिदान और कर्म राष्ट्र के लिए नहीं अपितु पैंसों व प्राइवेट कम्पनीयों के लिए करते है |
राष्ट्रपति ने राष्ट्र के संविधान-दिवस कार्यक्रम में मुख्य न्यायाधीश को बुलाया हो लेकिन मुख्य न्यायाधीश वहां नहीं गये व उच्चतम न्यायालय मे अपना अलग ही कार्यक्रम बनाया | यह अपने आप में असंवैधानिक और शपथ की अवेहलना सहित सबसे बड़े राष्ट्रदोह में गिना जाता है । इससे आम नागरिकों के दिल व दिमाग में यह बात बैठ गई कि राष्ट्रपति के आदेश को मुख्य न्यायाधीश न मानने की तानाशाही वाली शक्ति रखते हैं | इसके विपरित जो मुख्य न्यायाधीश और संविधान संरक्षक का दर्जा प्राप्त पूर्ण संविधान पीठ के न्यायाधीश जिनके फैंसलों को राष्ट्रपति भी नहीं बदल सकते वो राष्ट्रपति व उनसे शपथ लेकर संवैधानिक पदों पर बैठने वाले लोगों को नहीं बुला सकते वो संविधान की क्या रक्षा करेंगे व जनहित के मामलों में कैसे इनके खिलाफ फैसला देना तो दूर आदेश में लिखित टिप्पणी करेंगे |
उच्चतम न्यायालय के अन्दर शाम को बनाये गये संविधान दिवस में प्रधानमंत्री ने पहली बार उपस्थिति दर्ज करवाई | नैतिकता व मर्यादा के अनुरूप प्रधानमंत्री को शर्म व लज्जा नहीं आई कि वो तो संविधान दिवस के कार्यक्रम में उनको नहीं बुलाते व स्वयं उनके कार्यक्रम में चले जाते हैं।
इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने भारतीय न्यायपालिका की वार्षिक रिपोर्ट 2023-24 जारी करी | इससे पहले राष्ट्रपति की उपस्थिति में यह रिपोर्ट जारी हुई व शायद उन्हें सौंपी भी गई | जब उच्चतम न्यायालय राष्ट्रपति को सीधी रिपोर्ट नहीं दे सकता तो संविधान पीठो और उसके फैसलों का संवैधनिक आधार तो खत्म हो गया | राष्ट्रपति भी संविधान के अनुसार मुख्य न्यायाधीश से सलाह किस आधार पर मांगेगे | जब फाईल कार्यपालिका के प्रमुख प्रधानमंत्री के माध्यम से राष्ट्रपति के पास जायेगी तो संविधान संशोधन के मामलों व कार्यपालिका के खिलाफ चल रहे अदालती मामलों में न्याय की सम्भावना विवादों से बच भी पायेगी | यह प्राकृतिक न्याय की अवधारणा को ही खत्म करना नहीं होगा |
नोट – इस पूरे साइंटिफिक-एनालिसिस में संवैधानिक पदों की बात करी गई हैं, इन पदों पर कौन व्यक्ति कार्य या नौकरी कर रहा है उससे कोई लेना-देना नहीं हैं |
शैलेन्द्र कुमार बिराणी
युवा वैज्ञानिक
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प्रेस महाकुंभ के माध्यम से प्रेस संवैधानिक अधिकार देने के लिए किये गये प्रयासों की फोटोग्राफी
शैलेन्द्र कुमार बिराणी
युवा वैज्ञानिक ने बहुत-बहुत 💐 बधाई 💐 दी है और कहा है कि
आपकी इस खबर के बाद राष्ट्रपति को यह मामला संज्ञान में लेना पड़ा है | राष्ट्रपति सचिवालय ने मुझे ईमेल करके जवाब दिया हैं | मुख्य न्यायाधीश की तरफ से उच्चतम न्यायालय व वकीलों की तरफ से सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन का जवाब अभी तक नहीं आया है |
कृपया अपनी इस बडी कामयाबी को खबर बनाकर लगाये | यहा तो राष्ट्रपति दोषी हैं अन्यथा मुख्य न्यायाधीश पर राष्ट्रद्रोह का मामला दर्ज होगा |
दोंनो मे से कौन दोषी हैं अपने को कोई मतलब नहीं. … अपन तो इतना जानते हैं कि मीडिया के संवैधानिक चेहरे का रास्ता खुल जायेगा और खत्म होते लोकतन्त्र को अभय मील जायेगा |