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साइंटिफिक-एनालिसिस, संसद: 5-10 दिन की योजना में फेल और काम भविष्य निर्माण का

Pahado Ki Goonj
साइंटिफिक-एनालिसिस
संसद: 5-10 दिन की योजना में फेल और काम भविष्य निर्माण का
भारतीय लोकतन्त्र में अमृत काल चल रहा हैं या ऐसे शब्दों, धार्मिक प्रतिकों व उदघोषों से संविधान आधारित जनता के शासन में भूतकाल बन चुके धर्म आधारित शासन के कायदों की घुसपैठ कराई जा रही हैं, यह आपको तय करना हैं क्योंकि सबकुछ आपकी खुली आंखों के सामने हो रहा हैं। संसद यानि विधायिका में नये कानूनों को बनाने का प्रमुख कार्य हैं, जो आम लोगों व राष्ट्र के भविष्य को लेकर दूरगामी सोच यानि वैज्ञानिक सोच को आधार मानकर पूरे करे जाते हैं। वैज्ञानिक सोच यानि भविष्य में आने वाली समस्याओं, परेशानियों, अनुकूलता व परिस्थितियों को पहले मानकर, क्योंकि, इसलिए  इसके  सहारे बनने वाले कानून, नियम, मशीन व उत्पाद को जांचा परखा जाता हैं कि वह आगे जाकर विफल तो नहीं हो जायेगा।
इसका सबसे अच्छा उदाहरण अंतरिक्ष विज्ञान का हैं जहां नये उपग्रह, विमान, चन्द्रमा व मंगल की धरती पर भेजने वाले यानों का हैं। इसमें हर अगर-मगर, नकारात्मकता को सच मानकर पहले शुरू होने वाली प्रक्रियाएं की कसौटी पर परखा जाता हैं क्योंकि हजारों किलोमिटर दूर की सम्भावना किसी को पता नहीं होती हैं | इसलिए अंतरिक्ष विज्ञान के किसी भी एक प्रोग्राम के सफल हो जाने पर पूरे देशवासीयों के साथ संसद के सदस्यों और कार्यपालिका यानि तथाकथित सरकार के बधाईयों के संदेश आने लग जाते हैं। प्रारम्भ से चली आ रही परिपाटी के तहत विज्ञान को राजनीति के चश्में से देखने, समझने व राजनैतिक-विज्ञान के माध्यम से सिखाने के खेल में कामयाबी के प्रमुख क्षण दिखाने से पहले ही राजनैतिक लोग उसमें घुस जाते हैं और चेहरा चमकाने के साथ क्रेडिट लूटने का खेल  होने लगता हैं | इसे चाहे विज्ञान की भाषा में वायरस कहकर परेशानी, रोग, विनाश का मूल कारण मानकर अपयश ही क्यों ना दिया जाता हो |
संसद यानि विधायिका में कानून बनाते समय इस वैज्ञानिक सोच का सिद्धान्त भी पूरी तरह लागू रहे ताकि लोगों का भविष्य गारन्टेड सुन्दर व अच्छा बन सके इसलिए पक्ष के साथ विपक्ष की सोच का भी संविधान निर्माताओं ने समावेश करा | आजकल तो पहले ही मानसिक सोच को एक पक्ष विशेष का गुलाम मानकर सोचा, समझा, बोला व अभिव्यक्त किया जाने लगा हैं | राष्ट्रपति भी संविधान के तहत अंतरिक्ष विज्ञान के वैज्ञानिकों को राज्यसभा में मनोनित करते रहते हैं ताकि दूरदर्शिता वाली बौद्धिक सोच का समावेश कानून बनाने में रिक्त न हो सके |
नये संसद-भवन के निर्माण के बाद उसके उद्घाटन वाले प्रथम विशेष सत्र में इस दूरदर्शिता वाली सोच को खत्म करके तिलांजली दे दी लगती हैं। हले सत्र में ही पांच दिवस के कार्य की योजना तय करी गई और एक दिन पहले ही संसद को स्थगित कर दिया गया | यदि काम चार दिन में ही खत्म हो सकता हैं तो सभी सांसदों के कार्यक्रमों, यात्रा के रिजर्वेशनों व जनता के कार्यों के एक दिन के समय को क्यों बर्बाद किया | एक सामान्य ड्राइवर गाडी चलाते समय बौद्धिक क्षमता से सामने की दूरी का आकलन एक क्षण भी लेट कर दे तो कईयों की जिन्दगी पर बन जाती हैं | संसद में तो एक आकलन भी गलत हो जाये तो लाखों देशवासीयों के अच्छे दिन वाले भविष्य पर मुसिबतों का पहाड़ पड़ जाता हैं | कानून में संसोधन आगे चाहे कितनी भी बार कर सकते हैं परन्तु भविष्य की दूरदर्शिता वाली सोच की कमी के कारण लोगों को कही समस्याएं झेलनी पड़ती हैं, आर्थिक रूप से तबाह कर देती व यहां तक कि कईयों को जिन्दगी से हाथ धोना पड़ जाता हैं | इन सभी का जिम्मेदार कौन होगा |
अट्ठारहवीं लोकसभा के पहले सत्र में भी भविष्य की दूरदर्शिता वाली सोच नदारद दिखी क्योंकि पहले तय प्लानिंग, आकलन के आधार पर बुलाई गई लोकसभा एक दिन पहले ही स्थगित कर दी गई | इसके बाद काम की उत्पादकता लोकसभा में 105 % फीसदी व राज्यसभा में सौ प्रतिशत से ज्यादा बताकर विज्ञान के मूल गणित का ही सत्यानाश कर दिया | सौ नम्बर के आकलन स्कैल पर उससे ज्यादा मार्कस दे दिया जाता हैं | यह तो परीक्षा में प्रश्न पत्र के उत्तर लिखने वाला ही खुद की कापी जांचे तभी सम्भव हैं| शोर-शराबा में एक दिन का समय बर्बाद हो गया, पहले से काम करने का समय तय होने के बाद भी तय कामों की पेन्डिग लिस्ट लम्बी पडी हैं, उसके कार्य की उत्पादकता निकालने में कोई रोल ही नहीं हैं व राष्ट्रीय ध्वज में चक्र के रूप में गतिमान ध्वज के रूप में मौजूद समय का यह कैसा उपहास हैं जो समझ से परे हैं |
सरकारी व गैर-सरकारी कर्मचारी अपनी मांगों को लेकर पहले ज्ञापन के रूप में सचेत करके हडताल व आन्दोलन करते हैँ तो उन्हें काम नही तो पैसा नहीं के तहत तनख्वाह नहीं दी जाती हैं | यह देशवासीयों पर लगा नियम उनके नौकरों यानि जनप्रतिनिधियों पर लगता हैं या नहीं हमे नहीं पता, कही उत्पादकता सौ फीसदी से ज्यादा बताकर बोनस के रूप में जनता के पैंसो पर मलाई तो नहीं चाटली जा रही हैं |
शैलेन्द्र कुमार बिराणी
युवा वैज्ञानिक
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