पोषक तत्वों और औषधीय गुणों से भरपूर है लाल चावल ।
उत्तरकाशी । मदन पैन्यूली ।
उत्तराखंड से हिमालय में जैविक रूप से उगाए गए लाल चावल, जिसे लाल चावल के नाम से भी जाना जाता है, कुरकुरे बनावट और एक विशिष्ट स्वाद के साथ एक अत्यधिक पौष्टिक चावल है। यह प्राकृतिक रूप से गैर प्रदूषित भीतरी इलाकों उत्तराखंड में उगाया जाता है। इसमें बहुत अधिक पोषण मूल्य, फाइबर सामग्री है और यह एंटी ऑक्सीडेंट का एक अच्छा स्रोत है। हिमालयन रेड राइस हृदय के लिए भी अच्छा है और मधुमेह में भी उपयोगी है।
उत्तरकाशी जिले की गंगा व यमुना घाटी में लाल धान की खेती को बढावा देने के प्रयास फलीभूत हो रहे हैं। इस मुहिम को शुरू करने के लिए जिलाधिकारी अभिषेक रूहेला ने खुद खेतों में उतर कर ग्रामीणों के साथ जुताई व रोपाई की थी। अब फसल तैयार होने के बाद लाल धान की पैदावार के नतीजे नई उम्मीदों को जगा रहे हैं। इससे उत्साहित किसानों ने पहली उपज को बीजों के लिए सहेज कर रखते हुए अगले खरीफ के दौर में बड़े पैमाने पर लाल धान की खेती करने का इरादा जताया है।
जिले की यमुना घाटी में परंपरागत रूप से बड़े पैमाने पर लाल धान (चरधान) की खेती की जाती है। रवांईं क्षेत्र में पुरोला ब्लॉक की कमल सिरांई व रामा सिरांई को लाल धान का सर्वाधिक उत्पादन होता है। इसके साथ नौगांव व मोरी ब्लॉक के निचले इलाकों में भी लाल धान उगाया जाता है। इन इलाकों में लाल धान की सालाना उपज करीब 3000 टन है। पोषक तत्वों और औषधीय गुणों से भरपूर लाल चावल की रंगत और अनूठा स्वाद इसको आम चावलों की तुलना में खास और कीमती बनाता है। इसकी देश-विदेश में काफी मांग है। प्रसिद्धि और मांग में निरंतर वृद्धि तथा किसानों के फायदे को देखते हुए लाल धान का उत्पादन बढ़ाने की जरूरत निरंतर महसूस की जा रही थी।
किसानों की बेहतरी की व्यापक संभावना को देखते हुए जिलाधिकारी अभिषेक रूहेला की पहल पर कृषि विभाग ने पहली बार जिले की गंगा घाटी में भी लाल धान पैदा करने की योजना तैयार की थी। शुरूआती दौर में चिन्यालीसौड, डुंडा और भटवाड़ी ब्लॉक के पैंतीस गांवों के लगभग साढे चार सौ किसानों को इस प्रायोगिक मुहिम से जोड़ा गया। साठ कुंतल बीज की नर्सरी तैयार कर लगभग दो सौ हेक्टेयर क्षेत्रफल में लाल धान की रोपाई की गई थी।
इस इस पहल को जमीन पर उतारने के लिए खुद जिलाधिकारी अभिषेक रुहेला ने गत 29 जून को भटवाडी ब्लॉक के उतरौं गाँव के सिमूड़ी तोक के ‘सेरों’ में जुताई व रोपाई की थी। मुख्य कृषि अधिकारी जेपी तिवारी भी मातहतों के साथ धान की रोपाई करने खेतों में उतरे। अब फसलों की कटाई संपन्न होने पर यह मुहिम अंजाम तक पहुँची तो नतीजे उत्साहजनक और उम्मीदों के अनुरूप देखने को मिले हैं। वैज्ञानिक ढंग से एकत्र किए गए क्रॉप कटिंग के आंकड़ों तथा काश्तकारों की प्रतिक्रिया के आधार पर गंगा घाटी में लालधान उगाने का शुरुआती प्रयोग सफल माना जा रहा है।
इस मुहिम से जुड़े उतरौं गांव के किसान पूर्व सैनिक नरेन्द्र सिंह एवं उनकी माता श्रीमती शिव देई आदि लाल धान की पैदावार से काफी उत्साहित है। शिव देई कहती हैं कि उनके खेत में लालधान की पैदावार सामान्य धान के बराबर ही रही। लेकिन खाद व रसायनों की कम जरूरत तथा सामान्य धान की तुलना में दो से तीन गुना अधिक कीमत मिलने पर किसानों को इससे अधिक लाभ मिलना तय है। सिमूणी के ही वीरेन्द्र सिंह बताते हैं कि उनकी लाल धान की फसल तेज हवा या भारी बारिश के झोंकों में भी खड़ी रही और उपज लगभग दूसरे धान के बराबर ही रही, साथ ही इसकी पुआल पशुओं के चारे के लिए अपेक्षाकृत बेहतर मानी जा रही है। अन्य किसानों ने भी लाल धान की खेती को लाभप्रद मानते हुए इसे जारी रखने का इरादा जाहिर किया है। ज्यादातार किसानों ने अपनी पहली फसल को बीज के लिए सुरक्षित रख दिया है। इससे जाहिर होता है कि खरीफ के अगले दौर में यह मुहिम और रंग लाएगी गंगा घाटी में बड़े पैमाने पर लाल धान की फसल लहलहायेगी ।
जिलाधिकारी अभिषेक रूहेला ने इस सफलता के लिए किसानों और कृषि विभाग के कर्मचारियों का आभार व्यक्त करते हुए कहा है कि इस तरह के सार्थक व साझा प्रयास आम लोगों के जिन्दगी में बेहतर बदलाव ला सकते है। उन्होंने कहा कि लाल धान की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए सभी जरूरी कदम उठाए जाएंगे। श्री रूहेला ने कहा कि केन्द्र सरकार की पहल एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी) के तहत उत्तरकाशी जिले के लाल धान को शामिल किया गया है। साथ ही जिओ टैगिंग के लिए भी आवेदन किया गया है। इससे जिले के लाल धान को देश-दुनिया में विशिष्ट पहचान मिलेगी और ब्रांडिंग व मार्केटिंग में लाभ मिलेगा।
मुख्य कृषि अधिकारी जे.पी तिवारी बताते है कि उतरौं गांव में जसदेई देवी तथा अन्य किसानों के प्रदर्शन प्लॉटों की क्रॉप कटिंग से नतीजों के आधार पर इस क्षेत्र में धान की औसत पैदावार प्रति हेक्टेयर चालीस कुंतल से भी अधिक आंकी गई है। उन्होंने बताया कि सामान्य धान की बाजार कीमत 25 से 30 रू. प्रति किला है जबकि लाल धान 80 से 100 रू. प्रति किलाग्राम आसानी से बिक रहा है। लिहाजा लाल धान से किसान को न्यूनतम दुगुना फायदा होना तय है। उन्होंने कहा कि अगले दौर में लाल धान का रकवा बढ़ाने व किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए विभाग ने अभी से कोशिशों में जुट गया है। उत्तरकाशी के पुरोला क्षेत्र में लाल चावल जैविक रूप से उगाया जाता है। यह बेहद पौष्टिक चावल सख्त बनावट और पौष्टिक स्वाद के साथ आता है और इसे पकाने में सफेद चावल के समान ही समय लगता है। उच्च ऊंचाई वाली हिमालयी घाटियों में भारी बारिश इसकी ठोस बनावट और दिलचस्प स्वाद के लिए आंशिक रूप से जिम्मेदार है।