आज कल आम्बेडकर जैसे वकील क्यों नहीं बन पाते

Pahado Ki Goonj

आज आम्बेडकर जयन्ती भी हैं | इसलिए उच्चतम न्यायालय की

  1. भाषा में पूछा जा सकता हैं कि आज कल आम्बेडकर जैसे वकील क्यों नहीं बन पाते ?

अदालत ने पूछा था कि आजकल टी. एन. शेषन जैसे चुनाव आयुक्त क्यों नहीं बन पाते ?

🔭 साइंटिफिक-एनालिसिस 🔬

महंगाई से परेशान आम लोगों को एक ईमानदार वकील चाहिए. …..

महामहिम राष्ट्रपति देश के प्रथम नागरिक होते हैं |

https://youtu.be/-OfdFAOiGkU

किसी भी प्रकार की गणीतिय प्रक्रिया शुरू करी जाती हैं तो पहला नम्बर उन्हें ही दिया जाता हैं | वर्तमान में इस संवैधानिक पद पर विराजमान एक महिला व्यक्तित्व ने संविधान दिवस पर सुप्रिम कोर्ट के सभागार में न्याय की मूर्ति की छांव तले कहां था कि वो पहले वकील को भी भगवान मानती थी, अभी का तो वही बता सकती हैं |

उत्तराखण्ड के  उभरने वाले  कला कार  मनमोहन  बधानी के वीडियो  देखें और  शेयर  करें

like share subscribe

खाद्य पदार्थों सहित सभी वस्तुओं के बढते दाम व मूल रूप से पेट्रोलियम पदार्थों (पेट्रोल, डीजल, गैस इत्यादि) के कारण महंगाई ने आम आदमी का जीना मुश्किल कर दिया हैं | यदि महामहिम राष्ट्रपति के नजर वाले भगवान जो रजिस्ट्रेशन के अनुसार करीबन 15 लाख के करीबन हैं उसमें से एक भी ईमानदार, निष्ठावान व कार्य के प्रति समर्पित वकील मील जाये तो आम लोगों की महंगाई वाली परेशानी कही हद तक खत्म हो जायेगी |

यह वकील सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट या सेक्शन कोर्ट में से कोई भी हो सकता हैं क्योंकि यहां पद नहीं ईमानदारी व लोगों को न्याय दिलाने की दिल से ईच्छा होनी चाहिए।

देश की अदालतों में हर रोज वकील जनहित याचिका लगाते हैं | इस मामले में याचिका सीधे सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की कोर्ट में लगाना हैं और उनसे अनुरोध करना हैं कि जिस प्रकार उन्होंने चुनाव आयुक्त की चयन प्रक्रिया क्या हैं वो जानने के लिए तथाकथित सरकार से सिर्फ जवाब मांगा था उसी प्रकार यह जानकारी समझने के लिए मांग ले कि पेट्रोलियम पदार्थों (पेट्रोल, डीजल, गैस (LPG, PNG, CNG etc.)) के हर रोज की कीमत जो अन्तर्राष्ट्रीय क्रूड आयल के भाव के अनुसार कम्पनीयों द्वारा तय करने का कानून हैं वो क्या हैं और किस फार्मूले के तहत कीमतों का निर्धारण तय होता हैं वो क्या हैं? उसको ऐसा करने का सोर्स यानि जमीनी आधार भी विस्तार से बताये |

इसकी शुरूआत से एक श्वेत पत्र में तारिख अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय क्रूड आयल के डेली रेट के साथ अदालत में जमा करवाये | इसके बाद आगे इस कानून में क्रूड आयल बास्केट (भारत की खरीदी के अनुसार) का पेंच कब घुसाया गया उसे गणीतिय आधार के साथ व्याखित भी करे | रूस – यूक्रेन जंग के बाद भारत सरकार द्वारा रूस से कब-कब कितना क्रूड आयल व किस भाव में खरीदा उसकी जानकारी टेबल के रूप में तारीख के अनुसार सूचिबद्ध करके सामने रखे |

देश की जनता को उच्चतम न्यायालय पर पूर्ण विश्वास हैं कि वो इस मामले पर भी मीडीया में प्रकाशन व बहस पर रोक नहीं लगायेगी व सबकुछ सीलबंद लिफाफे में न लेकर सार्वजनिक रूप से लेगी | बालीवुड की फिल्में जिन्हें इनको अवार्ड देने वाले लोग समाज का आईना कहते हैं उन्होंने पहले ही जनता के दिमाग में केमिकल लोचा पैदा कर रखा हैं कि बन्द लिफाफे में पैसे होते हैं नहीं तो परिवार के सदस्यों व बहन-बेटी के नाम पर समझाईस होती हैं |

इसके साथ वकील को अदालत से टैक्स के नाम पर हर रोज अर्थव्यवस्था का जो चीरहरण होता हैं उसे रोक आम आदमी के घरेलू बजट को तहस-नहस करने व उन्हें “आत्महत्या” के लिए मजबूर करने वाले कारकों को खत्म करने का अनुरोध करना हैं | इसमें सेवाप्रदाता कम्पनियों द्वारा 28 दिन में ही महिने को पुरा बता पैसा वसूलने का खेल हैं जबकि आदमी 30 या 31 दिन के महिने के अनुसार होने वाली कमाई व पगार से घर खर्च का गणितीय बजट अनुमान सेट करता रहता हैं |

भारतीय धर्म संस्कृति वाली परम्परा और राम राज्य के आदर्श वाली भावनाओं के अनुसार समानों पर टैक्स उतना ही लगना चाहिए जितना आंटा गूंदने में नमक पडता हैं | आरक्षण की सीमा भी 50% फिसदी से ज्यादा न होने का कानूनी प्रावधान हैं तो टैक्स के लिए संविधान के अनुसार कानून का क्या प्रावधान हैं?

वर्तमान के सामाजिक जीवन में 10% फिसदी की सीमा को कमीशन माना जाता हैं, जो कानून की नजर में रिश्वत, घूसखोरी एवं भ्रष्टाचार होता हैं | 10 % फिसदी से ज्यादा प्रतिशत हो तो अर्थशास्त्र की परिभाषा में वो हिस्सेदारी कहलाती है। यदि तथाकथित सरकार यानि कार्यपालिका अपने खर्चों को आधार बनाकर टैक्स की उच्ची दरों को न्यायोचित बताये तो यह समझ लेना चाहिए की वो अर्थशास्त्र में फिसड्डी हैं उसे इसका ज्ञान नहीं हैं जो एक ही वस्तु से सारा टैक्स वसूल कर अपने नकारा होने का प्रमाण दे रही हैं |

इन सबसे आगे की बात यदि केन्द्र सरकार का टैक्स, राज्य सरकार का टैक्स, एक्साईज ड्यूटी, सेस, लेवी आदि-आदि के नाम पर टैक्स की ऊंची दर को न्यायसंगत बताने का प्रयास हो तो वकील को मुख्य न्यायाधीश से यह अनुरोध करने को तत्पर रहना चाहिए कि यह राष्ट्रद्रोह हैं जो एक भारत सरकार को टैक्स वसूली के लिए टुकड़ों-टुकड़ों में बांट रही हैं, इसलिए इस पर तुरन्त कार्यवाही करे व अन्तरिम आदेश के रूप में सजा सुनाये ताकि भारत राष्ट्र संगठित बना रह सके |

हमारी तरह देश के हर आम आदमी को पूर्ण विश्वास हैं कि जिस तरह से उच्चतम न्यायालय ने चुनाव आयुक्त के चयन की कोई संवैधानिक प्रक्रिया न होने के सच को सामने ला दिया उसी प्रकार पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों को तय करने वाले फार्मूले पर चुनावी तारिखों के साईड इफेक्ट वाले सच को भी सबके सामने लाकर रख देगी |

इस कार्य के लिए वकील को योग्यतानुसार एवं निर्धारित सरकारी प्रक्रिया में आने वाले खर्च के अनुसार मेहनताना भी मिलेगा ताकि उसकी रोजी-रोटी व परिवार चलता रहे व हर तारिख पर अदालत में समय पर निर्धारित परिधान में समय पर उपस्थित हो सके | इसके लिए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट व हर राज्य के हाईकोर्ट में राष्ट्रीय कानून अथारिटी के रूप में आफिस खोल योग्य एवं पारंगत कर्मचारी नियुक्त कर रखे हैं जो आर्थिक मदद करते हैं | इन्होंने कानून उचित नियमावली तय कर रखी हैं ताकि पैसे वाला व जन्म से अयोग्य बना ईंसान जनता के खून-पसीने से एकत्रित करे टैक्स के पैसें को हडपकर ना ले जा सके |

Scientific-analysis on current news

Next Post

जलियांवाला बाग शासकीय नरसंहार देश के लिए बलिदान होने वाले महानायकों को श्रद्धा सुमन

गोरे अंग्रेजो के अधिकांश भारतीय वारिस आज भी उन्हीं के पद चिन्हों पर चल देश को लूट व प्रजा को नोंच रहे है है ईश्वर इन गिद्ध रूप शासक वर्ग से देश व प्रजा को  जब मुझ जैसे स्वार्थ परिपूर्ण व्यक्ति का भी मन दुखता है देश के अधिकांश शासक […]

You May Like