नई दिल्ली: पहाडोंकीगूँज,विज्ञान भवन में शनिवार को हाई कोर्ट्स के चीफ जस्टिस और मुख्यमंत्रियों के संयुक्त सम्मेलन में भारत के मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमना ने पीएम मोदी के सामने ही निडरता से बड़ी बात कह दी. सीजेआई ने कहा कि सरकारें देश में सबसे बड़ी मुकदमेबाज है ।
और 50 फीसदी से ज्यादा मामलों में पक्षकार है. उन्होंने कोर्ट में लंबित मुकदमों का मामला उठाते हुए कहा कि सरकार सबसे बड़ी मुकदमेबाज है. कई बार सरकार ही मामलो को जानबूझ कर अटकाती है। उन्होंने कहा कि नीति बनाना हमारा काम नहीं लेकिन कोई नागरिक इन मुद्दों को लेकर आता है तो हमें ये सब बताना पड़ता है।
पीएम मोदी ने कहा-अर्जी डाली है तो फैसला आने में वक्त लगेगा
पीएम मोदी ने कहा कि ये मुद्दा सीजेआई ने ही उठाया है, लेकिन उसमें समय लगेगा क्योंकि अर्जी डालने से लेकर फैसला आने तक ये काफी पेचीदा मामला है। पीएम ने यह भी कहा कि हमने सैकड़ों कानून जो अब प्रासंगिक नहीं हैं, उनको खत्म करने की पहल की थी लेकिन राज्यों ने अब तक सिर्फ 75 कानून ही निरस्त किए हैं। पीएम ने मुख्यमंत्रियों से आग्रह किया कि वो लोगों को ऐसे कानून के जाल से बाहर निकालें।
चीफ जस्टिस एनवी रमना ने देश के हाई कोर्ट्स में अंग्रेजी के अलावा स्थानीय भाषाओं में भी सुनवाई की वकालत की है. उन्होंने कहा कि स्थानीय भाषाओं में हाईकोर्ट में सुनवाई हो ताकि न्याय आम जनता के करीब जाए।CJI ने कहा कि अब समय आ गया है इस बारे में आगे बढ़ने का काम करे।
पीएम मोदी ने कहा कि कोर्ट की भाषा स्थानीय हो
उनकी इस मांग का समर्थन प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने भी किया और कहा कि सामाजिक न्याय के लिए न्याय के तराजू तक जाने की जरूरत ही काफी नहीं बल्कि भाषा भी इसमें एक बड़ी अड़चन होती है।
हमारे यहां सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में कार्यवाही अंग्रेजी में होती है. लेकिन अब न्यायालयों में स्थानीय भाषा को प्रोत्साहन देने की जरूरत है। पीएम ने कहा कि इससे सामान्य नागरिक का न्याय में भरोसा बढ़ेगा. पीएम ने कहा ” न्याय सुराज का आधार है। न्याय जनता की भाषा में सरल और सुगम हो। कानून न्यायिक भाषा के अलावा सामान्य नागरिक की भाषा में भी हो जो आम नागरिकों को समझ मेंआए।”
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शीर्षतम न्यायमूर्ति जस्टिस रमना का भी मिला समर्थन
आगरा। सुप्रीमकोर्ट और सभी हाईकोर्टस में हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में कामकाज शुरू कराने की मुहिम ‘हिंदी से न्याय’ को चंद्रशेखर पंडित भुवनेश्वर दयाल उपाध्याय ने लगभग ढाई-दशक पहले शुरू की थी। विगत दिवस दिल्ली में देश के वरिष्ठतम जजों और मुख्यमंत्रियों की कांफ्रेंस में पीएम मोदी ने मातृभाषा में अदालती-कामकाज निपटाने की जरूरत पर बल दिया था। इसकी जरूरत सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायमूर्ति ने भी बताई है। उपाध्याय कहते हैं कि ऐसा लगता है कि उनकी इस मुहिम पर फैसले की घड़ी ही गई है।
आगरा में जन्मे उपाध्याय ने सबसे पहले एक पत्रकार के रूप में अपना कैरियर शुरू किया। फिर वहीं से हिंदी से न्याय का एक देशव्यापी अभियान शुरू किया। अभियान देश की सरहदों को पार करता हुआ अंग्रेजों के देश ब्रिटेन के अलावा कई यूरोपीय देशों तक पहुँच गया। वहां रह रहे भारतीयों ने अभियान के समर्थन में हस्ताक्षर-अभियान चलाया। उन्होंने देश-भर से लगातार एक करोड़ नौ लाख के आसपास हस्ताक्षर जुटाए हैं। 27 प्रान्तों में उनकी टीमें काम कर रही हैं। देश के तमाम नामचीन लोगों को उन्होंने अपने अभियान से जोड़ा है। अब प्रधानमंत्री ने देश के सबसे बड़े मंच से उनकी मुहिम का समर्थन किया है,यह उनके अभियान का शीर्ष-पड़ाव है।
उपाध्याय कहते हैं कि दरअसल, संविधान के अनुच्छेद 348 में देश की शीर्ष अदालतों में केवल अंग्रेजी में ही कामकाज निपटाने की बाध्यता है। यह व्यवस्था अंग्रेजों के समय से है। अनुच्छेद 370 की तरह यह भी एक अस्थायी संवैधानिक व्यवस्था है। अनुच्छेद 349 में इसे भारत का संविधान लागू होने के 15 वर्ष के भीतर इसे समाप्त करने की बात कही गई है। उपाध्याय ने बताया कि 16 वीं लोकसभा में भाजपा के अर्जुन राम मेघवाल ने मामला सदन में उठाया था। वर्तमान 17वीं लोकसभा में भाजपा के ही सत्यदेव पचौरी ने अनुच्छेद 348 में संशोधन की मांग की थी।
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उत्तरकाशी,उत्तराखंड सरकार द्वारा चार धाम यात्रा में तीर्थयात्रियों की सीमित संख्या को लेकर कल रविवार 1 मई को चारों धामों में विरोध प्रदर्शन, पुतला दहन होगा।। यमुनोत्री में 4000, गंगोत्री 7000, केदारनाथ 12000, बद्रीनाथ 15000 यात्री दर्शन कर सकेंगे। होटल एसोसिएशन के अध्यक्ष शैलेन्द्र मट्टुडा ने बताया कि पर्यटन को चौपट करने की साजिश के खिलाफ हल्ला बोल होगा। पर्यटन व्यबसायियों, मंदिर समिति द्वारा इसका विरोध होगा। विरोध प्रदर्शन कल हनुमान चौक में होगा।