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गुड न्यूज:श्री शङ्कराचार्य जयन्ती के अवसर पर आयोजित होगा व्रतबंध महामहोत्सव -मुकुन्दानन्द ब्रह्मचारी

Pahado Ki Goonj

जोशीमठ पहाडोंकीगूँज, सनातन परंपरा के अनुसार 16 संस्कार का व्यवस्था दी गई है, जिसमें 10वें संस्कार के रूप में ‘उपनयन’ संस्कार की विधी बताई गई है। संस्कार के बिना सुन्दर जीवन चलाना असंभव है। भारतीय संस्कृति को सुपुष्ट और समृद्ध बनाने के लिए अपने संस्कारों को सामूहिक रूप से पालन करना अति आवश्यक है। ज्योतिष्पीठ एवं द्वारकाशारदा पीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज के शुभाशीर्वाद से उनके शिष्य प्रतिनिधि पूज्य स्वामिश्रीः अभिमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती जी महाराज के सान्निध्य में भगवत्पाद आदिशङ्कराचार्य जयन्ती के अवसर पर आगामी वैशाष शुक्ल पञ्चमी तदनुसार 6 मई 2022 को श्री शंकराचार्य मठ, ज्योर्तिमठ में सामूहिक उपनयन संस्कार होने जा रहा है, जिसमें शताधिक छात्रों को उपनीत किया जाएगा । उपनीत बटुकों को आशीर्वाद से अभिसिंचित करने और भिक्षा प्रदान करने समाज के प्रबुद्धजन पधार रहे हैं । आप भी पधारिये ।

आप यदि अपना उपनयन संस्कार करवाना चाहें तो पहले से सूचित करें ।

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निवेदक
मुकुन्दानन्द ब्रह्मचारी
विष्णुप्रियानन्द ब्रह्मचारी

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देहरादून, पहाडोंकीगूँज,विरासत आर्ट एंड हेरिटेज फेस्टिवल 2022 के तेरहवें दिन की शुरुआत ’हेरिटेज ट्रेजर हंट’ प्रतियोगिता के साथ हुआ

 

विरासत में पंडित जयतीर्थ मेवुंडी द्वारा भारतीय शास्त्रीय गायन प्रस्तुत किया गया

 

विरासत में अनुराज बैंड कि प्रस्तुति ने लोगो को संगीत और धुन के प्रति दीवाना बनाया

 

देहरादून-27 अप्रैल 2022- विरासत आर्ट एंड हेरिटेज फेस्टिवल 2022 के तेरहवें दिन की शुरुआत डॉ. बी. आर. अंबेडकर स्टेडियम (कौलागढ़ रोड) देहरादून में ’हेरिटेज ट्रेजर हंट’ प्रतियोगिता के साथ हुआ। इस हेरिटेज ट्रेजर हंट में 5 स्कूलों के 140 छात्रों ने भाग लिया। ट्रेजर हंट में 5 छात्रों का एक समूह बनाया गया जिसमें प्रतियोगिता जीतने के लिए कई स्टालों में छिपे 8 सुरागों को डिकोड करना था। इस प्रतियोगिता ने छात्र-छात्राओं को विरासत में लगे विभिन्न स्टालों के बारे जागरूकता बढा़ई और प्रत्येक राज्य और उनकी संस्कृति के बारे में उनके ज्ञान को बढ़ाया। विजेता स्कूलों में जसवंत मॉडर्न स्कूल ने प्रथम और तृतीय पुरस्कार जीता, जबकि दून इंटरनेशनल स्कूल ने द्वितीय पुरस्कार जीता।

 

सांस्कृतिक संध्या कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन के साथ हुआ एवं पंडित जयतीर्थ मेवुंडी द्वारा भारतीय शास्त्रीय गायन प्रस्तुत किया गया। उन्होंने अपनी पहली प्रस्तुति वास ’राग पुरिया धनहारी’ अर्ज सुनो मेरी फिर उन्हों जावो जबी सजना निर्मोही एवं राग भिन्नां गंधार, अगला राग अधाना सवाई गंधर्व की एब बंदिश ’ जो तेरी रजा, जो चाहे तो करे एवं अंतिम प्रस्तुति में उन्होंने राम की स्तुति में एक भजन कि प्रस्तुति दी।

 

पंडित जयतीर्थ मेवुंडी किराना घराने के एक भारतीय शास्त्रीय गायक हैं। जयतीर्थ का जन्म कर्नाटक के हुबली में हुआ है एवं उनका पालन-पोषण एक संगीतमय वातावरण में हुआ और उनकी माँ सुधाबाई ने उन्हें संगीत के प्रति प्रोत्साहित किया जो पुरंदर दास कृतियाँ गाने की शौकीन थीं। वे ऑल इंडिया रेडियो में ए श्रेणी के कलाकार हैं। पंडित जयतीर्थ मेवुंडी किराना घराने के प्रमुख गायकों में से एक हैं, उनका प्रारंभिक प्रशिक्षण घर से शुरू होता है, और वे मुख्य रूप से भजन और अन्य भक्ति संगीत गाते हैं। 14 साल की उम्र में वे एक गुरु की तलाश में निकले थे उन्होंने एक दशक से अधिक समय तक पंडित अर्जुन नकोड से शिक्षा प्राप्त की, और बाद में पंडित भीमसेन जोशी के शिष्य श्रीपति पादीगर से प्रशिक्षण लिया। वे शास्त्रीय संगीत के लिए एक उदार औार आध्यात्मिक दृष्टिकोण अपना रखते है एवं उनके अनुसार, उनकी शिक्षा विभिन्न घरानों के विभिन्न महानुभावों से ली हुई है।

 

सांस्कृतिक कार्यक्रम के अन्य प्रस्तुतियों में नवीन गंधर्व एंड ग्रुप कि ओर से प्रस्तुतियां दी गई जिसमें वे बेलाबहार और तबला पर भारतीय शास्त्रीय संगीत और पश्चिमी देशों का समामेलन मधुर धुन बजाया। नवीन गंधर्व पहले विरासत, देहरादून में प्रस्तुति दे चुके है और वे यहां फिर से कार्यक्रम में शामिल होने पर बेहद खुश हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि देहरादून के संगीत प्रेमी दर्शकों के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन में से एक है। उनके साथ प्रस्तुति करने वाले अन्य कलाकारों में अजहर अहमद और तबला पर सोहम परले, सोप्रानो पर दिनेश सोलंकी एवं उनके भाई देवानंद गंधर्व कीबोर्ड पर थे।

 

पंडित बाबूलाल गंधर्व द्वारा बेलाबहार का आविष्कार संगीत जगत के लिए एक उपहार है और भारतीयों के लिए यह गौरव कि बात है कि इस तरह की उत्कृष्ट कृति यहां बनाई गई है। बेलबहार एक अनूठा वाद्य यंत्र है जो यह सारंगी और वायलिन का मेल है जो पंडित बाबूलाल गंधर्व द्वारा निर्मित एक नया वाद्य यंत्र है। बेलाबहार दिलरुबा, तर-शहनाई, रावणहट्टा, वायलिन, सारंगी आदि जैसे अधिकांश प्रकार के वाद्य यंत्रों का विकल्प रहा है। निस्संदेह यह किसी भी प्रकार के संगीत के लिए अधिकतम सुविधाओं के साथ मैजुद वाद्ययंत्र का सबसे आधुनिक रूप है। इसके मधुर ध्वनि व्यक्ति को रचनात्मकता और खुबसूरती से परिचय कराती है जो इस वाद्य यंत्र को सबसे अलग बनाती है।

 

नवीन गंधर्व एक युवा बहु-प्रतिभाशाली संगीतकार हैं, जो अपनी विशिष्ट शैली के साथ समान जुनून और निपुणता के साथ ’बेलाबहार’ और तबला नामक अद्वितीय वाद्य यंत्र बजाते हैं। उनके गुरु महान उस्ताद अल्लारखा और पं. बाबूलाल गंधर्व है।

 

वह देवास, मध्य प्रदेश से हैं एवं पंडित काशीराम के कुलीन परिवार में पैदा हुए एक प्रसिद्ध सारंगी मास्टर है उन्होंने अपने नानाजी पं मानसिंह, पं विश्वनाथ मिश्रा से तबला का प्रारंभिक प्रशिक्षण लिया और बाद में तबला जादूगर उस्ताद अल्लारखा से पंजाब घराने में प्रशिक्षण लिया।

 

हालाँकि उन्हें तबला पसंद है, लेकिन उन्होंने अपने पिता की विरासत को अपने बेहतरीन प्रयासों के साथ जीवित रखने के लिए समान रूप से बेलाबहार पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया है। उन्होंने अपनी प्रतिभा से कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीते हैं।

 

नवीन का बैंड ’अनुराज’, बेलबहार और तबला में उनकी दक्षता का एक प्रोडक्ट है, जो अपनी तरह का एकमात्र है, अनुराज भारतीय शास्त्रीय संगीत के अत्यधिक प्रतिभाशाली युवाओं के लिए एक मंच है जो भारतीय संगीत कला को उच्चतम स्तर तक ले जाने की दृष्टि रखता है।

 

 

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