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श्री कृष्ण भगवान जी  !

Pahado Ki Goonj

 श्रीकृष्ण जी की जय 

*अच्युतं केशवं रामनारायणं*
*कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरिम्*
*श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं*
*जानकीनायकं रामचन्द्रं भजे*

*अच्युतं केशवं सत्यभामाधवं*
*माधवं श्रीधरं राधिकाराधितम्*
*इन्दिरामन्दिरं चेतसा सुन्दरं*
*देवकी नन्दनं नन्दजं सन्दधे*

*विष्णवे जिष्णवे शङ्खिने चक्रिणे*
*रुक्मणीरागिणे जानकी जानये*
*वल्लवीवल्वभायार्चितायात्मने*
*कंशविध्वंसिने वंशिने ते नमः*

*कृष्ण गोविन्द हे राम नारायण*
*श्रीपते वासुदेवाजित  श्रीनिधे*
*अच्युतानन्त हे माधवाधोक्षज*
*द्वारकानायक द्रौपदीरक्षक*

*राक्षसक्षोभितः सीतया शोभितो* *दण्डकरण्यभूपुण्यताकारणः*
*लक्ष्मणेनान्वितो वानरैः*
*सेवितोऽगस्त्यसम्पूजितो राघवः पातु माम्*

*धेनुकारिष्टकानिष्टकृद्द्वेषिहा*
*केशिहा कंसह्रद्वंशिकावादकः*
*पूतनाकोपकः सूरजाखेलनो*
*बालगोपालकः पातु मां सर्वदा*

*विद्युदुद्योतवत्प्रस्फुरद्वाससं*
*प्रावृडम्भोदवत्प्रोल्लसद्विग्रहम्*
*वन्यया मालया शोभितोरःस्थलं*
लोहिताङ्घ्रिद्वयं वारिजाक्षं भजे

कुञ्चितैः कुन्तलैर्भ्राजमानाननं
रत्नमौलिं लसत्कुण्डलं गण्डयोः
हारकेयूरकं कङ्कणप्रोज्ज्वलं
किङ्किणी मञ्जुलं श्यामलं तं भजे

अच्युतस्याष्टकं यः पठेदिष्टदं  प्रेमतः प्रत्यहं पूरुषः सस्पृहम्वृत्ततः सुन्दरं कर्तृविश्वम्भरस्तस्य वश्यो हरिर्जायते सत्वरम्

oश्रीमच्छङ्कराचार्यकृतमच्युताष्टकं शुभम् !

श्री राधाकृष्ण ॥
श्रीकृष्ण जी की जय ॥卐॥*

 श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का इतिहास, महत्व और उनकी सोलह (16) कलाएं॥ 

*सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे ।*
*तापत्रय विनाशाय श्री कृष्णाय वयं नम:॥*

*भावार्थ ÷*

*सच्चिदानंद स्वरूप भगवान् श्रीकृष्ण जी को हम नमस्कार करते हैं, जो इस जगत की उत्पत्ति, स्थिति और विनाश के हेतु तथा आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक-तीनों प्रकार के तापों का नाश करनें वाले हैंI*

*भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव को पूरे देश में बड़े ही धूम-धाम के साथ कृष्ण जन्माष्टमी पर्व के रूप में मनाया जाता है। हिंदू धर्म के सबसे खास त्योहारों में से एक श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन लोग उपवास रखकर घर-परिवार की सुख‐शांति और समृद्धि के लिए प्रभु से प्रार्थना करते हैं। मथुरा में यह त्योहार और भी विशेष उत्सव के साथ मनाया जाता है, यह भगवान श्रीकृष्ण जी का जन्मस्थान है। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार इस दिन व्रत रखने और भगवान की विशेष पूजा अर्चना करने से सारी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं। संतान प्राप्ति,आयु और समृद्धि के लिए जन्माष्टमी पर्व का विशेष महत्व है। इस साल 2021 को तीस (30) अगस्त के दिन श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार बहुत ही धूमधामपूर्ण मनाया जाएगा।*
*पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण जी जन्म मध्य रात्रि के समय कारागार में हुआ था।*
*श्रीकृष्ण जी के जन्माष्टमी का त्योहार सदियों से भारत में बड़े ही श्रद्धा भाव के साथ मनायी जाती है। मान्यताओं के अनुसार भाई कंस के अत्याचार सहते हुए कारागार में बंद माता देवकी की आठवीं संतान के रूप में भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण जी का अवतरण (जन्म) हुआ था।* *भगवान श्रीकृष्ण जी ने पृथ्वी को कंस के आतंक से मुक्त करने के लिए अवतार लिया था। इसी मान्यता के अनुसार हर साल भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता है।*
*हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण जी को बैकुण्ठाधिपति श्री विष्णु जी का अवतार माना जाता है। यही कारण है कि यह महापर्व विशेष महत्व रखता है। भगवान श्रीकृष्ण जी का आशीर्वाद और कृपा पाने के लिए इस दिन लोग उपवास रखने के साथ विधि-विधान से पूजा और भजन करते हैं। मंदिरों में विशेष सजावट करके भगवान की प्रक्टोत्सव को विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है। कुछ स्थानों में दही-हांडी का भी उत्सव रखा जाता है। मध्यरात्रि के समय भगवान के जन्मोत्सव के समय सभी लोग मंदिरों में एकत्रित होकर विशेष पूजा करते हैं।*
*भगवान श्रीकृष्ण जी को प्रसन्न करने के लिए सभी लोगों को श्रृद्धानुसार उपवास और विशेष पूजा-अर्चना करनी चाहिए। घर में मौजूद भगवान श्रीकृष्ण जी की प्रतिमा को पीले रंग के वस्त्र पहना कर, धूप-दीप से वंदन करें। भगवान श्रीकृष्ण जी को फल‐पुष्प अर्पित करें, चंदन लगाएं। भगवान श्रीकृष्ण जी को दूध-दही, मक्खन विशेष पसंद हैं, ऐसे में इसका ही प्रसाद भोग आदि बनाएं और भावपूर्वक भगवान जी को समर्पित होकर अर्पित करने के बाद वही प्रसाद श्रद्धापूर्वक सबमें बाँट देना चाहिए।*

*श्रीकृष्ण जी की सोलह (16) कलाएं*—-
*~~~~~~~~~~~~~~~~*

*भगवान श्री विष्णु जी के सभी अवतारों में भगवान श्रीकृष्ण जी भी एक श्रेष्ठ अवतार थे, क्योंकि वे संपूर्ण कला अवतार थे जबकि बाकि जन्मों में जब भगवान श्री विष्णु जी ने अवतार रूप लिया तो कुछ कलाओं के साथ ही लिया जिससे वे संपूर्ण अवतार नहीं कहलाये।*

*कलाएं.*. —–
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*कला वैसे सामान्य शाब्दिक अर्थ के रूप में देखा जाये तो कला एक विशेष प्रकार का गुण मानी जाती है, यानि सामान्य से हटकर सोचना, सामान्य से हटकर समझना, सामान्य से हटकर विशेष प्रकार में ही कार्यों को करना कुल मिलाकर लीक से हटकर कुछ करने का ढंग व गुण जो किसी को आम से खास बनाते हों कला की श्रेणी में रखे जा सकते हैं।*

*भगवान श्री विष्णु जी ने जितने भी अवतार लिये सभी में कुछ न कुछ खासियत होती थी वे खासियत उनकी कला ही थी।*

*सोलह (१६) कलाएं अर्थ सहित : -*

 

*१ – श्री संपदा : -*

*श्री संपदा इसका तात्पर्य है कि जिसके पास भी श्री कला या संपदा होगी वह धनी होगा। धनी होने का अर्थ सिर्फ पैसा व पूंजी जोड़ने से नहीं है बल्कि मन, वचन व कर्म से धनी होना चाहिये। ऐसा व्यक्ति जिसके पास यदि कोई आस लेकर आता है तो वह उसे निराश नहीं लौटने देता। श्री संपदा युक्त व्यक्ति के पास माँ श्री लक्ष्मी जी का स्थायी निवास होता है। कह सकते हैं इस कला से संपन्न व्यक्ति समृद्धशाली जीवनयापन करता है।*

*२ – भू संपदा : -*

*इसका अभिप्राय है कि इस कला से युक्त व्यक्ति बड़े भू-भाग का स्वामी हो, या किसी बड़े भू-भाग पर आधिपत्य अर्थात राज करने की क्षमता रखता हो। इस गुण वाले व्यक्ति को भू कला से संपन्न माना जा सकता है।*

*३ – कीर्ति संपदा :–*

*कीर्ति यानि की ख्याति, प्रसिद्धि अर्थात जो देश दुनिया में प्रसिद्ध हो लोगों के बीच काफी लोकप्रिय, विश्वसनीय माने जाता हो व जन कल्याण कार्यों में पहल करने में हमेशा आगे रहता हो ऐसा व्यक्ति कीर्ति कला या संपदा युक्त माना जाता है।*

*४ – वाणी सम्मोहन : -*

*कुछ लोगों की आवाज़ में एक अलग तरह का सम्मोहन होता है। लोग ना चाहकर भी उनके बोलने के अंदाज की तारीफ करते हैं। ऐसे लोग वाणी कला युक्त होते हैं इन पर माँ श्री सरस्वती जी विशेष कृपा होती है। इन्हें सुनकर क्रोधी भी एकदम शांत हो जाता है। इन्हें सुनकर मन में भक्ति व प्रेम की भावना जाग जाती है।*

*५ – लीला : -*

*इस कला से युक्त व्यक्ति चमत्कारी होता है उसके दर्शनों में एक अलग आनंद मिलता है। श्री हरि जी की कृपा से कुछ खास शक्ति इन्हें मिलती हैं जो कभी कभी अनहोनी को होनी और होनी को अनहोनी करने के साक्षात दर्शन करवाते हैं। ऐसे व्यक्ति जीवन को भगवान का दिया प्रसाद समझकर ही उसे ग्रहण करते हैं।*

*६ – कांति : -*

*कांति वह कला है जिससे चेहरे पर एक अलग नूर पैदा होता है, जिससे देखने मात्र से आप सुध-बुध खोकर उसके हो जाते हैं। यानि उनके रूप सौंदर्य से आप प्रभावित होते हैं। चाहकर भी आपका मन उनकी आभा से हटने का नाम नहीं लेता और आप उन्हें निहारे जाते हैं। ऐसे व्यक्ति को कांति कला से युक्त माना जा सकता है।*

*७ – विद्या : -*

*विद्या भी एक कला है जिसके पास विद्या होती है उसमें अनेक गुण अपने आप आ जाते हैं विद्या से संपन्न व्यक्ति वेदों का ज्ञाता, संगीत व कला का मर्मज्ञ, युद्ध कला में पारंगत, राजनीति व कूटनीति में माहिर होता है।*

*८ – विमला : -*

*विमल यानि छल -कपट, भेदभाव से रहित निष्पक्ष जिसके मन में किसी भी प्रकार मैल ना हो कोई दोष न हो, जो आचार विचार और व्यवहार से निर्मल हो ऐसे व्यक्तित्व का धनी ही विमला कला युक्त हो सकता है।*

*९ – उत्कर्षिणि शक्ति : -*

*उत्कर्षिणि का अर्थ है प्रेरित करने की क्षमता , जो लोगों को अकर्मण्यता से कर्मण्यता का संदेश दे सकें। जो लोगों को मंजिल पाने के लिये प्रोत्साहित कर सके। किसी विशेष लक्ष्य को भेदने के लिये उचित मार्गदर्शन कर उसे वह लक्ष्य हासिल करने के लिये प्रेरित कर सके जिस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण जी ने युद्धभूमि में हथियार डाल चुके अर्जुन को गीतोपदेश से प्रेरित किया। ऐसी क्षमता रखने वाला व्यक्ति उत्कर्षिणि शक्ति या कला से संपन्न व्यक्ति माना जा सकता है।*

*१० – नीर-क्षीर विवेक : -*

*ऐसा ज्ञान रखने वाला व्यक्ति जो अपने ज्ञान से न्यायोचित फैसले लेता हो इस कला से संपन्न माना जा सकता है। ऐसा व्यक्ति विवेकशील तो होता ही है साथ ही वह अपने विवेक से लोगों को सही मार्ग सुझाने में भी सक्षम होता है।*

*११ – कर्मण्यता : -*

*जिस प्रकार उत्कर्षिणी कला युक्त व्यक्ति दूसरों को अकर्मण्यता से कर्मण्यता के मार्ग पर चलने का उपदेश देता है व लोगों को लक्ष्य प्राप्ति के लिये कर्म करने के लिये प्रेरित करता है वहीं इस गुण वाला व्यक्ति सिर्फ उपदेश देने में ही नहीं बल्कि स्वयं भी कर्मठ होता है। इस तरह के व्यक्ति खाली दूसरों को कर्म करने का उपदेश नहीं देते बल्कि स्वयं भी कर्म के सिद्धांत पर ही चलते हैं।*

*१२ – योगशक्ति : -*

*योग भी एक कला है। योग का साधारण शब्दों में अर्थ है जोड़ना यहाँ पर इसका आध्यात्मिक अर्थ आत्मा को परमात्मा से जोड़ने के लिये भी है। ऐसे व्यक्ति बेहद आकर्षक होते हैं और अपनी इस कला से ही वे दूसरों के मन पर राज करते हैं।*

*१३ – विनय : –*

*इसका अभिप्राय है विनयशीलता यानि जिसे अहं का भाव छूता भी न हो। जिसके पास चाहे कितना ही ज्ञान हो, चाहे वह कितना भी धनवान हो, बलवान हो मगर अहंकार उसके पास न फटके। शालीनता से व्यवहार करने वाला व्यक्ति इस कला में पारंगत हो सकता है।*

*१४ – सत्य धारणा : –*

*कहते हैं सच बहुत कड़वा होता है इसलिये सत्य को धारण करना सबके बस में नहीं होता विरले ही होते हैं जो सत्य का मार्ग अपनाते हैं और किसी भी प्रकार की कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी सत्य का दामन नहीं छोड़ते। इस कला से संपन्न व्यक्तियों को सत्यवादी कहा जाता है। लोक कल्याण व सांस्कृतिक उत्थान के लिये ये कटु से कटु सत्य भी सबके सामने रखते हैं।*

*१५ – आधिपत्य : -*

*आधिपत्य वैसे यह शब्द सुनने में तो ताकत का अहसास कराने वाला मालूम होता है, लेकिन यह भी एक गुण है। असल में यहाँ आधिपत्य का तात्पर्य जोर जबरदस्ती से किसी पर अपना अधिकार जमाने से नहीं है बल्कि एक ऐसा गुण है जिसमें व्यक्ति का व्यक्तित्व ही ऐसा प्रभावशाली होता है कि लोग स्वयं उसका आधिपत्य स्वीकार कर लेते हैं। क्योंकि उन्हें उसके आधिपत्य में सरंक्षण का अहसास व सुरक्षा का विश्वास होता है।*

*१६ – अनुग्रह क्षमता : -*

*जिसमें अनुग्रह की क्षमता होती है वह हमेशा दूसरों के कल्याण में लगा रहता है, परोपकार के कार्यों को करता रहता है। उनके पास जो भी सहायता के लिये पहुँचता हैं वह अपने सामर्थ्यानुसार उक्त व्यक्ति की सहायता भी करते हैं।*

*कुल मिलाकर जिसमें भी ये सभी कलाएं अथवा इस तरह के गुण होते हैं वह ईश्वर के समान ही होता है, क्योंकि किसी इंसान के वश में तो इन सभी गुणों का एक साथ मिलना दूभर ही नहीं असंभव सा लगता है, क्योंकि साक्षात ईश्वर भी अपने दशावतार रूप लेकर अवतरित होते रहे हैं लेकिन ये समस्त गुण केवल द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण जी के अवतार रूप में ही मिलते हैं।*

*जिसके कारण यह उन्हें पूर्णावतार और इन सोलह कलाओं का स्वामी कहा जाता है।*

*हे आनन्द उमंग भयो जय हो नन्द लाल की।*
*नन्द घर आनन्द भयो जय कन्हैया लाल की॥*
*हे ब्रज में आनन्द भयो जय यशोदा लाल की।*
*हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल की॥*
*जय हो नन्द लाल की जय यशोदा लाल की।*
*हो कोटि ब्रह्माण्ड के अधिपति लाल की॥*
*हे गौहे चराने आये जय हो पशुपाल की।*
*आनन्द से बोलो सब जय हो ब्रज लाल की॥*
*हे जय हो ब्रज लाल की पावन पति पाल की।*
*गोकुल घर आनंद भयो जय कन्हैया लाल की॥*

 ॥ श्री राधेकृष्ण जी ️की जय ॥ 

 आप सभी स्नेहित आत्मीयजनों को हम अपनी ओर से सपरिवार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पवित्र पावन महापर्व की हार्दिक दिल से शुभकामनाएँ और बधाईयाँ प्रेषित करते ह8
*भगवान श्रीकृष्ण जी आप सभी भक्तजनों पर अपना आशीर्वाद और असीम, अनन्त कृपा बनाए रखें। प्रस्तुत कर्ता

भूपेश कुड़ियाल
श्री आदर्श रामलीला समिति (रजि0),*
उत्तरकाशी प्रबंधक हैंं 

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