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गंगोत्री धाम को गंगा से ही खतरा,सरकार में सन्नाटा पसरा

Pahado Ki Goonj

करोड़ों लोगों के आस्था के धाम के लिए इसका संज्ञान न्यायालय को स्वयं लेना चाहिए

देहरादून। उत्तरकाशी विश्व प्रसिद्ध गंगोत्री धाम को भागीरथी (गंगा) नदी से ही बड़ा खतरा उत्पन्न हो गया है। गंगोत्री धाम से गोमुख तक अपस्ट्रीम में भागीरथी के दोनों ओर बीते कुछ वर्षों में इतना मलबा जमा हो चुका है कि इससे बरसात में कभी भी भागीरथी का प्रवाह अवरुद्ध हो सकता है। अगर ऐसा हुआ तो नदी से गंगोत्री में भारी तबाही मच सकती है। इसी आशंका को देखते हुए गंगोत्री मंदिर समिति ने जिला प्रशासन को कई बार पत्र लिखा है। जानकर मान रहे हैं कि जल्द इस और कोई कदम नहीं उठाए गए तो गंगोत्री धाम में भी केदारनाथ जैसी तबाही आ सकती है। गंगोत्री मंदिर समिति के पदाधिकारी बताते हैं कि पहले गंगोत्री से लेकर गोमुख तक के क्षेत्र में बारिश की हल्की फुहारें ही देखने को मिलती थीं। लेकिन बीते कुछ सालों से इस उच्च हिमालयी क्षेत्र में मूसलाधार बारिश ने भूस्खलन की तीव्रता को बढ़ा दिया है। गंगोत्री से एक किमी गोमुख की ओर साल 2014 में देवऋषि गदेरे में आया उफान अपने साथ भारी मलबा भी लाया था। सबसे अधिक मलबा भगीरथ शिला घाट से लेकर गोमुख की ओर मौनी बाबा आश्रम के बीच जमा है.साल 2016 में चीड़बासा के पास स्थित गदेरे में हुए भूस्खलन का मलबा भी यहां जमा है। इसके अलावा वर्ष 2017 में मेरू ग्लेशियर के पास नीलताल टूटने के कारण गोमुख में मची तबाही के मलबे ने भी भागीरथी के तल को काफी ऊपर उठा दिया। गंगोत्री मंदिर समिति के अध्यक्ष सुरेश सेमवाल कहते हैं कि अगर समय रहते इस मलबे को नहीं हटाया गया तो इससे भागीरथी के अवरुद्ध होने से डाउन स्ट्रीम में गंगोत्री धाम की ओर तबाही का खतरा है। पिछले कुछ वर्षों से भागीरथी अपनी दाहिनी ओर यानी गंगोत्री धाम की ओर बने घाटों पर कटाव कर रही है। उत्तरकाशी के जिलाधिकारी कहते हैं कि मलबे से खतरे की आशंका की जांच के लिए पिछले साल एक कमेटी गठित कर शासन को रिपोर्ट भेजी गई थी. इसमें वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान देहरादून के वैज्ञानिक और अन्य तकनीकी जानकारों के सहयोग से एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की गई है और शासन भेज दी गई है। शासन ने अभी तक इसका कोई जवाब नहीं दिया है इस वजह से गंगोत्री धाम के मलबे को हटाया नहीं जा सका। यह क्षेत्र इको सेंसेटिव जोन में आता है जिसकी वजह से जिला प्रशासन इस मलबे को खुद हटाने में असमर्थ दिख रहा है।यह उत्तराखंड सरकार की इच्छा शक्ति के चलते विश्व प्रसिद्ध धाम के प्रति अधिकारीयों के अपने  कर्तव्यों के कार्य के प्रति जागरूकता दिखाई दे रहा है।इसके पीछे अपने हित के लिए प्रदेश को नुकसान पहुंचाना है।सेवा का अधिकार कहीं दिखाई देता तो इतना नुकसान प्रदेश को नहीं उठाना पड़ता। जनता एंव गंगोत्री आने वाले श्रद्धालुओं का कहना है कि इस धाम के प्रति लापरवाही करने वाले अधिकारियों को कठोरता से दण्डित किया जाना चाहिए।करोड़ों लोगों के आस्था के धाम के लिए इसका संज्ञान न्यायालय को स्वयं लेना चाहिए।

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