पता नहीं मुलायम सिंह यादव के दिल पर आज क्या गुज़र रही होगी । गौरतलब है कि बसपा के समर्थन से जब मुलायम सिंह यादव मुख्य मंत्री बने थे तब बहुत चाहा था उन्हों ने कि मायावती उप मुख्य मंत्री बन जाएं । ताकि जैसे-तैसे वह काबू में रहें । लेकिन मायावती ने उप मुख्य मंत्री बनने से बारंबार इंकार किया । मुलायम के काबू में कभी नहीं आईं । हर बार दिल्ली से कांशीराम के साथ लखनऊ आतीं और मुलायम से मोटी रकम वसूल कर वापस हो जातीं । और जब बहुत हो गया तो मुलायम ने हाथ खड़ा कर दिया। नियमित पैसा देने से इंकार कर दिया । नाराज हो कर कांशीराम ने समर्थन वापसी के संकेत देने शुरू किए । अंतिम बातचीत के लिए कांशीराम और मायावती एक बार फिर लखनऊ आए । स्टेट गेस्ट हाऊस में ठहरे । मुलायम को बुलवाया । मुलायम पेश हुए । कमरे में दो ही कुर्सी थी । एक पर कांशीराम आसीन थे , दूसरे पर मायावती । मुख्य मंत्री मुलायम सिंह यादव खड़े-खड़े बात करते रहे ।
जाने क्या बात हुई कि मुलायम सिंह ने बात ही बात में खड़े-खड़े अपने कान पकड़ लिए । मायावती , कांशीराम के सामने कान पकड़े खड़े मुलायम की फ़ोटो खिंचवा लिया कांशीराम ने और उसे लखनऊ के दैनिक जागरण अख़बार में छपवा दिया । कांशीराम तो दिल्ली चले गए थे पर पैसा उगाही के लिए मायावती लखनऊ में डटी रही थीं । फ़ोटो देखते ही सपा मुखिया मुलायम सहित सपा के गुंडों का खून खौल गया । मुलायम सिंह का संकेत मिलते ही सपाई गुंडों ने 2 जून , 1994 की सुबह-सुबह गेस्ट हाऊस में ठहरीं मायावती पर हमला बोल दिया । इरादा मायावती की हत्या का था । लेकिन उस समय गेस्ट हाऊस में उपस्थित भाजपा विधायक ब्रह्मदत्त द्विवेदी ने बड़ी फुर्ती से मायावती को उन के कमरे में धकेल कर बंद कर दिया। जिसे मायावती ने भी भीतर से बंद कर लिया । मायावती के कमरे के फोन का तार काट दिया गया । पर मायावती के पास पेजर था । वह पेजर का सीमित उपयोग करती रहीं। एक दलित पुलिस अफसर विजय भूषण जो उस समय सी ओ हज़रतगंज थे , लगातार वायरलेस मेसेज करते रहे , जिसे सुनने वाला कोई नहीं था । आज के डी जी पी , उत्तर प्रदेश , ओ पी सिंह तब लखनऊ के एस एस पी हुआ करते थे , वह भी ख़ामोश थे । लेकिन मायावती का सौभाग्य था कि जब गेस्ट हाऊस पर सपाई गुंडे मायावती की हत्या के लिए हमलावर थे , ज़ी न्यूज की टीम वहीँ थी । पर इस से बेखबर सपाई गुंडे अपना काम करते रहे थे । न्यूज़ में यह घटना देखते ही उसी दिन अटल बिहारी वाजपेयी ने यह मामला लोकसभा में उठा दिया । नतीज़े में मायावती को भारी सुरक्षा मिल गई थी ।
मायावती की जान बच गई थी । बसपा के समर्थन वापसी से मुलायम सरकार का पतन हो चुका था । जल्दी ही मायावती अटल जी के आशीर्वाद से उत्तर प्रदेश की मुख्य मंत्री बन गईं । अटल जी के आशीर्वाद और भाजपा की मदद से तीन बार मुख्य मंत्री बनी मायावती को एक मौका जब मिला कि वह अटल जी के प्रति कृतज्ञता जताएं तब उन्हों ने कृतघ्नता जताई । अटल जी को लोकसभा में समर्थन देने का वादा कर के ऐन समय पर मुकर गईं । अटल जी की सरकार गिर गई थी । जीवनदान और राजनीतिक जीवनदान देने वाले अटल जी की जब मायावती नहीं हुईं तो अखिलेश यादव या किसी और की कितनी होंगी यह आने वाला समय बताएगा । रही बात अखिलेश यादव की तो वह जब अपने पिता मुलायम सिंह यादव के नहीं हुए , पिता की पीठ में छुरा घोंप दिया तो किस के होंगे भला । जो हो , अभी तो मोदी की बाढ़ में अपनी-अपनी जान बचाने के लिए गठबंधन के पेड़ पर सांप और नेवले एक साथ खड़े हैं। देखना दिलचस्प होगा कि बहता कौन है और बचता कौन है । या कि बाढ़ ही विदा हो जाती है । कौन जानता है कि कब क्या होगा । राजनीति में कब क्या हो जाए , कौन किस का हो जाए , कौन जानता है भला ।
उसी को जीने का हक़ है जो इस ज़माने में
इधर का लगता रहे और उधर का हो जाए ।