उत्तराखंड के पौराणिक इतिहास में उत्तरकाशी का बगोड़ी गांव आज भी पौराणिक रीति रिवाजों से गांववासी अपने धान की रोपाई करते हैं जीतू बगडवाल की प्रेम गाथा भी इन्ही रोपणी के दिनों से है

Pahado Ki Goonj

मदन पैन्यूली/ उत्तराखंड के पौराणिक इतिहास में उत्तरकाशी का बगोड़ी गांव आज भी पौराणिक रीति रिवाजों से गांववासी अपने धान की रोपाई करते हैं जीतू बगडवाल की प्रेम गाथा भी इन्ही रोपणी के दिनों से है ।

 बगोडी के मालिक जीतू खूब खेत खलिहानों सेरा फुंगड़ी व् खूब गौड़ी भैंसी बकरियों का मालिक जीतू आलीशान जिन्दगी जीता था।
रोपणियों के दिन नजदीक थे इसलिये दो तीन महीने पहले ही पंडित जी से शुभ लग्न निकलवाकर रोपणी का दिन 9 गते आषाढ़ व् भुली सोबनी के हाथों तय हुआ।
सोबनी जो जीतू की छोटी बहिन थी जो अपने ससुराल में थी ।
भरणा जो सोबनी की ननद व् जीतू की स्याली! जिसे जीतू अत्यधिक प्रेम करता था, व् भुली के ससुराल स्याली भरणा से मिलने खूब जाया करता था।
अब रोपणी की शुरुआत भी भुली सोबनी के हाथों थी तो उसे लेने उसके ससुराल जाना था।
जीत सिंह के माता पिता सोबनी लेने कौन जायेगा। राय मशविरा कर रहे होते है तो स्याली मिलने को आतुर जीतू कहता है में जाऊंगा तभी घर में बंधी तिला नाम की काली बकरी छींक लेती है। तो जीतू के बूढे माता पिता मायूस हो जाते है की ये काली बकरी का छींकना शुभ नहीं है।
और सोचते है की अब सोबनी को लेने मोलू को भेजते है।
मोलू जो जीतू का सेवक व् अच्छा मित्र भी था मोलू को सभी घर के सदस्य भी खूब मानते थे।
तब जीतू कहता है की माँ मोलू को भेजने में हमारी तोहीन होगी लोग बदनामी करेंगे की एक सेवादार को बहिन को लेने भेजा है।
माता पिता भी सोचते है की जीतू का कहना भी ठीक ही है माता पिता का इकलौता बेटा जीतू बांसुरी बजाने का भी अच्छा कलाकार था।
तब माता पिता जीतू को सोबनी को लेने की आज्ञा दे देते है!! सोबनी के ससुराल के लिये भी दो रास्ते थे एक ऊपर डांडा धार कूंकूं डाली से तो दूसरा नीचे गांव की तलहटी से माता पिता नीचे के रास्ते जाने को कहते है।
ऊपर के रास्ते वनदेवियों आछरियों का डर था और कहते है की जाओगे भी तो वहां बांसुरी मत बजाना।
दिलो दिमाग में स्याली भरणा की रट लिये हुऐ व् सुन्दर रमणीक वादियों फिजाओं का शौकीन जीतू ऊपर के रास्ते से ही जाता है ओर कूंकूं डाली के समीप जाकर छाया में बैठकर उसे वहां की सुंदरता अपनी और आकर्षित करती है
तब जीतू अपनी बांसुरी के सुरों की वर्षा करता है जिससे वहां आस पास की वनदेवियां मंत्रमुग्ध हो जाती है और जीतू के सम्मुख आती है और बोलती है कि आप सुंदर व् बांसुरी के अच्छे कलाकार हो अब हम तुम्हे हरकर अपने साथ ले जायेंगे।
तब जीतू उनसे विनती करता है की हे वनदेवियो में अपनी बहिन को लेने उसके ससुराल जा रहा हूँ मेरी बहन मेरा रास्ता देख रही है अगर में वहाँ न पहुचाँ तो वो विलाप कर लेगी हाँ 6 गते आषाढ़ रोपणी का दिन है उसी दिन में तुम्हे इसी स्थान पर मिलूंगा।
तब आछरियां मान जाती है ।
धीरे धीरे 6 गते का दिन भी आया बड़े हर्षोल्लास के साथ रोपणी शुरू हुई जीतू वनदेवियों को दिये वचन को भूल जाता है तब वनदेवीयाँ खेत से ही जीतू के प्राण हरकर ले जाती हैँ और जीतू अपनी प्रेम कथा के लिए अमर हो जाते है।
आज भी हमारे पहाड़ के कई गांवों में जीतू बग्ड्वाल नृत्य का आयोजन होता है जिसमें जीतू बग्ड्वाल देवियाँ व् मोलू भी पश्वा के रूप में अवतरित होते हैँ।
और कई गाँवो की ऊँची ऊँची धारों को भी बग्ड्वाल धार के नाम से भी जानते है।टिहरी गढ़वाल के राजा ने अपने राज्य में ऐसे लोगों के नाम पर पट्टी ,धार के नाम रखें हैं ==============

श्री जगदीश प्रसाद भट्ट ज्योतिषविद संरक्षक एवं उनके सुपुत्र राजीव जी माँ दूधाधारी श्री नागेश्वर महादेव मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समिति राय गढ़

 

 

 

 

 

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