उत्तर कीे द्वारिका नाम से सुप्रसिद्घ भगवान श्रीकृष्ण जी की तप स्थली सेम मुखेम ।
(मदन पैन्यूली )
उत्तराखंड पावन धराधाम के टिहरी जिले के प्रतापनगर तहसील में उत्तर कीे द्वारिका नाम से सुप्रसिद्घ भगवान श्रीकृष्ण जी की तप स्थली जो कि उपली रमोली पट्टी के मुखेम गाँव के ठीक ऊपर सेम मुखेम में स्थित है । यहाँ पर भगवान श्रीकृष्ण के नागराजा स्वरुप की पूजा – अर्चना एवं दर्शनार्थ हेतु श्रदालु देश के कोने – कोने से आते हैं, यूँ तो क्षेत्र के आराध्य देव भगवान श्रीकृष्ण नागराजा जी की पूजा वर्ष भर चलती रहती है , लेकिन हर तीसरे वर्ष यहाँ पर भव्य मेले का आयोजन प्रत्येक 11 गते मंगसीर यानी 25 – 26 नवम्बर के लगभग होता आ रहा है , जिसमे हजारों की सँख्या में दर्शनाभिलाषी श्रद्धालुओं की अपार भीड़ यहाँ पर पहुँचती है और भगवान श्रीकृष्ण नागराजा जी के साथ ही रमोली के राजा के नाम से विख्यात श्री गंगू रमोला जी देवता और अन्य देवी – देवताओं का भी आशीर्वाद लेते हैं । यहाँ के बारे में कई पुरानी लोककथाएं प्रसिद्ध है एक कथा के मुताबिक जब भगवान श्रीकृष्ण जी द्वापरयुग में यहाँ से भ्रमण कर गुजर रहे थे तो उन्हें सेम मुखेम की पतित पावनी भूमि अत्यधिक लुभावनी और मनमोहक लगी उनका मन यहाँ पर अत्यंत भाववश रम गया और उन्होंने यही पर रुकने का फैसला कर आशियाना बनाने की सोचने लगे लेकिन जैसे ही वो यहाँ अपने स्थान को बनाने के लिए सोच रहे थे वैसे ही तत्कालीन समय मे रमोली के राजा गंगू रमोला जी वहाँ पर आकर उन्हें यहाँ की एक इंच जमीन भी देने से साफ इंकार करने लगे जिस बात को लेकर भगवान श्रीकृष्ण जी और राजा गंगू रमोला जी में काफी तार्किक बहस हुई यहाँ तक कि युद्ध की जैसी नौबत तक आ खड़ी हुई थी,भगवान श्रीकृष्ण जी ने बात न बनते देख रमोली के राजा गंगू रमोला जी पर अपनी दैवीय और मायावी शक्तियों भी आजमाई ,उन्होंने श्री गंगू रमोला जी के भैंस ,गाय , भेड़ , बकरी आदि पशुओं को अपनी शक्ति से गायब कर दिया इसके अलावा सेम मुखेम की भूमि पर हजारों की सँख्या में नाग – नागिन लोटने लगे , अपने पशुओं को ढूंढते – ढूंढते आखिर में श्री गंगू रमोला जी परेशान होकर और हजारों नागों को अचानक इस भूमि पर देखकर समझ गए कि ये कोई साधारण व्यक्ति नही बल्कि कोई अवतारी दिव्य महापुरुष है , फिर उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण जी से कहा कि मैं तुम्हे जमीन देने को तैयार हूँ पर पहले मेरी भैस ,भेड़ बकरी आदि पशुओं को वापस ला दो औऱ इन लोटते साँपो को भी लोप कर दो,फिर भगवान श्रीकृष्ण जी ने अपनी शक्ति से राजा श्री गंगू रमोला जी के सभी पशुओं को उनके समक्ष ला दिया और साँपो को भी लुप्त कर दिया , इससे प्रभावित होकर रमोली के राजा श्री गंगू रमोला जी ने उन्हें उनके जरूरत के मुताबिक जमीन दान कर दी ,जो कि आज सेम मुखेम के नाम से प्रसिद्ध है , दूसरी लोककथा है कि रमोली में द्वापरयुग में एक विशाल दुष्ट राक्षसी का बहुत प्रकोप था वो वहाँ से गुजरने वाले हर व्यक्ति से झूले पर बैठने की गुजारिश करती और जैसे ही कोई उसके झूले पर बैठता वो राक्षसी रूप में आकर झूले पर बैठे व्यक्ति को खड़ी चट्टान से नीचे खाई में धकेल देती जिससे हर वो व्यक्ति जो झूले पर बैठता वो काल के मुँह मे समा जाता जिससे उसकी इस निकृष्ट हरकत से रमोली के राजा श्री गंगू रमोला जी बहुत परेशान थे , वो इस राक्षसी से निजात पाना चाहते थे , इसी दौरान उनकी मुलाकात यहाँ की जमीन माँगने वाले मायावी व्यक्ति से हुई जो कि भगवान श्री कृष्ण जी थे,उन्होंने मायावी पुरूष भगवान श्रीकृष्ण जी से कहा कि यदि तुम हमारे क्षेत्र को इस राक्षसी से छुटकारा दिला सको तो मैं तुम्हें 7 (सात) हाथ जमीन दूँगा जिस पर भगवान श्रीकृष्ण जी ने हामी भरी और झूला खेलते – खेलते राक्षसी के प्राण ले लिए जिससे प्रभावित होकर राजा श्री गंगू रमोला जी ने उन्हें जमीन दान दे दी।*
*सेम मुखेम बड़ा ही सुन्दर और मनमोहक रमणीक स्थल है। रमोली पट्टी की ऊँची चोटी पर स्थित मंदिर , भगवान श्रीकृष्ण जी की मायावी शक्ति और राजा श्री गंगू रमोला जी के आपसी वीर गाथा और आपसी प्रेम स्नेह और जरूरत पड़ने पर एक दूसरे के मददगार साथी होनी की निशानी है जो हम सबको ये अहसास दिलाता है कि अपने मित्र की जरूरत पड़ने पर सहायता जरूर करनी चाहिए और साथ ही हमे राजा श्री गंगू रमोला जी की तरह अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए किसी से भी लड़ने – भिड़ने को तैयार रहने का संदेश देता है । भगवान श्रीकृष्ण नागराजा जी का यह क्षेत्र दो जिलों टिहरी और उत्तरकाशी की सीमा पर स्थित है। यहाँ पर दूर दराज से दर्शनाथी साल भर दर्शनार्थ आते रहते हैं, मन्दिर के कपाट बारह महीने हमेशा खुले रहते हैं। यहाँ दर्शन करने के लिए बड़ी संख्या में पौड़ी के लोग आते हैं जिन्हें स्थानीय भाषा में “सलाणी” कहा जाता है,इसके अलावा टिहरी जिले के पट्टी ओण , भदूरा ,रैका और धारमंड़ल के अलावा अन्य दूरदराज क्षेत्र के लोग भी बड़ी संख्या में दर्शनार्थ पहुँचते हैं , साथ ही उत्तरकाशी के रमोली , गाजणा , धनारी , बड़ागडी , चिन्यालीसौड़ , बड़कोट , पुरोला और रवांई घाटी के लोग भी बहुत बड़ी संख्या में दर्शन के लिए आते हैं, प्रत्येक तीसरे वर्ष यहाँ पर दिव्य और भव्य मेले का महाआयोजन होता है । पाँचवें धाम के रूप में प्रसिद्ध सेम मुखेम मन्दिर में त्रिवार्षिक मेले में देश – विदेश से श्रद्धालुओं की बहुत भारी भीड़ उमड़ती है , यहाँ लोग रात भर अलाव जलाकर डौंर , थाली , ढोल – दमाऊ की थाप पर गाते – नाचते रहते हैं , साथ ही अपने देवी – देवताओं की डोली और निशान को लेकर भी लोग दर्शनों के लिए पहुँचते हैं ।*
*प्रतापनगर के उपली रमोली स्थित उत्तर द्वारिका सेम मुखेम मन्दिर पहुँचने के लिए ऋषिकेश आखिरी रेल स्टेशन है जहाँ से सीधी बस और टैक्सी मुखेम के लिए वाया नरेन्द्रनगर , चम्बा , चाँठी – डोबरा , लम्बगाँव , कोडार से मुखेम, मड्डभागी सौड़ तक पहुँचते हैं यहाँ से लगभग तीन (3) किमी0 की दूरी पैदल चलकर सेम मन्दिर तक पहुँचते हैं । बस संयुक्त बस अड्डा , ऋषिकेश से तो टैक्सी नटराज चौक स्थित टैक्सी स्टैंड से मिलती है। यदि आप पौड़ी से आ रहे हो तो श्रीनगर से लम्बगाँव , उत्तरकाशी की सीधी बस से लम्बगाँव अथवा कोडार में उतरकर टैक्सी या निजी वाहन से मुखेम , मड्डभागी पहुँचते है । यदि आप चमोली , रुद्रप्रयाग से आ रहे हो तो श्रीनगर से बस टैक्सी से पहुँच सकते हैं , वहीं यदि आप घनसाली से आना चाहते हो तो घनसाली ,चमियाला , केमुंडाखाल , भदूरा घाटी , सौड़खाण्ड के रास्ते चवाड़गाड़ – रातलधार होते हुए कोडार से भी पहुँच सकते हैं , इस रूट पर भदूरा घाटी के बीचो – बीच भगवान श्री कोटेश्वर महादेव जी , रास्ते में एक दर्शनीय स्थल केमुंडाखाल नामक स्थान पर माँ भगवती भुवनेश्वरी देवी जी मन्दिर , श्री हित घण्डियाल जी देवता , श्री मानचम्पा जी देवता , लिखवारगाँव स्थित श्री बटुक भैरव जी , श्री नागराजा जी मन्दिर, श्री काल भैरव जी मंदिर , श्री क्षेत्रपाल जी मन्दिर आदि के दर्शन भी कर सकते हैं । यदि आप जनपद उत्तरकाशी से आ रहे हैं तो चौरंगीखाल , धौंत्री होते हए कोडार के रास्ते सेम मुखेम पहुँच सकते हैं, तो वहीं धनारी से पैदल रास्ते भी पहुँच सकते हैं।*
*भगवान श्रीकृष्ण नागराजा जी की भूमि सेम मुखेम में मन्दिर के अलावा कई अन्य दर्शनीय रमणीक स्थल भी हैं, जिनमे मुख्य मेला परिसर मड्डभागी सौड़ , रमोला का पानी , तलबला सेम , डुंडा कुंड (रौ) आदि है। साथ ही यात्रा मार्ग पर दीन गाँव के प्रसिद्ध श्री लाल सिंह जी देवता मन्दिर, कंडियालगांँव के ऊपर श्री दिन्याली देवी जी मंदिर, गैरी कोरदी के ऊपर श्री बुरांसखन्डा जी मन्दिर ,भरपूर बागी में श्री भैरव मंदिर , पनियाला में श्री बटुक भैरव मंदिर , लम्बगाँव नौघर पिपलोगी में श्री महेड जी देवता मन्दिर , बड़ेथ – रायमेर रमोली के पास श्री राजराजेश्वरी जी मन्दिर, श्री सती जी मन्दिर आदि का भी दर्शन कर सकते हैं।ओंण पट्टी के देवल में स्थित सुप्रसिद्घ श्री ओणेश्वर महादेव जी मंदिर के भी दर्शन कर सकते हैं तो वहीं रमणीक पौराणिक राजवंश के राजा की राजधानी प्रतापनगर की सैर भी कर सकते हैं।*
टिहरी बाँध निर्माण से सर्वाधिक प्रभावित प्रतापनगर के मठ – मंदिरों और पर्यटन स्थलों तक सीधी बस सेवा और सुगम रास्ते न होने के वजह से इन्हें सही और उचित पहचान नही मिल पा रही हैं।
उत्तराखंड राज्य सरकार और केंद्र सरकार से विन्नम अनुरोध करता हूँ कि सेम मुखेम को पाँचवा धाम शीघ्र घोषित करें , और साथ ही ऋषिकेश , देहरादून , दिल्ली से मुखेम और प्रतापनगर के लिए सीधी रोडवेज सेवा शुरू की जाए और यहाँ की मूलभूत सुविधाओं को सुदृढ़ किया जाए , डोबरा – चांठी पुल से यातायात की सुलभ व्यवस्था यथाशीघ्र अारंभ की जाए , टिहरी बाँध बनने से यह क्षेत्र अलग – थलग पड़ गया है जिससे कि बेरोजगारी सहित अन्य कई समस्याओं की लंबी फेहरिस्त हैं। जिन्हें दूर करने के लिए हर संभव प्रेरणादायक प्रयास करने कीआवश्यकता हैं।