नैनीताल। अंग्रेजों द्वारा बसाये गये नैनीताल शहर के चर्च ऐतिहासिक माने जाते हैं। लेकिन यहां सूखाताल स्थित सेंट जोंस इन द बिल्डरनैस प्रोटेस्टेट चर्च खास मायने रखता है। आगामी क्रिसमस के लिए सेंट जोंस सहित नगर के पांचों चर्च इन दिनों संजाये जा रहे हैं। सेंट जोस चर्च कुमाऊं का सबसे पहला प्रोस्टेट चर्च भी है। यह चर्च 172 वर्ष पूर्व पहली क्रिसमस सभा आयोजन का गवाह भी है।172 पूर्व स्थापित इस चर्च की खास विशेषता यह भी है कि यह इंग्लैड के प्रसिद्ध गौथिक शैली में बने चर्चों की तरह हैं। आज भी यह यूरोपिय देशों के चर्चों की फेहरिस्त में शुमार है। दरअसल अंग्रेजी दौर में बने सभी पांचों चर्च गौथिक शैली में बने है लेकिन सेंट जोंस इन द बिल्डरनैस प्रोटेस्टेट चर्च इनमें से खास है। नैनीताल में सेंट जोंस प्रोस्टेटेट चर्च के साथ ही एशिया का पहला मैथोडिस्ट चर्च भी ख्यात है। यह चर्च मल्लीताल रिक्शा स्टैंड के समीप है जो अपनी निर्माण शैली से सभी को आकर्षित करता है।
दरअसल 1815 में गढ़वाल व कुमाऊं के विभिन्न स्थानों में प्लेग, हैजा, कु ष्ठ रोग व अन्य संक्रामक रोगों की चपेट में आ गये थे। इसी दौरान ईसाई मिशनरियों का प्रवेश हुआ। यह मिशनियां पूरी तरह धार्मिक व सामाजिक कार्यो में जुट गई। वर्ष 1815 के कुमाऊं के विभिन्न हिस्सों में ईस्ट इंडिया कम्पनी के लोग भी प्रवेश कर चुके हंै। वर्ष 1841 में पी बैरन द्वारा नैनीताल की खोज के बाद इसे अंग्रेज हुकमतों के रहने के लिए मुफीद जगह लगी। यहां 1842 के बाद ईसाई मिशनरियां भी सक्रिय हो गयी। इन मिशनरियों द्वारा नैनीताल में शिक्षक संस्थाओं को खोलने का बीड़ा उठा लिया। इसके साथ ही यहां चर्चो का निर्माण भी शुरू हो गया। सीमित स्थान पर ऐतिहासिक भवनों का निर्माण पाश्चय गौथिक शैली से किया जाने लगा। 1841 के बाद नैनीताल की बसासत के साथ ही अंग्रेजों ने यहां चर्चो का निर्माण भी शुरू कर दिया। बिल्डरनैस चर्च बनाने के लिए अंग्रेजों को घने जंगलों में पर्याप्त जगह चाहिए थी इसके लिए उन्हें सूखाताल में यह स्थान मिला। 1844 में उन्होंने वान्यता यानि बिल्डरनैस स्थल सूखाताल में दिखा। सन् 1846 में इस स्थान पर चर्च की नींव रखी गई। यह दो वर्षों में बनकर तैयार हुआ। दो अप्रैल 1848 में यह प्रार्थना सभा के लिए खोला गया। आज 172 वर्षों बाद इस चर्च में 25 दिसम्बर को प्रार्थना सभा की जायेगी। इस चर्च के साथ मार्मिक घटना भी जुड़ी हुई है। 18 सितम्बर 1880 का मल्लीताल स्थित आल्मा की पहाड़ी में विनाशकारी भूस्खलन हुआ इस भूस्खलन में जहां नैनीताल का भूगोल बदल दिया वहीं इस विनाशकारी भूस्खलन में 151 लोग मारे गये। इनमें से 48 यूरोपीय थे शेष हिन्दुस्तानी शामिल थे। इन मारे गये लोगों के नाम पट इस चर्च में लगाये गये हैं।