नई दिल्ली: फेडरेशन ऑफ़ आल इंडिया व्यापार मंडल जो भारत के सभी व्यापार मंडल एवं ट्रेड एसोसिएशन का राष्ट्रीय पंजीकृत परिसंघ है के द्वारा व्यापारी सरकार सहयोग सम्मलेन का आयोजन किया गया, सर्व प्रथम सभी वरिष्ठ व्यापारी नेताओं द्वारा सामूहिक रूप से दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का विधिवत शुभारम्भ किया गया ! मंच का संचालन प्रकाश आगीवाल द्वारा किया गया !
इस कार्यक्रम में देशभर से 500 से भी ज्यादा व्यापारी नेता एवं प्रतिनिधि सम्मिलित हुए, तथा अनेक सहयोगी संस्थाओ के प्रतिनिधि भी इस सम्मलेन में उपस्थित हुए जिसमें फेडरेशन ऑफ़ आल इंडिया डिस्ट्रीब्यूटर्स एसोसिएशन, गुजरात ट्रेडर्स फेडरेशन, आल इंडिया टेक्सटाइल ट्रेडर्स एसोसिएशन, हरियाणा उद्योग व्यापर हित मंडल, उत्तर प्रदेश व्यापार मंडल, उत्तर प्रदेश उद्योग व्यापार मंच, एसोसिएशन ऑफ़ क्लॉथ मर्चेंट, हिमाचल प्रदेश इत्यादि है ।
भारत का व्यापारी वर्ग नोट बंदी एवं जीएसटी के उपरांत एक दयनीय अवस्था. से गुजर रहा है और बढ़ते हुए ऑनलाइन व्यापार ने तो खुदरा देशी व्यापार के अस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया है । यधपि सरकार द्वारा पिछले कुछ समय में देशी व्यापारियों को जीएसटी में कुछ राहत दी गयी है और विदेशी कारोबारियों पर भी कुछ नियम कड़े किये गए है परन्तु देश में अभी भी व्यापारिक गतिविधिया सुस्त पडी हुई है । जिस प्रकार एक सैनिक राष्ट्र की सीमाओं की रक्षा करता है उसी प्रकार व्यापारी भी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था की रक्षा करता है । अतः राष्ट्र हित में व्यापारी वर्ग के मान सम्मान, सुरक्षा एवं अर्थ नीति निर्धारण में अपनी हेतु व्यापारी समुदाय प्रमुख राजनीतिक दलों का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास कर रहा है ।
इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य आगामी सरकार को अग्रिम में अपनी वह मांगे भेजनी है जो वर्तमान कार्यकाल के दौरान लंबित रह गयी और सरकार द्वारा उन पर गंभीरता से विचार नहीं किया गया । क्योंकि प्रमुख राजनीतिक दल अपना चुनावी घोषणा पत्र लिखने की प्रक्रिया में है, अतः व्यापारियों के लिए यह उचित समय है किं वह अपनी सभी न्यायसंगत एवं तर्कसंगत लंबित मांगे प्रमुख राजनीतिक दलों के संज्ञान में लाये और उनपर गंभीरता से विचार करने का अनुरोध करे । यदि राजनीतिक दल इन मांगो पर सहयोग करने के लिए तैयार है तो व्यापारी भी उसी दल को सहयोग करने के लिए तत्पर होंगे ।
व्यापारियों द्वारा तैयार किया गया मांग पत्र संग्लंग है । यह जानकारी राजेश्वर पैन्यूली ने दी है ।
पंजीकृत राष्ट्रीय परिसंघ है ।
भारत का व्यापारी वर्ग नोट बंदी एवं जीएसटी के उपरांत एक दयनीय अवस्था से गुजर रहा है और बढ़ते हुए ऑनलाइन व्यापार ने तो खुदरा देशी व्यापार के अस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया है । यधपि सरकार द्वारा पिछले कुछ समय में देशी व्यापारियों को जीएसटी में कुछ राहत दी गयी है और विदेशी कारोबारियों पर भी कुछ नियम कड़े किये गए है परन्तु देश में अभी भी व्यापारिक गतिविधिया सुस्त पडी हुई है । लोकसभा 2019 के चुनाव की पूर्व संध्या पर राष्ट्र का कारोबारी समाज, अपनी कुछ मांगे सत्तारूढ़ दल के समक्ष प्रस्तुत कर रहा है । जिस प्रकार एक सैनिक राष्ट्र की सीमाओं की रक्षा करता है उसी प्रकार व्यापारी भी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था की रक्षा करता है । अतः राष्ट्र हित में व्यापारियों की निम्न उचित मांगे, आपके दल के चुनावी घोषणा पत्र में सम्मिलित करने हेतु आपसे सादर आग्रह है |
जीएसटी के अंतर्गत मांग
जीएसटी के बेहतर संग्रहण हेतु एवं कर चोरी की रोकथाम हेतु एकल बिंदु प्रणाली सबसे कारगर सिद्ध हो सकती है । निर्माता स्तर पर यदि उपभोक्ता मूल्य / एमआरपी पर जीएसटी वसूल कर लिया जाए तो व्यापारी समाज जीएसटी से मुक्ति पा जायेगा और अपना व्यापार बढ़ाने की और ध्यान देगा ।
एकल बिंदु के तात्कालिक विकल्प के रूप में यूनिवर्सल ट्रेडर्स कम्पोजीशन स्कीम लागु की जा सकती है । यदि सभी खुदरा एवं थोक दुकानदारों को कम्पोजीशन स्कीम के अंतर्गत लाना जाए और रूपए 1.50 करोड़ की लिमिट को समाप्त की जाए, और वर्तमान कम्पोजीशन कर की दर 1% से घटा कर 0.50 % कर दी जाए तो एकल बिंदु जीएसटी स्वतः ही लागु हो जायेगा और ट्रेडर्स बिना किसी परेशानी के आपने कारोबार कर सकेंगे |
राष्ट्र के परंपरागत खुदरा व्यापार को बचाने हेतु मांग
22 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि के साथ बढ़ रहे मॉडर्न रिटेल जैसे की बिग बाजार, रिलायंस फ्रेश, इत्यादि शनैः शनैः भारत के देशी खुदरा व्यापारी के लिए खतरा बनते जा रहे है । विदेशी पूँजी, पेशेवर प्रबंधन तंत्र एवं उत्पादक से सीधे खरीदारी के जरिए यह मॉडर्न रिटेल छोटे छोटे शहरो में भी अपनी पैठ बनाते जा रहे है । राष्ट्र के परंपरागत देशी खुदरा व्यापारियों के हितो की रक्षा करने हेतु सरकार कोआवश्यक कदम उठाने चाहिए ।
ऑनलाइन व्यापार पर लगाम लगाने हेतु सरकार की नीति देशी खुदरा व्यापारी के हितो की रक्षा करने वाली होनी चाहिए । खुदरा में विदेशी निवेश से सिर्फ देशी व्यापारिक तंत्र का नुक्सान हो रहा है । विदेशी निवेश इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने हेतु को आवश्यक है पर दैनिक उपभोग की वस्तुओ के कारोबार हेतु नहीं । ऑनलाइन कारोबार या इ कॉमर्स पर सरकार को बिक्री पर 5% की दर से विशेष कर लगाना चाहिए जिससे छोटे दुकानदारों का अस्तित्व बना रहे ।
पड़ोस की खुदरा दुकान को प्रोत्साहित करने हेतु, दुकान पर राज्य सरकार एवं स्थानए निकायों द्वारा लगने वाले विभिन्न करो एवं लाइसेंस को समाप्त करना चाहिए
आयकर के अंतर्गत मांग
जो व्यापारी जीएसटी के अंतर्गत पंजीकृत के स्वामी है, या पार्टनर है या निदेशक है उनपर व्यक्तिगत आयकर की छूट की सीमा 5 लाख होनी चाहिए ।
आयकर प्रावधानों के अंतर्गत संशोधन लाना चाहिए जिसके अंतर्गत छोटे खुदरा एवं थोक व्यापारियों, जिनकी वार्षिक बिक्री 10 करोड़ तक है को स्त्रोत पर कर कटौती ( टीडीएस) से मुक्त किया जाए ।
आयकर एवं जीएसटी अधिकारी सिर्फ उन्ही फर्मो में जांच के लिए जाए जिन फर्मो की वार्षिक बिक्री 10 करोड़ या अधिक है ।
जीएसटी के अंतर्गत पंजीकृत साझेदार फर्म या LLP पर आयकर की दर 20 प्रतिशत होनी चाहिए जो वर्तमान में 30 प्रतिशत है और कंपनी करदाता पर यह दर 25 प्रतिशत है ।
आयकर पर से शिक्षा एवं उच्च शिक्षा सेस पूर्णतः समाप्त करना चाहिए ।
डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने हेतु मांग
डेबिट कार्ड / क्रेडिट कार्ड वाली कंपनियों द्वारा व्यापारियों से भुगतान देने में जो ट्रांसक्शन चार्जेज के नाम से कटौती की जाती है उसे सरकार वहन करे जिससे प्रत्येक व्यापारी डिजिटल माध्यम से भुगतान प्राप्त करने में संकोच न करे।
व्यापारी कल्याण हेतु मांग
देश के खुदरा व्यापारियों हेतु एक अलग मंत्रालय “देशी व्यापार मंत्रालय” की स्थापना की जानी चाहिए ताकि देशी कारोबारियों के विकास एवं हितो से सम्बंधित सभी मामलो की तीव्र गति से निपटारा हो सके और प्रत्येक कारोबारी सेगमेंट / खंड के लिए एक व्यापार संवर्धन बोर्ड की स्थापना होनी चाहिए जिसमे व्यापारी प्रतिनिधियों को समुचित प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए ।
भारत सरकार की आयुष्मान योजना की तरह व्यापारियों के लिए एक विशेष चिकित्सा एवं वृद्ध अवस्था बीमा योजना लागु करनी चाहिए ।
घरेलु कारोबारी सुगमता हेतु कंपनी कानून के अंतर्गत विविध फॉर्म को वार्षिक विवरणी में समायोजित करने हेतु फेडरेशन का सरकार से मांग
जिस प्रकार आयकर और जीएसटी की विवरणी करदाता स्वयं प्रमाणित / स्वयं सत्यापित करके जमा करता है उसी प्रकार कंपनी कानून की तहत दाखिल होने वाले सभी फार्म कंपनी निदेशकों द्वारा स्वयं प्रमाणित / स्वयं सत्यापित स्वीकार करने चाहिए और किसी चार्टर्ड अकाउंटेंट या कंपनी सेक्रेटरी द्वारा सत्यापन की बाध्यता समाप्त करनी चाहिए
कंपनी कानून के प्रावधानों के अंतर्गत एक वार्षिक विवरणी दाखिल की जाती है । सरकार को किसी भी कंपनी के जो कोई भी सूचना प्राप्त करनी है, वह सिर्फ वार्षिक विवरणी के माध्यम से प्राप्त करले । छोटे कारोबारी अक्सर अज्ञानता वश बीच बीच में घोषित किये जाने वाले अनुपालन नहीं कर पाते है और भारी दंड के भागी बन जाते है । पंजीकृत कार्यालय की स्थिति हेतु फार्म INC-22A, (25 अप्रैल ), डायरेक्टर्स का वार्षिक KYC, फार्म DIR 3, (30 अप्रैल तक), लघु उद्योग की देनदारी का अर्धवार्षिक विवरण MSME FORM 1, (30th अप्रैल and 31st अक्टूबर), डायरेक्टर्स का वार्षिक विवरण DIR – 8 बोर्ड मीटिंग के तुरंत बाद, जमा का वार्षिक विवरणी DPT-3, (22-अप्रैल) जैसे सभी फर्मो को वार्षिक विवरणी (Annual Returns ) में समायोजित कर देने चाहिए ।
राजनीतिक बंद के दौरान व्यापारियों से लूटपाट एवं तोड़फोड़ की घटनाओ पर सरकारी सुरक्षा हेतु मांग
राजनीतिक दलों या सामाजिक संगठनों, अपनी मांगो को लेकर, अक्सर भारत बंद या बाजार बंद का आव्हान करते है और एक व्यापारी को बल पूर्वक अपने दुकान बंद करने के लिए विवश करते है और दुकानदार द्वारा विरोध करने पर दुकान में तोड़ फोड़ करते है, आगजनी एवं लूटपाट जैसे घटनाओ को भी अंजाम देते है । जिस प्रकार सरकार, सरकारी संपत्ति की रक्षा करती है उसी प्रकार व्यापारियों की सम्पत्तियो की रक्षा भी की जाए और यदि उक्त संपत्ति को कोई नुक्सान होता है, तो राष्ट्रीय संपत्ति मान कर उसकी क्षतिपूर्ति की जाए ।
व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ाने हेतु मांग
जीएसटी के अंतर्गत पंजीकृत लघु कारोबारियों को बैंक ऋण के ब्याज में विशेष छूट मिलनी चाहिए ताकि कारोबारी अपना कारोबार बढ़ा सके और युवाओ को ज्यादा से ज्यादा रोज़गार दे सके ।
राजनीतिक कारणों से विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा विवेकरहित तरीके से न्यूनतम मजदूरी में बढ़ोतरी की जारही है, जिसे वहन करना लगभग असंभव सा हो रहा है और न्यूनतम मजदूरी के कारण रोजगार देने के स्थान पर रोजगार समाप्त हो रहा है । अतः केंद्र सरकार द्वारा न्यूनतम मजदूरी के विषय में व्यापारी संगठनों के विचार विमर्श कर एक तर्कयुक्त न्यूनतम मजदूरी तय की जानी चाहिए ।