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जसवंत सेना का वीर जवान, जिसने अकेले ही 72 घंटों में चीन के 354 सैनिक मार डाले

Pahado Ki Goonj

जसवंत सेना का वीर जवान, जिसने अकेले ही 72 घंटों में चीन के 354 सैनिक मार डाले थे 
साल 1962 में वो 17 नवंबर का दिन था, जब चीनी सेना ने चौथी बार अरुणाचल प्रदेश पर हमला किया. चीन का मकसद साफ़ था- अरुणाचल प्रदेश पर पूरी तरह से कब्ज़ा करना. ये तब की बात है जब इंडो-चाइना वॉर छिड़ा हुआ था. लेकिन तब चीन के लक्ष्य के बीच दीवार बनकर खड़े हो गए गढ़वाल राइफल्स की चौथी बटालियन के राइफलमैन जसवंत सिंह रावत . इंडो-चाइना वॉर 20 अक्टूबर, 1962 से 21 नवंबर, 1962 तक चला. लेकिन 17 नवंबर से 72 घंटों तक जसंवत सिंह जिस बहादुरी के साथ चीनी सेना का सामना करते रहे, वो उनके अदम्य वीरता और शौर्य की कहानी है.
• नाम-रायफल मैन जसवंत सिंह
• जन्म-19 अगस्त 1941
• स्थान –पौड़ी गढ़वाल
• राष्ट्रीयता-भारत
• उपलब्धि-महावीर चर्क
भारत माँ के गर्भ से पैदा होने वाले वैसे तो लाखो जवान हैं मगर कुछ जवान ऐसे भी होते हैं जो हमेशा के लिए अपनी बहादुरी के झंडे गाढ़ देते हैं उनमे से एक नाम भारत माँ के आँचल उत्तराखंड की धरती पर जन्मे वीर जसवंत सिंह रावत का भी है जिनके जैसी बहादुरी शायद आजतक के इतिहास में कोई ही कर पाया हो ।इस वीर जवान की बहादुरी पर जितने शब्द लिखू उतने कम है मगर फिर भी इनकी बहादुरी की सच्ची दास्तां को शब्दों में पिरोकर इनकी वीरता का बखान कर ही देता हूँ ।
पिता गुमान सिह रावत की देख रेख में पले बढे और लीला देवी रावत की कोख से जन्मे वीर जसवंत सिंह रावत का जन्म 19 अगस्त 1941 को ग्राम-बाड्यूँ ,पट्टी-खाटली,ब्लाक-बीरोखाल,जिला-पौड़ी गढ़वाल,उत्तराखंड में हुआ था । वीर जसवंत के अंदर देश भक्ति की इतनी भावना थी की वे 17 साल की छोटी उम्र में ही सेना में भर्ती होने के लिए चले गए लेकिन उम्र कम होने के कारण उन्हें सेना में भर्ती होने से रोक लिया गया और जैसे ही उनकी उम्र पूरी हुयी उनको भारतीय सेना में राइफल मैन के पद पर शामिल कर लिया गया था और अपने अदम्य सहस के साथ भारत माँ का यह वीर जवान 17 नवम्बर 1962 के चीन युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ ।
नूरानांग (भारत-चीन युद्ध 1962)-
अपने तीसरे हमले में अरुणांचल प्रदेश के तवांग नामक स्थान से महात्मा बुद्ध की मूर्ति के हाथो को काटकर ले जाने वाले चीनी सैनिको ने जब 17 नवम्बर 1962 को अरुणांचल प्रदेश पर कब्ज़ा करने के लिए अपना चौथा और आखिरी हमला किया तो उस वक़्त वहाँ भारतीय सेना ना तो युद्ध के लिए तैयार थी न कोई रणनीति थी और न ही ज्यादा जवान थे और न ही उनके पास कोई युद्ध करने की कोई मशीने,गाडीया,और अन्य यंत्र सिर्फ एक रायफल थी ।और इसका कारण थे सिर्फ उस वक़्त के रक्षा मंत्री बी.के.कृष्णमेनन ।जिन्होंने उस दौरान हमारी सेना को बहुत कमजोर और हारने पर मजबूर कर दिया था ।
दरअसल बी.के. कृष्णमेनन उस वक़्त के एक ऐसे रक्षा मंत्री थे जिन्होंने फ़ौज की नफरी (strength) कम कर दी और गोला बारुत बनने वाली फक्ट्रियो को बंद करवा दिया। कारण ये था की जवाहर लाल नेहरु चीन से एक नारा लेकर आए थे कि “हिन्दी चीनी भाई भाई “।उस वक़्त पकिस्तान के साथ भी हमारा समझौता हो चुका था और ऐसे में मेनन को लगा की अब तो भारत पर हमला करने वाला कोई नहीं है तो फिर फ़ौज पर पैसा खर्च करके क्या फायदा ।फिर गोला बारूद बनाने वाली फक्ट्रिया बर्तन बनाने लग गयी और जब यह बात चीन को पता चली तो उसने भारत पर हमला करने की सोची और अरुणांचल प्रदेश से कब्ज़ा करना शुरू कर दिया क्योंकि अरुणांचल प्रदेश की सीमा पर जवानों की तैनाती नहीं थी ,इसलिए चीन की सेना ने इसका फायदा उठाया और भारत पर हमला बोल दिया।उस वक़्त चीन की सेना ने यहाँ बहुत तबाही मचाई वे महात्मा बुद्ध की मूर्ति के हाथो को काटकर ले गए माँ बहनों की इज्जत लूटने लग गये ।
अब हालत जब काबू से बाहर हो गये तो यहाँ से गढ़वाल रायफल की 4th बटालियन को वहाँ भेजा दिया गया।और गढ़वाल रायफल की इसी बटालियन के एक वीर साहसी जवान थे जसवंत सिंह रावत ।इस हार का मुख्य कारण रहे रक्षा मंत्री बी.के. मेनन की वजह न तो उस वक़्त हमारे पास फ़ौज थी न हथियार और न ही कोई ठोस रणनीति ,दूसरी तरफ से चीन अपनी पूरी ताकत के साथ जोरो से हमला करता जा रहा था हर मोर्चे पर चीनी सैनिक हावी होते जा रहे थे ।और इस कारण भारत ने अपनी हार को स्वीकार करते हुए नुरानांग पोस्ट पर डटी गढ़वाल रायफल की 4th बटालियन को भी वापस बुलाने का आदेश दे दिया । आदेश का पालन कर पूरी बटालियन वापस लौट गयी और पोस्ट पर वहा रह गए गढ़वाल रायफल के सिर्फ 3 जवान
1. रायफल मैन जसवंत सिंह रावत ।
2. लेस नाइक त्रिलोक सिंह नेगी ।
3. रायफल मैन गोपाल सिंह गुसाईं ।
इस वक़्त जसवंत सिंह रावत ने एक कड़ा और अदम्या फैसला लिया की कुछ भी हो जाये वो वापस नहीं जायेंगे और उन्होंने लेसनायक त्रिलोक सिंह नेगी और रायफल मैन गोपाल सिंह गुसाईं को वापस भेज दिया और खुद नूरानांग की पोस्ट पर तैनात होकर दुश्मनों को आगे न बढ़ने देने का फैसला किया ।
जसवंत सिंह रावत ने अकेले ही 72 घंटो तक चीन के 300 दुश्मनों को मौत के घाट उतारा और किसी को भी आगे नहीं बढ़ने दिया ,यह उनकी सूझबूझ के कारण ही संभव हो सका।क्यूंकि उन्होंने पोस्ट की अलग अलग जगहों पर रायफल तैनात कर दी थी साथ ही बकरियों की पीठ पर टार्च बांध कर उन्हें रात को इधर उधर भागते रहे और कुछ इस तरह से फायरिंग कर रहे थे की चीन की सेना को लग रहा था की यहाँ पूरी की पूरी बटालियन मौजूद हैं।इस बीच रावत के लिए खाने पीने का सामान और उनकी रसद (supply) आपूर्ति वहाँ की दो बहनों शैला और नूरा ने की जिनकी शहादत को भी कम नहीं आँका जा सकता। 72 घंटे तक चीन की सेना ये नहीं समझ पाई की उनके साथ लड़ने वाला एक अकेला सैनिक है । फिर 3 दिन के बाद जब नूरा को चीनी सैनिको ने पकड़ दिया तो उन्होंने इधर से रसद (supply) आपूर्ति करने वाली शैला पर ग्रेनेड से हमला किया और वीरांगना शैला शहीद हो गयी और उसके बाद उन्होंने नूरा को भी मार दिया दिया और इनकी इतनी बड़ी शहादत को हमेशा के लिए जिंदा रखने के लिए आज भी नूरनाग में भारत की अंतिम सीमा पर दो पहाड़िया है जिनको नूरा और शैला के नाम से जाना जाता है ।
इसके बावजूद भी जसवंत सिंह रावत दुश्मनों से लड़ते रहे पर रसद आपूर्ति (supply) की कड़ी कमजोर पड गयी थी और फिर जसवंत सिंह ने 17 नवम्बर 1962 को खुद को गोली मार कर अपने प्राण न्योछावर कर दिए और भारत माँ की गोद में हमेशा के लिए अमर हो गए ।
क्या किया फिर चीनी सैनिको ने-
फिर जब चीनी सैनिको ने देखा की वो 3 दिन से एक ही सिपाही के साथ लड़ रहे थे तो वो भी हैरान रह गए । वो जसवंत सिंह रावत का सर काटकर अपने देश ले गए। 20 नवम्बर 1962 को युद्ध विराम की घोषणा कर दी गयी और चीनी कमांडर ने जसवंत सिंह की इस साहसिक बहादुरी को देखते हुए न सिर्फ जसवंत सिंह का शीश वापस लौटाया बल्कि सम्मान स्वरुप एक कांस की बनी हुई जसवंत सिंह की मूर्ति भी भेंट की ।
जिस जगह पर जसवंत सिंह ने दुश्मनों के दांत खट्टे किये थे उस जगह पर जसवंत सिंह के नाम का एक मंदिर बनाया गया है और उस मंदिर में चीनी कमांडर द्वारा सौंपी गयी जसवंत सिंह की मूर्ति को रखा गया है। यहाँ से गुजरने वाला हर व्यक्ति उनको शीश झुकाता है और जवान अपनी ड्यूटी पर जाने से पहले उनको नमन करते हैं ।मान्यता है की जब भी कोई जवान ड्यूटी पर सोता है जसवंत सिंह रावत उनको थप्पड़ मारकर जागते हैं और मानो उनके कानों में कहते हो की मुस्तैदी से अपनी ड्यूटी करो देश की सुरक्षा तुम्हारे हाथो में है ।
जसवंत गढ़-
इनके नाम से नुरानांग में जसवंत गढ़ के नाम से मानूरानांग में एक जगह भी है जहा इनका बहुत बड़ा स्मारक है यहं इनकी हर चीज को संभाल कर रखा गया है यहाँ इनके कपड़ो पर रोज प्रेस की जाती है रोज इनके बूटो पर पोलिश की जाती है और रोज सुबह दिन और रात की भोजन की पहली थाली जसवंत रावत को परोसी जाती है । आज जसवंत गढ़ इलाके की पूरी देख रेख सिख रेजिमेंट की 10वी बटालियन के हाथ में है और जवान बताते हैं कि जब सुबह उठ कर इनके कपड़ो को देखे तो लगता है की किसी ने उनको पहना है उनके बूटो पर रोज पोलिश की जाती है मगर सुबह फिर लगता है मानो किसी ने पहने हो ।
मरणोपरांत भी पदोन्नति-
जसवंत सिंह रावत भारत के पहले ऐसे जवान है जिनको मरणोपरांत भी पदोन्नति दी जाती रायफल मैन जसवंत सिंह आज कैप्टेन की पोस्ट पर हैं और उनके परिवार वालो को उनकी पूरी तनख्वाह दी जाती है ।
वीर जसवंत सिंह रावत का लोहा सिर्फ भारत नहीं बल्कि पूरी दुनिया मानती है हमें भी गर्व है की हम ऐसे वीरो की भूमि में पैदा हुए हैं ।

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