पुरातत्व की धरोहर रहा विल्सन हाउस अब सिर्फ फ़ोटो मे जिंदा
मदन पैन्यूली/उत्तरकाशी। 1997 विल्सन हाउस का अंतिम दिन था। इस दिन रात मे विल्सन हाउस जल कर खाक हुआ था। साबुत देवदार के पेडों से बने बेहतर नकाशी के इस हाउस में 65 कमरे हुआ करते थे। बताते हैं कि जब इस हाउस मे आग लगी तो 14 घंटे बाद पुलिस व प्रशासन को इसकी जानकारी मिली। शीतकालीन समय के दौरान हर्षिल तक बर्फबारी के कारण मार्ग बंद होने औऱ सूचनाओं का कहीं से भी आदान प्रदान न होने से विल्सन हाउस नही बच पाया। हाउस मे पूरे देवदार के प्रयोग होने से भी इसमें आग मे काबू पाना असंभव था। आग कैसे लगी इसकी तब पुख्ता जानकारी तो नही लग पाई अलबत्ता शीतकाल मे सेना के जवान इस हाउस मे जरूर रहा करते थे। वैसे हर्षिल की वादियों मे विल्सन हाउस का जवाब नही था और हर्षिल आने वाले पर्यटकों के लिए यह आकर्षण का केन्द्र जरूर था। पहले वन विभाग और उसके बाद इस हाउस की चाबी गढ़वाल मंडल विकास निगम के हाथ में आ गई थी। विल्सन हाउस हर्षिल मे एक तरह से ब्रिटिश काल की धरोहर थी। 1880 मे अंग्रेज विल्सन ने इसे साबुत देवदार के पेड़ों से बनाया था और हाउस से सटे मैदान मे सेब का बगीचा भी बनाया था। इधर यदि बंगले की बात से हटकर जाने तो विल्सन गढ़वाल के वनों के लिए यमराज साबित हुआ। इतिहास बताता है कि विल्सन ने 1859 मे केवल 4006 (चार हजार छः रुपए) मे तत्कालीन टेहरी नरेश भवानी शाह से देवप्रयाग से गंगोत्री तक वन कटान का ठेका ले लिया था जिसके बाद उसने पेड़ों का जमकर कटान कराया ओर उनके स्लीपर बनाकर उन्हें मैदान तक पहुचाने के लिए भागीरथी नदी को ट्रांसपोर्ट का जरिया बनाया था।। सआभार