जाती आधरित नहीं आर्थिक आधार पर आरक्षण होना चाहिये
जाती आधरित नहीं आर्थिक आधार पर आरक्षण होना चाहिये
विदेशी फोटोग्राफी करने वाली फोटोग्राफर भारत नीति पर फोटोशूट करते समय रोरही है
ये कैसा निर्णय ले लिया दो दिन पहले ही केंद्र सरकार ने एक और शर्मनाक फैसला लिया है कि यस .टी. यस .सी . ओबीसी के लोग जो प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करना चाहते है उनका पूरा खर्चा केंन्द्र सरकार उठाएगी । इसका मतलब यह है कि सामान्य जाति के लोग करोड़पति है , और जाति के लोग बेहद गरीब । मुझे विश्वास ही नही हो रहा है कि हम एक ऐसे देश में रह रहे है जहां अमीरी और गरीबी का पता जाती देखकर होता है। क्या सामान्य जाति के लोग वोट नही देते है जो इनके साथ भेदभाव होता है। सरकार को पता होना चाहिए कि शोषण जाति का नही गरीब का होता है। सरकारी नौकरी में आरक्षण तमिलनाडु जैसे राज्यो में 64% तक पहुँच गया है । और मुझे उम्मीद है कुछ वर्षो में स्थिति हर राज्य ऐसी हो जायेगी जब सामान्य जाति के लोगो को सरकारी नौकरी से वंचित कर दिया जायेगा। अम्बडेकर साहब का गुणगान करने वालो को जरा ये सोचना चाहिए कि वे विना किसी आरक्षण के इतने महान व्यक्ति बने। उन्होंने तो इस आरक्षण को केवल 10 वर्षो के लिए ही लागू किया था परन्तु इन राजनीतिक पार्टियो ने अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए इसे अब भी लागू कर रखा हुआ है। शर्म आनी चाहिये ऐसे नेताओ को खासकर उन सामान्य जाति के नेताओ को जो सब जानते हुए भी जातिगत आरक्षण का समर्थन करते है। जाति प्रमाँण पत्र के सामने प्रतिभाए दम तोड़ रही है। एक तो सरकारी नौकरी की तयारी के लिये खर्चा और उसके वाद नौकरी में 50 % आरक्षण , उसके वाद नौकरी में प्रमोशन में भी आरक्षण । ये कहाँ का न्याय है? क्या हम लोग इस देश के नागरिक नही है । मै पूछना चाहता हू कि 600 करोड की सम्पति वाली मायाबती और करोड़पति लालू यादव जेसे लोगो को आरछण का लाभ मिल रहा है और गरीब सामान्य जाति के लोगो को आरक्षण का लाभ नही ऐसा क्यों । मेरा मत है कि आरक्षण का लाभ दिया जाये परन्तु गरीबी देखकर न कि जाति देखकर। में सरकारो से अपील करता हूँ कि ऐसा भेदभाव अब बहुत कर लिया । कुछ तो रहम करो। मै अपने दोस्तों से कहना चाहता हू जिसे मेरी इस पोस्ट में अंशमात्र भी सच्चाई लगती है । वो इसे जरूर शेयर करे।