लिखवार गावँ -जीतमणि पैन्यूली
पलायन रोकने के लिए हमें ही काम करना होगा
उत्तराखंड के टेहरी जनपद में 1986-87में पड़ने वाले सूखे की जानकारी नारयण दत्त तिवारी सरकार के कृषि मंत्री शिवबालक पाशी को 1985 में देदी थी।चिंता थी कि हम सुखे ऐसी स्थिति में टिहरी बांध प्रभावित छेत्र प्रतापनगर में कैसे निवास करेंगे। क्योंकि टिहरी बांध के निर्माण में मानकों से ज़्यादा सामग्री सुरंगों ,पहाड़ तोड़ने में प्रयोग करने से धूल ही धूल,एंव विस्फोटक सामग्री के विस्फोटक की गर्मी ने बाताबरण को सूखे की स्थिति में लाने के लिए तैयार किया।तब खैर भयंकर सूखा पड़ा सरकार को 1985 को भेजें पत्रानुसार सूखे की पुष्टि होने पर कार्यवाही कर 40 kg गेहूँ पहले पट्टी भदूरा में बांटने पटवारी कानूनगो आये पर उनके साथ सहयोग के बजाय जो अव्यबहार जनता में कुछ लोगों ने किया वह मुल्क के लिये ठीक नहीं रहा उन्होंने गेहूँ बांटना बन्द कर दिया मेरी वर्ष 1984-85 की मेहनत पर पानी फेर दिया।
फिर मेरी चिंता ओर बढ़ी ओर 1987 में अक्टूबर में स्थाई हल करने की रही है।इसके लिये जुलाई से बहुगुणा जी से सम्पर्क में रहे तो अक्टूबर में विकास मेला का आयोजन किया गया था उसमें बहुगुणा जी ने सबकी चिंता का संज्ञान लिया ।
हमारे छेत्र में जितने भी सामाजिक कार्यक्रम 1978 से संयोजक बहुद्देश्यीय बिकास मेला कोटाल गावँ होने के नाते कोटाल गावँ भदूरा में हुए उन कार्यक्रम में जब भी हमनें मा0 सुंदरलाल बहुगुणा जी से आने के लिए आग्रह किया वह अपना अमूल्य समय,अपने खर्चा कर आये ।जब वर्ष 1986-87में भयंकर सूखा पड़ा उस समय मुझे चिंता हुई कि हमने इस सूखे में अपने गाय भैंस चारा के अभाव में ज्वालापुर के कसाईयों को तक बेच दी,हम यहां कैसे रहेंगे ।लिखवार गांव में बहुगुणा जी स्विट्जरलैंड के अर्थ शास्त्री एंव पत्रकार लेकर आये, उन्होंने मंडुवे की रोटी खाई । मैने जिक्र किया कि इन छानो में आप रहोगे। उन्होंने ने जो उत्तर दिया पलायन रोकने के लिए सार्थक पहल है। “कि हम लोग गावँ से अलग शान्ति से रहने वाले लोग होते हैं” जितनी हमारी उत्तराखंड के प्रत्येक गावँ की दूर दराज में खेतों, जंगलों के पास छाने 6महीने पशुपालन की बनी हुई हैं ।उनमे पर्यटकों के लिये सुन्दर रहने ,सुरक्षा के लिए व्यवस्था हो। तो 4 कमरे का किराया 600 रुपये रोज से 6माह में 216000रुपये बन्द मकान का मिलसकता है । इस बात का लाभ तो सबको दिखाई दिया ।
पर साधन सरकार को बैंकों से देने की नीति बनाने के लिए होनी चाहिए। तब देव भूमि का अच्छा सामाजिक बातावरण बना कर हम गावँ वासी लोग पलायन रोकने में सहायक होंसकेगे ।
जनता केहित के कार्यक्रम में सरकार को अधिकाधिक रूचि होनी चाहिए।
हमारे उत्तराखंड में 80% परिवार की छाने तोक, मजरे में बनी हुई हैं जिसमें पानी की टँकी , गैस ,सौरऊर्जा ,शौचालय की आवश्यकता है । 20%परिवार भी अपनी छाने बना सकते हैं।8000 तोक मजरे में उसके नजदीक के गाँव के परिवार में प्रत्येक के खेत है। पहाड़ के सौंदर्य के सभी पसंद करते हैं ।विदेशी महिमान शान्ति से इकैला रहते हैं। विश्व के 6 ,7 देश उत्तराखंड से छोटे हैं।जिनकी आमदानी पर्यटन पर निर्भर है।
हमें अपने अधकारियों स्थानीय लोगों को उन देेेशसे काम कर सीखने की आवश्यकता है ।इस लाभदायक विषय पर हम हमारे सरकार चिंतन नहीं कर रही हैं। यही सबसे बड़ी भूल हम देव भूमि में कर रहे हैं। क्योंकि हम अपने परिचय के मोताज नहीं हैं।हम आज मोताज हैं तो सिर्फ अपनी इच्छा शक्ति बढ़ाने के लिए हैं ।इसकी कोशिश होनी चाहिए।परन्तु उत्तराखंड में क्या है पार्टी को महत्व दिया जाता है जो गलत है ।जनहित के लिए सबको साथ होना चाहिए।
पलायन आयोग को सोचना चाहिए कि हमारे उत्तराखंड के नाम सुनने मात्र से देश के नागरिकों के खून में नया संचार होता है। तो हमें इस दिशा में कार्य करने की आवश्यकता है। इसके लिए छेत्र में बाताबरण के लिये सेमिनार रैलीयो के साथ काम करने की जरूरत है।आई टी युग मे प्रत्येक गावँ के लोगों को होंम स्टे के लिये ऋण देकर विश्व समुदाय को पर्यटन स्थल तक मेले संस्कृतिक कार्यों कर्मों लाने का प्रयास करें।