नई दिल्ली। संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) को लेकर हो रहे प्रदर्शनों और उसके कारण विभिन्न विश्वविद्यालयों में हो रही हिंसा के मद्देनजर सोमवार को विपक्षी दलों की बैठक बुलाई गई है। कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने वाम मोर्चा सहित सभी विपक्षी दलों की बैठक बुलाई है। माना जा रहा है कि इस बैठक में तृणमूल कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) संभवतरू हिस्सा नहीं लेगी।
बसपा सूत्रों ने बताया कि पार्टी संभवतरू बैठक में किसी प्रतिनिधि को नहीं भेजेगी। सूत्रों ने बताया कि कांग्रेस के साथ बसपा के मतभेद को इस कदम का कारण बताया जा रहा है। तृणमूल कांग्रेस प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पहले ही इस बैठक में आने से स्पष्ट इनकार कर चुकी हैं। सीएए के खिलाफ जब विपक्षी दल राष्ट्रपति के पास गए थे, उस वक्त भी बसपा उनके साथ नहीं थी। हालांकि पार्टी ने बाद में इस मुद्दे को लेकर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से भेंट की थी। मायावती ने ट्वीट कर कहा कि जैसा कि विदित है कि राजस्थान कांग्रेसी सरकार को बसपा का बाहर से समर्थन दिये जाने पर भी, इन्होंने दूसरी बार वहां बसपा के विधायकों को तोड़कर उन्हें अपनी पार्टी में शामिल करा लिया है जो यह पूर्णतया विश्वासघाती है। ऐसे में कांग्रेस के नेतृत्व में आज विपक्ष की बुलाई गई बैठक में बसपा का शामिल होना, यह राजस्थान में पार्टी के लोगों का मनोबल गिराने वाला होगा। इसलिए बसपा इनकी इस बैठक में शामिल नहीं होगी।
उन्होंने कहा कि वैसे भी बसपा सीएए और एनआरसी आदि के विरोध में है। केन्द्र सरकार से पुन अपील है कि वह इस विभाजनकारी व असंवैधानिक कानून को वापिस ले। साथ ही, जेएनयू व अन्य शिक्षण संस्थानों में भी छात्रों का राजनीतिकरण करना यह अति-दुर्भाग्यपूर्ण है।
नागरिकता कानून और सीएए पर बुलाई गई विपक्ष की बैठक से आम आदमी पार्टी ने भी किनारा कर लिया है। पार्टी सूत्रों के अनुसार, कोई भी नेता इस बैठक में हिस्सा नहीं लेगा। वहीं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने गुरुवार को साफ शब्दों में कहा था कि अगर जरुरत पड़ी तो वह अकेले लड़ेंगी। सदन में ही उन्होंने विश्वविद्यालय परिसरों में हिंसा और सीएए के खिलाफ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा 13 जनवरी को बुलाई गई विपक्षी दलों की बैठक के बहिष्कार की घोषणा भी की।
बनर्जी बुधवार को ट्रेड यूनियनों के बंद के दौरान राज्य में वामपंथी और कांग्रेस कार्यकर्ताओं द्वारा की गई कथित हिंसा से भी नाराज हैं। बंद केंद्र सरकार की गलत आर्थिक नीतियों, संशोधित नागरिकता कानून और पूरे देश में प्रस्तावित एनआरसी के विरोध में आहूत किया गया था। हालांकि, कांग्रेस का कहना है कि बनर्जी को विपक्ष की बैठक में आने का न्योता दिया गया था, लेकिन आना, नहीं आना उन पर निर्भर करता है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने कहा, ‘मुझे ममता बनर्जी के किसी फैसले की जानकारी नहीं है। जहां तक मुझे पता है, कांग्रेस पार्टी ने सीएए और एनआरसी के खिलाफ संसद के भीतर और बाहर आवाज उठाई है और विपक्षी नेताओं को 13 जनवरी की बैठक में आने का न्योता दिया है। वह आएंगी या नहीं इस पर मैं कुछ नहीं कह सकता।’
ट्रेड यूनियनों के 24 घंटे के राष्ट्रव्यापी बंद के दौरान पश्चिम बंगाल में हिंसा और आगजनी की घटनाएं हुईं। प्रदर्शनकारियों ने रेल और सड़क यातायात बाधित करने करने का भी प्रयास किया।
बनर्जी ने कहा कि वामपंथियों और कांग्रेस के दोहरे मानदंड को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। विधानसभा द्वारा सीएए के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किए जाने के बाद बनर्जी ने कहा, ‘मैंने नई दिल्ली में 13 जनवरी को सोनिया गांधी द्वारा बुलाई गई बैठक का बहिष्कार करने का निर्णय लिया है क्योंकि मैं वाम और कांग्रेस द्वारा कल (बुधवार) पश्चिम बंगाल में की गई हिंसा का समर्थन नहीं करती हूं।’ उन्होंने कहा कि चूंकि सदन सितंबर, 2019 में ही पूरे देश में प्रस्तावित एनआरसी के खिलाफ प्रस्ताव पारित कर चुका है ऐसे में नए सिरे से प्रस्ताव लाने की जरूरत नहीं है।
कांग्रेस और वामपंथियों की ओर से दबाव बनाए जाने पर उन्होंने कहा, ‘आप लोग पश्चिम बंगाल में एक नीति अपनाते हैं और दिल्ली में एकदम विपरीत नीति अपनाते हैं। मैं आपके साथ नहीं जुड़ना चाहती। अगर जरुरत पड़ी तो मैं अकेले लड़ने को तैयार हूं।’