पाकिस्तानी लेखिका, पत्रकार एवं नेता फरहनाज इस्पहानी ने पीटीआई-भाषा से कहा, ”भारत एवं पाकिस्तान के बंटवारे से ठीक पहले इस्लाम के अलावा हमारे यहां धर्मों- हिंदु, सिख, ईसाई, पारसी – का बहुत अच्छा संतुलन था. अब पाकिस्तान में उनकी तादाद पूरी आबादी के 23 प्रतिशत यानि एक तिहाई से गिरकर महज तीन प्रतिशत रह गयी है.”
उन्होंने कहा, ”मैं इसे ‘धीमा नरसंहार’ कहती हूं क्योंकि यह धार्मिक समुदायों का सबसे खतरनाक तरह से खात्मा है.” लेखिका की किताब ”प्यूरीफाइंग द लैंड ऑफ द प्योर’ का इस महीने अमेरिका में विमोचन किया गया.
उन्होंने कहा, ”यह (नरसंहार) एक दिन में नहीं होता. यह कुछ महीनों में नहीं होता. धीरे-धीरे होता है जब कानून एवं संस्थान और नौकरशाह एवं दंड संहिताएं, पाठ्यपुस्तक दूसरे समुदायों की निंदा करते हैं, ऐसा तब तक होता है जब तक कि आपके यहां इस तरह की जेहादी संस्कृति जन्म नहीं ले लेती है जोकि बड़े पैमाने पर दिख रही है.”
फरहनाज ने पाकिस्तान के सफर को ”निराशाजनक” बताते हुए कहा कि वह जिस देश में बड़ी हुईं, वह देश अब नहीं रहा.
फरहनाज ने धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हाल में जारी वैश्विक चलन को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा कि यह हैरान करने वाला है कि अमेरिका जैसे देश जिन्हें उदारवादी लोकतांत्रिक अंतर्दृष्टि और धार्मिक अल्पसंख्यक आबादी के प्रति मूल्यों के लिए जाना जाता था, वे अब नफरत की जगहें बन रहे हैं.