चुनावी शोर में हर बार पहाड़ बचाओ के नारे गूंजते हैं और जैसे ही यह शोर थमता है 70 फीसद से अधिक पहाड़ी भूभाग वाले प्रदेश का सबसे बड़ा सवाल भी पांच साल के लिए फिर हाशिये पर चला जाता है।
स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, रोजगार जैसे संसाधनों की बाट जोहते बीते 16 सालों में तीन हजार गांव खाली हो गए और दो लाख 57 हजार 875 घरों में ताले लटक गए हैं। क्या पहाड़ की जनता सिर्फ वोट बटोरने का जरियाभर है। बिल्कुल नहीं। इसके लिए पर्वतीय वोटर को एकजुट होकर प्रत्याशियों की आंख में आंख डाल पलायन के मुद्दे पर स्पष्ट मत जानना होगा।
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2017 के दृष्टिगत गांव बचाओ परिवार ने 22 बिंदुओं का जनपत्र तैयार किया है। इसकी उपज वह अनुभव हैं, जो गांव बचाओ यात्रा के दौरान इस परिवार के सदस्यों को मिले। जनपत्र में दर्ज किए गए सवाल इस प्रचार में प्रत्याशियों को उनका दायित्वबोध कराएंगे तो जनता इसकी कसौटी पर अपने प्रत्याशियों को कस सकती है।
गांव बचाओ परिवार के मुखिया पद्मश्री डॉ. अनिल प्रकाश जोशी कहते हैं कि तब तक पहाड़ से पलायन की रफ्तार थाम पाना संभव नहीं, जब तक कुल बजट का 70 फीसद हिस्सा पर्वतीय क्षेत्रों के विकास पर खर्च करने की व्यवस्था नहीं कर दी जाती।
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राज्य की आवश्यक सेवाओं को पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) मोड से बाहर रखने की भारी मांग भी गांवों में उठ रही है। पीपीपी मोड पर दिए गए अस्पतालों के अनुभव इसका जीवंत प्रमाण हैं। इसके साथ ही पर्वतीय क्षेत्रों के ज्वलंत प्रश्न बन चुके शिक्षा-रोजगार, जल-जंगल, सड़क, आपदा प्रबंधन आदि का ठोस हल निकाले बिना पलायन का हल ढूंढने का प्रयास बेमानी साबित होगा।
जनपत्र के ज्वलंत बिंदु
-पारिस्थितिकीय रोजगार को बढ़ावा दिया जाए और जल, जंगल, मिट्टी को ग्रामोद्योग का दर्जा मिले।
-एक ऐसा संस्थान होना चाहिए, जिसका दायित्व बेरोजगारी को संसाधनों-साधनों से जोड़ना हो।
-रोजगार बढ़ाने को प्रशिक्षण-प्रोत्साहन केंद्र स्थापित कर ठोस रोडमैप बनाया जाए।
-उत्तराखंड के उपलब्ध संसाधनों व राज्य में मौजूद तमाम राष्ट्रीय शोध संसाधनों का समुचित लाभ उठाया जाए।
-आइटीआइ व पॉलीटेक्निक शिक्षित बेरोजगार युवाओं की प्रशिक्षण कंपनी बनाकर रोजगार मुहैया कराना।
-जल ऊर्जा, सौर ऊर्जा, जैव ऊर्जा को तकनीकी रूप से शिक्षित युवाओं से जोड़ा जाना जरूरी।
-स्थानीय संसाधन, उनसे जुड़ी तकनीक व बाजार पर केंद्रित संस्थान की संकल्पना तैयार करना।
-खेती-बागवानी पर नए सिरे से प्रयास किए जाएं।
-आपदा के लिहाज से संवेदनशील उत्तराखंड में पारिस्थितिकी नीति बनाई जानी जरूरी।
-गैरसैंण राजधानी को लेकर राजनीतिक दल अपना मत स्पष्ट करें।
-आपदा प्रबंधन के ढांचे को सशक्त बनाना।
-सही भूमि व्यवस्था सुधार कानून लागू करने पर बल।
-वन निगम की तरह खनिज निगम की स्थापना कर माफियाराज पर अंकुश लगाने का प्रयास।
-73वें व 74वें संशोधन लागू कर गांवों को सशक्त बनाने पर तत्काल प्रयास।
-तमाम वादों को दरकिनार कर राजनीति के केंद्र में गांवों को रखना।
-स्थानीय जरूरतों व दुख-दर्द को समझने वाले प्रत्याशियों को वरीयता।
पर्वतीय क्षेत्रों में खाली घर
अल्मोड़ा———— 36401
पौड़ी——————35654
टिहरी—————–33689
पिथौरागढ़————22936
देहरादून————–20625
चमोली—————18535
नैनीताल————-15075
उत्तरकाशी———-11710
चंपावत————–11281
रुद्रप्रयाग————10970
बागेश्वर————-10073
इस तरह खाली हो रहे गांव
-75 फीसद गांव पलायन की पीड़ा से गुजर रहे हैं।
-जनगणना 2011 के अनुसार प्रदेश की आबादी 19.17 फीसद बढ़ी, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह बढ़त 11.34 फीसद रही।
-राज्य के 95 विकासखंडों में से 28 में आबादी की दर तेजी से गिर रही।
-टिहरी के थौलधार विकासखंड में यह दर 21.7 फीसद की रफ्तार से घटी।
-पौड़ी के जयहरीखाल व एकेश्वर विकासखंड में आबादी घटने की दर क्रमश: 16.1 व 14 फीसद रही।
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पलायन की यह भी तस्वीर
-पर्वतीय क्षेत्रों में प्रति 1000 लोगों में 864 पलायन करने को मजबूर हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह दर 136.61 है।
कम आबादी से घटी छह सीट
वर्ष 2001 के जनगणना के आधार पर 2006 में विधानसभा क्षेत्रों का जो परिसीमन हुआ, उसमें पर्वतीय क्षेत्रों की 40 विस सीटों में से छह मैदानी क्षेत्रों की झोली में चली गई। ऐसी आशंका है कि 2026 में होने वाले परिसीमन में यह आंकड़ा और घट सकता है। ऐसे में पर्वतीय क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व और कम हो जाएगा।
पहाड़ का जनादेश मैदान में शिफ्ट
2011 की जनगणना में हल्द्वानी विकासखंड की आबादी 103.4 फीसद बढ़ी। रुद्रपुर में यह बढ़त 89.4, रायपुर में 86.6 व काशीपुर विकासखंड में 54.6 फीसद रही।