यमुना घाटी में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया प्रसिद्ध देवलांग मेला ।। बडकोट – रिपोर्ट – मदनपैन्यूली – पर्यटन एंव संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज पर्यटन एंव संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए अच्छे कार्य योजना बनाकर कार्य कर रहे हैं।
यमुना घाटी के गैर गांव में सोमवार रात को प्रसिद्ध देवलांग मेला हर्षोल्लास के साथ मनाया गया, जिसमें स्थानीय ग्रामीणों ने पारंपरिक तरीके से देवदार के साबुत वृक्ष से तैयार विशाल मशाल ‘देवलांग’ जलाकर इसके चारों ओर भैलों के साथ देवी-देवताओं की आराधना की।पौराणिक कथाओ में बताया गया है कि गोरखा युद्ध के समय मलेथा गांव के वीर भड माधो सिंह भंडारी की विजयी हो कर वापस लौटे थे। जिनकी खुशी में कार्तिक मांस की दीपावली को न मना कर मंगसीर मास की दीपावली यानी बग्वाल मनाई जाती है
यमुना घाटी के गैर, गंगटाड़ी, कुथनौर आदि दर्जनों गांवों के ग्रामीण अपने आराध्य राजा रघुनाथ को प्रसन्न करने के लिए हर साल मंगसीर की बग्वाल के दिन देवलांग मेले का आयोजन करते हैं। क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति एवं परंपराओं की पहचान वाले इस मेले को राजकीय मेला घोषित किया गया है इस अवसर पर आज शिक्षक व साहित्यकार दिनेश रावत की पुस्तक का विमोचन किया गया।पुस्तक में लेखक दिनेश रावत ने रवांई घाटी के पौराणिक मंदिरों का इतिहास व उन से जुड़ी हुई जानकारी साझी की है।पुस्तक में रवांई के पौराणिक मंदिरों व ऐतिहासिक स्थलों की शोध रिपोर्ट लिखी गई है।आयोजित लोकार्पण कार्यक्रम को साहित्यकार महावीर रवाल्टा ने रवांई की लोकल भाषा मे सम्भोदित किया। सदियों से रवांई के गैरबनाल में ‘‘देवलांग’’ का पर्व मनाने की अलग ही परम्परा है। ‘‘देवलांग’’ दुनिया की सबसे लम्बी मशाल है। प्रचार -प्रसार के आभाव दुनिया की सबसे लम्बी मशाल आज देश विदेशों के पर्यटकों की नजरों से कोसो दूर है ।
रवांई के बडकोट से महज 20 किमी. दूरी पर देवदार के घने वृक्षों के तलहटी में बसा गैरबनाल का गाॅव है। जहां राजा रघुनाथ का प्राचीन मन्दिर बना है। इसी मन्दिर परिसर पर देवलांग का उत्सव होता है। इससे देखने के लिए लोग दूर – दूर से भारी संख्या में आते है।
‘‘देवलांग’’ को सम्पन्न करने में बनाल के लोगों की खास भूमिका रहती है। सदियों से चली आ रही परम्परा अनुसार ग्राम गैर के नटांण लोग उपवास रखकर ‘‘देवलांग’’ के लिए देवदार का सम्पूर्ण हरा वृक्ष का प्रबन्ध् करते है।
इस में वृक्ष का शीर्ष, खण्डित न हो, वृक्ष गैर मन्दिर परिसर में ढ़ोल बाजों के साथ लाया जाता है। इसके बाद याँब्ली के खवरियाट इस वृक्ष के सम्पूर्ण भाग पर सिल्सी बांध कर उपवास रखकर ‘‘देवलांग’’ तैयार करते है। मध्य रात्रि के बाद बनाल पटटी के लोग अपने-अपने गाॅव से ढ़ोल बाजों के साथ में जलते मशाल के साथ मन्दिर परिसर में आते है। बनाल पट्टी के दो थोक साठी और पनसाई इस वृक्ष को उठाकर जलातें है और बग्वाल की एक लंबी मशाल के रूप में जलाई जाती ।पूर्व सरकार के समय गैर गांव के होने वाले देवलांग पर्व को राजकीय मेला घोषित किया गया उसके बाद से संस्कृति विभाग से लोक नृत्य की टीमें यहां प्रतिभाग करने पहुचंती थी परंतु इस वर्ष कोरोना वायरस (कोविड 19) के चलते सांस्कृतिक कार्यक्रम नही हो पाया।इसके अलावा देवलांग पर्व गंगटाड़ी और कुथनौर गांव में आयोजित हुआ । पूजा अर्चना शंखनाद और ढोल नगाड़ो के बीच नृत्य करते हुए यमुना घाटी में धुमधाम देवलांग मेला मनाया गया। उत्तराखंड सरकार के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज अपनी मेले की सफलता के लिए शुभकामनाएं दी है।महाराज जी संस्कृति रीतिरिवाजों को बढ़ावा देने के लिए मेला थौला को आर्थिक सहायता देने का कार्य कर देशवासियों एवं विदेशी पर्यटकों की उत्तराखंड में आने के लिए जिज्ञासा बढ़ाने कार्य कर अभिनव प्रयास कर रहे हैं।