*चांद भी क्या खूब है,*
*न सर पर घूंघट है,*
*न चेहरे पे बुरका,*
*कभी करवाचौथ का हो गया,*
*तो कभी ईद का,*
*तो कभी ग्रहण का*
*अगर*
*ज़मीन पर होता तो*
*टूटकर विवादों मे होता,*
*अदालत की सुनवाइयों में होता,*
*अखबार की सुर्ख़ियों में होता,*
*लेकिन*
*शुक्र है आसमान में बादलों की गोद में है,*
*इसीलिए ज़मीन में कविताओं और ग़ज़लों में महफूज़ है”*
*करवाचौथ की शुभकामनाएँ*. सुप्रभात