उत्तराखंड के अधिकारियों ने मा सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना की

Pahado Ki Goonj

उतराखण्ड कृषि उत्पादन विपणन बोर्ड में राज्य गठन के बाद से लगातार जंगल राज चल रहा है। ज्ञातव्य है कि उतराखण्ड मण्डी परिषद के उपनिदेशक निर्माण द्वारा सयुक्त उतरप्रदेश राज्य के दौरान पांच लोगों को डिग्री तथा डिप्लोमा धारी के रूप में निर्माण खण्ड सहारनपुर में परियोजना मद के अन्तर्गत भर्ती किया गया था। उतरप्रदेश मण्डी परिषद ने इनकी सेवाओं को असंवैधानिक मानते हुए, इन्हें एक माह का वेतन देकर आदेश संख्या 198,199,200 दिनांक 07/05/1999, एवं आदेश 2102 दिनांक 27/031999 तथा आदेश 744 दिनांक 14/07/1999 के द्वारा सेवा से पृथक कर दिया था। जिसके बाद इन लोगों को माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद की लखनऊ पीठ के आदेश दिनांक 11/08/2000, दिनांक 05/09/2000 तथा दिनांक 29/11/2000 के सम्मान में पुनः निर्माण खण्ड सहारनपुर में योगदान कराया गया था तथा उतरप्रदेश मण्डी परिषद ने उक्त आदेश के खिलाफ माननीय सर्वोच्च न्यायालय में एस एल पी दायर की गई थी, जिसमें इनके नाम भी सम्मिलित थे। इसी बीच 09 नवम्बर 2000 को उतराखण्ड राज्य का गठन हुआ जिसका फायदा उठाते हुए, उक्त उपनिदेशक निर्माण द्वारा इन्हें बैक डोर से चुपचाप नव गठित राज्य उतराखण्ड में, उस वक्त गठित उतराखण्ड मण्डी परिषद के एक मात्र निर्माण खण्ड हल्द्वानी में परियोजना मद में ही बिना उत्तर प्रदेश तथा उतराखण्ड शासन की अनुमति के सहारनपुर निर्माण खण्ड से जनवरी 2001 में स्थानान्तरित कराते हुए यहाँ योगदान कराया दिया गया था। अब दिनांक 16/12/2005 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय आया जिसके अनुपालन में इनका योगदान निष्प्रभावी हो गया था। जिसकी जानकारी उतरप्रदेश मण्डी परिषद निर्माण खण्ड सहारनपुर के उपनिदेशक निर्माण द्वारा, मण्डी निदेशक के पत्राकं 1118 दिनांक 26/12/2005 का सन्दर्भ देते अपने कार्यालय पत्राकं 567 दिनांक 26/12/2005 के माध्यम से उतराखण्ड मण्डी परिषद के अधिकारियों को दे दी गई थी। इस प्रकार जानकारी होने के बाद भी उतराखण्ड मण्डी परिषद के अधिकारियों द्वारा जानबूझकर माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की अवहेलना की गई है जो कि इन अधिकारियों द्वारा पहला तथा इसके बाद 2012 में इनका नियम विरुद्ध विनियमितिकरण करके दूसरा जघन्य अपराध किया गया है, इन अधिकारियों के खिलाफ निश्चित रूप से कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए तथा इनके द्वारा राज्य कर्मियों के हितों को प्रभावित कर, इन लोगों को दिये गये नियम विरुद्ध वेतन भत्तों आदि लाभ की भरपाई भी इन्हीं से की जानी चाहिए ताकि भविष्य में कोई अधिकारी ऐसा करने की हिम्मत न कर सके।
इस प्रकार उतराखण्ड क्रांति दल,बेरोजगार संघो तथा उतराखण्ड डिप्लोमा इंजीनियर्स महासंघ के द्वारा माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन के लिए तत्समय उतराखण्ड मण्डी परिषद तथा उतराखण्ड शासन से अनुरोध किया गया था किन्तु बहुत आश्चर्य की बात है कि उतराखण्ड मण्डी परिषद द्वारा इन्हें 2012 में विनियमितिकरण कर दिया गया। इस प्रकार माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की अवहेलना करके विनियमित किये गये इन पांच अभियंताऔ की असंवैधानिक नियुक्ति एवं विनियमितिकरण की जांच कराने के लिए उतराखण्ड क्रांति दल सहित विभिन्न संगठनों द्वारा राज्य ब्यापी आन्दोलन किया गया जिसका राज्य सरकार द्वारा संज्ञान लेते हुए, आईएएस अधिकारी अपर सचिव कृषि से पूरे प्रकरण की जांच कराई गई थी तथा जांच अधिकारी द्वारा निष्पक्ष जांच करते हुए जांच रिपोर्ट 31/12/2012 को शासन प्रस्तुत कर दी थी। मीडिया प्रजातंत्र में संविधान का चौथा स्तम्भ है, इसलिए आज आम जनता के बीच सरकार की जांच रिपोर्ट तथा माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन में उतरप्रदेश मण्डी परिषद द्वारा उतराखण्ड मण्डी को दी गई जानकारी से सम्बंधित पत्र की प्रति समाचार पत्र के माध्यम से राज्य वासियों के बीच रखी जा रही है ताकि सरकार के संज्ञान में सब कुछ सच्चाई आ सके तथा ये स्वार्थी लोग शासन एवं सरकार को गुमराह करके राज्य के कर्मचारियों के हितों को प्रभावित न कर सके । पिछली सरकार ने स्वयं जांच कराने के बाद भी रिपोर्ट को पिछले चार वर्षों से दबाये रखा गया था। इस प्रकार इतनें वर्षों तक जांच रिपोर्ट पर निर्णय न होने से यह तो स्पष्ट लगने लगता है कि कहीं न कहीं इन्हें अनैतिक रूप से बचाने का प्रयास किया जा रहा है। जिसके कारण इनकी असंवैधानिक नियुक्ति एवं विनियमितिकरण से प्रभावित को माननीय उच्च न्यायालय नैनीताल की शरण में जाना पड़ा था जिसपर माननीय उच्च न्यायालय नैनीताल की H’bl justice U C Dhyani की एकल पीठ द्वारा जांच रिपोर्ट को 12 सप्ताह में निस्तारित करने के आदेश पारित किये गये हैं। बर्तमान में राज्य में भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेन्स की सरकार है इसलिए इस सरकार से उम्मीद की जाती है कि, इस प्रकार अवैधानिक रूप से उतराखण्ड मण्डी परिषद में बिना सक्षम स्वीकृति के परियोजना मद में स्थानान्तरित उतरप्रदेश मण्डी परिषद के सेवा से निष्कासित इन अभियंताऔ का विनियमितिकरण निरस्त करेगी, तथा इन्हें नियम विरुद्ध दिया गये लाभों की वसूली दोसी अधिकारियों से करेगी। ताकि विभिन्न स्तर से हुए पत्राचार तथा माननीय उच्च न्यायालय नैनीताल के निर्णय के बाद प्रकाश में आयी जांच रिपोर्ट के तथ्यों के आधार पर सरकार तथा शासन के संज्ञान में आये माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का सम्मान हो सकेगा तथा राज्य के कर्मचारियों के साथ किसी प्रकार का अन्याय न हो सकेगा।

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