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उत्तराखण्ड का एक मात्र इलेक्ट्रिक शवदाह गृह बरसों से खराब

Pahado Ki Goonj

देहरादून। वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के संक्रमण के मामले देश में लगातार बढ़ते जा रहे हैं। कोरोना संक्रमण के चलते मौतों का आंकड़ा भी बढ़ रहा है। वहीं उत्तराखंड में कोरोनाकाल में संक्रमित शवों को लेकर बवाल मचा है। उत्तराखंड में लोग संक्रमण फैलने के डर से अपने-अपने क्षेत्रों के श्मशान घाटों में इन शवों के दाह संस्कार करने पर विरोध जता रहे हैं। इसके चलते प्रशासन को शवों को दफनाने या उनके दाह-संस्कार के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। राज्य में जो इकलौता इलेक्ट्रिक शवदाह गृह हैं वो काम नहीं कर रहा। वहीं राज्य सरकार पर आरोप है कि वो न तो इलेक्ट्रिक शवदाह गृह की व्यवस्था कर रही है और न ही इसके लिए जमीन उपलब्ध करवा रही है। संक्रमण से बचाव बेहद जरूरी है लेकिन मानवता का ध्यान रखा जाना भी उतना ही आवश्यक है। गत मंगलवार को रुड़की के एक केस में तो मानवता ही जैसे तार-तार हो गई। रुड़की में एक कोरोना संदिग्ध की मौत हुई। जिसके बाद रुड़की से शव को हरिद्वार के कनखल घाट पर लाया गया। लेकिन यहां इलेक्ट्रिक शवदाह गृह न होने की बात कहकर उन्हें हरिद्वार के ही खड़खड़ी घाट भेज दिया गया जब परिजन शव लेकर वहां पहुंचे तो प्रदेश का इकलौता इलेक्ट्रिक शवदाह गृह खराब होने की बात बताकर उन्हें श्मशान घाट में घुसने नहीं दिया गया। सवाल उठता है कि जब इलेक्ट्रिक शवदाह गृह खराब था तो लकड़ी से दाह-संस्कार हो सकता था लेकिन ऐसा भी नहीं करने दिया गया। काफी मिन्नतों के बाद परिजन थक-हारकर शव को वापस रुड़की ले गए। मंगलवार को ही देहरादून में भी बवाल हुआ। यहां नालापानी श्मशान घाट पर कोरोना संक्रमित के अंतिम संस्कार का स्थानीय लोगों ने विरोध किया। घंटों मशक्कत के बाद अंतिम संस्कार कराया जा सका। इससे पहले सोमवार को सहारनपुर निवासी एक बुजुर्ग महिला की मौत पर शव के अंतिम संस्कार का नालापानी में विरोध किया गया था। प्रशासन टीम लक्खीबाग पहुंची क्योंकि यहां भी लोगों के विरोध के चलते शव का दाह संस्कार नहीं हो पा रहा था। इससे पहले जून प्रथम सप्ताह में ऋषिकेश में दो कोरोना संक्रमितों की मौत के बाद शवों को दफनाने को लेकर बवाल मचा। प्रशासन ऋषिकेश से पंद्रह किलोमीटर दूर रानीपोखरी में शव दफनाने के लिए गड्ढे बनाने ही जा रहा था कि स्थानीय लोगों ने पुलिस को वापस लौटा दिया। घंटों बाद फिर इनमें से एक शव का डोईवाला तो दूसरे शव को देहरादून में दफनाया गया। सोशल एक्टिविस्ट बृज मोहन शर्मा कहते हैं कि ऐसे संकट के समय में इलेक्ट्रिक शव दाह गृहों का महत्व और भी बढ़ जाता है। लेकिन पूरे प्रदेश में कहीं भी इलेक्ट्रिक शवदाह गृह नहीं हैं। हरिद्वार के खड़खड़ी घाट पर एक मात्र इलेक्ट्रिक शवदाह गृह सालों से खराब पड़ा हुआ है।

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