देहरादून। त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों में प्रदेश का एकमात्र क्षेत्रीय राजनीतिक दल उत्तराखंड क्रांति दल यानी कि यूकेडी भी अपनी जमीन तलाश रहा है। उत्तराखंड की राजनीति में हाशिए पर चला गया यूकेडी नई पीढ़ी में अपना जनाधार बनाने की कोशिश में है और पहाड़ी इलाकों में ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत में बड़ी संख्या में उम्मीदवार उतार रहा है। पार्टी नेता कहते हैं कि यूकेडी ने अपनी गलतियों से सीखा है और उन्हें दूर कर अब नए जोश के साथ मैदान में उतर रही है। पंचायत चुनावों के साथ ही पार्टी अपनी तैयारियों, अपनी ताकत-कमजोरियों का पता लगाएगी और फिर शक्ति बटोरकर विधानसभा चुनावों में उतरेगी।
उत्तराखंड क्रांति दल प्रदेश का अकेला ऐसा राजनीतिक दल है जो उत्तराखंड आंदोलन में शामिल रहा है, आंदोलन का नेतृत्व किया है। लेकिन अलग राज्य बनने के बाद से यह धीरे-धीरे प्रभावहीन होता गया है। यूकेडी के प्रवक्ता सुनील ध्यानी इस बात को स्वीकार करते हैं कि यूकेडी का वह स्थान नहीं रहा जो राज्य के लिए उसके संघर्ष की वजह से बनना चाहिए था. ध्यानी कहते हैं उन्हें यह स्वीकारने में झिझक नहीं है कि इसके लिए खुद यूकेडी की कमियां, नेताओं की गलतियां जिम्मेदार रहीं।
सुनील ध्यानी कहते हैं कि 1994 में जब अलग राज्य आंदोलन के लिए संयुक्त संघर्ष समिति बनाई गई उसमें पहाड़ के गांधी इंद्रमणि बडोनी ने सबका स्वागत किया। इसमें कांग्रेस-भाजपा के लोग भी आए लेकिन अपने स्वार्थ छोड़कर नहीं। जब 1996 में संयुक्त संघर्ष समिति ने राज्य नहीं तो चुनाव नहीं का निर्णय सामूहिक रूप से लिया तो ये सभी अपने-अपने दलों में जाकर चुनाव लड़े और यूकेडी अकेले रह गई जबकि उस समय जनता का इतना जबरदस्त समर्थन था कि पार्टी पांचों सीट जीत सकती थी।
1996 से ही पार्टी में टूट का सिलसिला शुरु हो गया और पार्टी में दो फाड़ हो गए. दिवाकर भट्ट और पूरण सिंह डंगवाल अलग हो गए. ध्यानी कहते हैं कि इसके बाद बड़ी गलती 2002 में हुई जिसे राजनीतिक अपरिपक्वता कहना ही ठीक होगा. फिर पार्टी में टूट हुई और दिवाकर भट्ट, काशी सिंह ऐरी ने अपनी-अपनी पार्टी बना ली. 2007 में पार्टी नेताओं ने फिर कमजोरी दिखाई। भाजपा के साथ सरकार में सहयोगी दल के रूप में पार्टी ने अपने एजेंडे को मनवाने के लिए दबाव देने के बजाय नेताओं ने अपने स्वार्थ और अहम को महत्व दिया। नेताओं की राजनीतिक अपरिपक्वता की वजह से यूकेडी ने गलतियां की उससे जनता का पार्टी से विश्वास उठ गया. हालांकि कांग्रेस और बीजेपी ने इससे बड़े राजनीतिक ब्लंडर किए (जैसे कि 2016 में हरीश रावत सरकार का गिराना) लेकिन दोनों ही पार्टियों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा और न ही जनता को. पर यूकेडी के लिए अपनी गलतियों से उबरना मुश्किल हो गया। उत्तराखंड क्रांति दल की एक बड़ी कमजोरी संसाधनों की कमी भी रही. दरअसल पार्टी कभी प्रोफेशनल ढंग से नहीं चली और इसके पास कभी भी कांग्रेस, बीजेपी जैसे संसाधन नहीं रहे. यूकेडी पहाड़ों के सरोकारों से जुड़ी, उत्तराखंड आंदोलन से जुड़ी पार्टी थी जो जनसमर्थन से ही बनी और बढ़ी। स्थिति तो यह है कि पार्टी के पास छात्र संघ चुनाव लड़ाने तक के लिए संसाधन नहीं हैं। ध्यानी के अनुसार अब यूकेडी इस कमी को दूर करने की भी कोशिश कर रही है। ध्यानी के अनुसार कोशिश यह है कि उत्तराखंड से बाहर रहने वाले ऐसे प्रवासी जो आर्थिक रूप से सक्षम हैं और अपने पहाड़ के लिए सोचते हैं, कुछ करना चाहते हैं उन्हें यूकेडी से जोड़ा जाए। दिल्ली-एनसीआर से प्रवासी उत्तराखंडी देश और दुनिया भर में फैले हैं. यूकेडी अगर पहाड़ के सरोकारों की आवाज के रूप में इनके सामने फिर से पहचान बना पाए तो शायद इसके संसाधनों की कमी को भी कुछ हद तक दूर किया जा सकेगा। यूकेडी प्रवक्ता सुनील ध्यानी कहते हैं कि यूकेडी ने अपनी गलतियों से सीखा है और उन्हें दूर कर अब नए जोश के साथ मैदान में उतर रही है। यूकेडी प्रवक्ता सुनील ध्यानी कहते हैं कि यूकेडी ने अपनी गलतियों से सीखा है और उन्हें दूर कर अब नए जोश के साथ मैदान में उतर रही है। यूकेडी अब युवाओं पर दांव खेलने जा रहा है. ध्यानी बताते हैं कि सीमित संसाधनों के बावजूद इस बार छात्र संघ चुनावों में 14 कॉलेजों में यूकेडी से जुड़े युवा चुनाव जीतकर पदाधिकारी बने हैं। चैबट्टाखाल में अब ऐसे युवा पंचायत चुनाव लड़ रहे हैं जो पिछली बार तक छात्र संघ पदाधिकारी थे. ये लोग यूकेडी का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं और इस तरह यूकेडी में नई पीढ़ी के नेता तैयार हो रहे हैं। पंचायत चुनावों में प्रदर्शन के सवाल पर ध्यानी कहते हैं कि जिला पंचायत स्तर पर तो पार्टी संसाधनों के अभाव में मार खा सकती है लेकिन ग्राम पंचायत और क्षेत्र पंचायत स्तर पर इस बार यूकेडी पहले से अच्छा प्रदर्शन करेगा यह तय है. इसकी एक बड़ी वजह यह भी है यूकेडी के जो युवा इस बार पंचायत चुनाव लड़ रहे हैं वह खुद भी थोड़े साधन संपन्न हैं। उत्तराखंड में यूकेडी के लिए सबसे बड़ी चुनौती संसाधनों का इंतजाम तो है ही अपने इतिहास को न दोहराने यानी शीर्ष पार्टी नेतृत्व की गलतियों से सबक लेने की है। ध्यानी कहते हैं कि इस बार पार्टी दोनों ही चीजों का ध्यान रखकर आगे बढ़ रही है और इसलिए इस बार एक नया उत्तराखंड क्रांति दल दिखेगा।