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उत्तराखंड को प्रकृति ने अपार प्राकृतिक सौंदर्य से नवाजा है

Pahado Ki Goonj

उत्तराखंड में बेरोजगारी की समस्या
प्रकृति ने अपार प्राकृतिक सौंदर्य से नवाजा है उत्तराखंड को ।ऊंचे ऊंचे पहाड़ ,नदियां, तालाब, झीलें ,सदाबहार हिम से ढकी हिमालय की शानदार चोटियों, अनगिनत जड़ी बूटियां, विभिन्न प्रकार की फसलें, फल-फूल साथ ही साथ भगवान शिव का निवास स्थान (कैलाश (हिमालय), बागेश्वर,जागेश्वर,केदारनाथ), मां सती के अनेकों धाम (पूर्णागिरि और नैना देवी) और उत्तराखंड का विस्मित कर देने वाला भू भाग आधा पहाड़ और आधा मैदान फिर भी उत्तराखंड के युवा बेरोजगार ?? अपने गांव,अपनी भूमि छोड़ने को मजबूर !!! उत्तराखंड के यही पहाड़ क्या युवाओं की बेरोजगारी और पलायन का कारण बन गए हैं ? क्योंकि बेरोजगारी भी युवाओं के पलायन का एक अहम कारण बन गया है ।पढ़े-लिखे नौजवान अपना गांव,अपना शहर छोड़कर रोजगार की तलाश में राज्य के दूसरे शहरों में चले जाते हैं या फिर राज्य के बाहर निकल पड़ते हैं। डेढ़ करोड़ की आबादी वाले उत्तराखंड में लगभग 10 लाख युवा बेरोजगार घूम रहे हैं।आज से लगभग 19 साल पहले जब राज्य की स्थापना हुई थी।तब इन बेरोजगारों की संख्या 2:50 लाख से 3 लाख के बीच में थी और हर साल लगभग एक लाख युवा बेरोजगारों की लिस्ट में शामिल होते जा रहे हैं ।इसमें पुरुषों की संख्या ज्यादा लगभग 6 लाख और महिलाओं की संख्या लगभग चार लाख के आसपास है लेकिन देहरादून में यह स्थिति अलग है वहां पर महिला बेरोजगारों की संख्या ज्यादा है यह आंकड़े वाकई में डराते हैं।

ऐसा नहीं है कि इस राज्य में रोजगार की कोई संभावना ही नहीं है। इस राज्य में भी रोजगार की अपार संभावनाएं हैं ।मगर कभी भी किसी सरकार ने ईमानदार कोशिश ही नहीं की। चाहे सरकार किसी भी पार्टी की हो। बस एक दूसरे में आरोप-प्रत्यारोप लगाने के अलावा कुछ नहीं करते और सिर्फ सफेद कागजों में लिखी अपनी उपलब्धियों को गिनाने में ही रह जाते हैं।मगर कोई भी सरकार बेरोजगारों के इन आंकड़े को नहीं देखती है। और चुनाव के वक्त कुछ नेता बेरोजगार युवाओं को रोजगार देने का लॉलीपॉप जरूर थमा कर चले जाते हैं।योजनाओं की घोषणा करते हैं। कुछ विभागों का भी गठन करते हैं जैसे युवाओं को स्वरोजगार से जोड़ने की योजना हो या पलायन रोकने के लिए बनाया गया नया विभाग कौशल विकास एवं सेवा योजना विभाग का गठन हो। ऐसा लगता है नेताओं और आने जाने वाली सरकारों के लिए यह एक बढ़िया चुनावी मुद्दा है। इस मुद्दे को उछाल कर अपने घोषणा पत्र को शानदार बनाया जा सकता है और चुनावी वादे को ऐसे प्रस्तुत किया जा सकता है कि जिससे उनकी चुनावी नैया आसानी से पार हो जाय है।शायद इसीलिए कोई भी इस तरह ईमानदार कोशिश करता नहीं दिखता है और वो इस मुद्दे को हमेशा जीवित रखना चाहते हैं। वरना दुनिया में कोई ऐसी समस्या नहीं जिसका समाधान संभव नहीं है। चाहे कोई किसी व्यक्ति विशेष की समस्या हो या किसी राज्य या देश की ? आप देखिए किसी भी नेता के बच्चे बेरोजगार हैं।अगर वह बेरोजगार नहीं है तो फिर आम युवा बेरोजगार क्यों हैं ?
आप दूर क्यों जाते हैं।हिमांचल राज्य को ही देख लीजिए जहां पर सरकार और आम लोगों की एक ईमानदार कोशिश ने सैकड़ों लोगों का पलायन तो रोका ही , साथ में पलायन कर गए लोगों के घर वापसी का रास्ता भी सुनिश्चित किया।उनको स्वरोजगार से जोड़ा। सिर्फ एक ईमानदार कोशिश व अनोखी सोच ने पारंपरिक खेती के बजाय फलों की खेती व पर्यटन को बढ़ावा दिया । क्या उत्तरांचल में यह संभव नहीं है ? क्योंकि हिमाचल और उत्तरांचल में बहुत समानता है ऐसे और भी अनेक राज्य हैं जहां पर्यटन का क्षेत्र बहुत बड़ा रोजगार का क्षेत्र बना है। हालांकि सरकार सभी लोगों को सरकारी नौकरी नहीं दे सकती।लेकिन जो सरकारी पद रिक्त हैं उनको भरा तो जा ही सकता है इस वक्त राज्य में लगभग 40,000 से ज्यादा पद रिक्त हैं । लेकिन उनको भरने की कोई व्यवस्था नहीं है और न ही भरने में सरकार की कोई दिलचस्पी दिखती है सिर्फ 2,000 लोग ही प्रतिवर्ष नौकरी पाते हैं ।सरकार हर साल नौकरी देने की बात तो करती है लेकिन धरातल में ऐसी उसकी कोई मंशा नहीं लगती।वरना सरकार यह ऐलान क्यों करती कि 3 साल से ज्यादा लंबे समय से जो पद खाली हैं।उन्हें समाप्त कर दिया जाए और लगभग 25,000 पद खत्म कर दिए।

उत्तराखंड एक ऐसा राज्य बन गया है जहां तीन समस्याएं भयंकर रूप ले रही है शिक्षा, रोजगार और पलायन । खासकर पहाड़ी भूभाग में। क्योंकि यह तीनों समस्याएं आपस में जुड़े हुए हैं ।इसलिए तीनों ही समस्याओं का समाधान करना अति आवश्यक है। पहाड़ में बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए सरकारी स्कूलों की हालत बहुत खराब है इसलिए मां-बाप बच्चों को लेकर शहर पलायन कर जाते हैं ।दूसरी समस्या रोजगार की। अगर अच्छी शिक्षा नहीं होगी तो रोजगार भी नहीं मिलेगा। इसलिए हाईस्कूल इंटरमीडिएट पढ़े बच्चे छोटे-मोटे रोजगार की तलाश में या तो राज्य के दूसरे शहरों में निकल जाते हैं या फिर राज्य से के बाहर।यह उन युवाओं का गांव से पलायन नहीं होता बल्कि वह अपने जीवन की खुशियों व सुकून से पलायन कर जाते हैं। पहाड़ का हर बच्चा सेना में भर्ती होना चाहता है क्योंकि उसके पास सबसे पहले यही चॉइस होती है अपने जीवन को आर्थिक रुप से मजबूत बनाने के लिए। वो इस के लिए बहुत मेहनत और कोशिश करते हैं। कुछ भाग्यशाली युवा सेना में नौकरी पा जाते हैं और जिंदगी को आसान बना लेते हैं।लेकिन सभी इतने भाग्यशाली नहीं होते।पहाड़ का जीवन क्या वाकई इतना कठिन है ? बिना सुविधाओं के तो वाकई कठिन है।लेकिन कभी हमने यह सोचा कि यही पहाड़ हमको रोजगार भी दे सकते हैं हमारे पूर्वजों ने इन्हीं पहाड़ों में अपनी जिंदगी को खुशगवार तरीके से जिया ।जबकि उस वक्त तो आज के बराबर साधन भी नहीं थे ।लेकिन वह इन पहाड़ों में उगने वाली हर एक चीज का इस्तेमाल करना जानते थे।

रोजगार के संभावित क्षेत्र

उत्तराखंड के पहाड़ों में सबसे ज्यादा बेरोजगारी है।और पलायन भी वहीं से हो रहा है।लेकिन अगर देखा जाए तो रोजगार भी यही से उपलब्ध हो सकता है क्योंकि उत्तराखंड का आधा भू भाग जो पहाड़ है उसमें एक से एक खूबसूरत व शानदार जगह हैं कहीं पर पवित्र धाम है ,तो कहीं पर खूबसूरत वादियां ,तो कहीं से अद्भुत हिमालय दर्शन होता है ,और कोई शहर झीलों का शहर(जिला नैनीताल) है तो कहीं आप पैराग्लाइडिंग का मजा ले सकते हैं, पर्वतारोहण के साथ-साथ स्नो स्कीइंग (ओली) का मजा भी आराम से लिया जा सकता है। तो अब आप ही बताइए यहां पर पर्यटन की कितनी संभावनाएं हैं ।जरूरत है बस एक शानदार योजना बनाकर और इस क्षेत्र में पढ़े लिखे योग्य युवाओं को इस योजना से जोड़कर उस को धरातल में लाने की।

एक से एक अनोखी और अद्भुत जड़ी बूटियां भी इसी उत्तराखंड की पहाड़ियों में मिलती है जैसे कीड़ाजड़ी,शिलाजीत( जो कई बीमारियों को ठीक करने के काम आता है ) ,शेकवा, गंदराय, ब्रह्म कमल का फूल, भोजपत्र की छाल ,ऐसी ही न जाने कितनी जड़ी बूटियां हैं जो इन पहाड़ों में पग-पग पर मिलती है। बस उनकी पहचान कर जो युवा इस क्षेत्र में प्रशिक्षित हैं या नए युवाओं को प्रशिक्षित कर उनको प्रोत्साहित कर इस क्षेत्र में काम किया जा सकता है।कुछ फार्मासिटिकल कंपनियों और स्थानीय लोगों के बीच तालमेल बनाकर इन जड़ी बूटियों का दोहन किया जाए तो राजस्व तो बढ़ेगा ही बढ़ेगा और स्थानीय युवाओं को रोजगार भी मिलेगा। (मदन पैन्यूली उत्तरकाशी)

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