देहरादून पहाडोंकीगूँज
_हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर माँगा सख्त भू कानून। राज्य सरकार से कहा कि केंद्र से गुहार लगाकर पुर्वोत्तर के हिमालयी राज्यों को दिए गए भू संरक्षण की भांति उत्तराखंड को सम्मिलित करने की मांग करे राज्य सरकार_
देहरादून 28 अक्टूबर 21. उत्तराखंड में राजनीतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवम हिमालयी सरोकारों के लिये क्रियाशील विभिन्न संगठनों के नेतृत्व द्वारा बनाये गए संगठन *उत्तराखंड सिविल सोसाइटी* ने आज भू सुधार समिति के समक्ष एक सारगर्भित 07 पृष्ठ का ज्ञापन सौंपा है। उत्तराखंड सिविल सोसाइटी ने इस महत्वपूर्ण ज्ञापन में उत्तराखंड के लिये सख्त भू कानून के पक्ष में आधार देते हुए तीन प्रमुख बिंदुओं को समिति व सरकार के समक्ष रखा है जिनमें उत्तराखंड के अधिकांश जनपदों में उद्योग शून्यता के कारण जीवनयापन के लिये केवल कृषि भूमि पर आधारित होने को बताया है। साथ में ज्ञापन me राष्ट्रीय सुरक्षा, जनसंख्यिकी बदलाव (demographic change) व सभी हिमालयी प्रदेशों को प्राप्त भू संरक्षण कानून का जिक्र किया गया है।
*उत्तराखंड सिविल सोसाइटी* ने इस ज्ञापन मे मांग की है कि सरकार बिना समय गँवाये एक अध्यादेश लेकर आये और जो बदलाव उत्तराखंड सरकार ने सन 2018 मे उत्तरप्रदेश जमींदारी विनाश एवम भूमि सुधार अधिनियम 1950 की धारा 143(क) व धारा (ख) मे भूमि खरीद की सीमा समाप्त करने के लिये किये थे उन्हें निरस्त किया जाएं। *उत्तराखंड सिविल सोसाइटी* ने ज्ञापन मे मांग की है कि औद्योगिक निवेश के नाम पर बाहरी व्यक्तियों द्वारा खरीदी गई भूमि अथवा आवंठित भूमि पर यदि तीन वर्ष के भीतर मूल योजना के तहत उद्योग नहीं लगाएं गए हैं तो उस भूमि को अधिग्रहण करके सरकार मे निहित किया जाएं। *उत्तराखंड सिविल सोसाइटी* ने ज्ञापन के माध्यम से मांग की हैं कि भू कानून सुधार समिति सरकार को सिफारिश करें कि उत्तराखंड सरकार भारत सरकार को यह मांग प्रस्ताव भेजे कि उत्तराखंड को भी केंद्र सरकार द्वारा जैसे कि अन्य हिमालयी राज्यों को प्रदत्त भूमि संरक्षण अधिकार दिए गए हैँ वह उत्तराखंड को भी प्रदत्त किये जाएं। *उत्तराखंड सिविल सोसाइटी* ने भू सुधार समिति को यह सिफारिश देने के लिये कहा है कि उत्तराखंड सरकार हिमाचल प्रदेश काश्तकारी एवम भू सुधार अधिनियम 1972 कि धारा 118 की तर्ज पर उत्तराखंड मे कृषक भूमि को गैर कृषक को बेचने पर पाबंदी व 30 बरस तक प्रदेश से बाहर के व्यक्तियों के लिये भूमि खरीद के निषेध को लागू करें। *उत्तराखंड सिविल सोसाइटी* ने भूमि बंदोबस्ती व चकबंदी करने की मांग भी ज्ञापन मे उठाई हैं। मूल निवास पर *उत्तराखंड सिविल सोसाइटी* ने कहा है कि ऐतिहासिक बिंदुओं को दृष्टिगत व सामाजिक व सांस्कृतिक दृस्टि से चुंकि समूचा उत्तराखंड एक समान है अतः उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन एवम भूमि सुधार अधिनियम,1950 की धारा 157(ख) के तहत पूरे उत्तराखंड के पर्वतीय जनपदों को लाया जाएं।
*उत्तराखंड सिविल सोसाइटी के ज्ञापन के अन्य बिंदु*
इसके atपर्वतीय कृषि नीति के आभाव में, चकबंदी के आभाव में व पर्वतीय कृषि नीति में आधुनिक उपकरण आदि हेतु शोध व उपलब्धता ना होने के कारण वहाँ पर अधिक श्रम, अधिक समय एवम अधिक साधन लगता है। ऊपर से जंगली जानवर, अतिवृष्टि, औलावृष्टि, भुस्खलन से बहुत नुकसान होता है। इन कारणों से परेशान होकर पलायन होता जा रहा है। पलायन करता जा रहा उत्तराखंडी समाज आर्थिक रुप में उठ नहीं पा रहा है क्योंकि उसे दोहरी जिम्मेदारी – घर-गांव की व स्वयं के प्रवास की उठानी होती हैं। इससे आर्थिकी का बड़ा बोझ व उसके विकास में बाधा बनी रहती है। अतः सरकार को चाहिए कि सख्त भू कानून के नियमन को निर्मित करते हुए एवम चकबंदी व भूमि बंदोबस्ती को पूर्ण करके उनके भीतर विश्वास को जागृत करें। ताकि पलायन जैसी समस्या से भी उत्तराखंड को छुटकारा मिल सके। उत्तराखंड सिविल सोसाइटी के ज्ञापन में सख्त भू कानून के लिये राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रश्न को भी आधार बनाया हैं। इसमें सन 1802-03 में नेपाल की ओर से आक्रमण, 1962 को चीन की ओर से आक्रमण, आईएसआई जैसी संस्थाओ के द्वारा अतिवादी, चरमपंथी संगठनों को प्रवेश कराने के षड्यंत्र, चीन की सेना टुकड़ियों का अक्सर बाडाहोती आदि क्षेत्रो में घुस आना आदि का उदाहरण देते हुए कहा हैं कि यह बहुत जरूरी हैं कि उत्तराखंड के गांव आबाद व हरे भरे रहे ताकि भारत के लिये वह एक सुरक्षित दिवार बनकर काम करती रहे। उत्तराखंड सिविल सोसाइटी ने सरकार को याद दिलाया हैं कि सन 1962 के युद्धकाल के समय कैसे एसएसबी (सीमा सुरक्षा बल) और भारतीय सेना उत्तराखंड के युवक युवतियों को राइफल चलाने आदि का प्रशिक्षण सिर्फ इसलिए देती थी कि भारत की अखंडता सुरक्षित बनी रहे। उत्तराखंड सिविल सोसाइटी ने पुछा हैं कि इतिहास के इन बिंदुओं को दृश्टिगत जरूरी हैं कि नीतियाँ उत्तराखंड और राष्ट्र की इन जरूरत को देखते हुए बनाई जाएं जिसमें उत्तराखण्ड हेतु सख्त भू कानून प्रमुख स्थान रखता हैं। इस आधार को प्रस्तुत करते हुए *उत्तराखंड सिविल सोसाइटी* ने प्रश्न किया हैं कि *जब लद्दाख, कश्मीर, हिमाचल प्रदेश एवम भारत के सभी पुर्वोत्तर हिमालयी प्रदेशों में सख्त भू कानून का संरक्षण प्राप्त हैं तो फिर उत्तराखंड के साथ सौतेला व्यवहार क्यूँ किया जा रहा हैं।
*उत्तराखंड सिविल सोसाइटी* का ज्ञापन प्रेषण करने वालों मे *’सैनिक शिरोमणि’ मनोज ध्यानी के नेतृत्व मे प्रवीण काशी, प्रभात कुमार, श्रीमती उमा गौड़ सिसोदिया व रविंद्र कुमार प्रधान* प्रमुख थे। यह ज्ञापन प्रभारी सचिव श्री देवानंद शर्मा को उत्तराखण्ड राजस्व परिषद के कार्यलय मे दिया गया व उस पर विस्तृत चर्चा भी वहाँ पर की गईं।