उत्तर प्रदेश की गोरखपुर,और फूलपुर सहित बिहार की अररिया लोकसभा,और जहानाबाद,भगुआ विधान सभा की कल मतगणना के साथ चुनाव परिणामो के साथ बीजेपी की हार पर हर तरफ हल्ला और बहस जारी है,कांग्रेस,सपा,बसपा,राजद समेत विपक्ष के कई दल बीजेपी की केन्द्र में मौजूद नरेन्द्र मोदी सरकार,यूपी की योगी सरकार और बिहार में नीतीश सरकार पर कई तरह के निशाने साध रहे हैं, और साधे भी क्यों न उन्हें 2019 आम चुनाव से लगभग एक वर्ष पहले हुए उपचुनाव में जीत जो मिली है।सपा ,बसपा के बेमेल गठजोड़ के बाद बीजेपी की हार से सपा,बसपा से अधिक कांग्रेस खुश दिख रही है जो मुझे समझ नही आ रहा है।कांग्रेस को इस चुनावी परिणाम से और अधिक मंथन की जरूरत है क्योंकि इन परिणामो ने आम चुनाव से पहले राजग के खिलाफ होने वाले महागठबंधन में नेतृत्व को नया विकल्प भी दिया है,कांग्रेस अध्य्क्ष राहुल गाँधी जी के अलावा,सपा अध्य्क्ष अखिलेश यादव जी,बसपा अध्य्क्ष सुश्री मायावती जी और राजद के तेजश्वी यादव जी भी महागठबन्धन होने की सूरत में नेतृत्व के लिए विकल्प के तौर पर उभरे है,इन सभी नेताओं में ज्यादातर युवा है मतलब साफ है कि कांग्रेस अध्य्क्ष यदि अपने को युवा कहकर नेतृत्व करने की बात करते हैं तो अखिलेश यादव ,तेजश्वी यादव उनकी काट के लिए तैयार है,अन्य स्थिति में ममता बनर्जी,हाल ही में राजग से अलग हुए चन्द्रबाबू नायडू,उद्धव ठाकरे,शरद पवार ,और यदि आम आदमी पार्टी भी महागठबन्धन में शामिल हो जाये तो दिल्ली सीएम अरविन्द केजरीवाल जी भी महागठबन्धन में पीएम बनने के सपने को लेकर नेतृत्व को तैयार होंगे,तो कहा जा सकता है कल के उपचुनाव नतीजों से कांग्रेस को अधिक खुश न होकर अपने कैडर को बिखरने से रोककर एकजुट करने की जरूरत है।
अब बात करता हूँ कल आये उपचुनाव के परिणामो की ,अन्य लोगों की तरह मुझे भी नतीजों ने चौंका दिया,अधिकतर लोंगो की तरह मैं भी यूपी में बीजेपी को ही जीता हुआ मान रहा था,उसका प्रमुख कारण यूपी की जिन सीटों पर चुनाव हो रहा था उनसे क्रमशः गोरखपुर,फूलपुर से प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी,और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य जी साँसद थे,और माना जा रहा था प्रदेश के प्रमुखों की सीट बीजेपी बड़ी आसानी से जीत जायेगी, लेकिन यही लोकतन्त्र की खूबी है कि यहाँ पूर्वाभास कई बार धरे रह जाते हैं और परिणाम चौंका देते है।कल भी गोरखपुर से सपा के प्रवीण निषाद जी ने बीजेपी के क्षेत्रीय इकाई के अध्य्क्ष उपेंद्र दत्त शुक्ला जी को 21 हजार से अधिक वोटों से हराकर 1991 से लगातार बीजेपी की इस सीट को जीतकर एक नया इतिहास लिख डाला,साथ ही गोरक्षधाम मन्दिर से बाहर इस सीट को लाने में सपा,बसपा को कामयाबी हासिल हुई,अब जरा फूलपुर की बात करता हूँ बड़े बड़े वीवीआईपी लोगों की सीट रही फूलपुर को पहली बार बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्य्क्ष केशव प्रसाद मौर्य जी ने 2014 में बड़े अंतर से जीता था,जिसके बाद उनका राजनितिक कद बढ़ता गया और विधानसभा चुनाव में मिली जबरदस्त जित के बाद यूपी की सत्ता मिलते ही उन्हें उपमुख्यमंत्री बना दिया गया,उनके लोकसभा से इस्तीफे के बाद रिक्त हुई सीट पर उपचुनाव में बीजेपी ने कौशलेंद्र पटेल को उतारा, जिन्हें कल आये नतीजों में सपा बसपा के संयुक्त उम्मीदवार नागेंद्र पटेल ने 60 हजार वोटों के लगभग करारी शिकस्त दी।
अब ये बात उठना लाजमी है कि 2014 में जो सीटें बीजेपी ने लाखों के अंतर से जीती थी वही सीट हारी कैसे? और ये सीटें किसी अन्य नेता की नही बल्कि यूपी के सीएम और डिप्टी सीएम की सीटें है,मोटे तौर पर यूपी में हार की जो बड़ी वजह मुझे समझ आयी उनमे प्रमुख बीजेपी का अति आत्म विश्वास ,कार्यकर्ताओं के अंदर गुटबाजी,स्थानीय मुद्दों और समस्याओं पर फोकस न रहकर राष्ट्रीय मुद्दों को प्रमुखता देना,बोर्ड परीक्षाओं में सख्ती से लाखों छात्रों के परीक्षा छोड़ने के बाद उनके परिवार वालो की नाराजगी,बीआरडी मेडिकल कॉलेज के बच्चों की मौत का मामला,प्रदेश संगठन का ये मानना की जीत निश्चित है ,प्रत्याशी चयन,सपा बसपा के वोटों का एकमुश्त सपा प्रत्याशी को जाना,कम मत्तदान होना, शहरी क्षेत्रों में बीजेपी के परम्परागत वोटरों का बूथ के प्रति उदासीनता,सपा,बसपा,निषाद आदि पार्टियों के साथ साथ पिछड़े वोटों का सपा के पक्ष में पड़ना,आदि बातें बीजेपी की हार की बड़ी वजह समझी जा सकती है। फूलपुर को तो बीजेपी की पारंपरिक सीट नही माना जाता है बल्कि फूलपुर तो बीजेपी को 2014 में बोनस जैसे मिला था क्योंकि बीजेपी पहली बार वहाँ जीती थी,लेकिन गोरखपुर की हार से बीजेपी सहित कई राजनितिक पंडित भी हैरान है,असल में गोरखपुर बीजेपी की जिताऊ सीट वर्षो से रही है,स्वयं योगी आदित्यनाथ यहाँ से लगातार 5 बार सांसद रहे है उनसे पूर्व उनके गुरु अवैधनाथ वहाँ से सांसद रहे है,और वर्तमान में योगी जी प्रदेश के सीएम है,उनके ही इस्तीफे से खाली हुई सीट पर बीजेपी का हारना बीजेपी सहित उनके लिए कई प्रश्न जरूर खड़े करता है।
कल के उपचुनाव परिणाम ने जहाँ बीजेपी को झटका दिया है वहीँ सपा,बसपा और राजद को कुछ दिनों के लिए एक संजीवनी जरूर दे गया है,अब देखना ये होगा कि सपा बसपा के बुआ भतीजे के बीच का ये बेमेल कब तक जारी रहता है और यदि ये गठबंधन वास्तव में 2019 के लिए बनता है तो इसकी अगवाई कौन करेगा? बुआ या भतीजा,और असली परेशानी 2019 में विपक्ष और राहुल गांधी जी के लिए यहीं से शुरू होती है, पीएम नरेन्द्र मोदी जी के खिलाफ होने वाली एकजुटता का आखिर नेतृव कौन करेगा,यही विपक्ष को विखेर सकता है।
बिहार उपचुनाव में मोटे तौर पर मुझे सहानुभूति की लहर दिखी अररिया में राजद ने लालू यादव के जेल जाने सहित निर्वाचित सांसद मोहमद सरफ़राज़ के दिवंगत सांसद पिता की सहानुभूति लेकर, वोटो को अपने पक्ष में करने में राजद कामयाब हुआ,झजुआ में जरूर बीजेपी की जीत ने राजग को मुस्कुराने का मौका दिया,लेकिन यहाँ भी राजग में एकजुटता की कमी और उपचुनाव को गम्भीरता से न लेने की कमी दिखाई दी।
यूपी के उपचुनाव परिणाम ने प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ जी के कद को जरूर कम किया है,अभी तक पूरे देश में जो प्रसिद्धि और लोकप्रियता उनकी बरकरार थी गोरखपुर हारने से विपक्षी दलों सहित पार्टी के अंदर भी उनके ऊपर जरूर ऊँगली उठने लगी है,कई लोग इसे योगी आदित्यनाथ के खिलाफ बीजेपी के कई नेताओं की साजिश बताने लगे हैं, क्योंकि बीजेपी और देश में राजनीती के दो बड़े नाम सर्वाधिक लोकप्रिय है एक पीएम मोदी तो दूसरा यूपी सीएम योगी,कई लोग युवा योगी जी को अभी से 2024 या उसके बाद बाद का पीएम बताना शुरू कर चुके हैं, ऐसे में उन्ही के मठ,क्षेत्र में उनका हारना कई प्रश्न जरूर पैदा करता है,बहरहाल जो जीता वही सिकन्दर होता है,आज की सच्चाई ये है कि सपा के लोकसभा में 2 सांसद बढ़ गए तो बीजेपी के 2 घट गये है,सपा की जीत के साथ सपा,बसपा को यूपी में एक नई ऊर्जा और शक्ति मिली है तो बीजेपी को अपनी हार के मंथन का समय मिला है,वैसे कई लोग कह रहे हैं बीजेपी के लिए उपचुनाव हारना शुभ होता है वो जब जब चुनाव हारी उसके बाद जरूर बड़ा ही चुनाव बड़े अंतर से जीती है।बीजेपी जरूर जीत जाये शायद कर्नाटक अगला मिशन है पर योगी आदित्यनाथ जी को गोरखपुर की हार ने जरूर अंदर तक व्यथित किया होगा,अंत में उपचुनाव में जीते हुए सांसदों विधायकों को बधाई देते हुए मैं हारने वालो को भी मायूस न होकर हार के कारणों पर मंथन के साथ एक नए सिरे से पहल करनी होगी, जीते हो या हारे हुए हो ,ये कोई न भूलें 2019 अधिक दूर नही।
चन्द्रशेखर पैन्यूली