परम्परा हुई पुनरुज्जीवित, 235वर्ष बाद ज्योतिष्पीठ के शङ्कराचार्य के सान्निध्य में भगवान बदरीविशाल का कपाट बन्द हुआ*
19 नवम्बर 2022, बदरीनाथ पहाडोंकीगूँज
आज मध्याह्न 3:20 बजे विधि-विधान के साथ समस्त परम्पराओं का परिपालन करते हुए भगवान के कपाट शीतकाल के लिए बन्द हुए ।
ज्योतिष्पीठ के इतिहास में लंबे समय के बाद पहली बार पीठ के शंकराचार्य के रूप में स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज ने आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित परंपराओं का निर्वहन करते हुए बदरीनाथ मंदिर के कपाट बंद होने के अवसर पर अपनी गरिमामय उपस्थिति दर्ज की किए । पूज्यपाद शंकराचार्य जी महाराज के सान्निध्य में सभी कपाट बन्द की विधि सम्पन्न हुई ।
उल्लेखनीय है कि सन् 1776 में किन्ही कारणों से ज्योतिष्पीठ आचार्य विहीन हो गई थी , उसके बाद से यह परंपरा टूट गई थी । लेकिन पूर्वाचार्यों की कृपा से वर्तमान ज्योतिष्पीठ के 46वें शंकराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानंदः सरस्वती की महाराज ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य पर अभिषिक्त होने के बाद एक बार फिर से आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित परंपरा प्रारंभ हुई है। इसको लेकर सनातन धर्मावलंबियों में खासा उत्साह और खुशी है ।
इस अवसर पर हजारों की संख्या में भक्तगण उपस्थित रहे ।