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कल उत्तराखंड के माननियों का होगा दिल्ली में सम्मान जानिए जिम्मेदारी निभाना से बढेगा देश मान

Pahado Ki Goonj

 

नई दिली, पर्वतीय लोकविकास समिति द्वारा  कल 09 अगस्त को नई दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में  उत्तराखंड के मा सांसद  एवं प्रदेश  बीजेपी के नेताओं का  सम्मान किया जा रहा है इस सम्मान समारोह से प्रदेश के विकास में एक जुटता होने  वाले आयोजन हेतु समारोह में मुख्य अथिति मा डॉ वीरेंद्र कुमार  सामजिक न्याय मंत्री  है, प्रदेश एवं देश का विकास के लिए प्रधान मंत्री मोदी जी  के  द्वारा किये जारहे कार्यक्रमो को आगे बढ़ाना है  इस सराहनीय  आयोजन  में मुख्य अथिति मा केंद्रीय सामजिक न्याय मंत्री, जी मा,राज्यसभा सांसद एवं उत्तराखंड बीजेपी अध्यक्ष महेन्द्र भट्ट, मिडिया राष्ट्रीय प्रवक्ता सांसद अनिल बलोनी, सांसद  टिहरी गढ़वाल श्रीमती राज्य लक्ष्मी शाह,मा,केंद्रीय मंत्री अजय टमटा,मा सांसद हरिद्वार पूर्व मुख्य मंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, सांसद एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री अजय भट्ट, मा कोषाध्यक्ष एवं राज्य सभा सासंद नरेश बंसल, डॉ कल्पना सैनी विशिष्ट अतिथि दुष्यंत कुमार गौतम, प्रभारी उत्तराखंड, प्रदेश महामंत्री आदित्य कोठारी और नई दिल्ली की सांसद सुश्री बांसुरी स्वराज को कार्यक्रम में बुलावा देकर गया कर्यक्रम में उपस्थित होने का आग्रह किया।

 मा सुश्री बांसुरी स्वराज ने समारोह उपस्थित होने की सहमति दी और पूरे सहयोग का विश्वास दिलाया। संयोजक पैन्यूली ने कहा कि हम उनके आभारी हैं इस अवसर पर 
अध्यक्ष विजय सती, महासचिव सूर्य प्रकाश सेमवाल,कोषाध्यक्ष संजय तड़ियाल, मीडिया सचिव मुरार सिंह कंडारी और आयोजन समिति की कार्यकारिणी सदस्य श्रीमती मंजू बिष्ट जी थे.. ! और सांसदों से संपर्क प्रक्रिया पूरी कर सभी उत्तराखंड वासियों एवं शुभचिंतकों से दिनांक 9 जुलाई 2024 को समय से पहुंचने का CA राजेश्वर पैन्यूली
संयोजक- सांसद अभिनंदन आयोजन समिति ने अनुरोध किया है.

देश के लोगों को माहमारी से बचाने के और युवाओं को रोजगार देने के लिए  राष्ट्रपति  ऑफिस से  पेटेंट होरखी   2011 लंबित फाइल को बाहर निकाल ने से लाखों करोड़ की आय भारत सरकार की जहाँ होंगी वहीं  करोड़ों को रोजगार मिलने के साथ साथ अर्थव्यवस्था एक पर आएगी 🌹

[02/08, 12:02 pm] Virsnsari: साइंटिफिक-एनालिसिस

लोकतंत्र मांगे मीडिया का संवैधानिक चेहरा

कार्यपालिका का खेला “हेट-स्पीच” की जननी संसद, चौकीदार न्यायपालिका और मीडिया पोषक

हेट-स्पीच यानि हिन्दी में घृणित या नफरती भाषण होता हैं और कानून के हिसाब से कौनसे शब्द कब इसके दायरे में आते हैं या नहीं उसकी कोई एक निश्चित परिभाषा नहीं हैं | सड़कों एवं सोशियल मीडिया में जिधर लोगों का ट्रैंड बनाया जाता हैं उसी करवट ऊंट को बैठा दिया जाता हैं | यहां पर भी कोई व्यवस्था या सिस्टम नहीं हैं जिससे सही रूप से पता चल सके कि ट्रैंड कौनसी दिशा में बना हैं बस यहाँ ज्यादा मीडिया के संगठन जिस दिशा में लग पडते हैं या लगा दिये जाते हैं वो ही हेट-स्पीच के दायरे में चला जाता हैं या बाहर निकल जाता हैं |

खेमेबाजी वाले आज के राजनैतिक घालमेल ने जिस तरह भीडतंत्र को उकेरा हैं उससे भविष्य की लकीरें बनने लगी हैं जो बता रही हैं कि आने वाले समय में न्यायाधीशों के फैसलों को भी हेट-स्पीच का जामा पहना दिया जायेगा | वैसे भी आजकल बहुतायत मामलों में न्यायपालिका सजा देकर व्यवस्था को विघटन से रोकने का पथ प्रदर्शित नहीं करती बल्कि लम्बी चौडी सिर्फ जुबानी कठोर टिप्पणी कर समय की लम्बी यात्रा पर निकल पडती हैं |

प्रधानमंत्री सदन के नेता के रूप में सभी सांसदों को पुराने संसद-भवन यानि संविधान-सदन से नये संसद-भवन में ले गये और राज्य सभा व लोकसभा के अध्यक्षों को पीछले दरवाजों से आना पडा जबकि नेतृत्व व संविधान के दायरे में सभी को रखने की जिम्मेदारी इनकी हैं | संविधान की नई प्रतियां छपवाकर सभी सांसदों को पकडाई गई परन्तु समय के साथ जो संसोधन हुये उन्हें छोड़ कर सभी की फसलियों में पानी भरकर छाती फुलाई गई कि अंग्रेजों से लड़कर इन्होंने ही देश को आजाद करवाया और असली लोकतंत्र ये ही अब लेकर आये हैं | जब पहली बार नये संसद-भवन में कामकाज शुरू हुआ तो छाती का पानी पेट के रास्ते मुंह से अपशब्दों के रूप में बाहर निकला तब सबको पता चल गया कि हेट-स्पीच की जननी का खिताब ये लोग अपने दिमाग में कीडे के रूप में छुपाकर साथ लाये हैं |

राज्यसभा के सभापति तो सिर्फ झण्डा फहराने के ख्यालों में रह गये और लोकसभा अध्यक्ष ने अपनी चेयर के माध्यम से देशवासीयों को जिन्होंने इन सभी सेवकों को करीबन 1200 करोड़ रूपये की नई संसद के रूप में सौगात अच्छे काम करने के लिए दी उन्हें धन्यवाद के रूप में गालियां लाईव टेलिकास्ट के माध्यम से उपहार में दे दी | यदि जनता पांच दिन का समय मांग 4 दिन में भाग जाने वाले कामचोर सेवकों के भरोसे नहीं रहती व इन पैसों को आपस में बांट लेती तो करीबन हर ईंसान की जेब में लगभग 8.50 करोड़ रूपये आ गये होते | गालियों का क्या वो तो किसी भी सिनेमाघर में जाकर सस्तें में सुन आते, वहां ऐसे-ऐसे धुरंधर आगये हैं जो समय-समय पर गालियों में स्टोरी मिलाकर अच्छे से परोस देते हैं | लोकसभा अध्यक्ष ने असंसदीय भाषा का टैग लगा रिकॉर्ड से हटाने का बोलकर हेट-स्पीच की जननी का रोल निभा दिया और लाईव टेलिकास्ट के चोर दरवाजे से हेट-स्पीच को बाहर निकाल देश की सड़कों पर खुल्ला छोड दिया |

मीडीया का कोई संवैधानिक चेहरा नहीं और चौथे खम्भें के रूप में कोई कानूनी जवाबदेही स्तम्भ नहीं यह तो सिर्फ सड़कों पर बिखरे टेढ़े-मेढ़े, नुकिले, चपटे व भौंडे पत्थर के टुकड़े हैं जिन्हें कोई भी साम, दाम, दण्ड, भेद के माध्यम से एक-एक पत्थर उठाकर फेंकता रहता हैं | इसी का फायदा उठाकर संसद अपने विशेषाधिकार का चौला ओढ़ संविधान के नियमों व कानूनों से बच जाती हैं | संसद अपने रिकॉर्ड को डिलिट करे या रिकॉर्ड में रखें यह उसके विशेषाधिकार में आता हैं परन्तु लाईव-टेलिकास्ट के साथ यह मीडिया के संवैधानिक अधिकार व दायरे में चला जाता हैं | इसी मर्यादा व नैतिकता पर चले तो अदालतें न्याय नहीं कर सकती क्योंकि हर जगह परिवार, समाज, जातिगत समूह, धर्म, सम्प्रदाय के विशेषाधिकार आड़े आ जायेंगे |

अब मीडिया के इसी संवैधानिक चेहरे के अभाव में सत्ता अंग्रेजों के फूट डालो राज करो के सिद्धांत पर चल रही हैं व सांसद के अपशब्दों को पार्टी, पक्ष-विपक्ष, जात-पात, धर्म-संप्रदाय में बांट रही हैं ताकि जनता यह न पूछे की संसद ने इन अपशब्दों पर क्या कानूनी कार्यवाही करी, राजनैतिक दल आपस मेंं अन्दर लडे़, मारे-पिटे जो करे परन्तु हैं तो एक ही थाली के चट्टे-बट्टे | ये ही सांसद लोग और इनके पार्टी सहयोगी अब मीडीया पर आकर आपस मेंं अलग-अलग दल व गुट में बंटकर दिखावटी खेल कर रहे हैं और एक-दूसरे का नाम लेकर देशवासीयों को उसने ऐसा कहां, इन्होंने पहले ऐसा कहां कहकर गालियां पर गालियां सुना रहे हैं |

न्यायपालिका तो हेट-स्पीच की चौकीदार बनी पड़ी हैं वो तो संसद का विशेषाधिकार बोलकर न तो वो अन्दर घुसकर अपने संवैधानिक कर्तव्य का पालन कर रही हैं और न किसी दूसरे को जाने देती हैं | जब एक बार लाईव टेलिकास्ट से सार्वजनिक हो गया तो कौनसा विशेषाधिकार बचता है | अदालतों में कई हेट-स्पीच के मामले चल रहे हैं परन्तु हर बार संसद या सरकार यह व्यवस्था करें, ये कमेटी बनाये, गाईडलाइन तय करे ऐसा बोलकर मीडिया के संवैधानिक चेहरे होने को टाल रही हैं | संसद यानि विधायिका का कार्य सिर्फ कानून बनाना हैं, कार्यपालिका यानि तथाकथित सरकार का काम सिर्फ व्यवस्था चलाना है, लोकतंत्र में किसी भी क्षेत्र में न्याय करना न्यायपालिका का काम हैं चाहे वो राष्ट्रपति-भवन ही क्यों ना हो यहि तो संविधान कहता हैं | संविधान की प्रति तो संसद-भवन के अन्दर रखी हैं इसलिए शायद न्यायाधीश उसको पढ़ नहीं पा रहे लगते हैं | इस वजह से आपका साइंटिफिक,-एनालिसिस शुरु से कहता आ रहा हैं कि संविधान की प्रति उच्चतम न्यायालय के सभागार में रहनी चाहिए |

मीडीया का संवैधानिक चेहरा होता तो वह इस पर एक सामुहिक रिपोर्ट बनाता व संवैधानिक रूप से सीधे न्यायपालिका या राष्ट्रपति को भेज कार्यवाही करने की कानूनी रूप से अनुशंसा कर देता | जमीनी सच्चाई तो यह हैं कि मीडिया के चन्द सम्पादक देश के लिए जान हथेली पर लेकर चलने वाले भारतीय सेना के अनुरोध पर एक छोटी सी रिपोर्ट बना दे तो उन्हें आम आदमी के अभिव्यक्ति के अधिकार के रूप में तुरन्त न्यायपालिका से शरण मांगनी पडती हैं | यह कड़वा सच हैं लोकतंत्र के स्तम्भ मीडिया का | राष्ट्रपति को जाने दो वो तो 400 कमरों के आलीशान महलनुमा भवन के चकाचौंध में मग्न हैं उन्हें मीडिया के संवैधानिक चेहरे के अभाव में अपनी संवैधानिक कुर्सी के लंगडेपन का दर्द तक महसूस नहीं हो रहा तो बाहर क्या हो रहा हैं व जनता को अपशब्द क्यों सुनने पड़ रहे है उससे उनके कान पर कौनसी जू रेंग जायेगी |

शैलेन्द्र कुमार बिराणी
युवा वैज्ञानिक
[02/08, 12:02 pm] Virsnsari: https://ukpkg.com/46107-2there-is-tragedy-tragedy-tragedy-in-constitutional-institutions/

संविधान संरक्षक “राष्ट्रपति” निर्णय ले ….

संवैधानिक संस्थाओं में हो रहा हैं त्राहिमाम, त्राहिमाम, त्राहिमाम

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में सभी स्तम्भों सहित संस्थानों के अन्दर त्राहिमाम, त्राहिमाम, त्राहिमाम हो रहा हैं | इस त्राहिमाम का एक ही कारण हैं “मीडिया” |

मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहां जाता हैं परन्तु इसे कोई संवैधनिक चेहरा व जवाबदेही वाला कानूनी अधिकार नहीं दे रखा हैं | इस कारण कार्यपालिका सहित सभी सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं में भ्रम की स्थिति बन गई हैं उन्हें समझ में ही नहीं आ रहा हैं कि मीडिया की खबर सच हैं, झूठ हैं, अफवाह हैं, प्रोपेगंडा हैं या अपराधियों एवं निजी स्वार्थ के लिए धन द्वारा प्रयोजित हैं | यहां तक की मीडिया असली हैं या रजिस्टर्ड नाम का इस्तेमाल कर कोई अपने एजेंडे की बात खबर में परोस गया |

प्रत्येक संवैधानिक संस्था के प्रमुख सामने आकर सार्वजनिक रूप से बोल रहे हैं | इनमें से कुछ के बयान इस प्रकार हैं |

न्यायपालिका वाला स्तम्भ :- इसके प्रमुख न्यायाधीश एन वी रमण ने पद पर रहते हुए 23 जुलाई, 2022 को अपने एक दिन के झारखंड प्रवास के दौरान कहां – न्यायिक मुद्दों पर गलत सूचना और एजेंडा चलाना लोकतन्त्र के लिए हानिकारक साबित हो रहा हैं | मीडिया कंगारू अदालतें चला रहा हैं | इसके चलते कई बार अनुभवी न्यायाधीशों को भी सही और गलत का फैसला करना मुश्किल हो जाता हैं | यह लोकतंत्र को कमजोर कर व्यवस्था को नुकसान पहुंचा रहा हैं | इलेक्ट्रानिक मीडिया अपनी हद से आगे बढकर और जिम्मेदारी से पीछे हटकर हमारे लोकतन्त्र को दो कदम पीछे ले जा रहा हैं |

कार्यपालिका वाला स्तम्भ :- लोकतन्त्र कमजोर हो रहा हैं इसे मजबूत करने के लिए मीडिया को जवाबदेही वाले अधिकार देकर शक्तिशाली बनाना पडेंगा यह बात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 9-10 दिसम्बर, 2021 को अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाईडेन की अध्यक्षता में 110 देशों के प्रमुखों के साथ हुई वर्चुअल मीटिंग में कही | राज्य सरकारें भी समय – समय पर यह चिंता जताती रहती हैं |

अब तो देश के मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने 6 नवम्बर, 2022 को कहां कि फर्जी इंटरनेट मीडिया पोस्ट से स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष चुनाव प्रभावित होता हैं इसलिए यह चुनाव प्रबंधन के लिए बड़ी चुनौती बन गया हैं | चुनाव में आम लोगों के वोटों पर ही तो लोकतंत्र टीका हैं |

विधायिका वाला स्तम्भ :- संसद के दोनों सदन लोकसभा और राज्यसभा के माननीय सदस्य आये दिन सदन के अन्दर और बाहर मीडिया की बेरूखी के बारे में बोलते रहते हैं, यहां तक की कई सदस्य धरना भी दे चुके हैं | देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी ने तो न्यूज़ चैनलों की डिबेट में जाना ही छोड दिया हैं और अधिकांश राजनैतिक दलों के सदस्य चयनित मीडिया हाऊस के प्रोग्राम में जाने लगे हैं |

मीडिया वाला सिर्फ कहे जाना वाला स्तम्भ :- इसने तो “गोदी मीडिया” के नाम से एक नई पहचान व स्तम्भ खड़ा कर लिया हैं | इससे क्षेत्र से जुड़े लोग एक बार इसका उच्चारण करे बिना रह नहीं सकते चाहे अच्छाई करो या बुराई | राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित कई माननीय लोग सच्ची खबरों को रोकने व स्वतंत्रता की बात कर एक संस्थान से दूसरी संस्थान में जा रहे हैं |

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राष्ट्रपति के फैंसले से ही खत्म होगा हाहाकार :- देश में मचे इस हाहाकार को राष्ट्रपति संविधान के भाग 5 में अनुच्छेद 143 की शक्ति का इस्तेमाल करते हुए उच्चतम न्यायालय से परामर्श मांग उस के तत्वाधान में फैसला लेकर ही खत्म कर सकती हैं | इसके लिए सरकारी प्रक्रियाओं के तहत वो युवा वैज्ञानिक शैलेन्द्र कुमार बिराणी के असली एडी-सिरिंज की आविष्कार वाली फाईल से अन्तिम निर्णय लेने के लिए अधिकृत हो चुकी हैं ।

इसका प्रमाण के साथ दस्तावेज युवा वैज्ञानिक शैलेन्द्र कुमार बिराणी ने अपने पेटेन्टेट आविष्कार एडी-सिरिंज के आविष्कार वाली फाईल के साथ 19 अगस्त 2011 को राष्ट्रपति जो संविधान के संरक्षक भी हैं उन्हें भेजा (Letter Ref. No. P1/D/1908110208) | इस पर राष्ट्रपति सचिवालय की मोहर व आधिकारिक साईन मौजूद व
इस दस्तावेज से पूर्णतया स्पष्ट था कि भारतीय मीडिया को संवैधानिक चेहरे व कानूनी अधिकार से वंचित रखा गया हैं

| संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों की सिर्फ बातों व ख्यालों में लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ का झूठा तमगा लगा मीडियाकर्मियों के माध्यम से हर रोज आम जनता की पीड़ा, पुकार व समस्याओं को अखबारों की रद्दी व न्यूज चैनलों पर मनोरंजन का साधन बना रहे हैं

इस फैंसले के साथ सबसे बडें पद की संवैधानिक कुर्सी का लंगडापन भी दुर हो जायेगा ।

राष्ट्रपति फैसला लेने में जितना समय लगायेगी उतने समय तक लोकतंत्र की मालिक देश की जनता को हर रोज हेट स्पीच के रूप में टीवी, अखबारों और सोशियल मीडिया के माध्यम से गालियां / अपशब्द / धमकियां सुननी पडेंगी । यही संविधान की प्रस्तावना व आजादी का प्रतिफल बनकर रह जायेगा ।

[02/08, 12:02 pm] Virsnsari: 🔭 साइंटिफिक-एनालिसिस🔬

सच्चाई से भागना ही जमीन बना रहा हैं “हेट स्पीच” की

अच्छें दिनों के दौर में, आजादी के अमृत महोत्सव के शोर में हर तरफ एक ही बहार हैं …..ये दिल मांगे “हेट स्पीच” | जन सभाओं में, धर्म संसदों में, रैलियों में, टेलिवीजन की हर शाम होने वाली डिबेट में, सोशियल मीडिया और उसके लाईव प्रसारण के दौरान कोई भी अपशब्द, अमर्यादित, गैरकानूनी, भडकाऊ, निर्लज, हिंसा को प्रेरित करने वाला बयान दे देता हैं जो अंग्रेज़ी भाषा में “हेट स्पीच” की उपाधि पाकर पूरे देश में मीडिया पर सवार होकर दिन दुगुनी रात चौगुनी वृद्धि करता हुआ पूरे समाज को लोकतांत्रिक व्यवस्था की छांव में अपने आगोश में ले लेता हैं |

इस आगोश का नशा इतना गहरा हैं कि संविधान के संरक्षक राष्ट्रपति को नहीं बख्स्ता, उच्चतम न्यायालय में अलग-अलग इतने मामले पहुंच गये की हथौड़ा ठोक ठोक कर आवाज निकालनी पड रही हैं ताकि स्वीट स्पीच को बचाया जा सके | अदालत एक मामलें में दोषी की सजा तय नहीं करती तब तक वैसे ही चार नये खडे़ हो जाते हैं | इस पर आकडों के खिलाड़ी और सांख्यिकी के महारथी यह कहकर नशे के आगोश से जगाने की नाकाम कोशिश करते हैं कि पिछले एक वर्ष में हेट स्पीच के मामले 500% फिसदी बढ़े हैं |

हेट स्पीच के सभी मामलों में एक चीज कॉमन हैं वो हैं “मीडिया”, मीडिया चाहे इलेक्ट्रानिक हो, प्रिंटिग प्रेस वाली हो या सोशियल सभी एक दूसरे से दो कदम आगे नजर आते हैं | अदालतें फटकार लगा रही हैं, तथाकथित राजनैतिक दलों की सरकारें अपने-अपने नेताओं को आंचल में छिपा दूसरों पर बरसने के लिए स्वयं चुप रहकर अपने सिपहसालारों को मोर्चें पर तान रही हैं | ये महारथी अपने मुंह से पहले वाले हेट स्पीच से बड़ा स्पीच निकालकर उसको खत्म करने के लक्ष्य को पुरा कर खुद के हेट स्पीच को आगे खडा कर रहे हैं |

अदालतों को बिना किसे सजा सुनाकर नाराजगी मोल लिये फटकार लगाने का चांस पर चांस मील रहा हैं, वकीलों को नये-नये लडने के केस मील रहे हैं, हेट स्पीच देने वाले को फ्री में करोडों रूपये की पब्लिसिटी मील रही हैं, मीडिया को हर रोज दिखाने व कमाने का मसाला मील रहा हैं, सरकारों को अपने कामों की रिपोर्ट छिपाने का साधन मील रहा हैं |

इसमें मीडिया रिपोर्ट रात गई बात गई के सिद्धांत से सबको महफूस कर रही हैं | यदि ज्यादा से ज्यादा सजा हुई तो क्या? सिर्फ माफी मांगनी पडेगी वो तो हवा का रूख देखकर कभी भी मांग ली जायेगी | इसलिए यह बहार सबको हेट स्पीच देकर अपने आप को चमकाने का मौका दे रही हैं | इसमें जात-पात, धर्म, रहन-सहन, खाना-पीना, जीवन जीना माध्यम बन रहे हैं क्योंकि अभिव्यक्ति की आजादी मीडिया के प्रसारण, संकलन, कानूनी प्रक्रिया में समायोजन के अभाव में कब लक्ष्मण रेखा जुबानी हवाई ड्रोंनो से पार कर जाती हैं पता ही नहीं चलता हैं |

इस पूरे जुबानी जंग के खेल में मीडिया का कोई संवैधानिक चेहरा व जवाबदेही वाला कानूनी अधिकार नहीं होने से सब अपने अनुसार मीडिया का इस्तेमाल कर रहे हैं | इसमें कुर्सी पर बैठा इंसान भी पीछे नहीं हैं | मीडिया व्यवसाय से जुडें लोग भी क्या करें वो तो दिखाने का अपना धर्म निभा रहे हैं और व्यापार के सिद्धांत का पालन कर जीविका चला रहे हैं | इसमें संवैधानिक सुरक्षा व कवच न होने से जुबान के हवाई ड्रोन राख में पैंसो के बंडल लेकर गिर जाये तो उन्हें कौनसा परहेज हैं |

उच्चतम न्यायालय को हर मामले में से मीडिया की डोर पकड़ सबको एक बड़ी संवैधानिक पीठ की अदालत में भेजना पडेगा जहां सभी न्यायाधीश एक साथ बैठे हो अन्यथा पांच – सात जजों की बैंच निर्णय नहीं लेगी तब तक उनकी सामाजिक बाते और जिन्दगी को सोशियल मीडिया मे वायरल कर दी जायेगी |

मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना जाता हैं, बोला जाता हैं परन्तु सबकुछ जुबानी रहता हैं उसे संवैधानिक चेहरा व कानूनी जवाबदेही नहीं दी जाती, यह बात संविधान के संरक्षक राष्ट्रपति महोदय को भी 2011 से बता हैं | संविधान लिखा गया 1947 के बाद और लागू हुआ 1950 में और इलेक्ट्रानिक मीडिया, सोशियल मीडिया व सूचना क्रांति आई इसके बाद, इसलिए समय के चक्र में एक बहुत बड़ा समूह बहुत पतली डोर से संयमित व स्थीर नहीं रह पा रहा हैं इसलिए उसके हिलने डुलने से न चाहते हुए भी लोकतन्त्र में तोड़-फोड व नुकसान हो रहा हैं |

यह मामला सिर्फ़ एक कानून, कमेटी, नियामक संस्था बना देने से खत्म नहीं होगा अन्यथा सरकार संसद में कभी का बना देती | कानून बना देने से व्यवस्था नहीं बनती क्योंकि कानून बनाना ही खुद व्यवस्था का एक हिस्सा हैं और यह मामला व्यवस्था को मजबूत, पारदर्शी, स्पष्ट और विस्तृत करने का हैं | इसलिए आम जनता को अपने मोबाइल का कैमरा घुमाने पर न्यायपालिका के चेहरे सुप्रीमकोर्ट, कार्यपालिका के चेहरे प्रधानमंत्री कार्यालय और विधायिका के चेहरे संसद की तरह मीडिया या जनसंदेशिका का भी चेहरा दिखना चाहिए | यह सच तो सबको दिल व दिमाग से सबको मालूम हैं कि हर देशवासी पहले आम नागरिक हैं फिर नेता, मंत्री, न्यायाधीश, अधिकारी, इंजिनीयर, डाक्टर, वैज्ञानिक इत्यादि – इत्यादि हैं |

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[02/08, 12:02 pm] Virsnsari: सत्ता की साजिश, मीडिया को “लोकतंत्र” में अछूत रखकर उसे ही मिटाने का अपराधी बना दो

अमृतकाल में संवैधानिक पदों पर बैठे एवं कुर्सियों से चिपके महानुभवों में अमृत पीने की होड मची हैं और उससे पहले निकल रहे विष को मीडिया के माध्यम से जनता को सर्वेसर्वा एवं दयालू बता कर जबरदस्ती पीने को मजबूर कर रहे हैं | इसके लिए मीडिया को संवैधानिक चेहरा व जवाबदेही वाले कानूनी अधिकार से वंचित रखकर लोकतन्त्र के अछूतों की भांति व्यवहार कर रहे हैं | इन्हें मंचों से दूर व नीचे रखकर सिर्फ फोटो खिंचने व उनके गुणगान करने के लिए रखा हैं | इसके साथ एक-एक करके सत्ता में से बड़ा व्यक्ति सामने आ रहा हैं और संस्थानों की नाकामी एवं विघटन, जनता की बर्बादी, तकलीफ़ , पीड़ा, परेशानियों के लिए मीडिया को धो – धोकर कोष रहा हैं व लोकतंत्र की बर्बादी का मुख्य अपराधी बता रहा हैं |

कौनसा संवैधानिक चेहरा नहीं हैं?

लोकतंत्र के चार स्तम्भ माने जाते हैं, पहला विधायिका जिसका चेहरा संसद हैं, दुसरा कार्यपालिका जिसका चेहरा प्रधानमंत्री कार्यालय हैं, तीसरा न्यायपालिका जिसका चेहरा उच्चतम न्यायालय हैं व चौथा स्तम्भ पत्रकारिता जिसका कोई चेहरा नहीं हैं | इसे धन बल, बाहु बल, सत्ता के डर, बाजारवाद के स्वार्थ, नग्नता के प्रदर्शन के रूप में जो चाहे, जैसा चाहे इस्तेमाल करता हैं | देश के सभी राष्ट्रीय कार्यक्रमों में मंचों पर सिर्फ तीन स्तम्भों के प्रमुखों को जगह दी जाती हैं | मीडियाकर्मीयों को तो मंच के नीचे अछूतों की तरह दूर रखा जाता हैं | फोटो खिंचना, सवाल पूंछना, कार्यक्रम को कवर करना उनका काम हैं जिससे लोकतन्त्र को जीवित रखकर मजबूत बनाते हैं | सभी मीडियाकर्मी मंच पर नहीं जा सकते परन्तु उनका प्रतिनिधि या प्रमुख तो मंच पर रहना चाहिए |

संविधान के अन्दर नहीं लिखा हैं

सौ में से ननयानवें जवाबदेही लोग यहीं कहेंगे परन्तु इस सच को छुपा लेंगे कि संविधान लिखते समय टी.वी, इलेक्ट्रानिक मीडिया, इन्टरनेट, सोशियल मीडिया वजूद में नहीं थे | उस समय कुछ अखबार ही चलन में थे परन्तु उन्होंने देश को आजाद कराने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी | इस कारण इन्हें संविधान में उचित स्थान व गौरव दिया था परन्तु समय के साथ उसे अछूत में बदल दिया | हर व्यक्ति मीडिया को चौथा स्तम्भ कह कहकर उसे देशभक्ति के झाड़ पर चढ़ाता हैं और उसे लडाई के मैदान में, दुश्मनों के खेमें में, उग्र जनता के बीच, विपदाओं के समय आगे कर विषम परिस्थितियों में भेजता हैं और अपना काम निकाल लेता हैं | यदि चौथा स्तम्भ नहीं हैं तो इस झूठ पर रोक लगनी चाहिए, सरकारी कार्यक्रमों की फ्री कवरेज व रिपोटिंग पर बाध्यता खत्म होनी चाहिए |

जनता अपनी तकलीफ़, पीडा, समस्या, खुशी, कामयाबी व जीवन भर के अनुभव सबकुछ मीडिया को लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के झांसे में फंसकर बताती हैं ताकि उनकी बात ऊपर तक पहुंचे, उनके जीवन के अनुभव लोकतंत्र को मजबूत करे | इसमें कई लोग मीडिया के भी हैं जो लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के घमण्ड में जनता को डराकर अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं और उन्हें नकली देशभक्ति के नाम पर निचोड देते हैं | इसके साथ जवाबदेही वाले कानून के अभाव में सबकुछ अखबारों की रद्दी व टेलिवीजन पर मनोरंजन का साधन बनाकर खत्म कर दिया जाता हैं | सत्ता अपना खेल खेल जाती हैं और जनता की नजरों में दोषी यहीं बनते हैं | मामला यदि बदमाशों का हो तो इन्हें अपनी जान खोकर कीमत चुकानी पड़ती हैं |

अंधेरी नगरी चौपट राजा नहीं “राष्ट्रपति”

इन्हें सबकुछ पता हैं कि उनकी संवैधानिक कुर्सी लंगडी हैं उसके सिर्फ तीन पाये (न्यायपालिका, विधायिका, कार्यपालिका) हैं चौथा नहीं हैं | इसके पश्चात् भी रबर स्टैंम्प के ताज को सिर पर रख चाहिए-चाहिए की भाषा बोल रहे हैं जबकि युवा वैज्ञानिक शैलेन्द्र कुमार बिराणी की एडी-सिरिंज वाली आविष्कार की फाईल से वो अन्तिम निर्णय लेने के लिए 2011में ही कानून अधिकृत हो चुके हैं | यदि उन्हें कोई शंशय हैं तो संविधान के भाग 5 में अनुच्छेद 143 की शक्ति का इस्तेमाल करते हुए उच्चतम न्यायालय से परामर्श मांग ले | इसके लिए सिर्फ दिल की पीड़ा का रोना रोने से क्या होगा जो दवाई अपनी जेब में रखी पड़ी हैं उसे स्वयं लेनी ही पडेंगी |

प्रधानमंत्री तो चेहरा बन उकसाने में लगे हैं

प्रधानमंत्री तो झूठ के ब्रांड एम्बेसडर बन लोगों को बर्दास्त करते रहने की नसियत दे रहे हैं | सार्वजनिक मंचों पर चिल्ला चिल्लाकर भाईयों और बहनों की आत्मीयता से बता रहे हैं कि उन्हें 2-3 किलो गालीयां रोज दी जाती हैं परन्तु भगवान ने उन्हें ऐसी पाचक क्षमता दी हैं कि वे उसे पोषक तत्व में बदल देती हैं | इसका सीधा अभिप्राय यह हुआ कि मीडिया को संवैधानिक चेहरे से वंचित रखों ताकि वो इन गालीयों को रोक सके उल्टा मीडिया के माध्यम से जनता को रोज गालियां, अपशब्द एवं धमकियां सुनाओं और यदि वो विरोध करे तो उन्हें पचाने की नसियत दे दो | इसके साथ यदि गुस्सा उबाल मारने लगे तो उल्टा एक दो पत्रकारों या एंकरों को न रोकने का दोषी बता जेल में डाल दो |

मुख्य न्यायाधीश न्याय मत करो बस कोसो

सुप्रीमकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमणा रिटायरमेंट के समय इस कोसने की शैली से जनता के जज होने की पदवी पा गये | इन्होंने ही रांची मे पद पर रहते हुए सार्वजनिक मंच से मीडिया को कंगारू कोर्ट चलाने के लिए लताडा था | गलत सूचना व ऐजंडा चलाकर लोकतन्त्र को बर्बाद करने का दोषारोपण करा था व अनुभवी न्यायाधीशों को भी सच व गलत को पहचानने में मुश्किल होने की समस्याओं को निपटाने की जवाबदेही पर चादर ढक डाली थी | इसका अर्थ अदालत से न्याय हुआ तो उनका श्रेय और अन्याय हुआ तो सब मीडिया का करा धरा | यदि लोकतन्त्र की इतनी ही पड़ी हैं तो मीडिया को संवैधानिक चेहरा व कानूनी जवाबदेही वाला अधिकार दे द़ो | इसके सामने आते ही हेट स्पीच देने वाले दुम दबाकर भाग जायेंगे | उनके न्यायाधीशों को कुर्सी पर बैठ हर रोज नये-नये कथन हेट स्पीच हैं या नहीं जानने के लिए माथापच्ची नहीं करनी पडेंगी |

मुख्य चुनाव आयुक्त – मीडिया रोकती हैं स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराने में

लोकतंत्र में चुनाव ही उसकी जमीन हैं यदि वो ही स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष नहीं हैं तो फिर कैसा जनता के द्वारा, जनता से चुना व जनता का शासन | राजीव कुमार का कहना हैं कि फर्जी इंटरनेट मीडिया पोस्ट से ऐसा होता हैं | जब मीडिया का संवैधानिक चेहरा ही नहीं हैं तो चुनाव आयोग के कर्मचारी किस पर विश्वास करे वो पहले चुनाव का काम ताक पर रखकर मीडिया की खबरों का फेक चेक करते फिरे…. यदि उन्हें अपने पद की जवाबदेही पर ईमानदारी से कर्तव्यनिष्ठा हैं तो राष्ट्रपति को संविधान की शक्ति का इस्तेमाल जिसे टी एन शेषन ने करा था उसे करके कहें कि मीडिया के संवैधानिक चेहरे बिना स्वतन्त्र व निष्पक्ष चुनाव नहीं हो सकता जब तक यह स्थापित नहीं होता मैं चुनाव नहीं कराऊंगा |

विधायिका यानी कुर्सी की जगह व लाईन देखकर सच और गलत तय होने वाली जगह बन गई हैं | यहां पक्ष और विपक्ष अन्दर कुर्सी पर धरना दे, गेलेरी में धरना दे, सभापति की कुर्सी के पास जाकर चिल्लाये, बाहर आकर महात्मा गांधी के चरणों में बैठ धरना दे और टेलिवीजन की डिबेट में जाना छोड़ दे इसके साथ बड़ी-बड़ी बाते कर ले यह सब दिखावटी हैं | इन्होंने ही सदन में आपस में हाथापाई कर गाली गलोच निकाल देश के लोकतंत्र में हेट स्पीच को जन्म दिया था | राज्यसभा के सभापति यानि उपराष्ट्रपति व लोकसभा स्पीकर ने रिकोर्ड से डिलिट कर संसद की दीवारों में कैद कर न्याय की देवी की आंखों की पट्टी का फायदा उठा न्याय बताकर मामलो का रफा दफा करने की प्रथा शुरु करी थी | इसके साथ मीडिया को खुला छोड दिया की कोई नई गाली आये तो वो पुरानी सभी गालीयों को सुना सुनाकर बहस करता रहे कि यह पहले की तरह संसद की रिकोर्डिंग से हटाने लायक हैं या नहीं
[02/08, 12:02 pm] Virsnsari: राष्ट्रपति को “आत्महत्या” के मार्ग पर जाना तो जाये, परन्तु दुनिया को जिने दे |

मैं इसे हिन्दी भाषा में लिख रहा हूं ताकि मुझे मानव प्रजाति को बचाने के लिए अगले कदम (राष्ट्र की भौगोलिक सीमा रेखा व वैचारिक दायरा लांघना) उठाने के बाद “राष्ट्रद्रोही न समझा जाये |

– मीडिया को लोकतंत्र का अछूत बनाकर जीने को मजबूर कर रखा हैं |

– संवैधानिक कुर्सी (राष्ट्रपति) के लंगडेपन को सही न करके देशवासियों के सामाजिक जीवन में जहर घोला जा रहा हैं |

– ख़तरनाक वायरसों की श्रृंखला को जारी रख मानव प्रजाति के विनाश का द्वार खोल रखा हैं |

– विश्व में आर्थिक मंदी की सुगबुगाहट के मध्य भारत को बचाने की अग्रीम योजना को खूंटी पर लटका रखा हैं |

– पहली बार एक अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की संस्था के भारत में स्थापित होनै के मार्ग को रोककर “विश्वगुरु” के गौरव वाले शब्द को “हेट स्पीच” में परिवर्तित करा जा रहा है।

– भारत में करीबन नई 5000 कम्पनीया खुलने के प्रस्ताव को कागजी रद्दी बनाया जा रहा हैं |

– दूसरे देशों पर प्रतिबंध लगाने के विशेषाधिकार को भारत से वंचित रखा जा रहा हैं |

– पेट्रोलियम पदार्थों (पेट्रोल, डीजल, गैस) की मूल्यवृद्धि को स्थाई रखकर महंगाई को नियंत्रित करने की योजना को दबाकर देश की आम जनता को महंगाई डायन का निवाला बनाया जा रहा हैं

– स्कूल कालेजों से पढकर निकलने वाले हर छात्र लखपति व करोड़पति बनकर निकल सके उस पाईलेट प्रोजेक्ट को हर सरकारी टेबल की धूल चटवाई जा रही हैं |

– चीन व पाकिस्तान जैसे देशों को चुप बैठा देने के कूटनीतिक हथियार को जंग लगाई जा रही हैं व देश के वीर सैनिकों को मौंत के मुंह में धकेला जा रहा हैं |

– संवैधानिक संस्थाओं (कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायीका, रिज़र्व बैंक, चुनाव आयोग) में त्राहीमाम, त्राहीमाम, त्राहीमाम हो रहा हैं तब भी लोकतंत्र के संरक्षक होते हुए चुप्पी से भक्षक का काम किया जा रहा हैं |
[02/08, 12:02 pm] Virsnsari: साइंटिफिक-एनालिसिस

मीडिया व आजादी के लिए करो या मरो की स्थिति

नई-नई तकनीकों के लगातार आविष्कार और उनके दैनिक जीवन में आने से विकास तो हो रहा हैं परन्तु इनको नियंत्रित व परिस्थितियों के अनुकूल नियमित करने की व्यवस्था जो पुराने समय के मापदंडों पर टिकी हैं व समय के चक्र के अनुसार आगे गतीशील नहीं हो रही हैं जो बहुत बडा विक्षोभ लाने जा रही हैं |

वर्तमान में एपल विजन प्रो को लान्च किया गया | इसके साथ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के माध्यम से वीडियो को देखने का अलग ही ट्रैंड शुरु हुआ हैं | ट्वीटर प्रमुख एलन मस्क इसे आगे ले जाना चाहते हैं व फेसबुक जो अब मेटा हैं उसके प्रमुख मार्क जुकरबर्ग इसी तकनीक के माध्यम से एक अलग ही डिजटल वर्ल्ड की दुनिया बना रहे हैं | इसके लिए ही उन्होंने फेसबुक का नाम बदल मेटा करा था |

इस नये डिजीटल वर्ल्ड के अन्दर एपल विजन प्रो जैसे इलेक्ट्रोनिक उपकरण के माध्यम से समुद्र में बिछी इन्टरनेट की केबलों के रास्ते लोगों को डिजीटल वर्ल्ड की दुनिया में ले जाया जायेगा | यहां प्राइवेट कम्पनीयों के शौरूम होंगे जो अपने-अपने उत्पाद को अभी के बाजार शौरूम की भाँत्ति दिखाकर लोगों से आर्डर बुक कर लेंगे | इसके बाद सिर्फ उन्हें अपने नजदीकी गौदाम से माल की डिलेवरी देनी होगी | चीन हर देश में जमीन क्यों खरीद रहा हैं इसका रहस्य अब आप समझ चुके होंगे |

इसके साथ ही विज्ञापन क्षेत्र में प्रिंट मीडिया का वर्तमान दायरा सिकुड़कर 10 फिसदी से निचे चला जायेगा | इसका भी बडा हिस्सा बडे अखबार व पत्रिकाएं ले जायेगी और वे अन्य दुसरी आय से टिक जायेंगे परन्तु छोटे, मध्यम अखबार, आनलाईन न्यूज पोर्टल खत्म हो जायेंगे | इलेक्ट्रोनिक न्यूज चैनल 100% फिसदी विदेशी निवेश छुट के रास्ते अन्य देशों की अधीन कम्पनीयों की गोदी में बैठकर सरवाईव कर लेगी | वर्तमान में गोदी मीडिया के नाम से कुख्यात संगठनों को कोई फर्क नहीं पडेगा क्योंकि उनको पैसा तो मेहनत से नहीं बिकने वाले पिछले चोर दरवाजे से मीलता हैं |

सरकार सहयोग व विज्ञापन की बैशाखियों के सहारे यदि छोटे अखबार व न्यूज पोर्टल चलने लगे तो फिर लोगों को स्वतंत्र व निष्पक्ष मीडिया इतिहास की किताबों में ही पढने को मिलेगा | किसी ने हिम्मत व हौसला रखकर सत्य व निष्पक्ष खबरें छापना जारी रखा तो कानूनी डंडे और आर्थिक सुरक्षा के बिना कितने लम्बे समय तक चल पायेंगे यह आप हमसे ज्यादा बहतर समझते हैं |

डिजिटल वर्ल्ड में लोगों द्वारा खरीदे गये समान पर टैक्स व नियंत्रण तो कानूनी रूप से दूसरे देशों के लगेंगे जहां विदेशी कम्पनी का रजिस्टर्ड आफिस होगा | भारत सरकार ने पहले ही इन कम्पनीयों को UPI के माध्यम से पैसे लेन-देन की सुविधा का अलग प्लेटफार्म बनाकर काम करने की छुट दे रखी हैं | यहा भारत सरकार का दायरा सिर्फ UPI ट्रांजेक्शन तक सीमित हो जायेगा उसे सिर्फ और सिर्फ कम्पनी के गोदाम से लोगों के घर माल डिलेवरी की सर्विस पर लगने वाला टैक्स मिलेगा | चीन के सस्ते समान, अमेरिका की पूंजी, तकनीकों के विदेशी पेटेंट और WTO के कानूनी शिकंजे के सामने भारत कहां टिकता है सिर्फ हमारा बाजार खुल्ला व सबसे बडा हैं यह 56 इंच की छाती खोलकर सभी को आमंत्रित कर देने से क्या होगा | इससे पैसा खिचता चला जायेगा वो घुमकर दुबारा देश के लोगों की जेब में जाकर क्रय शक्ति नहीं बढायेगा |

इसके माध्यम से भारत का लोकल बाजार जो करोडों लोगों की आय का साधन है वो क्रैश हो जायेगा व कानूनी दायरे के रूप में माने तो विदेशी कंट्रोल होने के कारण आम आदमी को आजादी से हटाकर गुलामी के मार्ग पर धकेल दिये जायेंगे | इससे गिने चुने अमीर लोगों को जरूर फायदा होगा | भारतीय लोगों के अधिकांश व्यापार व धन्धे माल पर कमीशन लेकर आगे बढाने की चेन पर टिके हैं | जब यह चेन ही खत्म हो जायेगी तब क्या होगा |

हम वर्षों से कह रहे हैं व राष्ट्रपति के संज्ञान में 2011 के अंदर ही ला दिया था कि मीडिया को संवैधानिक चेहरा व कानूनी जवाबदेही वाला अधिकार दिया जाये ताकि सभी अखबार, न्यूज़ चैनल, मीडिया हाऊस व सोशियल मीडिया उसके अन्तर्गत भारत सरकार के साथ कानूनी रूप से जवाबदेही के रूप में जुडकर आर्थिक रुप से समाज में टिक सके | इसके साथ ही इस लूप पोल के माध्यम से विदेशी ताकतों द्वारा देश व उसके बाजार को कन्ट्रोल करके लोगों की आजादी छिनने का जो मार्ग बनाया जा रहा हैं उसे समय रहते कन्ट्रोल में कर भारत की कानून व्यवस्था के अन्दर लाया जा सके |

भारतीय लोकतंत्र के चार स्तम्भ माने जाते हैं | इसमें न्यायपालिका का चेहरा उच्चतम न्यायालय हैं, कार्यपालिका का चेहरा प्रधानमंत्री कार्यालय हैं, विधायिका का चेहरा संसद हैं व पत्रकारिता का कोई चेहरा नहीं हैं | इससे राष्ट्रपति की संवैधानिक कुर्सी लंगडी है | इसी चेहरे के अभाव में तकनीकों के माध्यम से अर्थव्यवस्था में घुसपैठ का मार्ग बनाया जा रहा हैं | अंग्रेज भारत मे पहले व्यापार करने ही आये थे | उन्होंने इसके माध्यम से अर्थव्यवस्था में घुस हिन्दुस्तान को गुलाम बनाया था |

शैलेन्द्र कुमार बिराणी
युवा वैज्ञानिक
[02/08, 12:02 pm] Virsnsari: साइंटिफिक – एनालिसिस

मीडिया के संवैधानिक चेहरे के अभाव में बिखर रहा हैं न्यायपालिका का स्तम्भ

एक भवन अपने चारों कोनों के पिल्लर / स्तम्भ पर टिका होता हैं | यदि इसमें से एक पिल्लर / स्तम्भ नहीं हो या हटा दिया जाये तो उसका दबाव अन्य तीन स्तम्भों पर पडता हैं और भवन को डामाडोल कर देता हैं | यही सच्चाई हमारे लोकतन्त्र सिस्टम की हैं | यहां भवन लोकतांत्रिक व्यवस्था का हैं जिसके शीर्ष पर संविधान संरक्षक राष्ट्रपति का भवन हैं और इसके तिनों कोनों में विधायीका, कार्यपालिका व न्यायपालिका का स्तम्भ हैं परन्तु चौथें कौने में कोई स्तम्भ नहीं हैं | जुबानी कहने, सुनने के लिए मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ हैं परन्तु इसका कोई संवैधानिक चेहरा नहीं हैं |

इस चौथें स्तम्भ के अभाव में सबसे ज्यादा दबाव न्यायपालिका वाले स्तम्भ पर आ रहा हैं, जिसके कारण वो जर्जर हो चुका हैं व अब धीरे – धीरे बिखराव की तरफ बढ़ रहा हैं | वर्तमान में न्यायपालिका का कॉलेजियम सिस्टम व उस पर विवाद और केन्द्रीय कानून मंत्री का कार्यपालिका की तरफ से बयान एवं उपराष्ट्रपति का देश के सभी राज्यों की विधानसभाओं के अध्यक्षों की मीटिंग के मच से जुबानी गर्जना व बरसना इसी बिखराव को जगजाहिर करता हैं |

इसके बाद उच्चतम न्यायालय द्वारा मंत्रियों के बयानों को कार्यपालिका का दिया बयान न मानना कागजी रूप से न्यायपालिका के बिखराव के क्षणीक कारण को रोकता हैं | इसके बाद उच्चतम न्यायालय द्वारा कॉलेजियम सिफारिश की मीटिंग के मिनिट की रिपोर्ट को सार्वजनिक करना स्तम्भ की मजबूती को बताना हैं व इस सच्चाई को अब सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को हिन्दीं व अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में भी देना जनता का समर्थन प्राप्त करना हैं | इसकी शुरूआत 26 जनवरी से 10 भाषाओं के साथ हो गई हैं |

अब न्यायिक तंत्र से जुड़ें रहे भूतपूर्व न्यायाधीशों, ऐडवोकेटों, सलाहकारों का मीडिया के माध्यम से सार्वजनिक बयानों द्वारा बिखराव के लिए बाहरी कारकों (सरकारी तन्त्र की खामियां, दबाव, ढुलमुल रवैया, समय की बर्बादी, संसाधनों का अभाव इत्यादि – इत्यादि) से लड़ना व प्रतिरोध दीवार का निर्माण करने का कार्य हो रहा हैं | 22 जनवरी, 2023 को आयोजित 135वें राष्ट्रीय आरटीआई जूम मीटिंग इसी दिशा की ओर ईंशारा करती हैं |

यहां पर मीडिया के लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ का सिर्फ खयाली व जुबानी होना और संवैधानिक चेहरे की रित्तिका की वजह से न्यायपालिका से जुड़ें लोगों द्वारा प्रस्तुत सभी तर्क, आधार, सच्चाई, कागजों की रद्दी, टेलीविजन पर मनोरंजन के साधन व सोशियल मीडिया में बिना किसी लक्ष्य के इधर-उधर फोरवर्ड, शेयर होकर ई-कचरे के रूप क्षीण होते जा रहे हैं |यह सभी तर्क, आधार, सच्चाई व अनुभव संगठित होकर व्यवस्था को विकसित व मजबूत नहीं कर पा रहे हैं ताकि बिमारी जड़ से ही खत्म हो जाये |

कार्यपालिका यानी तथाकथित सरकार ने आदेश जारी कर अपनी शक्ति और कानून बनाने के अधिकार से सम्बद्धित सरकारी कर्मचारियों को उसकी हर बात को मानने पर विवश कर दिया अन्यथा घर भेजने का द्वार बता अपने स्तम्भ को मजबूत बना लिया | इसके विपरीत न्यायिक तन्त्र के लोग पक्ष – विपक्ष में बंटकर राजनीति की भेद नीति के शिकार हो रहे हैं व न्यायपालिका के स्तम्भ को नया व मजबूत बनाने के नाम पर बिना किसी ठोस योजना व रूपरेखा के पुराने स्तम्भ को ही हथौड़ा पटक – पटक के तोड़ कर्तव्य पथ पर आवरा जानवरों की तरह आ रहे हैं |

मुख्य न्यायाधीश भी हमारे भेजे गये प्रमाण सहित ईमेल से दिल व दिमाग से समझ गये कि भारतीय मीडिया का संवैधानिक चेहरा नहीं हैं और कोई कानूनी जवाबदेही वाला अधिकार नहीं दे रखा हैं | इसलिए 22 जनवरी, 2023 को देश में पहली बार बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र एंड गोवा (बीसीएमसी) की तरफ से बने श्रेत्रीय एयर न्यूज़ ल व्यूज चैनल की शुरूआत करी | इसे धीरे – धीरे हर राज्य में लागू करा जायेगा | लाखों मामलों के अदालतों में पेंडिग होने के बावजूद भी न्यायपालिका से जुड़ें लोग खबरें बनाने व विज्ञापन लाने व बनाने का काम भी अतिरिक्त करेंगे | इससे विज्ञापन के लालच में न्याय के पैंसों में बिक जाने का खतरा मोल लेना पड़ रहा हैं | विधायीका व कार्यपालिका भी चुप रहकर इसे भी अपने साथ खड़े में गिरा रही हैं क्योंकि इन्होंनें ही अपने अपने क्षेत्रीय चैनलों को खोलने की शुरूआत करी चाहें उन्हें जनता का पैसा बर्बाद कर अधिकांश को बन्द करना पड़ा |

केन्द्रीय कानून मंत्री का बयान की वो चुनाव से चुनकर आते हैं जबकि न्यायपालिका में बिना चुनाव के आते हैं, अपनी संकुचित मानसिकता के कारण संविधान की भावना व सोच को न समझ पाने की रिपोर्ट को सार्वजनिक करना हैं | सामाजिक जीवन के हर कार्यक्षेत्र का बन्दा सर्वोच्य पद तक पहुंचे यह संविधान चाहता हैं क्योंकि सभी मनुष्य एक ही क्षेत्र में दक्ष नहीं होते हैं, सबकी अपनी अपनी रूचि, विशिष्टता एवं योग्यता होती हैं जिसके माध्यम से वो राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्य एवं निष्ठा को समर्पित करते हैं | न्यायिक कॉलेजियम सिस्टम में कार्यपालिका राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के माध्यम से अपना प्रतिनिधि घुसाना चाहती हैं तो व पहले अपने हर जांच कमेटियों में न्यायिक तन्त्र को घुसाकर आदर्श प्रस्तुत करे न कि रिटायर्ड न्यायाधीशों का मुखौटा लगा बैठ जाये | संसद व विधानसभाएं स्वयं न्यायिक फैसला सुना संविधान की मर्यादा को ताक पर रख देती हैं जिसका प्रतिफल इनके यहां से पैदा हुई हेट-स्पीच की बिमारी पूरे सिस्टम व समाज में फैल चुकी हैं के एक छोटे से उदाहरण से समझ सकते हैं |

यदि न्यायपालिका मीडिया के चौथे स्तम्भ को संवैधानिक चेहरा दिला दे जो कानूनन न्यायसंगत हैं तब लोकतंत्र के चारों स्तम्भों की थ्योरी परिभाषित व प्रायोगिक रूप से सत्यापित हो जायेगी | इससे लोकतंत्र मजबूत हो जायेगा और न्यायपालिका के स्तम्भ पर दबाव घट जायेगा परन्तु चक्र के रूप में आगे गतिमान समय के अनुरूप इसे अपने में बदलाव व परिवर्तन लाकर गतिशील बनना पड़ेगा जिसमें न्यायाधीशों की चयन प्रक्रिया भी आती हैं |

हम पहले ही संविधान के अनुसार देश को असली मालिक व असली सरकार आम जनता और मुख्य न्यायाधीश के संज्ञान में ला चुके हैं कि सभी हेट-स्पीच के मामलों में मीडिया के समाहित होने के आधार को लेकर एकत्रित कर उच्चतम न्यायालय के सभी न्यायाधीश सामुहिक सुनवाई करे व मीडिया को परिभाषित कर संवैधानिक चेहरे से उसे कानूनन जवाबदेही बनाये | यह संविधान के अनुसार अपने आप में सबसे बड़ी संविधान पीठ हैं और राष्ट्रपति के समान संविधान संरक्षक भी, यदि इसमें भी तारिख के नाम पर समय बर्बाद करा तो स्वार्थ, लालच, कालेधन व व्यक्तिवाद से नया पनपा गोदी मीडिया अदालतों के हर फैसले व बयानों को तोड़ मरोड़कर कर स्वाह कर देगा |

शैलेन्द्र कुमार बिराणी
[02/08, 12:02 pm] Virsnsari: साइंटिफिक-एनालिसिस

एक ईमानदार वकील चाहिए

महंगाई को लेकर देश का यही हैं हाल, बस एक ईमानदार वकील चाहिए |
महामहिम की नजरों में पहले भगवान सा वकील था, इसलिए एक ईमानदार वकील चाहिए |
लोग रैली नहीं रैला निकाल रहे हैं, उन्हें बस एक ईमानदार वकील चाहिए |
एक वकील आम्बेडकर को ईंसान से भगवान बना रहे हैं, क्या करे उनके जैसा ईमानदार वकील चाहिए |
महंगाई को लेकर देश का यही हैं हाल, बस एक ईमानदार वकील चाहिए |

हर चीज के भाव दुगुने से चौगुने हो रहे हैं, इसे अदालत को बताने के लिए एक वकील चाहिए |
मुख्य न्यायाधीश सार्वजनिक कार्यक्रमों में लोगों को, कानून व नियमों की सलाह बांट रहे हैं |
एक चिट्ठी व खबर पर स्वयं मामला लेने की प्रथा भूल, मुफ्त की सलाह से जनता के वकील होने का तमगा मांग रहे हैं |
महंगाई को लेकर देश का यही हैं हाल, बस एक ईमानदार वकील चाहिए |

सरकार दुगुने से चौगुने होते वस्तुओं के भाव को, विकास का गगनचुंबी झण्डा बता रही हैं |
दुनिया भर में चिल्ला-चिल्ला कर ढोल के ढोल फोड रही हैं, बस एक ईमानदार वकील चाहिए |

संसद का क्या कहना; अन्दर बैठे लोग अखबारों की प्रतियां लहरा-लहरा के अच्छे दिनों की हवा खा रहे हैं |
बचे लोग बाहर मुर्तियों की छांव में क्लेजे को ठंडक देकर, अपने पर चल रहे मामलों व छापों से ठंडक मांग रहे हैं।
महंगाई को लेकर देश का यही हैं हाल, बस एक ईमानदार वकील चाहिए |

ईमानदार मीडीया विज्ञापन पर विज्ञापन छाप रही हैं, बस एक ईमानदार वकील चाहिए |
चैनल वाले अपने एंकरों की लम्बी नाक व टेढी गर्दन से सूट-बूट वालों की छांव मांग रहे हैं |
पब्लिक वाले अपने-अपने चैनल बना, वस्तुओं के भावों के ग्राफ से झंडे की ऊंचाई माप रहे हैं |
गरीब अपनी-अपनी जान हथेली पर रख; रैली का रैला बना रही हैं, उसे बस दो वक्त की रोटी चाहिए |
महंगाई को लेकर देश का यही हैं हाल, बस एक ईमानदार वकील चाहिए |

कम्पनीयां महीनें के दिन घटा-घटा कर राग सुना रही हैं और समय से पहले पैसा मांग रही हैं |
जनता के सेवक आकडों को घटा-बढ़ा कर, न्याय की देवी की आंखों पर काली पट्टी बांध रहें हैं |
रिजर्व बैंक रेपो व रिवर्स रेपो रेट के पहियों से उबड़-खाबड़ वाली महंगाई दर की सड़क पर पलटी खा रही हैं |
बैंक लोगों के खातों का बैलेन्स देख, मीनीमम के नाम पर खाली पेट छोड़ जेब काट रही हैं |
महंगाई को लेकर देश का यही हैं हाल, बस एक ईमानदार वकील चाहिए |

पेट्रोल – डीजल – गैस की धार में सरकार को टैक्स नहीं आधे से ज्यादा हिस्सेदारी चाहिए |
इसे अदालत को बताने के लिए, बस एक ईमानदार वकील चाहिए |
आटे में नमक जितने टैक्स की संस्कृति वाली छांव में, 10% फिसदी से ज्यादा पर भ्रष्टाचार की कालीख वाली छांप चाहिए |
50% फिसदी वाली अदालत की रिजर्व रेखा के उल्लंघन को बताने के लिए, बस एक ईमानदार वकील चाहिए |

क्रूड आँयल के बास्केट में शेयर बाजार की चमक जैसी, हर रोज की धड़कन को स्थिर करने के लिए. … बस एक ईमानदार वकील चाहिए |
एक ही कुंए से सारा पानी निकाल लेनी की सरकारी जिद्द को बताने के लिए एक ईमानदार वकील चाहिए |
महंगाई को लेकर देश का यही हैं हाल, बस एक ईमानदार वकील चाहिए |

आम्बेडकर जैसे वकील को लाने गरीब, अपेक्षित, भूखे-प्यासे लोंग परिवार सहित ऊपर जा रहे हैं |
महामहिम को अपने आफिस में वर्षों से पडी फाईल को समझने के लिए, बस एक ईमानदार वकील चाहिए |
आम्बेडकर की जयन्ती का शौर सुन महामहिम फाईटर विमान से आसमान को चीर रही हैं, उन्हें तो बस एक ईमानदार वकील चाहिए |

लोगों को बस एक आँस महामहिम हवा-हवाई छोड़ धरा पर पैर रखेगी क्योंकि उन्हें तो महंगाई से मुक्ति व दो वक्त की रोटी चाहिए. … इसे बताने के लिए एक ईमानदार वकील चाहिए |
महंगाई को लेकर देश का यही हैं हाल, बस एक ईमानदार वकील चाहिए |

शैलेन्द्र कुमार बिराणी
युवा वैज्ञानिक
[02/08, 12:03 pm] Virsnsari: साइंटिफिक-एनालिसिस

भारतीय मीडीया को संवैधानिक चेहरा मिलने का लोकतांत्रिक तरिका…

जुबानी तौर पर सिर्फ बोले जाना वाला लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ मीडिया न तो धरातल पर मूर्तरूप से हैं और न इसकी कोई प्रक्रिया और व्यवस्था हैं जो लोकतंत्र को मजबूत करे व उसे समय के बढ़ते चक्र के साथ विघटन से बचाकर स्थाईत्व प्रदान करें | आपके साइंटिफिक-एनालिसिस द्वारा राष्ट्रपति को वर्ष 2011 में ही सांकेतिक रूप से उनके संवैधानिक पद की गरिमा को व्याखित करने के प्रारूप में यह सच सामने आ गया और दुनिया में पहली बार किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था के ग्राफिक्स रूप का उद्भव हो गया | इसके लिए प्रमाणित दस्तावेज हमारे आविष्कार को देश व दुनियाभर से मिले समर्थन के कागजों के रूप में महामहिम राष्ट्रपति तक पहुंचे | यह बात अब दिन दुगुनी और रात चौगुनी रफ्तार से हर मीडियाकर्मी और देश के नागरिकों तक पहुंच रही हैं |

अब बात आती हैं कि मीडीया को यह संवैधानिक चेहरा व जवाबदेही वाला कानूनी अधिकार मिलेगा कैसे? जो आंदोलनों, तोड़फोड़, सविनय अवज्ञा विरोध, भारत बंद, विरोध-प्रदर्शनों, अहिंसक पैदल मार्च आदि से जनता को परेशान किये बिना, किसी व्यक्ति आधारित सर्वेसर्वा राजनैतिक दल व किसी बड़े राजनैतिक दल के बड़े राजनेता के चरणों में लेटे बिना और पत्रकारिता क्षेत्र से जुड़े गिने-चुने व्यक्तियों को नेता बना या गरीब, कमजोर, निचले स्तर के पत्रकारों को बलि के बकरे के रूप में बलिदान कराये बिना वर्तमान में चल रही संवैधानिक प्रक्रिया के तहत शांति, सौहाद्र, एकता, भाईचारे और बुद्धिमता से पूरा हो जाये |

मीडीया का संवैधानिक चेहरा हर पत्रकार के लिए जरूरी हैं क्योंकि उसके पेशे के साथ सामाजिक रूप से आन-बान-शान और जीवन की सुरक्षा एवं स्थाईत्व से जुडा़ हैं | इसमें राष्ट्र निर्माण करने की भूमिका, आपराधिक एवं बाहुबली लोगों की सच्चाई उजागर करने पर उनसे सुरक्षा, कार्य के दौैरान कोई दुर्घटना व अप्रिय घटना हो जाने, जीवनपर्यंत कार्य के बाद पेंशन, असमय चले जाने पर परिवार को संरक्षण, सच्चाई, निष्ठा व ईमानदारी वाले कार्य को पहचान, सम्मान और पत्रकारिता के कार्यक्षेत्र में शीर्ष पद पर जाने तक की प्रक्रिया, सच सामने लाने पर फर्जी / गलत व परेशान और दबाव बनाने के लिए करी जाने वाली एफ.आई.आर. और अदालती मुकदमें, आर्थिक रूप से सहयोग/आश्ररा ताकि धनबल के आगे घुटने न टेकने पड़े, आजकल बिक चुके बिना अक्कल वालों के झूंड द्वारा सोशियल मीडिया में झूठी जानकारी, छेड़छाड़ व गढी हुई तस्वीरें व वायरल के माध्यम से मानसिक उत्पीड़न से बचाव इत्यादि-इत्यादि मामले व दृष्टिकोण हैं |

इतना सबकुछ होने के बाद भी पत्रकारों से ज्यादा लोकतंत्र को बिखराव, बर्बाद होने व स्थाईत्व के लिए मीडिया के संवैधानिक चेहरे की जरूरत ज्यादा हैं व व्यवस्था के विकेन्द्रीयकरण एवं आगे की दिशा में अग्रसर बनाये रखने के लिए जवाबदेही वाले कानूनी अधिकार को तुरन्त प्रभाव से देना अति आवश्यक है | हेट-स्पीच, अश्लीलता, फेंक-न्यूज, वायरल संदेश, झूठ के गुब्बार बनाकर ठगी, लूट-खसोट, भीडतंत्र बनाकर व फर्जी जनसमूह से माइंडवाश, व्यवसाहिकरण के जकड़न और बाजारवाद के फंदे, धनबल से गुलामीता, कानूनी प्रक्रिया के नाम पर टार्चर और वसूली, मान-मर्यादा व ईज्जत के नाम पर शारीरिक, लैंगिक शोषण और सामाजिक जीवन की बर्बादी जैसे कई हथकंडे बड़ी तेजी से पत्रकारिता व व्यवस्था को निगल रहे हैं |

पत्रकार लोग संगठित होकर अपना संवैधानिक चेहरा ले लेंगे यह मुश्किल लगता हैं क्योंकि गोदी मीडिया का भस्मासुर राजनैतिक रूप से इनमें घुस चुका हैं जो लालच, घृणा, चाटुकारिता, स्वार्थ, अहंकार, घमण्ड, श्रेत्र-विशेष, धार्मिक संकीर्णता व अब जातिवाद के जहर से लबरेज हैं | हमारी आविष्कार की फाईल प्रधानमंत्री कार्यालय से राष्ट्रपति के पास अंतिम निर्णय के लिए पहुंच चुकी हैं व कई मंत्रालयों की एक संकलित रिपोर्ट बन चुकी हैं इसलिए कार्यपालिका अब कुछ नहीं कर सकती | विधायिका यानि संसद में कानून बनने के बाद अंतिम स्वीकृति के लिए राष्ट्रपति के पास जाता हैं | यह मामला पहले ही राष्ट्रपति के पास पहुंच गया हैं इसलिए संसद कुछ नहीं कर सकती | यदि राष्ट्रपति इसे संसद के पास भेज मीडिया के संवैधानिक चेहरे का गठन व जवाबदेही कानूनी आधिकार देने का कानून बनाने को कहें तो अलग बात हैं | यदि सभी सांसदगण अलग प्रक्रिया प्रारम्भ सै शुरु कर दो तिहाई बहुमत से पास कर राष्ट्रपति को भेजे तो बात अलग हैं।

उच्चतम स्तर यानि न्यायपालिका सभी हेट-स्पीच के मामले में प्रचार प्रसार के माध्यम मीडिया व उसकी जानकारी में आ चुके संवैधानिक चेहरा न होने की सच्चाई को देखकर इस पर अलग से संविधान पीठ में सुनवाई कर राष्ट्रपति को मंजूरी के लिए भेज दे | यदि संवैधानिक पीठ में सभी 15 न्यायाधीश मौजूद हो तो इसे राष्ट्रपति भी नहीं बदल सकते व रोक सकते हैं | राष्ट्रपति हमारी विचाराधीन आविष्कार की फाईल पर अंतिम निर्णय के लिए अधिकृत होने के कारण स्वयं फैसला ले ले | यदि उन्हें शंशय हो या गलत परम्परा शुरु हो जाने का डर हो तो संविधान के भाग 5 में अनुच्छेद 143 की शक्ति का इस्तेमाल करते हुए उसे मुख्य न्यायाधीश को भेज सं वह पीठ के माध्यम से सलाह मांगकर फैसला सुना दे |

शैलेन्द्र कुमार बिराणी
युवा वैज्ञानिक
[02/08, 12:03 pm] Virsnsari: साइंटिफिक-एनालिसिस

एक “सच” के अभाव में पूरा लोकतन्त्र व संविधान फंसा पडा है |

भारतीय तिरंगे के चलायमान चक्र से समय का वह दौर चल रहा हैं जब लोकतन्त्र का स्तम्भ कहलाने वाली संवैधानिक संस्था न्यायपालिका का चेहरा उच्चतम न्यायालय कह रहा हैं कि चंडीगढ़ मेयर चुनाव में लोकतन्त्र की हत्या हुई | संविधान पीठ कह रही हैं कि इलेक्ट्राल वोट असंवैधानिक हैं। संविधान के जानकार व विशेषज्ञ कह रहे हैं कि संवैधानिक संस्थाओं का जो आपसी ढांचा बनाकर चेक व बैलेंस की जो संविधान निर्माताओं ने जो प्रक्रिया बनाई वो खत्म होने के कगार पर हैं या खत्म हो चुकी हैं ।

सार्वजनिक रूप से शिक्षित, बुद्धिजीवी व लोकतन्त्र में किसी न किसी पद पर कार्य करके स्वयं सच्चाई को परख चुके माननीय कह रहे हैं कि जब संवैधानिक संस्थाओं के प्रमुखों का चयन जब प्रधानमंत्री व कार्यपालिका के लोग ही करेंगे तो व उनके गलत फैसलों को रोकना तो दूर उस पर अंगुली भी कैसे उठायेंगे | सीबीआई प्रमुख के चयन में यह सौलह आना सच उजागर हो गया | चुनाव आयोग के प्रमुख के चयन में सबकुछ धरातल पर सामने आ गया | चयन प्रक्रिया में भारत के मुख्य न्यायाधीश को बाहर कर नये कानूनी रूप से सत्ताधारी दल या समूह के लोगों को ही चयनकर्ता कमेटी में बहुमत के रूप में रखने के प्रावधान से सबको बेईमानी की बदबू आने लग गई | अब लोकसभा चुनाव से पूर्व दो चुनाव आयुक्तों के चयन को लेकर मामला फिर उच्चतम न्यायालय, कार्यपालिका व विधायिका के मध्य ले देकर समय व जनता के मुंह के निवाले पर वसूले टैक्स के पैसे पानी में बहाकर वही आ गया, जहां से वो चला था |

इलेक्ट्रोल बॉन्ड के मामले में फिर वही सच्चाई धरातल पर निकलकर सामने आई कि भारत के सबसे बडे़ सरकारी भारतीय स्टेट बैंक के प्रमुख व निर्देशकों के चयन में कार्यपालिका, उसके प्रमुख प्रधानमंत्री व सत्ताधारी राजनैतिक दल ही प्रभावी हैं। उच्चतम न्यायालय व जहां तक की संविधान पीठ के आदेशों को नकार देंगे या टालमटोल कर ठंडे बस्ते में डालने की कोशिश करेंगे तो मलाई के रूप में सेवा विस्तार व कोई न कोई पद मिलेगा | यदि नहीं करेंगे तो हाथ से जीवका, चलने वाली नौकरी हाथ से जायेगी नहीं तो हालात ऐसे पैदा कर दिये जायेंगे कि समय से पहले रिटायरमेंट लेकर पारिवारिक मजबूरी के नाम पर घर बैठना पड़ेगा |

इसके विपरित न्यायपालिका की वो संवैधानिक पीठ जिसके सभी न्यायाधीश मीलकर एक फैसला देदे तो उसे संविधान संरक्षक राष्ट्रपति भी नहीं बदल सकते हैं व निरस्त कर सकते हैं क्योंकि उसे भी संविधान-संरक्षक का दर्जा संविधान ने दे रखा हैं । इसके फैसले को न मानने व टालने से होगा क्या सिर्फ़ फटकार ही लगेगी, कौनसी सजा मिलेगी और फटकार भी सुननी किसको हैं वो तो वकील सुनेगा |

इस डेढ होशियारी में कार्यपालिका या तथाकथित सरकार अपने लिए समय निकाल पतली गली से निकल लेती हैं फिर रात गई और बात गई वाला खेल चलता रहता हैं | यदि किसी बड़े सरकारी कर्मचारी को भी बली का बकरा बनाना पडे तो क्या फर्क पड़ता हैं, इनकी कमी थोडी हैं । इसके लिए पुरी जमात लाईन में खडी है किसे अपना परिवार और बच्चे प्यारे नहीं लगते |

इस सारी समस्या की मूल जड़ एक छुपाया गया या झूठ बनाकर देशवासीयों के दिल व दिमाग में घुसाया गया सच हैं जिसे आपका साइंटिफिक-एनालिसिस शुरू से बताता आ रहा हैं । न्यायपालिका को अंग्रेजी में ज्यूडिशरी कहते हैं। संसद यानि विधायिका को लेजिस्लेटिव कहते हैं और कार्यपालिका जिसके प्रमुख प्रधानमंत्री होते हैं उसे अंग्रेजी में एक्जिक्यूटिव कहते हैं परन्तु उसे गवर्मेंट यानि सरकार रटाकर, समझाकार व इस्तेमाल करके पूरे संविधान का गुड़-गोबर करके रखा हैं । भारत सरकार मतलब कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका व पत्रकारिता (जिसको चेहरा नहीं दे रखा हैं) को सामुहिक रूप से कहते हैं, जिसके प्रमुख राष्ट्रपति होते हैं न कि प्रधानमंत्री |

कार्यपालिका यानि अंग्रेजी में गवर्मेंट यह झूठ हजारों-लाखों बार बोलकर, छापकर, दिखाकर दिल व दिमाग में 200 वर्षों वाली गुलामी की अंग्रेजों वाली खिडकी से इस तरह घुसाया गया हैं कि संविधान की व्याख्या कर समझाने वाले उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश भी धोखा खा जाते हैं | इसका ज्वलंत उदाहरण रफाल विमान सौदा हैं जो फ्रांस सरकार (राष्ट्रपति प्रमुख होते हैं) व भारत की कार्यपालिका (प्रधानमंत्री प्रमुख होते हैं) के मध्य हुआ उसे सरकार से सरकार का समझौता कहकर बन्द लिफाफा इधर से उधर घुमाकर व रफाल पर तिलक व टायर के निचे निम्बु रखकर पुरा कर दिया |

शैलेन्द्र कुमार बिराणी
युवा वैज्ञानिक
[02/08, 12:03 pm] Virsnsari: साइंटिफिक-एनालिसिस

लोकतन्त्र व राजनैतिक दलों को आईना दिखाता एक आविष्कार

आजादी को 75 वर्षों से अधिक होने के बाद भी सोच, शिक्षा व भविष्य की दूरदर्शिता का यह आलम हैं कि एक आविष्कार पूरे लोकतन्त्र व राजनैतिक दलों पर भारी पड़ रहा है | आविष्कार भी ऐसा-वैसा नहीं हैं यह पुरी दुनिया के रिकॉर्ड से जांचनें के बाद 350 वर्षो से ज्यादा पुराने ईतिहास में भारत को अग्रणी यानि नम्बर -1 बना चुका और भारत सरकार ने प्रमाण-पत्र भी जारी करा हुआ हैं । इसके साथ सबसे बड़ा सामाजिक पहलू एक मिनिट में मर रहे एक ईंसान की जान को बचाने से जुड़ा हैं ।

व्यक्तिगत रूप से बिना किसी एजेंट के पेटेंट हासिल करने वाले मध्यप्रदेश इतिहास के प्रथम व्यक्ति ने वर्षों तक नीचे से ऊपर यानि महामहिम राष्ट्रपति तक दस्तावेजों को फाईल के रूप में हर सरकारी टेबल की धुल खिलाने की प्रक्रिया से परेशान होकर सभी देश-दुनिया के दस्तावेजों को दस पेज की संलग्न सूची के रूप में संकलित कर 3.50 किलोग्राम की फाईल बनाकर राष्ट्रपति को भेज दिया | इस फाईल पर अंतिम फैसला लेने के लिए राष्ट्रपति अधिकृत हो चुके हैं । इस फाईल में सबसे ऊपर जो कवर फोटो व कवरिंग पत्र लगाया वो आज के लोकतन्त्र, संविधान के आधार पर चलने वाली व्यवस्था और राजनैतिक दलों पर भारी पड़ रहा हैं ।

वर्तमान में लोकसभा चुनाव या आम चुनाव की प्रक्रिया चालू हैं इसमें हर राजनैतिक दल ने देश व देशवासीयों के लिए सत्ता मिलने के बाद भविष्य के काम का जो खाका खींचा हैं उसे घोषणा पत्र कहते हैं । सत्ता समर्थित सबसे बडे़ राजनैतिक दल ने इसे संकल्प पत्र कहां हैं और सोशियल मीडिया नेटवर्क व व्यक्तिवाद के प्रचार में मोदी की गारन्टी कहां जा रहा हैं । विपक्ष के सबसे बडे़ राजनैतिक दल ने अपने घोषणा पत्र को न्याय पत्र कहां हैं । इन दोनों को सत्ता द्वारा देश के भविष्य का केन्द्र मानकर आगे बढा जा सकता है। यह दोनों लोकतन्त्र के नाम पर सिर्फ़ बात करते हैं उसकी मजबूती के लिए एक भी योजना का जीक्र नहीं हैं | सत्ता पक्ष का राजनैतिक गठबंधन जो चल रहा हैं व आज को ही सर्वश्रेष्ठ लोकतन्त्र बता रहा हैं और अपने काम को छोड़ दूसरों के भूतकाल की बातों का डर दिखा वोट मांग रहा हैं । इसके विपरित विपक्षी गठबंधन लोकतन्त्र को बचाने व मजबूत करने का एक ही उपाय बता रहा हैं बस उसे वोट दे दो |

आविष्कार वाले लेटर के कवर पेज पर पहली बार किसी लोकतन्त्र का ग्राफिक्स रूप हैं। इसके आधार पर विश्लेषण करने पर हर समस्या का समाधान सामने आ जाता हैं । इसमें भारत-सरकार का सही अर्थ, राष्ट्रपति की शपथ का तरीका, मुख्य न्यायाधीश के आगे लगे भारतीय शब्द का सही अधिकार व सम्मान, न्यायकर्मियों को उचित सुविधाएं, सत्ता के विकेन्द्रीयकरण का खाका, भारतीय मीडिया का संवैधानिक चेहरा व जवाबदेही वाले कानूनी अधिकार, गोदी मीडिया व फेक न्यूज़ पर कन्ट्रोल कर खत्म करने का तरीका, एक छोटे से छोटे सैनिक को हर राष्ट्रीय पर्व पर गारन्टेड शीर्षस्थ सलामी, सिर्फ कानून बनाने नहीं, कानून बनाने के तरीके को संवैधानिक तरिके से स्पष्ट कर व्यवस्था को पूर्ण रूप से प्रभावी व तिरंगें के चक की तरह गतिमान करने का सिद्धांत, आर्टिफिशल इंटेलिजेंस के बढते कदम को लोकतन्त्र में संविधान के अनुरूप समावेश करने का तरीका, वन नेशन व वन इलेक्शन को लागू करने का सही प्लान इत्यादि-इत्यादि प्रमुख हैं ।

अब आते हैँ राजनैतिक दलों की सामाजिक एवं आर्थिक नीति पर जो सत्ता में आने के बाद सीधे केश राशि को चयनित लोगों के बैंक अकाउंट में ट्रांसफर करने पर टीकी हैं । यह पैसा दूसरे हाथ से आम लोगों द्वारा टैक्स के रूप में वसूला जायेगा इसमें जिनको आर्थिक सहयोग दिया जायेगा वो भी शामिल हैं | यह प्राथमिक स्तर की स्कूलों में पढाई जाने वाली कहानी दो बिल्लियों को एक रोटी बराबर-बराबर बांटने में तराजु लेकर बैठे बन्दर के खेल के सिद्धांत एवं नियमों के अनुरूप हैं । घोषणा पत्रों में प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त, चयनित छात्रों को पैसे का सहयोग देने की बात हैं जबकि आविष्कार वाले पत्र में कालेज से निकलने वाला हर छात्र लखपति या करोड़पति बनकर निकलने का लिखित में दे रखा हैं और योजना के सत्यापन के प्रमाणित दस्तावेज जोड रखे हैं | बेरोजगारों को नौकरीया देने की बात को राजनैतिक दलों ने बड़ी-बड़ी संख्या के वादों के रूप में बताया हैं जबकि आविष्कार वाले कवर पत्र में एक आविष्कार से लाखों को प्रत्यक्ष व करोडों को अप्रत्यक्ष नौकरी का प्रमाण देते हुए नौकरीया उत्पन्न करने के सिद्धांत को लागू करना हैं जिससे आने वाले समय में नौकरियां ज्यादा होगी व काम करने वाले उम्मीदवार कम पड़ेंगे |

सभी राजनैतिक दलों के घोषणा पत्र में स्वास्थ्य को लेकर एक ही योजना हैं, वो हैं लोगों के जीवन को बीमे के माध्यम से प्राइवेट कम्पनीयों के हवाले कर देना | मुफ्त ईलाज के नाम पर सुविधाओं, स्टाफ, दवाईयों के अभाव वाले सरकारी अस्पतालों में डिपोजिट करा देने से ज्यादा नहीं जबकि आविष्कार वाले लेटर में पूरे चिकित्सा क्षेत्र को 21वी सदी के अनुरूप बदलने, बिमारीयों को कम करने व हर अस्पताल को सक्षम व आधुनिक बनाने के प्रमाणित दस्तावेज आधारित योजना ही नहीं करोड़ों-अरबों रूपये की व्यवस्था भी करके दी हैं। महंगाई व गरीबी खत्म करने की बातें नही उसको हकीकत में बदलने का पुरा खाका बनाके दिया हैं । अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर चीन व पाकिस्तान की टेढी चालों को नेस्तनाबूद कर उन्हें ऐसा दुबारा करने लायक भी नही छोडने का रामबाण उपाय सुझा रखा हैं। भारत संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य भी नहीं हैं जबकि पहली बार देश में एक अन्तर्राष्ट्रीय स्थापित करने का सारा आधार तय करके एक थाली के रूप में परोस रखा हैं ।

आरक्षण को लेकर भविष्य में क्या होगा उसको लेकर पुरा खाका साइंटिफिक-एनालिसिस के रूप में खीच रखा हैं, अब तक 21बार से ज्यादा लगातार सत्यापित हो चुका हैं व आगे का परिणाम स्पष्ट रूप से बता रखा हैं। धर्म को लेकर सिर्फ़ बांटने या धर्म-विशेष को लेकर कुछ सहयोग भीख की तरह फेंक देने की राजनैतिक पालिसी के बिलकुल विपरित हर धर्म को चेहरा देकर संवैधानिक रूप से लोकतन्त्र व सत्ता से जोडने की परिपाटी स्पष्ट करी हुई हैं ताकि पुरानी ईंसानी सभ्यता व करोडों लोगों के जीवन का संघर्षं आपसी तू-तू मैं-मैं की लडाईयों में बर्बाद न होकर पुरी ईंसानी सभ्यता को ऊंचाई के शिखर की दिशा में अग्रसर करते रहे |

आज के दौर में लोकतन्त्र की यही विडम्बना है कि जीवन के संघर्ष की उपलब्धिया, लिखित में प्रमाण सहित दिये आधार, ज्ञान, सोच, भविष्य, निष्पक्ष सिद्धांत सब कचरा हैं बस चुनाव में एक सीट जीत लेने पर यह सब जितने वाले के शरीर में घुस जाते हैं। लोकतन्त्र यानि आम लोगों की सरकार में लोग स्वयं सत्ता भी नहीं जा सकते हैं वो तो अपने दलाल / एजेंट / प्रतिनिधि चुन सिर्फ़ सत्ता व अपने भविष्य को दूसरे के हवाले या चरणों में डाल सकते हैं ।

शैलेन्द्र कुमार बिराणी
युवा वैज्ञानिक

[02/08, 12:03 pm] Virsnsari: साइंटिफिक-एनालिसिस

नौकरीयों के साक्षात्कार में मच रही भगदड़ों का गुनहगार राष्ट्रपति-सचिवालय

भारत यानि इंडिया, इंडिया यानि भारत में चल रहे अमृतकाल के अन्दर जैसे ही शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, सरकारी प्रक्रियाओं से त्रस्त गरीब व बेरोजगार लोगों के लिए अमृत की एक नगण्य मात्र सी बूंद जब नौकरी के रूप में टपकाने की खबर आती हैं तो साक्षात्कार के रूप में हजारों की भीड़ पहुंच जाती हैं और उस अमृत बूंद को हासिल करने नहीं सिर्फ देखने भर के चक्कर से पहले भगदड़ मच जाती हैं और प्रसाद के रूप में शरीर पर चोटे मीलती हैं व खुशकिस्मत होने पर अस्पताल में भर्ती कराने का तीन दिन और दो रात जैसा ईनाम दिया जाता हैं | गुजरात के भरूच की घटना व मुम्बई में एयर इंडिया की नौकरीयों के लिए कई गुना बेरोजगारों का पहुंचना सबसे ज्वलंत उदाहरण हैं |

इसी तरह यह सिलसिला आगे बढ़ता गया तो आने वाले समय में दुखद दुर्घटना घटने की सम्भावना बढ़ जायेगी | इसके बाद जो गिने-चुने लोग नौकरीयां दे रहे है वो गायब होंगे लगेंगे क्योंकि सरकारी तन्त्र उन पर कई शर्तें साक्षात्कार से पहले पुरा करने का नियम आर्थिक शुल्क के साथ बना देगा | इसके अतिरिक्त भाई-भतीजावाद और एजेन्टों के जरिये अभ्यर्थियों को ही लूटने का दौर शुरु हो जायेगा | बेरोजगारों में इस तरह की भगदड़ व छोटे स्तर की नौकरियों के लिए भी इस तरह की मारामारी व आने वाले समय में उनकी मौंत जो हत्या कहलायेगी उसकी साजिश राष्ट्रपति-सचिवालय के अधिकारियों ने करी हैं।

यदि राष्ट्रपति-सचिवालय ने साजिश न रची होती और राष्ट्रपति इतने योग्य व जिम्मेदारियों के प्रति समर्पित होते तो वे अपने नाक के निचे ऐसी साजिश होने ही नहीं देते | राष्ट्रपति यह सभी जानकारी होने के बाद स्वयं पर्दें के पीछे से ऐसा करवा रहे होंगे इसकी सम्भावना कम लगती हैं क्योंकि सचिवालय के कर्मचारियों ने जिस फाईल को दबानै, छुपाने व खत्म करने की साजिश रची उसी से जुडा मामला एक राष्ट्रपति के मौत का कारण बन गया | इस फाईल पर फैसला ले लिया होता तो अभी देश में नई नौकरियों की बाढ़ आ रही होती और काम करने के लिए खाली बैठे लोग नहीं मिलते |

यहाँ बात हो रही हैं साढे तीन किलोग्राम वाली फाईल की जिसमें दुनियाभर के दस्तावेज प्रमाणों के रूप में लगे थे | अनुरोध वाली यह फाईल एक आविष्कार से जुडी हैं जिसका पेटेंट पहले ही हो चुका था व आविष्कारक ने दुनियाभर से मिले अरबों-खरबों के आर्थिक प्रस्ताव भी राष्ट्रपति को यह लिखकर भेज दिया कि सबकुछ भारत सरकार के अधीन रहे कोई एक कम्पनी या आदमी भगवान न बन सके क्योंकि यह एक मिनिट में मर रहे एक ईंसान को बचाने का मामला हैं | भारतीय संविधान व भारत सरकार के अनुसार एक आविष्कारक को जितना मिलना चाहे उतना दे दे ताकि वो भी समाज व देश में जीवनयापन कर सके बस इतनी सी शर्त रखी थी | समय की बर्बादी को देखते हुए आगे पत्र द्वारा सुचित करा कि यदि योजना व आविष्कार समझने में समस्या हो तो उन्हें मिलने का समय दे | इस पूरे मामले को धरातल पर कैसे सच्चाई में बदलना हैं उसकी भी योजना का प्रारूप भी भेज दिया था |

इस आविष्कार से जुडें उत्पाद को लेने के लिए चालीस से ज्यादा देशों की कम्पनीयों ने प्रस्ताव दिये थे वो भी उनके नाम, पते व आधिकारिक सम्पर्क माध्यम के साथ फाईल में भेजे थे | भारत को तो अपने जमीन पर सिर्फ़ बनाकर भेजना था वो भी प्रतिदिन पच्चीस फीसदी ग्रोथ रेट के साथ | उत्पाद यूज एंड थ्रो केटेगरी का था इसलिए जो डिमांड आज हैं वो अगले दिन उससे भी ज्यादा रहने वाली हैं। इस उत्पाद को बनाने के लिए पैसा कहां से आयेगा, मशीने व सेट-अप इत्यादि-इत्यादि की दुनियाभर की जानकारी प्रमाणित दस्तावेज के साथ दी क्योंकि करिबन पांच हजार नई कम्पनीयां खुलती | यह सबकुछ 2011 में भेज दिया गया था व अन्तिम फैसले के लिए राष्ट्रपति अधिकृत कर दिये गये थे तब भी राष्ट्रपति-सचिवालय के अधिकारियों ने फाईल को कभी इस टेबल तो कभी उस टेबल पर भेज-भेज कर राष्ट्र व उसकी जनता को विनाश की दहलीज पर लाकर खड़ा कर दिया | इसमें सबसे बडी बात फाईल कानूनी रूप से राष्ट्रपति के नाम पर गई और रिसिव भी करी गई |

सन 2011 से लेकर आजतक समय-समय पर रिमांइडर जा रहे हैं परन्तु सबकुछ राष्ट्रपति के संज्ञान में लाये बिना इधर-उधर भेजकर कच्चें के डिब्बे में फेंका जा रहा हैं। मीडिया भी लगातार सामने ला रही हैं, उन सभी की हार्डकॉपी को भी राष्ट्रपति भवन भेजा व बाद में जन सूचना आधिकार (आर.टी.आई.) के माध्यम से भी जवाब मांगा तब भी राष्ट्रपति-सचिवालय ने घुमा फिरा कर कचरे के ढेंर में फेक दिया व भारतीय जनता, मीडिया व दुनिया की अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएं जिन्होंने इस आविष्कार पर अपनी प्रतिक्रिया व बधाईयां दी उन्हें लोकतन्त्र व भारतीय संविधान का इसलिए चेहरा दिखा दिया |

राष्ट्रपति-सचिवालय के अधिकारियों ने एक आविष्कार को खत्म नहीं किया बल्कि एक आविष्कार के माध्यम से पूरी दुनिया में लागू करने व अरबों-खरबों के आर्थिक तन्त्र को नये समय व परिस्थितियों के अनुरूप कैसे स्थापित करना हैं उस पालिसी की भ्रूण हत्या कर दी | कार्य के आधार पर आज हजारों क्षेत्रों में काम हो रहा हैं व हर क्षेत्र में रोज नये-नये आविष्कार सामने आ रहे हैं जब एक आविष्कार से लाखों नौकरीया पैदा होती तो इतने सारे आविष्कारों से करोडों नौकरीया व अप्रत्यक्ष रोजगार पैदा होना निश्चित है |

शैलेन्द्र कुमार बिराणी
युवा वैज्ञानिक

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