देहरादून लिखवार गावँ पहाडोंकीगूँज उत्तराखंड में जंगली जानवरों से बचाने के लिए किसानों को भूमिगत फसलों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।साथ ही साथ कोरोना महामारी अभी आसानी से समाप्त नहीं हो रही है । जहां इलाज में आर्थिक परेशानी हो रही है वहीं बेरोजगारी का खतरा बना दिया गया है।अब हमें शरीर की ह्यूमेनिटी बढ़ाने वाली अच्छी दाम पर बिकने वाली फसल की पैदावार बढ़ाने की आवश्यकता है इसके लिए काली हल्दी उपयुक्त है।हमारे सिंचित भूमि पर यह फसल उगा कर 4से अधिक गुणा फसल की पैदावार कर अच्छा लाभः कमा सकते हैं।जहां असिंचित भूमि है वहीं एक एकड़ के लिए 10x8x4 मीटर के टैंक बना कर वर्षा का जल गदेरों , खेतों से इकट्ठा कर सिंचाई के लिए उपयोग में ला सकते हैं।या प्रत्येक खेत में आवश्यकता के अनुसार कच्चा गड्डा बनाकर उसमें प्लास्टिक की सीट बिछा कर वर्षा का पानी इकट्ठा कर यह महंगी फसल उगाने का काम अपनी आर्थिक विकास के लिए किया जासकता हैं। अपने खतों के मिट्टी की जांच कर प्रत्येक काश्तकार दो नाली भूमि पर अच्छी मेहनत से
लगा कर 50000 हजार से ज्यादा
की आय प्राप्त कर सकता है।
साथ ही अपने घर मे इसके उपयोग करते हुए परिवार की दैनिक उपयोग करते हुए सबके शरीर की रक्षा की जासकती है। सभी प्रधान अपने गाँव में मनरेगा योजना में गावँ की अर्थव्यवस्था मजबूत करने के लिए काम करते रहने की आवश्यकता है ।वह अपने गाँव की वेबसाइट बना कर शिक्षा स्वास्थ्य, कृषि ,पशुपालन, होमस्टे योजना ,ऑनलाइन कार्य कराने में रूचि रखते हुए गावँ के विकास में ध्यान रखना जरूरी है।समय किसी का ििनतजार नहीं कर ता है।यह गावँ वालों के नुमाइंदे को जनकारी देते हुए समझाने का अल्प उदारहण देते प्रयास है।कि मखी यदि समोसे ,रोटी पर बैठी है तो वह दोनों की भेलयु समाप्त करदेती है यदि वह सोने के ऊपर तराजू पर बैठी है तो वह मूल्यवान कई गुना होजाती है। यह हमारे समाजसेवी लोगों को समझने की जरुरत है। काश्तकार जानकारी लेते हुए निम्न प्रकार से लगाने के लिए अपने जिले के उद्यान अधिकारी को अपने गाँव मे लगाने के इच्छुक काश्तकारों को के हिसाब से बीज की मांग दे ताकी वह भारत सरकार को बीज मंगाने के लिए लिख कर समय से मंगा सके। मैंने 1.25 टन की मांग अपने लिए उद्यान विभाग टिहरी गढ़वाल से की है। इसकी बर्तमान में कीमत डेड लाख तक आएगी और जब यह फसल जून से फरबरी तक तैयार होगी तो यह 6 लाख से ज्यादा की होगी।इसके लिए एक सेमिनार प्रधान,काश्तकारों की करने के लिए कार्य शीघ्र किया जाएगा।
काली हल्दी पैदा करने की जानकारी
हल्दी मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है, काली और पीली हल्दी जो इनके रंग के आधार पाई जाती है।
दोनों हल्दियों का औषधीय और सौंदर्य प्रसाधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इनके अलावा पीली हल्दी का खाने में इस्तेमाल किया जाता है।
और काली हल्दी का तांत्रिक गतिविधियों में इस्तेमाल होता है. काली हल्दी की खेती किसान भाई औषधीय पौधे के रूप में करता है। इसका पौधा तना रहित होता है. इसके पौधे पत्तियों के रूप में बढ़ता हैं। जिस पर केले की जैसी बड़ी बड़ी पत्तियां बनती हैं।
काली हल्दी की खेती के लिए समशीतोष्ण और शीतोष्ण दोनों जलवायु उपयुक्त होती है। इसके पौधे रोपाई के लगभग 8 से 9 महीने बाद पैदावार देने के लिए तैयार हो जाते हैं। भारत में इसकी खेती ज्यादातर मध्य और दक्षिण भारत के राज्यों में की जाती है। इसके पौधों को विकास करने के लिए अधिक बारिश की या अधिक गर्म मौसम की जरूरत नही होती। काली हल्दी का बाजार भाव काफी अच्छा मिलता है. जिस कारण इसकी खेती किसानों के लिए काफी लाभदायक होती है।
अगर आप भी इसकी खेती करने का मन बना रहे हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं।
उपयुक्त मिट्टी
काली हल्दी की खेती सामान्य रूप से किसी भी तरह की मिट्टी में की जा सकती है। इसका पौधा हर तरह की मिट्टी में आसानी से विकास कर लेता है।लेकिन फसल के उत्तम उत्पादन और कटाई में सुविधा के लिए इसे हल्की बलुई दोमट मिट्टी में उगाना चाहिए। जलभराव या कम उपजाऊ भूमि में इसकी खेती नही की जा सकती। इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच. मान 5 से 7 के बीच होना चाहिए।
जलवायु और तापमान
काली हल्दी की खेती के लिए समशीतोष्ण और शीतोष्ण जलवायु को उपयुक्त माना जाता है। इसके पौधों को विकास करने के लिए सामान्य मौसम की जरूरत होती है।अधिक गर्म मौसम में इसके पौधे की पत्तियां झुलस जाती हैं। और पौधों का विकास रुक जाता है। जबकि सर्दी के मौसम में इसके पौधे आसानी से अपना विकास कर लेते हैं। इसके अलावा कुछ हद तक ये सर्दियों में पड़ने वाले पाले को भी सहन कर सकते हैं. इसके पौधों को विकास करने के लिए अधिक बारिश की आवश्यकता नही होती।
काली हल्दी के पौधों के विकास में तापमान की एक ख़ास भूमिका होती है। इसके कंदों को शुरुआत में अंकुरित होने के लिए 20 से 25 डिग्री के आसपास तापमान की जरूरत होती है. उसके बाद विकास के दौरान इसके पौधे सर्दियों में न्यूनतम 10 और गर्मियों में अधिकतम 38 डिग्री के आसपास तापमान पर आसानी से अपना विकास कर सकते हैं। लेकिन 25 डिग्री के आसपास का तापमान इसके पौधों के विकास के लिए काफी बेहतर होता है।
खेत की तैयारी
काली हल्दी की खेती के लिए भूमि की अच्छे से तैयारी की जाती है। इसके लिए शुरुआत में खेत की तैयारी के वक्त खेत में मौजूद पुरानी फसलों के अवशेषों को नष्ट कर खेत की मिट्टी पलटने वाले हलों से गहरी जुताई कर दें। उसके बाद खेत को सूर्य की धूप लगने के लिए कुछ दिनों तक खुला छोड़ दें। ताकि मिट्टी में मौजूद हानिकारक कीट खुद नष्ट हो जाएँ।
उसके बाद खेत में उचित मात्रा में जैविक खाद या पुरानी गोबर की खाद को डालकर उसे अच्छे से मिट्टी में मिला दें। खाद को मिट्टी में मिलाने के लिए खेत की दो से तीन बार तिरछी जुताई कर दें। जुताई के बाद खेत में पानी चलाकर उसका पलेव कर दें। पलेव करने के बाद जब खेत की मिट्टी ऊपर से सूखी हुई दिखाई देने लगे तब खेत की फिर से जुताई कर उसमें रोटावेटर चलाकर मिट्टी को भुरभुरा बना लें। मिट्टी को भुरभुरा बनाने के बाद खेत को समतल बना दें।
पौध तैयार करना
काली हल्दी के पौधों की रोपाई इसके कंद और पौध के रूप में की जाती है। लेकिन ज्यादातर किसान भाई इसे कंद के रूप में ही उगाना पसंद करते हैं। लेकिन कुछ किसान भाई इसे पौध के रूप में भी उगाते हैं। पौध के रूप में लगाने के लिए पहले इसकी पौध नर्सरी में तैयार की जाती है। नर्सरी में पौध तैयार करने के दौरान इसके कंदों की रोपाई प्रो-ट्रे या पॉलीथीन में उर्वरक मिली मिट्टी भरकर की जाती है। इसके कंदों की रोपाई से पहले उनसे बाविस्टीन की उचित मात्रा से उपचारित कर लेना चाहिए। इसके कंद नर्सरी में रोपाई के लगभग दो से तीन महीने बाद खेत में रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं।
पौध रोपाई का तरीका और टाइम
काली हल्दी के पौधों की रोपाई दो तरह से की जाती है. जिसमें इसके पौधों को बीज और पौध दोनों रूपों में उगाया जाता है। एक हेक्टेयर में खेती के लिए 20 किवंटल के आसपास कंदों की जरूरत होती है।
इसके कंदों की रोपाई से पहले उन्हें उपचारित कर ही खेत में लगाना चाहिए। क्योंकि इसकी खेती में खर्च होने वाला ज्यादातर खर्च इसके बीज पर ही होता है। इसलिए बीज(कंद) खरीदते वक्त में केवल स्वस्थ दिखाई देने वाले कंदों को ही खरीदना चाहिए।
कंदों के रूप में रोपाई के दौरान इसके कंदों की रोपाई खेत में कतारों में की जाती है।
इस दौरान प्रत्येक कतारों के बीच लगभग डेढ़ से दो फिट के आसपास दूरी होनी चाहिए। और कतारों में लगाए जाने वाले कंदों के बीच लगभग 20 से 25 सेंटीमीटर के आसपास दूरी होनी चाहिए. इसके कंदों की रोपाई जमीन में 7 सेंटीमीटर के आसपास गहराई के करनी चाहिए।