मन के हारे हार है मन के जीते जीत
देहरादून:दर्पण में मुख और संसार मे सुख होता नही है बस दिखता है। यह वाक्य सब लोग अपने शुभ मुहूर्त में चर्चा करते रहते हैं।शुभ प्रभात आदि के लिए लिख दिया करते हैं।यह हम मन से महसूस करते हैं।हमारे जीवन के प्रारंभ में हम नंगे पांव चलते थे फिर चपल, जूते, मोटरसाइकिल, गाड़ी,हवाई जहाज से यात्रा करते थे अब समय की रफ्तार एक जैसे हर समय नहीं रहती है उस स्थिति में हमारे अंदर अलग अलग भाव अपने बारे मे आते हैं।पर मनुष्य का नाम मनन करने से मनुष्य रखा गया है ।वह पिछले समय के साथ जब न चल पाए तो उसे अपने अन्दर कार्य करने की छमता का आंकलन कर अपने अंदर स्थिरांक ला कर चिंता रहित होकर अपने जीवन यापन करने के लिए मजबूत हो कर तैयार रहना चाहिए।
स्थिरांक का तात्पर्य यह है कि इस शब्द का प्रयोग भौतिक विज्ञान में पैंडुल के चलते हुए रुकने के स्थान को स्थिरांक कहते हैं।भौतिक सुखों को कंट्रोल करने के लिए स्थिरांक का मन में होना जरूरी है।तब अपने जीवन में प्रगति करने के लिए रास्ता बनाने में दिक्कतें महसूस नहीं कर ते हैं इसके लिए यह समझना होगा कि पहले नंगे पैर चलते हुए हवाई जहाज से चला करते थे। तो अब कार से ही यात्रा करनी पड़ती है। तो उसमें भगवान का शुक्रिया अदा करने चाहिए कि हम तो नंगे पांव चलते थे ।अब कार से चलने के लिए तो हमारे पास है।यह मन से महसूस करने की बात है। मन के हारे हार है मन के जीते जीत।अपने जीवन में आपने हार नहीं माननी चाहिए।
वंदना रावत