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राष्ट्रपति ने पहली बार संवैधानिक जवाबदेही उठाते हुए जनता के लिए खोले द्वार

Pahado Ki Goonj

साइंटिफिक-एनालिसिस

राष्ट्रपति ने पहली बार संवैधानिक जवाबदेही उठाते हुए जनता के लिए खोले द्वार

राष्ट्रपति देश के प्रथम नागरिक होते हैं व संविधान संरक्षक भी इसलिए संवैधानिक रूप से संविधान में संसोधन करने की बात हो, व्यवस्था को अपडेट करना हो व उसमें ढांचागत परिवर्तन करना हो उसके लिए सिधे तौर पर राष्ट्रपति जवाबदेही होते हैं व नैतिक रूप से जनता को ऐसी मांग उनसे ही करना चाहिए |

देश की जनता के लिए यह द्वार खुले हैं उड़ीसा से 5 बेरोजगार युवकों द्वारा 1500 किलोमीटर पैदल चलकर राष्ट्रपति द्रौपदी मूर्मू से मिलकर उनके हाथों में अपनी मांग सोपने से…. इनकी मांग एक अलग राज्य मयूरभंज बनाने को लेकर थी ताकि उसश्रेत्र में विकास हो सके व जनता को सुविधाएं मील सके | एक अलग राज्य की स्थापना करना व्यवस्था में ढांचागत बदलाव करना हैं जो सिर्फ राष्ट्रपति के अधिकार क्षेत्र में आता हैं |

देश की जनता डाक के माध्यम एवं आनलाईन रूप से राष्ट्रपति से अनुरोध करती हैं तो उनका सचिवालय उसे शिकायत के रूप में दर्ज करता हैं | हमने तो राष्ट्रपति की जान बचाने के लिए व देश को प्रतिवर्ष अरबों रूपये राजस्व देने के लिए भी कई बार सम्पर्क किया तब भी उसे शिकायत के रूप में दर्ज किया परिणाम स्वरूप एक भूतपूर्व राष्ट्रपति को अपनी जान गवानी पड गई | यह लोकतंत्र के गाल पर सबसे बडा तमाचा हैं, जहां देश की मालिक जनता अनुरोध नहीं कर सकती वो सिर्फ गुलामों की भात्ति शिकायतकर्ता ही होती हैं |

नया कानून बनाना हो तो विधायिका (संसद) से मांग, वर्तमान कानून होते हुए भी अन्याय हो तो न्यायपालिका से मांग, क्रियान्यवन व कानून सही ढंग से लागू करने की बात हो तो कार्यपालिका (प्रधानमंत्री कार्यालय) से मांग करना, अपनी नैतिक मांगों व परेशानीयों को भारत सरकार (जिसके प्रमुख राष्ट्रपति हैं) तक पहुंचाने का काम हो तो मीडीया से मांग करनी चाहिए | यह अलग बात हैं कि मीडीया का संवैधानिक चेहरा नहीं होने से सब अखबारों की रद्दी व टेलीविजन पर मनोरंजन का साधन बन खत्म हो जाता हैं |

आम लोगों को संविधान की प्रस्तावना के अनुसार जीवन जीने में परेशानी हो तो उसे सीधे राष्ट्रपति को कहने का अधिकार होता हैं | लोकतंत्र की मूल भावना भी यही होती हैं कि देश की जनता ही असली मालिक व संविधान के अनुसार उसी की सरकार बनती हैं | इसलिए वह कोई सी भी जरूरत या आदेश राष्ट्रपति के माध्यम से दे सकती हैं | इस कारण से बाकी सभी संस्थाओं के संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तियों को जनता का सेवक कहां जाता हैं |

हमने भूतपूर्व राष्ट्रपति डाँ ए. पी. जे. अब्दुल कलाम के कार्यकाल के दौरान उन्हें लिखित में भेजा था कि सिर्फ दो व्यवस्था कानून के तहत हो जाये तो देश के लोगों की सारी समस्याएं खत्म हो जायेगी | पहला सिंगल कम्पलेन सिस्टम व दूसरा आल इंडिया आईडेन्टीफिकेशन नम्बर | दूसरी मांग को बाद में आधार कार्ड के रूप लागू करने की कोशिश करी और पहली मांग को घोल कर दिया गया | यह दोनों व्यवस्था एक ही सिक्के के दो पहलू है इसलिए परिणाम स्वरूप आधार कार्ड भी बायोमैट्रिक सुविधा होते हुए भी निष्क्रिय हो गई | अब समय इतना बर्बाद हो गया कि कानून नहीं व्यवस्था को अपडेट करने से ही जनता के अच्छे दिन आ सकते हैं |

संविधान संरक्षक राष्ट्रपति तक पहुंचने के सारे मार्ग असफल हो तो पैदल चलकर जनता का जाना न्यायसंगत व संवैधानिक रूप से सही कदम हैं | यही बात उड़ीसा के बेरोजगार युवकों की सफलता का आधार बन गई व आम लोगों के लिए नया द्वार खोल गई | इसके आगे का मार्ग राष्ट्रपति की निष्ठा, कर्तव्यपरायणता, जिम्मेदारी निभाने की क्षमता एवं शत्तियों के इस्तेमाल के दक्षता व पारंगता एवं विधी द्वारा स्थापित व्यवस्था वाली शपथ के अनुसार काम करने पर निर्भर करता हैं |

लोकतंत्र के सिद्धांत व संविधान की मूल भावना के तहत विज्ञान की तार्किक शैली के अनुसार देश की जनता को इधर – उधर जाकर अपने सेवकों के सामने हाथ जोड़कर गिडगिडाने के गलत मार्ग पर भटकने से अच्छा सीधे राष्ट्रपति के माध्यम से अपनी सरकार को निर्देशित करना सही मार्ग हैं | यह निर्देश व्यापक रूप से सही हैं या गलत यह देखना, जांचना व परखना राष्ट्रपति का काम हैं | अब तो राष्ट्रपति ने जनता के लिए द्वार खोल दिये हैं वो अपनी भारत सरकार को चलाये व निर्देशित करें …..

फोटो –
उड़ीसा से 1500 किमी पैदल चलकर आये 5 बेरोजगार युवकों से मुलाकात करती हुई राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मूर्मू

फोटो माध्यम – वरिष्ठ पत्रकार संध्या द्विवेदी

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