देहरादून : वर्ष 2017 में देश के जंगल 33 हजार 664 बार आग से धधके हैं। जबकि, आग की सर्वाधिक घटनाएं आबादी के निकट वाले मध्यम सघन वनों (मॉडरेट डेंस फॉरेस्ट) में दर्ज की गईं। भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआइ) की ताजा रिपोर्ट में यह बात सामने आई है।
एफएसआइ की रिपोर्ट में वर्ष 2004 से 2017 के बीच वनों में लगी आग की घटनाओं को दर्ज किया गया है। आग की घटनाओं को अति सघन वन (वेरी डेंस फॉरेस्ट), मध्यम सघन वन (मॉडरेट डेंस फॉरेस्ट) और खुले वन (ओपन फॉरेस्ट) में विभाजित किया गया है। आंकड़े बताते हैं कि बीते 14 वर्षों में आग की सर्वाधिक घटनाओं में वर्ष 2017 चौथे नंबर पर रहा।
वहीं, वर्ष 2014 के बाद पिछले साल आग की घटनाएं सबसे अधिक हुई। इससे पहले वर्ष 2012, 2010 और 2009 में वनों में आग की घटनाएं सर्वाधिक रिकॉर्ड की गईं। खास बात यह कि वर्ष 2004 से 2017 के बीच इन सभी घटनाओं का संबंधित क्षेत्रों के अधिकारियों व कार्मिकों को अलर्ट भी जारी किया गया है।
जंगल की आग पर काबू पाने के लिए अलर्ट जारी करने की अहम भूमिका को देखते हुए भारतीय वन सर्वेक्षण ने वर्ष 2016 से प्री वार्निंग अलर्ट भेजने का काम भी शुरू कर दिया है। इसका विशेष रूप से उल्लेख रिपोर्ट में किया गया है।
वनों में आग की घटनाएं
वर्ष————————घटनाएं
2004——————–24450
2005——————–32993
2006——————–25550
2007——————–32244
2008——————-32650
2009——————27228
2010—————–46152
2011—————–35804
2012—————-25518
2013—————–40528
2014——————25061
2015—————–26797
2016—————–22465
2017——————-33664
प्री वार्निंग सिस्टम से बदलेगी स्थिति
एफएसआइ की रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि वर्ष 2016 से शुरू जंगल की आग पर प्री वार्निंग अलर्ट आग की घटनाओं पर काबू पाने और कम समय में आग बुझाने में कारगर साबित होगा।
एफएसआइ के महानिदेशक डॉ. शैवाल दासगुप्ता के मुताबिक यह आग से पूर्व का अलर्ट वनों की दैनिक आद्रता, दैनिक अधिकतम तापमान, वर्षा की भविष्यवाणी, पूर्व और वर्तमान की स्थिति समेत संबंधित क्षेत्र में वर्ष 2004 से 2016 के मध्य लगी आग की घटनाओं के आधार पर किया जा रहा है। ऐसे में वन क्षेत्रों की स्थिति का आकलन पूर्व में ही कर प्रबंधन संबंधी कार्य तेज हो सकेंगे।
नई सेटेलाइट प्रणाली से बेहतर परिणाम: वनाग्नि संबंधी अलर्ट देने के लिए पहले हमारे जंगल मॉडिस (मॉडरेट रेजोल्यूशन इमेजिंग स्पेक्ट्रो-रेडियोमीटर) तकनीक वाले सेटेलाइट पर निर्भर थे। जबकि, अब एसएनपीपी-वीआइआरएस सेटेलाइट तकनीक का भी प्रयोग किया जा रहा है। इससे जहां पहले कम से कम एक वर्ग किलोमीटर हिस्से पर ही आग की घटना पकड़ में आ पाती थी, अब महज 275 वर्गमीटर क्षेत्रफल पर लगी आग को भी रिकॉर्ड किया जा रहा है। साथ ही रात के समय भी आग की घटनाओं की सटीक जानकारी देने में नई तकनीक अधिक कारगर हो पा रही है।
उत्तराखंड में छोटे वन क्षेत्र में भी अलर्ट
एफएसआइ की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तराखंड उन तीन राज्यों में शामिल है, जहां आग का अलर्ट कंपार्टमेंट (एक बीट में कई कंपार्टमेंट हो सकते हैं) स्तर पर भी दिया जा रहा है। यह सुविधा अभी उत्तराखंड के अलावा सिर्फ महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में ही शुरू हो पाई है।