मनोहर पर्रिकर की आख़री लेखनी के कुछ अंश
जीवन ने मुझे राजनीति में बहुत सम्मान दिलाया जो मेरे नाम का पर्याय बन गया। हालांकि मैंने इस बात पर अब ध्यान दिया कि काम के अलावा मैंने कभी आनंद के लिए समय नहीं निकाला। सिर्फ मेरा पॉलिटिकल स्टेटस ही हकीकत रहा। आज बिस्तर पर पड़े हुए मैं अपने जीवन के बारे में सोच रहा हूं… लोकप्रियता और धन… और मुझे यही जीवन में मील के पत्थर लगते थे, मौत का सामना करते हुए ये सब निरर्थक लग रहे हैं।
हर सेकेंड के साथ मौत मेरी ओर चुपचाप बढ़ रही है, मैं अपने आसपास जीवनरक्षक मशीनों की हरी बत्ती देख रहा हूं, उनके शोर से मैं मौत से नजदीकी को महसूस कर रहा हूं। इस कठिन घड़ी पर मुझे समझ में आ रहा है कि जीवन में पैसा और रुतबा इकट्ठा करने के अलावा और भी बहुत कुछ है… समाजसेवा और हम जिन्हें पसंद करते हैं उनके साथ रिश्ते निभाना ऐसी चीजें हैं जिसमें हमें चूकना नहीं चाहिए। मैं यह महसूस करता हूं कि जितनी भी राजनीतिक सफलता मैंने अर्जित की है, मैं अपने साथ कुछ भी नहीं ले जाऊंगा।
यह बीमारी का बिस्तर ही सबसे एक्सक्लूसिव बेड है क्योंकि इसे आपके अलावा कोई और इस्तेमाल नहीं कर सकता। आपके पास नौकर, ड्राइवर, काम करने वाले और आपके लिए कमाने वाले हो सकते हैं लेकिन आपकी बीमारी कोई साझा नहीं करेगा। सबकुछ पाया और कमाया जा सकता है लेकिन वक्त लौटकर नहीं आता।
जब आप जीवन की दौड़ में सफलता के पीछे भागते हैं तो आपको अहसास होना चाहिए कि कभी न कभी आपको इस नाटक के आखिरी हिस्से में पहुंचना होगा जहां शो का लास्ट सबके सामने है।
इसलिए… सबसे पहले अपनी देखभाल करना सीखें, दूसरों की केयर करें, अपना पैसा और भावनाएं अपने आसपास के लोगों पर खर्च करना सीखें।
जब एक बच्चा पैदा होता है तो वह रोता है और जब मरता है दूसरे रोते हैं इसलिए दोस्तों आखिरी दिन से पहले खूब खुश हो लें……
*मनोहर पर्रिकर*