एक वर्ष से मीडीया की लोकतांत्रिक स्वतंत्रता का तरीका भारत के मुख्य न्यायाधीश व सभी राज्यों के हाईकोर्टों के संज्ञान में
समाचार पोर्टल न्यूजक्लिक में कार्यरत या उससे जुडें कई पत्रकारों और अन्य पेशेवरों के घरों पर दिल्ली पुलिस के छापे व उनके मोबाइल फोन, लेपटॉप जब्त करने के साथ न्यूजक्लिक के एडिटर-इन-चीफ प्रबीर पुरकायस्थ और मानव संसाधन प्रमुख अमित चक्रवती को गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) की कड़ी धाराओं के तहत मामला बनाकर गिरफ्तार करने से देश का पुरा पत्रकारिता जगत स्तब्ध हैं | इससे सबके दिल-दिमाग में पत्रकारिता के पेशे को आतंकवाद समझने का डर, भय, आतंक फैल गया हैं | मणिपुर में पिछले 6 माह से चल रही हिंसा पर भारतीय सेना के अनुरोध पर एडीटर ग्रीड के पत्रकारों द्वारा एक सामुहिक रिपोर्ट जारी करने पर उनके खिलाफ एफ आई आर दर्ज होने से पहले ही सभी पत्रकार पारिवारिक एवं सामाजिक रूप से अपने पत्रकारिता धर्म और संवैधानिक रूप से राष्ट्रधर्म निभाने में घुटन महसूस कर रहे हैं |
इस पर डिजीपब न्यूज इंडिया फाउंडेशन, भारतीय महिला प्रेस कोर, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया नई दिल्ली, फाउंडेशन फॉर मीडिया प्रोफेशनल्स, नेटवर्क ऑफ वीमेन इन मीडिया (इंडिया), चंडीगढ़ प्रेस क्लब, नेशनल अलायंस ऑफ जर्नलिस्ट्स, दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स, केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स, बृहन्मुंबई यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स, फ्री स्पीच कलेक्टिव मुंबई, मुंबई प्रेस क्लब, अरुणाचल प्रदेश यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स, प्रेस एसोसिएशन, गुवाहाटी प्रेस क्लब और इंडियन जर्नलिस्ट्स यूनियन ने हस्ताक्षर के साथ सामुहिक पत्र उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को लिखा हैं, जिसमें अब बिना किसी विलम्ब के मीडीया के खिलाफ जांच ऐजेन्सियों के बढते दमनकारी उपयोग को समाप्त करने के लिए हस्तक्षेप करने और उचित गाईडलाइन व व्यवस्था का अनुरोध हैं ताकि सभी पत्रकार निर्भिकता व आजादी से अपने पत्रकारिता के धर्म का पालन कर सके और सच्ची राष्ट्रभक्ति के साथ लोकतंत्र को अधिक मजबूत, प्रभावी व स्थिर बनाते रहे |
इस पत्र में जिन अज्ञात नये कदमों को उठाने का अनुरोध किया गया हैं वो सिर्फ एक ही दिशा में ले जाते हैं, यह हैं भारतीय मीडीया को संवैधानिक चेहरा व जवाबदेही वाला कानूनी अधिकार देना क्योंकि आजादी के 75 वर्ष पूरे होने पर भी एक आम नागरिक की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के आधार पर ही पत्रकार अपना कार्य कर रहे हैं | इसकी पूरी जानकारी विस्तार के साथ युवा शैलेन्द्र कुमार बिराणी ने करीबन एक वर्ष पूर्व भारत के मुख्य न्यायाधीश व सभी राज्यों के हाईकोर्टों के प्रमुख नाम को एक साथ लिखकर ईमेल करा था | उन्होंने न्यायाधीशों को बताया की राष्ट्रपति के पास उनके आविष्कार पर अन्तिम फैसला लेने का मामला विचाराधीन हैं उसमें मीडिया का संवैधानिक चेहरा वाला हिस्सा भी जुडा हैं जो पत्रकारिता, सूचनाओं एवं हेट-स्पीच से जुडे सभी मामलों को सुलझाकर लोकतंत्र को प्रभावी कर देगा |
इस पर सुप्रिम कोर्ट की नेशनल लिगल सर्विस अँथारिटी के सचिव कमल सिंह ने आधिकारिक जवाब दिया | इस पर शैलेन्द्र कुमार बिराणी ने प्रति उत्तर दिया कि न तो उन्हें आर्थिक मदद चाहिए और न ही उन्हें अदालत में अलग से मामला दर्ज करवाना हैं | भारतीय लोकतंत्र में मीडिया की सबसे बडी सच्चाई मुख्य न्यायाधीश सहित सभी हाईकोर्टों के न्यायाधीशों के संज्ञान मे आ गई यहि उनके लिए बहुत हैं और भारत के नागरिक के रूप में उनका कर्तव्य यहीं पूरा हो जाता हैं |