देहरादून।पहाडोंकीगूँज ukpkg.com ,डाटकाली मंदिर हिन्दुओ का एक प्रसिद्ध मंदिर होने के साथ साथ यहाँ से आने जाने वाले सभी धर्म के लोग माँ के मंदिर में अपनी यात्रा को सुरक्षित करने के लिए प्रार्थना करते हैं। जो कि दिल्ली देहरादून हाईवे रोड पर स्थित है ।यह मंदिर देहरादून से 14 किमी की दूरी पर स्थित है। डाट काली मंदिर देहरादून के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यह मंदिर माँ काली को समर्पित है, इसलिए मंदिर को काली का मंदिर भी कहा जाता है एवम् काली माता को भगवान शिव की पत्नी “देवी सती” का अंश माना जाता है । माँ डाट काली मंदिर को “मनोकामना सिद्धपीठ” व “काली मंदिर” के नाम से भी जाना जाता है। मां डाट काली मंदिर की विशेषता यह है कि यहां एक दिव्य ज्योति 1921 से लगातार जल रही है। यह मंदिर देहरादून-सहारनपुर रोड़ के किनारे पर स्थित है इसलिए जो भी व्यक्ति यहां से जाता है मां काली का आर्शीवाद जरूर पा लेता है ।और मंदिर में तेल, घी, आटा व अन्य वस्तु चढाता है। नवरात्री के त्योहार के अवसर पर यहां बहुत बड़ी संख्या में लोग आते है, कभी कभी तो राजमार्ग को भी बन्द करना पडता है। नवरात्री के त्योहार के अवसर पर यहा भंडारा भी किया जाता है ।जहां लोग इसे मां काली का आर्शीवाद मानकर ग्रहण करते है। मंदिर के बाहर भारी तादात में बंदर पाए जाते है। बंदरो को माता का सेवक भी कहा जाता है।
डाट काली मंदिर को मां काली के चमत्कारी शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है, जो कि माता सती के 9 शक्तिपीठों में से एक है। देहरादून और सहारनपुर बॉर्डर पर स्थित इस मंदिर में यूं तो हर दिन श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है, लेकिन शनिवार को मां डाटकाली को लाल फूल, लाल चुनरी और नारियल का भोग चढ़ाने का विशेष महात्मय है। कहते हैं ऐसा करने से भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण होती है। मंगलवार और गुरुवार सहित शनिवार को मां डाटकाली मंदिर में मां के भक्त विशाल भंडारे का आयोजन करते हैं। जब भी कोई व्यक्ति नया वाहन लेता है, तो वह सबसे पहले वाहन को लेकर विशेष पूजा अर्चना के लिए मां के दरबार में पहुंचता है। कहते हैं उनके वाहन में लगी मां की चुनरी हमेशा वाहन और वाहन चालक की सुरक्षा करती है। यही वजह है कि मंदिर के पास अक्सर नई गाड़ियों की कतार लगी दिखती है।
मां डाटकाली मंदिर के महंत रमन प्रसाद गोस्वामी कहते हैं कि मां डाट काली उत्तराखण्ड सहित पश्चिम उत्तर प्रदेश की ईष्ट देवी हैं। हर रोज मां के दर्शन के लिए सैकड़ों श्रद्धालु मंदिर में पहुंचते हैं और मां सबकी मनोकामना पूर्ण करती हैं। मंदिर के निर्माण की कहानी भी बेहद अद्भुत है। कहते हैं कि वर्ष 1804 में देहरादून-दिल्ली हाईवे पर सड़क निर्माण में लगी कार्यदायी संस्था सुरंग का निर्माण कर रही थी। लेकिन कंपनी दिन में जितनी सुरंग खोदती, तो रात को उतनी ही सुरंग टूट जाती थी। इससे वह परेशान हो गए। पहले मां डाट काली को मां घाठेवाली के नाम से जाना जाता था। कहते हैं कि मां घाठेवाली ने महंत के पूर्वजों के सपने में आकर सुरंग निर्माण स्थल पर उनकी मूर्ति स्थापना की बात कही थी। कार्यदायी संस्था ने ऐसा ही किया। इस तरह मां डाट काली का मंदिर अस्तित्व में आया। शनिवार को यहां विशेष पूजा अर्चना होती है। जिसमें हजारों श्रद्धालु अपनी मुराद लेकर मां के दरबार मे पहुंचते हैं।
मंदिर के महंत ने बताया कि सिद्ध पीठ होने के चलते मंदिर का प्रसाद, धागा, चुन्नी, सिंदूर व मंत्र किया हुआ भस्म आदि सामग्री की मांग देश के कई कोने से श्रद्धालु करते रहते है। रात्रि जागरण कार्यक्रम में उत्तराखंड ,उत्तरप्रदेश हरियाणा, पंजाब ,दिल्ली, हिमाचल के श्रद्धालुओं द्वारा जागरण किया जाता है। तब माँ की प्रसिद्ध होने की जानकारी मंदिर में भगतों से मिलती है।साथ पश्चिमी उत्तरप्रदेश व उत्तराखंड के श्रद्धालु जब नई गाड़ी लेते है तो माता के मंदिर की चुनरी बंधवाने मंदिर में जरूर आते हैं। महंत रमन प्रसाद गोस्वामी के अनुसार सच्चे मन से माता के दर्शन कर पूजा अर्चना करने वाले भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। माना जाता है मंगलवार से 11 दिन तक विश्वास पूर्वक किया गया डाट चालीसा पाठ से सब मनोरथ पूर्ण होते है।