सुख हो या दु:ख ईश्वर का सुमिरन नहीं छोड़ना चाहिए : आयुष नयन
बड़कोट।। मदनपैन्यूली नगर पालिका के चंद्रेश्वर महादेव मंदिर मे आयोजित सात दिवसीय श्रीमद्भभागवत महापुराण द्वितीय दिवस में कथा का वाचन करते हुए कथा वक्ता आयुष नयन महाराज ने कहा कि मनुष्य को दुख हो या सुख प्रत्येक दशा में सदैव ईश्वर का सुमिरन करना चाहिए। सुख और दु:ख दिन-रात की तरह आते हैं और जाते हैं। कोई भी स्थाई नही है। मुश्किल घड़ी में भी ईश्वर का सुमिरन करना नही छोड़ना चाहिए, शिव मंदिर प्रांगण में इन दिनों श्रीमद्भभागवत महापुराण यज्ञ तथा देबी भागवत पुराण का आयोजन राजेश नौटियाल के द्वारा किया गया । देबी भागवत का वाचन करते हुए पंडित मोहन प्रसाद उनियाल शास्त्री ने महाभारत का प्रसंग सुनाते हुऐ कहा है कि माता कुंती को जब भगवान श्री कृष्ण ने बरदान मांगने को कह था तब माता कुंती ने दु:ख मांगा था। जिस पर श्री कृष्ण ने सवाल किया था कि दुनिया में ऐसा कोई नहीं होगा जो अपने लिए दु:ख मांगता हो। तब माता कुंती ने कहा कि जब-जब मुझे दु:ख की प्राप्ति हुई है तब-तब मुझे ईश्वर के दर्शन हुए हैं । इसलिए मैं चाहती हूं कि मुझे दु:ख मिलता रहे। इसलिए कहते हैं। मनुष्य को जितना लाभ होगा उतना ही ज्यादा लोभ भी बढ़ता जाता है । यहां भगवान पर लागू हो चुका है। उन्होंने कहा कि हर युग मे मनुष्य की अलग अलग उम्र थी । सतयुग में मनुष्य की आयु एक लाख वर्ष थी। त्रेतायुग युग में एक सुन्या हट गई और दस हजार रह गई। द्वापर युग में एक हजार रह गई और कलयुग में महज सौ वर्ष मनुष्य की आयु रह गई है। इसमें से 50 वर्ष रात्रि यानी सोने में बीत जाते हैं और 25 वर्ष तक मनुष्य की उम्र अपनी पढ़ाई लिखाई मे बीत जाती है। महज 25 वर्ष रह जाते हैं जिनमें वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में लगा रहता है । इस समय में से ही भगवत नाम सुमिरन के लिए समय आवश्यक निकाले।
इस मौके पर कथा आयोजक श्रीमती विजय लक्ष्मी नौटियाल, प्रबेश नौटियाल , आचार्य गुरु प्रसाद सेमवाल ,आचार्य बिरेश नौटियाल, प्रदीप डिमरी, सहित बड़ी संख्या में भागवत प्रेमी उपस्थित रहे।