HTML tutorial

सेंचुरी में निकाली गई भव्य कलश यात्रा का फल अश्वमेघ यज्ञ के समान

Pahado Ki Goonj

सेंचुरी में निकाली गई भव्य कलश यात्रा का फल अश्वमेघ यज्ञ के समान

?सेंचुरी में निकाली गई भव्य कलश यात्रा* *?कलश यात्रा का फल अश्वमेघ यज्ञ के समान* *?कलश यात्रा के दर्शन से मिलता है महापुण्य* *?माँ बगलामुखी की पावन जयंती के ठीक एक दिन पूर्व पीले ध्वजों के साथ निकली भव्य कलश यात्रा* लालकुआं।/रमाकान्त पन्त संंगीतमय भागवत कथा के शुभारम्भ से पूर्व व माँ बगुलामुखी जयंती के ठीक एक दिन पहले आज सेंचुरी मिल परिसर के श्री राधा कृष्ण मंदिर प्रांगण से दुर्गा पूजा पंडाल स्थल तक भव्य * *?कलश यात्रा निकाली गई कलश यात्रा की अगुवाई देश के प्रसिद्व विद्वान आचार्य श्री विष्णु कांत शास्त्री व प्रसिद्व कथावाचक आचार्य श्री मृदृलकान्त शास्त्री ने की संयोगवश माँ बंगलामुखी जयंती के ठीक एक दिन पूर्व आज से आयोजित होनें जा रही श्रीमद् भागवत कथा के शुभारभं से पहले निकली शोभा यात्रा में पीले ध्वजो ने आभामण्डल को सुशोभित कर जबरदस्त रौनक बिखेर दी*। सैकड़ों की संख्या में मातृशक्ति की अगुवाई में निकाली गई

यह यात्रा आध्यात्म जगत की यादगार यात्रा रही।इस यात्रा में जहां सैकड़ों मातृशक्तियों के सिरों पर क्लश शुसोभित थे।वही सैकड़ों की संख्या में भक्तजन नाचकर प्रभु की कृपा का यशोगान कर रहे थे।व पीले ध्वज श्रीमद् भागवत के साथ साथ माँ बंगलामुखी की महिमां का भी बखान करते नजर आ रहे थे। * *?इस दौरान श्रीमद् भागवत रुपी महापवित्र ग्रन्थ मिल के संयुक्त अध्यक्ष श्री जयप्रकाश नारायण के माथे पर सुशोभित था। सत्य व धर्म की महापताका रुपी ध्वज सर्वश्री सत्यदेव बहुगुणा,एच० के० पात्रा,नरेश चन्द्रा,के० एल० गुप्ता,सुभाष शर्मा,एस० के० बाजपेयी,पीयूष मित्तल,हेमेन्द्र राठौर,डा० सुनील मधवार,मुकुल रोहतगी,रामानन्द शर्मा,एस० के० भट्ट,अशोक कुमार,आर० के० जैन,डी० के० मिश्रा,सहित तमाम भक्तजनों के हाथों में सुशोभित थी*। *

*?मातृ शक्ति श्रीमती सुनीता नारायण,शम्मी बहुगुणा,मीरा शर्मा,बीना जोशी,गीता भट्ट,सीमा मधवार,सरिता सिंह,ऋतु अग्रवाल,प्रीति वाष्णेय,सुमन सिहं, गिरिजा शर्मा,पूर्णिमां शर्मा,रजंना गुप्ता,पूजा सचदेवा,मंजू श्रीवास्तव सहित सैकड़ों की संख्या में महिलाओं ने कलश धारण किया था*।
*उल्लेखनीय है कि हिन्दू रीति के अनुसार जब भी कोई पूजा होती है, तब मंगल कलश की स्थापना अनिवार्य होती है। बड़े अनुष्ठान यज्ञ यागादि में पुत्रवती सधवा महिलाएँ बड़ी संख्या में मंगल कलश लेकर शोभायात्रा में निकलती हैं। उस समय सृजन और मातृत्व दोनों की पूजा एक साथ होती है।यह क्लश यात्रा की सबसे बड़ी बात है* *समुद्र मंथन की कथा काफी प्रसिद्ध है। समुद्र जीवन और तमाम दिव्य रत्नों और उपलब्धियों का आपार केन्द्र है* *।इसी से क्लश की लम्बी कथा जुड़ी है*
कलश का पात्र जलभरा होता है। जीवन की उपलब्धियों का उद्भव आम्र पल्लव, नागवल्ली द्वारा दिखाई पड़ता है। जटाओं से युक्त ऊँचा नारियल ही मंदराचल है तथा यजमान द्वारा कलश की ग्रीवा (कंठ) में बाँधा कच्चा सूत्र ही वासुकी है। यजमान और ऋत्विज (पुरोहित) दोनों ही मंथनकर्ता हैं। पूजा के समय प्रायः उच्चारण किया जाने वाला मंत्र स्वयं स्पष्ट है-‘* *?कलशस्य मुखे विष्णु कंठे रुद्र समाश्रिताः मूलेतस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मात्र गणा स्मृताः। कुक्षौतु सागरा सर्वे सप्तद्विपा वसुंधरा, ऋग्वेदो यजुर्वेदो सामगानां अथर्वणाः अङेश्च सहितासर्वे कलशन्तु समाश्रिता*?।’
अर्थात्‌ सृष्टि के नियामक विष्णु, रुद्र और ब्रह्मा त्रिगुणात्मक शक्ति लिए इस ब्रह्माण्ड रूपी कलश में व्याप्त हैं। समस्त समुद्र, द्वीप, यह वसुंधरा, ब्रह्माण्ड के संविधान चारों वेद इस कलश में स्थान लिए हैं। इसका वैज्ञानिक पक्ष यह है कि जहाँ इस घट का ब्रह्माण्ड दर्शन हो जाता है, जिससे शरीर रूपी घट से तादात्म्य बनता है, वहीं ताँबे के पात्र में जल विद्युत चुम्बकीय ऊर्जावान बनता है। ऊँचा नारियल का फल ब्रह्माण्डीय ऊर्जा का ग्राहक बन जाता है। मंगल कलश वातावरण को दिव्य बनाती है।सभी धार्मिक कार्यों में कलश का बड़ा महत्व है। यज्ञ, अनुष्ठान, भागवत यज्ञ आदि के अवसर पर सबसे पहले कलश स्थापना की जाती है।
यहां यह भी गौरतलब है,धर्मशास्त्रों के अनुसार कलश को सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है। देवी पुराण के अनुसार मां भगवती की पूजा-अर्चना करते समय सर्वप्रथम कलश की स्थापना की जाती है। नवरा‍त्रि के दिनों में मंदिरों तथा घरों में कलश स्थापित किए जाते हैं तथा मां दुर्गा की विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है।भागवत कथा से पूर्व निकाली गई * *?कलश यात्रा के दर्शन से प्राणी के रोग,शोक,दुख,दरिद्रता एंव विपदाओं का हरण हो जाता है*।
कलश पर लगाया जाने वाला स्वस्तिष्क का चिह्न चार युगों का प्रतीक है। यह हमारी चार अवस्थाओं, जैसे बाल्य, युवा, प्रौढ़ और वृद्धावस्था का प्रतीक है*
पौराणिक शास्त्रों के अनुसार मानव शरीर की कल्पना भी मिट्टी के कलश से की जाती है। इस शरीररूपी कलश में प्राणिरूपी जल विद्यमान है। जिस प्रकार प्राणविहीन शरीर अशुभ माना जाता है, ठीक उसी प्रकार रिक्त कलश भी अशुभ माना जाता है।
यही कारण है। कलश में दूध, पानी, पान के पत्ते, आम्रपत्र, केसर, अक्षत, कुंमकुंम, दुर्वा-कुश, सुपारी, पुष्प, सूत, नारियल, अनाज आदि का उपयोग कर पूजा के लिए रखा जाता है। इसे शांति का संदेशवाहक माना जाता है।* *???सेंचुरी मिल परिसर में धर्म,आध्यात्म,शांति का यही संदेश आज क्षेत्र में निकाली गई कलश यात्रा में दिया गया मिल के प्रशासनिक अधिकारी एम० पी० श्रीवास्तव ने अधिक से अधिक संख्या में आज सायं पाँच बजे से आरम्भ होने जा रही भागवत कथा में अधिक से अधिक संख्या में पहुचनें का आवाहन किया है*

Next Post

भट्ट  ने कहा कि उत्तराखंड क्रान्ति दल ने राज्य निर्माण की नींव संन 1979 में की

: देहरादून दिवाकर भट्ट  ने कहा कि उत्तराखंड क्रान्ति दल ने राज्य निर्माण की नींव संन 1979 में की अलग र्राज्य उत्तराखण्ड के संघर्ष की अंतिम लड़ाई लड़ी।राज्य बनाने का मकसद यही था कि रोजगार, विकास, शिक्षा,स्वास्थ्य की समस्याओं से राज्य को निजाद मिले।व राज्य का पलायन रुक सके।लेकिन राज्य […]

You May Like