रघुवीर सजवाण तुम संघर्ष करो सुयश रावत तुम्हारे साथ है….
उत्तराखंड में बेरोजगारी के आंकड़े जानने हो तो सूबे के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज और टिहरी की जिला पंचायत अध्यक्ष सोना सजवाण के घर जाकर देखना चाहिए की किस प्रकार अरबपति सतपाल महाराज के करोड़पति पुत्र सुयश रावत और करोड़पति सोना सजवान के करोड़पति पति रघु सजवान बेरोजगारी में दिन काट रहे हैं
28 तारीख को इन दोनों के जो साक्षात्कार होना है उसे तत्काल रद्द कर देना चाहिए और 27 तारीख को इन दोनों को बुलाकर ठेका सौंप देना चाहिए
अपनी पार्टी की सरकार होने के बावजूद अगर मंत्री के बेटे को और जिला पंचायत अध्यक्ष के पति को ठेका न मिले तो ऐसी नंबर वन पार्टी का क्या करना है
मैं पूरी तरह से करोड़पति सुयश रावत और करोड़पति रघु सजवाण को ठेके देने के पक्ष में हूं कम से कम दो लोगों की बेरोजगारी तो दूर होगी
मैं महेंद्र भट्ट ,पुष्कर धामी और किशोर उपाध्याय से अनुरोध करता हूं कि टिहरी बांध विस्थापित और टिहरी बांध प्रभावितों को आने वाले समय में पन्ना प्रमुख की पोस्ट पर भर्ती करें ताकि वो लोग सतपाल महाराज और सोना सजवान के लिए वोट मांगने के लिए जिंदा रहें
हर हर पन्ना घर घर पन्ना
मैं भी पन्ना तू भी पन्ना आओ मिलकर चूसें गन्ना
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सतपाल महाराज को उनके पिता जी ने बचपन में ही भगवान घोषित कर दिया था. संत आदमी वे हैं ही ! यूं संतों के बारे में कवि कुंभन दास लिख गए हैं- संतन को कहां सीकरी सो काम !
आजकल तो सारे संतन कहे जाने वालों को सीकरी से ही काम है, सबको संसद-विधानसभा जाना है, मंत्री- मुख्यमंत्री बनना है ! इसके लिए साधुओं का जो मूल स्वभाव बताया गया है कि “साधू ऐसा चाहिए जैसे सूप सुभाय, सार-सार सो गही रहयो, थोथा देय उड़ाय”, उसे दरकिनार कर वो थोथा ही पकड़ रहे हैं, थोथा ही फैला रहे हैं !
लेकिन “सीकरी सो ही काम ” वाले संतन के सतपाल महाराज पॉयनियर कहे जा सकते हैं. नब्बे के दशक में एक बार को छोड़ कर वे लगातार चुनाव हारते रहे, लेकिन उन्होंने तय कर लिया था कि उन्हें तो “सीकरी सो ही काम” है ! और अंततः “सीकरी” वे पहुंचे भी ! पहले कॉंग्रेस और अब भाजपा से पहुंचे हुए हैं. पत्नी भी उनकी “ सीकरी स्वाद” ले चुकी हैं.
“सीकरी स्वाद” और भक्तगणों को मोह-माया से विरत होने का उपदेश देने के बीच उनके पुत्र सुयश रावत, टिहरी बांध के जलाशय में क्रूज़ बोट का संचालन करने का टेंडर भरे हुए हैं ! सुयश रावत जी क्रूज़ बोट संचालन का ठेका पिता जी के विभाग यानि पर्यटन विभाग के अंतर्गत ही चाहते हैं ! पिता जी को जब संत होते हुए “सीकरी सो काम” है तो बेटे की क्रूज़ संचालन की आकांक्षा में कहां खोट है, कहां रोक है ! और वे कौन सा अकेले हैं ! प्रेमचंद अग्रवाल के बेटे उपनल के जरिये जे ई बने तो गामा की बेटी पीआरडी के जरिये अकाउंटेंट ! विधानसभा में अपनों की बैकडोर भर्ती में तो कुंजवाल-अग्रवाल सब साथ थे ही !
सुयश भी अपने और पिता के खाते में यह “यश” दर्ज करवाना चाहते हैं तो इसमें वे कौन सा नया कुछ कर रहे हैं ! और देखिये कितने नियम- कायदों वाले व्यक्ति हैं कि डीएम के सामने ठेका हासिल करने के लिए प्रेजेंटेशन देंगे ! वरना तो बचपन में भगवान घोषित और वर्तमान में सत्ताधारी भगवान, जिनके पिता हों, उनके घर तो डीएम को खुद ही जाना चाहिए था कि टेंडर नियम कायदों को मारिए टक्कर, ये लीजिये ये क्रूज़ का ठेका आपका ! या यूं भी हो सकता था कि डीएम हर महीने जा कर सीधे क्रूज़ की आय का पैसा उनके चरणों में ऐसे रख जाते, जैसे भक्तगण चढ़ावा चरणों में रख आते हैं !
तुम तुच्छ मनुष्य क्या समझते हो कि जिनको बचपन में भगवान घोषित कर दिया हो, जिनके दर्जनों आश्रम हों, लाखों रुपया चढ़ावा आता हो, उनके बेटे को क्रूज़ बोट का या किसी और का टेंडर भरने या ठेका करने की जरूरत है ! नहीं हे मूरख खल कामी मनुष्य, पर्यटन मंत्री पिता के विभाग में पुत्र के टेंडर भरने में कनफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट यानि हितों का टकराव मत समझ ! बचपन में भगवान घोषित होने वालों की लीला समझ इसे ! और फल की इच्छा तो तुझे रखनी ही नहीं है तुच्छ मनुष्य, फल तो प्रभु पुत्र ही खाएगा और ज्यादा हुआ तो टेंडर सूची में जो दूसरा भाजपाई होगा, वो ये फल पाएगा !