भारतीय उच्चतम न्यायालय के तत्वाधान में सार्वजनिक “हत्या”

Pahado Ki Goonj

🌹🙏🙏🙏🙏🙏🌹सभी प्रेस के साथियों से निवेदन है कि *अपनी-अपनी फोटोसभी नेताओंकेसाथ खींचकरअपनीDP पर लगाए परअपने अधिकारों कीलड़ाई में भी आगे बढ़ें* *मीडिया को संवैधानिक अधिकार दिया जाय* रोज अपने पत्र, पोर्टलों मे सर्वोच्च प्राथमिकता से प्रकाशित कीजिएगा!जीत मणि पैन्यूली संयोजक अखिल भारतीय प्रेस संवैधानिक अधिकार दिलाने हेतु संघर्ष समिति 11/10 राजपुर रोड देहरादून -248001🙏

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🔭साइंटिफिक-एनालिसिस🔬

भारतीय उच्चतम न्यायालय के तत्वाधान में सार्वजनिक “हत्या”

दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश व अपने आप को धर्मनिरपेक्ष कहने वाले इंडिया में वहां के संविधान की व्याख्या करके न्याय करने वाली सबसे बड़ी संस्था भारतीय उच्चतम न्यायालय के तत्वाधान में सार्वजनिक रूप से 22 जनवरी, 2024 को हत्या करी जायेगी । यदि सनातन व हिंदू धर्म और संस्कृति के अनुसार यदि मंत्रों ने काम करा तो एक पत्थर की मूर्ति में प्राणों की प्रतिष्ठा हो जायेगी और वह मीडिया के लाईव टेलिकास्ट में सबके सामने बोलकर, हंसकर व चलकर दिखायेगी | इससे इंडियन कानून व्यवस्था व अन्तर्राष्ट्रीय न्यायिक प्रक्रिया के तहत प्राण-प्रतिष्ठा करने वाले व उपस्थिति सभी सहायकों को एक सफल चिकित्सा परीक्षण करने के लिए सबसे जघन्य हत्या के अपराधों की सजा से मुक्त कर अवार्ड के रूप में सम्मानित किया जा सके |

09 नवम्बर, 2019 को भारतीय उच्चतम न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अयोध्या में राम मन्दिर व बाबरी मस्जिद विवाद पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया था | भारतीय संविधान को मूल आधार बनाकर व उसकी विवेचना करते हुए एक पत्थर की मूर्ति को जीवित इंसान मानते हुए उसे मन्दिर की जमीन का मालिकाना अधिकार दिया था | इसके साथ वहां पर मन्दिर बनाने की अनुमति दे दी | अदालत की वर्षों तक चली सुनवाई में उस पत्थर को एक कम उम्र का बालक मानते हुए अदालत की प्रक्रिया में उपस्थित होंने की छूट दे रखी थी और उसके सहायकों ने सारी कानूनी प्रक्रियाओं को पुरा करा था |

अब अदालत के ऐतिहासिक फैसले के करीबन पांच वर्षों के बाद प्रौढ हो चुके उस जीवित बालक का मन्दिर आधे से ज्यादा पुरा बन चुका हैं | इस जीवित बालक रामलला ने आजतक एक भी बार अन्य जिंदा इंसानों की तरह सामने आकर सार्वजनिक रूप से बयान नहीं दिया | मन्दिर के अधूरे निर्माण में ही 22 जनवरी, 2024 को प्राण-प्रतिष्ठा की घोषणा उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रमाणित जीवित रामलला के सहायकों ने अपनी तरफ से कर दी |

इस प्राण-प्रतिष्ठा के अन्तर्गत हिन्दू धर्म के रिति-रिवाजों के अनुसार मंत्रों के माध्यम से पत्थर की मूर्त में प्राण डाले जाते हैं | दुनिया के किसी भी लोकतांत्रिक देश की अदालत में इसे जादू-टोना, अंधविश्वास, तंत्र-मंतर माना जाता हों परन्तु भारतीय उच्चतम न्यायालय इसे संविधान के अनुसार सच मानकर प्रमाणित भी करती हैं |

इस प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम में एक प्रौढ बालक की मूर्ति में प्राण डाले जायेंगे | इसके लिए सर्वप्रथम भारत के उच्चतम न्यायालय ने जिस मूर्ति रामलला को जीवित होने की प्रमाणिकता विधि द्वारा स्थापित विधान की शपथ अनुसार संवैधानिक रूप से दी उसके प्राण बाहर निकाले जायेंगे अर्थात कानून की भाषा में हत्या करी जायेगी | इसके लिए जीवित रामलला का कोई बयान व लिखित सहमति का शपथ पत्र सामने नहीं आया और न ही सर्वोच्च अदालत से ऐसी अनुमति मांगी या उसने दी हैं । इस कारण यह सार्वजनिक रूप से किसी की हत्या करने के जघन्य अपराध के दायरे में आता हैं | यदि यह काम भारत के राष्ट्रपति के द्वारा होता तो कानूनी रूप से कुछ नहीं होता क्योंकि संविधान उन्हें किसी भी अपराध व प्रक्रिया में सुनवाई व सजा देने की छूट देता हैं ।

इसके आगे का मामला हैं किसी पत्थर की मूर्ति में प्राण डालकर उसे जिन्दा करने का | यह अपने आप में इंसानी सभ्यता की सबसे बड़ी खोज या अविष्कार होगा | यदि वर्तमान में हिन्दू धर्म के चार शंकराचार्यों की मंत्रों के इस्तेमाल हेतु तय समय व गलत परिस्थितियों वाली बात सच साबित हुई तो नई प्रौढ रामलला की मूर्ति में प्राण स्थापित नहीं होंगे व अन्य जीवित लोगों की तरह व न बोलकर, चलकर व ईशारे करके बतायेगी | इसके बाद हालात और ज्यादा विकट हो जायेंगे क्योंकि पुरानी रामलला की मूर्ति मे भी वापस प्राण नहीं डाल पायेंगे |

इस पर भारतीय उच्चतम न्यायालय को तुरन्त दोषियों को हत्या की सजा सुनाकर न्याय करना पडेगा अन्यथा ढोगी, पाखन्डी बाबाओं द्वारा आम लोगों को भ्रमित कर प्राणों को ट्रांसफर करने के नाम पर हत्या करने का लाईसेंस मील जायेगा | इसके साथ धूर्त, मक्कार, लालची सलाहकारों को रामलला का बडा हो जाने का बोलकर चुनाव में खड़ा करके संवैधानिक तरीके से लोकतंत्र पर भगवान रामलला का मुखौटा लगाकर स्वयं शासक के रूप पर सत्ता चलाने व सभी सुविधाओं को भोगने का मार्ग मील जायेगा | इसके साथ बडे़ जीवित भगवान को लडकी दिखाने के नाम पर देवदासी जैसी कुप्रथाओं के वापस आने के डर से भारतीय समाज सहम जायेगा |

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हटाने की कार्रवाई की गई। अतिक्रमण मुक्त अभियान के दौरान अवैध होर्डिंग्स भी हटाये गए।

नगर निगम ने 75 चालान करते हुए रुपए 82400 के अर्थदंड की कार्रवाई की गई, पुलिस द्वारा लगभग 73 चालान करते हुए, रुपए 34250 के अर्थदंड की कार्रवाई की गई। इसी प्रकार आरटीओ द्वारा लगभग 35 चालान करते हुए रुपए 17500 के अर्थदंड की कार्रवाई की गई। जिलाधिकारी ने संबंधित विभागों के अधिकारियों को निर्देशित किया है, कि अतिक्रमण के विरुद्ध नियमित अभियान चलाते हुए, फुटपाथ, सड़कों को अतिक्रमणमुक्त करें तथा किसी भी दशा में उन्हें पुनः अनाधिकृत रूप से अतिक्रमण व किसी भी प्रकार की अवाछनीय गतिविधिया संचालित न होने दे।

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प्रधानाचार्य, महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स कॉलेज, देहरादून राजेश ममगाईं ने अवगत कराया है कि
दिनांक 16 जनवरी, 2024 से प्रारम्भ महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स कॉलेज परिसर में प्रथम एम.पी.एस.सी. क्रिकेट कप टूर्नामेंट-2024 के अन्तर्गत आज दिनांक 18 जनवरी, 2024 को सेमीफाइनल मैच निम्नानुसार टीमों के मध्य खेले गये :-

1. प्रथम सेमीफाइनल मैच महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स कॉलेज की ‘A’ टीम और दून वैली पब्लिक स्कूल के मध्य खेला गया जिसमें प्रथम पारी में दून वैली पब्लिक स्कूल ने टॉस जीत कर 22 ओवर में 70 रन का स्कोर बनाते हुये 71 रनों का लक्ष्य देते हुये ऑलआउट हो गयी। जिसे महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स कॉलेज की टीम ‘A’ ने 9.4 ओवर में 74 रन बनाकर उक्त मैच को 07 विकेट से जीत लिया। स्पोर्ट्स कॉलेज के खिलाडी मा० उज्जवल को प्लेयर ऑफ द मैच चुना गया।

2. द्वितीय मैच बलूनी पब्लिक स्कूल और महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स कॉलेज की ‘B’ टीम के मध्य खेला गया जिसमें प्रथम पारी में बलूनी पब्लिक स्कूल ने टॉस जीत कर 21 ओवर में 06 विकेट खोकर 160 रन का स्कोर बनाते हुये 161 रनों का लक्ष्य दिया गया। महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स कॉलेज की ‘B’ टीम द्वारा 17.5 ओवरों में 96 रन बनाते हुये ऑलआउट हो गयी इस प्रकार सोशल बलूनी पब्लिक स्कूल ने कुल 64 रनों से मैच जीत लिया। बलूनी पब्लिक

स्कूल के खिलाडी मा० सचिन यादव को प्लेयर ऑफ द मैच चुना गया। कल दिनांक 19 जनवरी, 2024 को फाइनल मैच महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स कॉलेज एवं बलूनी पब्लिक स्कूल के मध्य प्रातः 9:30 से खेला जायेगा।
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देहरादून , सचिव/वरिष्ठ सिविल जज, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, ने अवगत कराना है कि मा० उत्तराखण्ड राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण नैनीताल द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुपालन में 09 मार्च 2024 को राष्ट्रीय लोक अदालत का आयोजन किया जाना है, जिसमें फौजदारी के शमनीय वाद, धारा 138 एन.आई. एक्ट से सम्बन्धित वाद, मोटर दुर्घटना प्रतिकर सम्बन्धित वाद, वैवाहिक/कुटुम्ब न्यायालयों के वाद (विवाह विच्छेद को छोड़कर), श्रम सम्बन्धित वाद, भूमि अर्जन के वाद, दीवानी वाद, राजस्व सम्बन्धित वाद, वेतन-भत्तों एवं सेवानिवृत्ति से सम्बन्धित वाद, धन वसूली से सम्बन्धित वाद, विद्युत एवं जलकर बिलों के मामले (अशमनीय मामलों को छोड़कर), अन्य ऐसे मामले जो सुलह-समझौते के आधार पर निस्तारित हो सके।
उन्होंने कहा कि जो पक्षकार अपने वादों को राष्ट्रीय लोक अदालत के माध्यम से निस्तारित करवाना चाहते है, वह सम्बंधित न्यायालय, जहाँ उनका मुकदमा लम्बित है, में स्वयं या अपने अधिवक्ता के माध्यम से प्रार्थनापत्र देकर अपने वाद राष्ट्रीय लोक अदालत के लिये नियत करवा सकते हैं। उक्त लोक अदालत में आपसी रजामन्दी से वादों का निस्तारण किया जाता है तथा काफी कम खर्चे व समय पर वाद निस्तारित हो जाते हैं, जिससे समाज का गरीब वर्ग भी अपने वादों को सौहार्दपूर्ण वातावरण में निस्तारित कर लाभान्वित होते हैं। लोक अदालत में निस्तारित वादों में पक्षकारों को यह भी फायदा मिलता है कि न्याय शुल्क वापस हो जाता है तथा इसका फैसला अंतिम होता है।

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ज्योर्तिमठ शंकराचार्य स्वामी अभिमुक्तानंद सरस्वती की अपील 

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