पांचवा धाम सेम मुखेम नागराजा मंदिर जहां के दर्शन करने होती है मनोकामना पूरी ।। (जीतमणि ,मदन पैन्यूली) बड़कोट उत्तराखंड का पांचवां धाम, सेम मुखेम स्थित श्री नागराजा का प्रसिद्ध मंदिर है, जहाँ पहुँच कर अलौकिक शांति मिलती है। खूबसूरत वादियों के बीच बने मंदिर में प्रवेश करने से पहले आदि शक्ति शेष नाग के फन से सुशोभित द्वार को नत मस्तक करके घंटे के ध्वनि से भगवान श्री कृष्ण को जगाना पड़ता है”हे प्रभो मैं तेरी शरण में सचे भाव और मन से पहुँच गया हूँ। “आपको यह प्रकरण तो जरूर याद होगा कि ” यमुना के किनारे जब गोपियों की गेंद नदी में चली गई थी तो श्री कृष्ण ने यमुना में रह रहे कालिया नाग को नाथ कर गेद वापिस गोपियों को दी और कालिया को यमुना का आवास छोड़ने की सलाह दी थी। कालिया ने भगवान श्री कृष्ण से अनुरोध किया था कि अब आप ही मुझे नया स्थान दीजिए । श्री कृष्ण जी ने हिमालय के इस खूबसूरत स्थान की महिमा बता कर कालिया को यहाँ रहने की सलाह दी और ये भी कहा कि मैं समय समय पर यहाँ तुझे दर्शन देने आया करूँगा। लोग मेरे साथ तेरी भी पूजा करेंगे। कहते हैं कि जीवन के अंतिम समय मे भगवान कृष्ण ने यही बास किया थाऔर गुप्त सेम में रहने लगे थे। जनश्रुति के अनुसार जब श्री कृष्ण अपने सफेद घोड़े में सवार होकर यहाँ पधारे थे तो सतरंजी सौड
में उतरकर उन्होंने रमोली गढ़पति गंगू रमोला से ढाई गज जमीन रहने के लिए माँगी थी, लेकिन गढ़पति ने इंकार कर दिया। श्री कृष्ण ने रुष्ट होकर राजा का बैभव समाप्त कर दिया तब राजा ने माफी मागी। श्री कृष्ण ने गंगू राजा से अपना मंदिर बनाकर पूजा करने की सलाह दी। गढ़पति गंगू रमोला ने छ: जगह पर मंदिर की स्थापना की लेकिन मंदिर न बन सका बाद मे वह भगवान श्री कृष्ण के शरण में गया। श्रीकृष्ण ने उपयुक्त जगह बताई तब सातवी बार वह मंदिर बनाने में सफल हो गया। कहते हैं 11 गते मंगशीर्ष को उसने वहाँ बिधि बिधान से प्राणप्रतिष्ठा के साथ पूजा की। आज भी 11 गते मंगशीर्ष को हर तीसरे साल यहाँ पर बड़ा मेला लगता है। जिन सात स्थानों पर गंगू रमौला ने मंदिर बनाए थे उन स्थानों को सप्त सेम के नाम से पुकारते हैं ये सप्त सेम आस पास ही दो से तीन कि मी के परिधि में स्थित है। ये हैं १_लुक्का सेम २_भुक्का सेम ३_आरुणी सेम ४_ वारुणीं सेम ५_आर्कटा सेम ६_प्रकटा सेम ७_गुप्त सेम। प्रकटा सेम में मुख्य मंदिर है। यहाँ पर जब पूजा लगती है तो दीन गाँव से बतीश किलो वजन का चाँदी से निर्मित ढोल आता है और उसे बजाया जाता है। मंदिर के दाहिनी भाग में स्थित जल स्रोतों को बहुत शुध्द माना जाता है यहाँ पर दोष लगने पर लोग चाँदी के नाग बना कर चढाते हैं। मंदिर के बगल में गंगू रमोला का भी मंदिर बना हुआ है। गढवाल में नागराज जी के दो ही मंदिर प्रसिद्ध हैं। पौड़ी से, 35कि मी की दूरी पर बहुत ही रौतैली (रमणीय स्थान) जगह है जहाँ पर श्री कृष्ण जी ने बद्रीनाथ जाते समय विश्राम किया था, इस स्थान को डाँडा नागराज के नाम से प्रसिद्ध मिली। जन श्रुति के अनुसार लसेरा गाँव के एक आदमी की गाय नित्य इस स्थान पर आकर एक पत्थर के ऊपर दूध देती थी। एक दिन गाय के मालिक ने इस पत्थर को कुल्हाडी से दो टुकडे कर दिये। एक टुकड़ा सेम मुखेम जा गिरा। आज भी जब डाँडा नागराजा में जागर लगते हैं तो पहले सेम नागराज का आहवाहन होता है।
बहुत ही खूबसूरत स्थान है, दिब्य और अलौकिक है। प्राकृतिक आभा से परिपूर्ण है, सिद्ध स्थान हैं, मनोकामना पूर्ण करने वाला तीर्थ है। यहाँ सेमवाल जाति के ब्राह्मण रावल पुजारी है। मंदिर यज्ञ का कार्य भट्ट ब्रह्मा लोग करते हैं। यहां पर हजारों यात्री स्वयं अपने आप इकठ्ठे होकर भगवान के मंगल गीत गाते हैं यह मेंला रात्रि में भी चलता रहता है ।भगवान की इतनी कृपा है कि आज तक के इतिहास मे किसी जंगली जानवर ने रात्रि में चलने वाले लोगों पर हमला नहीं किया है इसलिए आस्था और प्रगाढ़ होती है आस पास के 20 किमी दूरी तय करने वाले पहले अपने घर से पहले खाना खा कर घर से चलते थे और सुबह 4 बजे दर्शन कर घर आने की तैयारी करने लग जाते थे। परन्तु इस दिन को पवित्रता बनाए रखना हमारा पुनीत कर्तब्य है। यहाँ के पर्यवरण को भी बचाना हमारा पुण्य धेय्य होना चाहिए। इस पवित्र धाम के दर्शन करने के लिए उत्तराखंड नहीं बल्कि देश-विदेश से भी लाखों की संख्या मेंफFL के भक्त दर्शन करने आते हैं