कोष कृषि मंडी परिषद में 3 रुपये प्रति क्विंटल धर्म काँटे के माप तोल से बनाया जाय।
प्रदीप,मदन पैन्यूली
देश के हिमालय राज्यों के गांवो में बिजली के आभाव में अंधकार की दुनिया में रहने वाले भोले-भाले पर्वत निवासी अपने दर्द को बयां भी नहीं कर पाते। बस अंधकार की मार झेलते रहते हैं। गांवों की सड़कों की हालत बहुत ही खस्ता है, लोगों को परिवहन सुविधाओं में भी असहजता से समझौता करना पड़ता है। स्वास्थ्य के संबध में कहा जाता है कि स्वस्थ्य तन तो स्वस्थ मन, लेकिन उत्तराखण्ड हो या अन्य हिमालय प्रदेश के गांवो के अस्पतालों को देखकर लगता है ये किसी मज़ाक से कम नहीं हैं।
आज जिस प्रकार से सरकार गांवों के विकास के नाम पर तरह-तरह की योजनाएं बनाए जा रही हैं। वही उन योजनाएं पहाड़ों तक पहुंचते-पहुंचते सिर्फ सरकारी कार्यालयों के कागजों में सरकारी कर्मचारियों को आबाद करती हैं। जिस कारण पहाड़ों से गांव दिन प्रतिदिन वीरान होते चले जा रहे हैं। इस कारण धीरे-धीरे शहरों की आबादी में भारी वृद्धि हो रही है। ग्रामीणों का शहरों की ओर पलायन करने के कारण गांवो के खेती बंजर होती चली जा रही है और यहां के परम्परागत मकान धीरे-धीरे खंडरों में तबदील होते जा रहे हैं। जहां शहरों की चकाचौंध ग्रामीणों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है, वहीं ग्रामीणों क्षेत्रों में सुविधओं की कमी भी उन्हें शहर जाने के लिए प्रेरित कर रही है। सरकार के नुमाइंदे भी गांव के विकास की ओर कम और शहर के विकास पर ज़्यादा ध्यान दे रहे हैं।
आज भी ऐसे कई गांव देखे जा सकते हैं, जहां शिक्षा, सड़क, बिजली जैसे कई मूलभूत सुविधाओं का आभाव है। ग्रामीणों को आज भी पीने के पानी के लिए कई किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। स्वास्थ्य की बात की जाए तो ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी चिकित्सालय तो खोल दिए गए हैं। लेकिन वहां या तो डॉक्टर नहीं है या फिर साधन ही उपलब्ध नहीं है।
वहीं हाल शिक्षा का भी है। कई विद्यालय भवन की जर्जर हालत और शिक्षकों की कमी का रोना रो रहे हैं। कई गांव आज भी सड़क से महरूम है, ग्रामीणों को कई किलोमीटर दूरी तय कर कच्चे पक्के रास्तों से होकर गांव में जाना पड़ता है। साथ ही वहां ना तो बिजली की उचित सुविधा है और ना ही आमदनी का कोई ज़रिया। ऐसे में ग्रामीणों को कई कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है।
खेती-बाड़ी के काम में भी नुकसान होने के कारण ग्रामीणों का गांव से मोह भंग हो गया है। सरकारें भले ही गांवो के विकास की बात कर रही है लेकिन हकीकत यह है कि यहां भी सुविधाओं का आभाव है। जिस कारण लोग पहाड़ से मैदान की ओर भागे जा रहे हैं। भारत गांव का देश है और सरकार द्वारा भी ग्रामीणों के विकास के लिए तरह-तरह की योजनाएं बनाई जाती हैं। लेकिन सरकार की यह योजनाएं मैदानी इलाकों तक ही सिमट कर रह जाती हैं। पहाड़ो में गांव तक योजनाएं तो जाती हैं मगर शायद ही कही धरातल पर कार्य किया जाता है। जिस कारण पहाड़ों के गांव विकास की गति से बहुत पीछे रह गए हैं और गांव की जवानी मैदानी क्षेत्रों में पलायन करने को मजबूर है।
सरकार को चाहिए कि वह पहाड़ों में रोज़गार के साधनों का विकास करें और करवाये। रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधाओं का विकास करने पर पहाड़ों से पलायन रोका जा सकता है। गांवों का विकास सरकार यहां की जवानी को विकास के लिए इस्तेमाल कर सकती है। जनता को सीधा सीधा प्रोहत्सान राशि पलायन रोकने के लिए
तेलंगाना की सरकार 8000 रुपये प्रति परिवार दे रही है ।
साथ ही पहाडोंकीगूँज ने बराबर मांग उठाई फ़सल के नुकसान से किसान परेशान है 50 000 ₹/ हेक्टेयर प्रतिपूर्ति दी जाय। देश के किसानों को 50000₹/हेक्टेयर फसल की छति के लिये प्रतिपूर्ति एवं 30,000 ₹प्रोत्साहन राशि/हेक्टेयर दी जाय। किसान अव्यवहारिक नीति के कारण फसलों की कीमतें सही ,समय पर न मिलना।ओला बृष्टि ,सूखा ,बाढ़,जंगली जानवरों हो रहे नुकसान की वजह से किसानों की रुचि खेती करने में कम हो रही है। लगातार देश हित में पहाड़ों की गूँज राष्ट्रीय समाचार पत्र किसानों की पीड़ा प्रकाशित करता रहा जिसके फलस्वरूप 2015-2016 में दिल्ली प्रदेश ने संज्ञान लिया किसानों को उक्त धन राशि फसल प्रतिपूर्ति दी गयी।ओर प्रतिपूर्ति देरही है । इसके देने के बाद पहड़ों का पलायन रुकेगा। कुछ राज्य सरकार उद्योग को तो फायदा देरही किसानों को लंबी प्रक्रिया से नुकसान हो रहा है। बीमा कम्पनीया फसल बीमा केलिये है उनकी मौज हो रही है । जब तक सब की भूख मिटाने वाला
किसान अव्यवहारिक नीति के कारण परेशान रहेेगा । तब तक देश में पलायन नहीं रुक सकता है। नीति का व्यवहारिक बनाना लोकतंत्र के लिए भी जरूरी है।फसल के नुकसान का जायजा लेकर प्रतिपूर्ति,प्रोहोत्साहन राशि सीधे किसान को देने की ओर देश की किसी सरकार का ध्यान नहीं गया। हिमालय राज्यों में किसानों को सीधे प्रोत्साहित करना देश हित मे है।
इसके लिए स्थाई कोष बनाया जाय
सरकार को 90 लाख करोड़ का एक किसान फसल प्रति पूर्ति एवं प्रोहत्सान कोष गठित कर उस कोष से किसानों को सीधे खाते में राहत देकर पलायन रोका जा सकता है ।यह कोष कृषि मंडी परिषद में 3 रुपये प्रति क्विंटल धर्म काँटे की राशीद से माप की गई मात्रा से प्राप्त राशि से बनाया जाय। इस पहल को देश हित में शेयर करें। ताकि लाखों लोगों को आत्महत्या करने से रोकने में सहयोग मिले । अन्न दाता देश का किसान जनता के लिए आपके सहयोग से सरकार की इच्छा शक्ति बढ़ा कर उनके लिए मेहरबान होसके।